बांस का फूल - वनस्पति जगत का रहस्य
पृष्ठभूमिका
संभवत: बांस से परिचित हरेक व्यक्ति ने यह सुना होगा कि जब बांस से फूल निकलता है तो वह मर जाता है। हालांकि कभी-कभार ही ऐसा होता है न कि सदैव। इसके बावजूद भी बांस के पौधे में फूल आने की घटना को अक्सर ही उसकी मौत की भविष्यवाणी से जोड़ेकर देखा जाता है।
बांस में फूल आना वनस्पति जगत की एक पहेली है। वे तथ्य जो बांस के पौधे को वनस्पति के सदृश उगने वाले पौधे के स्थान पर फूल देने वाले पौधे के रूप में समझने के लिए प्रेरित करते हैं, पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। बांस की प्राय: सभी प्रजातियों के जीवन संबंधी अपने-अपने इतिहास हैं। भारतीय एशियाई क्षेत्र से बाहर बांस की कुछ प्रजातियां और इस क्षेत्र की गिनी चुनी प्रजातियों के पौधे ऐसे हैं जो वयस्क होकर कई वर्षों तक प्रतिवर्ष फूल और उसके बाद बीज देते हैं। फूल देनेवाला तना फल विकसित होने के बाद अक्सर मर जाता है लेकिन अन्य तने जिंदा रहते है। बांस की भारतीय-एशियाई सामान्य प्रजातियों में से कई प्रजातियां ऐसी हैं जो नियमित रूप से एक ही समय में और एक वर्ष से अधिक के अंतराल में बीज देती हैं। बांस की विभिन्न प्रजातियों का जीवनकाल तीन वर्ष से लेकर 120 वर्ष तक है और एक क्षेत्र की प्रत्येक प्रजाति के लगभग सभी पौधे फूल देते हैं और इस प्रकार काफी संख्या में बीज देकर खुद मर जाते हैं। ये बीच या तो शीघ्र अंकुरित होते हैं अथवा बरसात की शुरूआत में।
फूल देने के तरीके के आधार पर बांस के तीन प्रकार हैं। पहले प्रकार का पौधा वार्षिक आधार पर अथवा लगभग उतने ही समय में फूल देता है। भारत में अरूंदीनारिया और थाईलैंड में स्चीजोस्टाचियम ब्राचीक्लैडम इसका उदाहरण है। दूसरे प्रकार के बांस में फूल आने की घटना अनियमित रूप से होती है। एशिया के कटिबंधीय क्षेत्र में बम्बूसा और डेंड्रोकालामस और जापान में फिलोस्टाचिस आदि इसके उदाहरण हैं। तीसरे प्रकार के बांस में वे प्रजातियां हैं जिनमें फूल आने की घटना भिन्न-भिन्न प्रकार से होती हैं, अथवा फूल या तो एक छोटे क्षेत्र में आते हैं अथ्वा कुछेक तनों में। यद्यपि इन पौधों में फूल आने की घटना के अपने चक्र हैं जो एक क्षेत्र में तो समान अवधि के होते हैं किन्तु दूरस्थ स्थानों के लिए उनकी अवधि भिन्न-भिन्न होती हैं। पी.इडुलिस इसका उदाहरण है।
बांस की कुछ भारतीय प्रजातियों में फूल आने की घटना निम्नानुसार भिन्न-भिन्न चक्रों में होती हैं। इंडोकैलेमस विटियानस, ओक्लेंड्र स्क्रीप्टोरिया, ओ.रीडी, ओ.स्ट्रीडुला नामक बांस की प्रजातियां एक वर्ष के अंतराल में फूल देती हैं। ओ.ट्रावेंकोरिया प्रजाति के पौधे 7 वर्ष की अवधि में एक बार फूल देते हैं। थामनोकैलेमस स्पैथीपऊलोरस प्रजाति के पौधे 16-17 वर्षों में और डेंड्रोकैलेमस स्ट्रीक्टस 25-65 वर्षों में फूल देते हैं। भारत में बांस की कुछ अन्य प्रजातियां भी हैं जिनमें से थेमेनोकैलेमस फाल्कोनेरी, चिमोनोबम्बूसा फाल्काटा 28-30 वर्षों में, ऑक्सीथेनांतेरा एबीसीनिका, मेलोकान्ना बेसीफोरा, बम्बूसा अरूंदीनेसिया 30 वर्षों के अंतराल में, डेंड्रोकैलेमस हेमिल्टोनी 30-40 वर्षो में, बम्बूसा टूल्डा 30-60 वर्षों में, बम्बूसा पॉलीमोर्फा 35-60 वर्षों में और चिमोनोबम्बूसा जैंसरेंसिस 45-55 वर्षों के अंतराल में फूल देती हैं। थायरोस्टेचिस ओलीवेरी प्रजाति के बांस के पौधे 47-48 वर्ष में, बम्बूसा कोपेलेंडी और स्यूडोस्टेचियम पॉलीमार्फम 48 वर्ष में और फाइलोस्टेचिस बम्बूसोइड्स 60 वर्षों में (जापान में 120 वर्षों) में पुष्पित होते हैं।
हालांकि बांसों के पुष्पित होने के बारे में अनेकानेक अनुसंधान और चर्चाएं जारी हैं फिर भी यह विषय वर्णनातीत होने के साथ-साथ रहस्यपूर्ण बना हुआ है। बांस में फूल आने और इसकी मौत होने के बारे में कई सिध्दांत प्रतिपादित किए गए हैं। इसके बार में एक रोग विज्ञान सिध्दांत है जो बताता है कि नीमैटोडों, फफूंदियों, कीटाणुओं और जीवाणुओं जैसे सूक्ष्म जीवों के कारण बांस के विनाश के लिए फूल निकल आते हैं। इसके बारे में सावधिक सिध्दांत के अनुसार अलैंगिक विधि द्वारा बांस के पुनर्जनन हेतु इसकी परिपक्वता होने पर इसका पुष्पित होना शुरू हो जाता है। बांसों के पुष्पित होने के बारे में एक रूपांतरण सिध्दांत है जिसके अनुसार यह घटना अलैंगिक प्रजनन की एक विधि है। इस बारे में पोषण सिध्दांत का कहना है कि बांसों का पुष्पित होना और उसमें फल आना सामान्य रूप से एक प्रकार के शारीरिक व्यवधान के परिणामस्वरूप है जो मुख्य रूप से वानस्पतिक कोशिकाओं के अल्प-विकास के कारण और कार्बन नाइट्रोजन अनुपात में असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है। बांसों के फूल के बारे में एक मानवीय सिध्दांत भी है जो बताता है कि बांसों को काटने और जलाने जैसी मानवीय व्यवहारों के कारण ये पुष्पित होते हैं।
सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि बांस के पुष्पित होने की परिणति उसकी मृत्यु के रूप में होती है। पुष्पित हाने के बाद बांस कई प्रकार के मृत्यु संबंधी लक्षण दर्शाते हैं। बांसों के पुष्पित होने से न तो वायु में मौजूद इसके हिस्से और न ही भूमिगत हिस्से की मृत्यु होती है। अरूंदिनारिया, फाइलोस्टाचिस, बम्बूसा एट्रा की कुछ प्रजातियां इसका उदाहरण हैं। इनके पुष्पित होने के परिणामस्वरूप केवल पौधे के वायु वाले हिस्से की ही संपूर्ण मृत्यु होती है। राइजोम जीवित रहता है और पौधों का पुनर्जनन होता है। अरूंदिना एमाबिलिस, ए सिमोनी, फाइलोस्टेचिस निदुलारिया इसके उदाहरण हैं। बांसों के पौधे के पुष्पित होने के परिणास्वरूप पौधे के वायु में मौजूद हिस्से और भूमिगत हिस्से की पूरी तरह मौत हो जाती है और ऐसे में इनका पुनर्जीवन केवल बीजों से ही संभव हो पाता है। ओलीवेरी, बम्बूसा अरूंदिनेसिया, बी टुल्डा प्रजाति के बांस इसके उदाहरण हैं।
बांस के अधिकांश पौधे अपनी प्रजाति के एक ही क्लोन से संबंधित होते हैं। हालांकि उनके जीनों में कुछ ऐसी विशेषताएं छुपी हुई हो सकती हैं जो इसक उत्पादकों के लिए उपयोगी हों। बीजों से उत्पन्न इसके नये क्लोन अधिक मजबूत होने के साथ-साथ बीमारियों अथवा कीटाणुओं के प्रति अधिक प्रतिरोधी और संभवत: अधिक सजावटी भी हो सकते हैं। कुछ लोगों के पास बांस की उन्नत किस्मों के निर्माण की जानकारी है। बीजों से नये पौधे तैयार करने का प्रयास भी किया जाना चाहिए। अक्सर ऐसा पाया जाता है कि बीजों के माध्यम से खास विशेषताओं वाले क्लोन नहीं तैयार हो पाते इसलिए वानस्पतिक रुप से ही इसके संरक्षण का प्रयास करना महत्वपूर्ण है।
फूल देने वाले बांस के पौधे को पुनर्जीवन प्रदान करने के अनेक तरीके सुझाए गए हैं, जिनमें से कुछ तरीके कुछ मामलों में कारगर पाए गए हैं और ज्यादातर तरीके बेअसर साबित हुए हैं।
फूल देने वाले बांस के पौधे हमारे सामने एक अवसर उपस्थित करते हैं। बांस के ऐसे सारे पौधे हमेशा नहीं मरते, किंतु अधिकांश मामले में वे मर ही जाते हैं। ऐसा पौधा जिसने विशेष तौर पर फूल देने के लिए नये तने का विकास करना छोड़ दिया हो उनकी मृत्यु होना अवश्यंभावी है।
बांस के कई पौधों में फूल आने आने की घटना होती है, किन्तु यह जरूरी नहीं है कि उस प्रजाति अथवा क्लोन के सारे पौधों में ऐसा हो। कई बार ऐसा देखा जाता है कि एक बड़े क्षेत्र में बांस की एक प्रजाति एक ही समय में फूल देती है। सामान्य तौर पर उगाये जाने वाले बांस के पौधे एक ही क्लोन से संबंधित होते हैं अथवा उसके करीब होते हैं और ऐसे में इस बात का जोखिम होता है कि उस प्रकार के सारे पौधे अथवा अधिकांश पौधे फूल दे सकते हैं और मर भी सकते हैं। कई बांस ऐसे हैं जो फूल नहीं देते और इस कारण वे बीज भी नहीं दे पाते। किन्तु ऐसे बांस जंगल में विकसित होते नहीं पाये जाते और वे उगाए गए पौधे होते हैं। पुष्पित होने के बाद बांस के पौधे के मरने का सबसे अधिक संभावित कारण यह होना चाहिए कि इसे आवश्यकतानुसार जल,पोषक तत्व, स्थान और धूप न हीं मिल पाते हैं। मृतप्राय पौधे का मलबा बांस के नये पौधों को ढक लेता है। बांस के पौधों में फूल आने और उसके मरने की घटना के लिए समय निर्धारण की प्रणाली को समझ पाना अब तक संभव नहीं हो पाया है और यह प्रकृति की एक अनबुझी पहेली के रूप में विद्यमान है।
अब प्रश्न यह उठता है कि बांस के किसी पौधे में जब फूल आए तो हमें क्या करना चाहिए। एक विकल्प तो यह है कि हमें इसके लिए कुछ भी नहीं करना चाहिए। ऐसे में पौधे बच सकते हैं। अथवा वे मर जाएंगे। एक दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि हमें बांस के बीजों का संग्रह करके नये सिरे से उसकी पीढी तैयार करने में जुटना चाहिए और मृत अथवा मृतप्राय पौधों को हटा देना चाहिए। यदि कुछ शाखाओं में ही फूल आ रहे हों तो निश्चित तौर पर किसी प्रकार के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। वहीं दूसरी ओर यदि पूरे पौधे में फूल आ रहे हों तो फूलवाले पौधे को काटकर हटाना चाहिए।
बांसों में फूल आने और उनके पुनर्जीवन के बारे में चीन में कई अनुसंधान कार्य किए गए हैं। पी विवेक्स प्रजाति के बांसों में जियांगसू और झेजियांग प्रांतों में वर्ष 1969 से लेकर 1976 तक फूल आने की घटनाएं हुई। सियंग एट अल की रिपोर्ट इनके साथ किए गए प्रयोगों के आधार पर 1981 में प्रकाशित हुई। जिन पौधों में फूल आये थे उनके तीव्र पुनर्जीवन के लिए उनके मूसलों को खोद कर निकाला गया और उनके 30-50 सेंटीमीटर के टुकड़े बनाकर पांच घंटे तक जिबरेलिक अम्ल में डुबाकर रखने के बाद क्यारियों में रोपा गया। जब नये अंकुर आए तो प्रत्येक दो सप्ताह में उनपर छिड़काव किया गया। तीन महीने बाद इस प्राकर उपचारित मूसलों में से 36 प्रतिशत में फूल आए जबकि बिना उपचारित मूसलों में से 64 प्रतिशत में फूल आने की घटनाएं हुईं। एक वर्ष के बाद ऐसा पाया गया कि उपचारित मूसलों से अधिक सामान्य और बिना फूल वाले पौधे तैयार हुए। सियूंग इस बात की चेतावनी देते हैं कि यह आवश्यक नहीं है कि नाइट्रोजन उर्वरक बांसों में फूल आने से रोक सके और कई बार तो यह उनके पुनर्जीवन की गति को धीमी करते हैं।