रोजगार गारन्टी योजना बनी इन्जीनियरों की कमाई का जरिया
रोजगार गारन्टी योजना में नहीं मिल रहा है वास्तविक मजदूरों को रोजगार
करोडों खर्च होने के बावजूद भी नहीं दिख रहे हैं कार्य
मुरैना 22 मई 09 (दैनिक मध्यराज्य) कैलारस -मुरैना-, ग्रामीण क्षेत्र के गरीब मजदूरों को रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से प्रारम्भ की गई राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी योजना का लाभ ग्रामीण क्षेत्र के गरीब मजदूरों को तो नहीं मिल रहा है। बल्कि यह योजना, पदस्थ इन्जीनियरों की कमाई का जरिया अवश्य बन गई है। उक्त योजना 1 अप्रैल 2008 को प्रारम्भ की गई थी। उक्त योजना के प्रारम्भ होने के 10 माह बाद कैलारस जनपद के अन्तर्गत आने वाली 65 ग्राम पंचायतों में मात्र ढेड करोड के काम ही हो पाए थे, अचानक 2 माह में उक्त कार्यों में इस भीषण गर्मी के मौसम में अचानक इतनी तेजी आई कि आंकडा ढेड करोड से 6 करोड पर पहुंच गया। सबसे हास्याप्रद बात तो यह है कि 6 करोड के निर्माण कार्यों में 1 भी कार्य पूर्ण नहीं हुआ है। जबकि वित्तीय वर्ष 31 मार्च 2009 को समाप्त हो चुका है। जो कि शंकाओं के घेरे में है। लोगों में चर्चा का विषय है कि रोजगार गारन्टी योजना के कार्य अधिकांश मिट्टी कार्य होते हैं, जिनका नामोनिशान वारिष शुरू होते ही मिट जाएगा। रोजगार गारन्टी योजना में पदस्थ अधिकारी इन कार्यों के पूर्णत: प्रमाण-पत्र इसीलिए ही जारी नहीं कर रहे हैं कि थोडे समय बाद वर्षात आ जाएगी और उक्त कार्यों पर पर्दा डल जाएगा और 6 करोड की राशि के पूर्णत: प्रमाण पत्र बैक डेट में जारी कर दिए जाएंगे।
मुरैना जिले में जनपद पंचायत कैलारस के अन्तर्गत जिले में अन्य जनपदों की तुलना में सर्वाधिक मजदूरों को काम पर दर्शाया जा रहा है। जिनका आंकडा 11 हजार मजदूर प्रति सप्ताह दर्शाया जा रहा है। जबकि केवल पहाडगढ ब्लॉक को छोडकर सबलगढ में 3 हजार, जौरा में 104, अम्बाह में 435, मुरैना में 2 हजार प्रति सप्ताह कार्य करना दर्शाया गया है। इससे साफ जाहिर होता है कि क्या मजदूर योजना प्रारम्भ के समय नहीं थे। क्या मजदूर पिछले 2 माह में ही गर्मी के समय पर कार्य करने को तैयार हुए हैं यह सब जांच का विषय है। मोटा धन कमाने की इच्छा रखने वाले इस योजना के तहत पदस्थ इंजीनियर अधिकांश संविदा नियुक्ति वाले हैं जिन्हें मैदानी क्षेत्र का ठीक से ज्ञान भी नहीं है। यह कार्य का प्राक्कलन संबंधित ऐजेंसी के कहने पर घर बैठकर उनकी इच्छानुसार तैयार कर शासन को लाखों रूपये का चूना लगा रहे हैं। उक्त कार्यों में 60,40 का अनुपात मजदूरी एवं मटेरियल का नहीं मिल पा रहा है। चल रहे निर्माण कार्यों पर कोई साइन बोर्ड नहीं लगाए गए हैैं। पत्थर खरंजा के कार्यों में दोनों साइड में फर्शी नहीं लगाई गई है तथा मिट्टी ग्रेवल रोड के कार्य में वाटरिंग रोलरिंग व काम्पेक्शन का कार्य सहीं नहीं हुआ है। वृक्षारोपण के कार्य अधिकांश पौधे बिना किसी देखरेख के समाप्त हो गए हैं। इस प्रकार इंजीनियरों की सांठ-गांठ से अधिकांश कार्य हल्की गुणवत्ता के किए जा रहे हैं। यहीं नहीं क्रियान्वयन ऐजेंसियों द्वारा ग्राम के भोले-भाले मजदूरों को काम पर न लगाकर अपने नजदीकी लोगों के नाम से मस्टर भरकर उनके माध्यम से पैसा निकाल रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि जरूरतमंदों से कार्य की पूछा भी नहीं गया है। अधिकांश कार्य ऐजेंसियों के यदि मस्टर चैक किए जाएं तो यह साफ हो जाएगा कि जिन लोगों के नाम से मस्टर भरे गए हैं। उनमें से अधिकांश लोग मजदूरी का कार्य नहीं कर सकते हैं। दूसरी ओर जिला प्रशासन द्वारा बी.पी.एल.सर्वे के हितग्राहियों के हजारों नाम सिर्फ इसलिए काटे जा रहे हैं कि यदि वह मजदूरी नहीं कर रहे हैं तो गरीब नहीं हैं। इस प्रकार उन भोले भाले गरीबों पर यह दबाव बनाया जा रहा है कि वह कार्य करें। जबकि उन्हें वास्तविकता का पता ही नहीं।
स्थानीय बैंकों में देखा जा सकता है कि मजदूरों के नाम से संबंधित क्रियान्वयन ऐजेंसी एवं उसके लोग किस प्रकार मजदूर के साथ आते हैं और उनके नाम से पैसा निकलवाकर 100-200 रूपये पकडाकर शेष राशि उनसे ले ली जाती हैं। इस संबंध में कुछ सरपंचों ने अपना नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि रोजगार गारन्टी योजना जैसे कार्यों में पूर्णत: प्रमाण पत्र इसलिए जारी नहीं हो रहे हैं क्योंकि इसके लिए हमें अधिकारी को सुविधा शुल्क देना पडेगा। इस संबंध में रोजगार गारन्टी योजना के कैलारस में पदस्थ अनुविभागीय अधिकारी रामसेवक शर्मा से जब चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि कैलारस ब्लॉक में लगभग 95 कार्य चल रहे हैं लेकिन कार्यों में कहीं न कहीं कोई कमी होने के कारण पूर्णत: प्रमाण-पत्र जारी नहीं हो सके हैं।
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