मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010

हास्‍य- व्‍यंग्‍य : का बात है भौजी .. ई सरकार का .. लोड ज्‍यादा और ससुरा वोल्‍टेज कैसा डाउन है ...नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनन्‍द’’

हास्‍य- व्‍यंग्‍य

का बात है भौजी .. ई सरकार का .. लोड ज्‍यादा और ससुरा वोल्‍टेज कैसा डाउन है ...

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

अभी एक मित्र ने हमें मोबाइल से एक एडल्‍ट जोक भेजा .. लेकिन इस चुटकुले में कुछ ऐसी चुटकी ली गयी थी कि हम हँसे बिना न रह सके .. चुटकुला कुछ यूं था हम इसे अपनी सदाबहार स्‍टाइल में आपको सुनाते हैं - 

एक बिजली वाले अफसर रोज देर रात को आते घर ।

अद्धी पौआ औनी पौनी, संग में माल मत्‍ता जम कर।।

थके हारे नित दारू पीते, दारू पी कर दारा नियरे जाते।

न नैन से नैन मिल पाये और न लब की मदिरा पी पाते।। 

पर फोन रात में भी बज जाता, सारा मजा किरकिरा होता।

टेंशन नित का देख के अफसर, एक रिकार्डिंग वह कर लेता।।

अपने फोन में वायस भरी, लोड है ज्‍यादा , वोल्‍टेज डाउन ।

बिजली नहीं मिल पायेगी, करा तुमने हमरा सिग्‍नल डाउन ।।

रोज रात को सुनते सुनते, बिजली भौजी ने रट लीं ये लाइन ।

हमारे सनम का प्रिय भाष है, लोड है ज्‍यादा वोल्‍टेज डाउन ।।

एक दिन सुबह बोली पड़ोसन, कुछ सुनो सहेली कुछ कहो जरा ।

कैसी रोज रात है कटती , पिया से कैसे मधुर मिलन है होता ।।

माथा ठोक ठोक के बिजली भौजी, करम दण्‍ड पर रख कर हाथ ।

तड़प झड़प कर बोली सखी से का बतलाऊं जीजी, जरा बड़ी है बात।।

रोज रात को बलम जी पी कर सोते, हाई वोल्‍टेज में करते बात ।

रात बखत जब हाई वोल्‍टेज चाहिये, तब फिर ना करते ये बात ।।

रोज रात को खुद नर्राते, सोते सोते से नित उठ कर चिल्‍लाते ।

लाइन शार्ट है, लाइन फाल्‍ट है, लोड है ज्‍यादा वोल्‍टेज डाउन ।।

किस्‍मत दुखिया हमरी कुछ ऐसी है ,  तुमसे कह दें दिल की बात ।

उनके भरे बदन में दिखता पूरा पावर हाउस, लगे कटाउट पूरे सात ।।  

आते हैं सन्ना सन्‍ना सरकार, पर लोड है ज्‍यादा, है डाउन वोल्‍टेजवा ।

फूट फूट मैं फ्यूज हो कर बुझी ट्यूबलाइट सी बुझती हूं, जले करेजवा ।।

सुन कर सखी मुस्‍काई बोली, करो सस्‍पेण्‍ड डाउन ट्रान्‍सफार्मर, बिना यूज और बेमतलब का, फेंकों जो हैं बिन काज ।

नया हाई टेंशन हाई वोल्‍टेज, टा्रान्‍सफार्मर का करो प्रयोग, या फिर अपने खम्‍बे से डलवा दूं , बोलो क्‍या चाहो तुम आज।

अब जब बिजली ही क्‍या खुद सरकार का ही डाउन वोल्‍टेज और हैवी लोड चल रहा है, जनता उनका लोड झेल रही है, जिनमें वोल्‍टेज ही नहीं है, जो ऊपर चढ़े हैं जनता के, बिना वोल्‍टेज के जिन्‍दा मुर्दे । ऐसे सरकार को शत शत नमन ...  मध्‍यप्रदेश की अन्‍धाधुन्‍ध बिजली कटौती को सादर समर्पित    

रविवार, 10 अक्टूबर 2010

कहत कबीर सुनो भई साधो बात कहूं मैं खरी... फेसबुक पे आय रही नित जन्‍नत की परी - नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनन्‍द’’

कहत कबीर सुनो भई साधो बात कहूं मैं खरी... फेसबुक पे आय रही नित जन्‍नत की परी

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

प्रधान संपादक ग्‍वालियर टाइम्‍स समूह

फेसबुक महिमा आज लिखूं , देखी लीला अपरम्‍पार ।

जिस पर नित  हो रही , फेक फर्जीयन की भरमार ।।

पूरा ज्ञान बटोर कर लिया बहुत अनुभव और विज्ञान ।

आज कबीरा बॉंट रहा, फेसबुक के अनुभव हुये महान ।।   

कहते सोशल नेटवर्क अहो, बहुत ये फेसबुक है मशहूर ।

गुण्‍डा लफंगा छाय रहे, अनसोशल है भई भलेन सों दूर ।।

सारे मदारी और कबाड़ी नित दस लीला रच कर खेल दिखाते ।

एक आदमी चला रहा अकाउण्‍ट चालीसा फर्जी नाम ये धरते ।।

हर शख्‍स अच्‍छा नहीं,भला नही हर इंसान, फेसबुक ये समझाता।

चेहरे को मत देखिये, चेहरे पर हैं रंग बहुत, यह सारे दिखलाता ।।

फेसबुक पर आय के, यारो खूब समझ सोच के मित्र बनाओ ।

कहीं मित्र के वेष में आतंकी हो न मित्र न धोखा ऐसा खाओ ।।

अलकाइदा से फलकाइदा तक, नक्‍सलीयों से फक्‍सलीयों तक, नित ही सबका यहॉं बसेरा है ।

काल गर्ल से, बॉल गर्ल तक, वेट गर्ल से कैट गर्ल तक, फेट गर्ल से चैट गर्ल का डेरा है ।।

यहॉं खुले में खेलता, दाउद और इब्राहीम ।

यहॉं सुपाड़ी भी चले देते जो राम रहीम ।।

भोग विलास पाखण्‍ड सजा, है नित नई दूकानें रोज लगें ।

एक ही लड़की चला रही सौ नाम चित्र के अकाउण्‍ट बने ।।

हर घण्‍टे पर अकाउण्‍ट बदल कर वह नये खाते से लॉग करे ।

नये अकाउण्‍ट और नये रूप में, हर घण्‍टे वो ग्राहक रोज धरे ।।

रहे बगल यहीं पास आस में, बोले विदेश में रहती हूं ।

फोन नंबर मेरा विदेशी, आई एस.डी.पर कालें करती हूं ।।

कहीं नेता, कहीं पत्रकार, कहीं धर्मगुरू, कहीं व्‍यापारी ।

कभी भोले छात्र फंसाना, कहीं शिकार कोई कलाकार ।

कहीं अभिनेता, या नेता, जो भी दिल से हो लाचार ।

कभी साहित्‍यकार, चाहे कोई या फिर हो बेरोजगार ।

बड़ी विचित्र ब्‍लैकमेल और मौज मजे की दुनियादारी ।।

धर्म अधर्म के नाम पर नित ही यहॉं रोज फसाद रचा करते ।

कोई धर्म की जय पुकार रहा, कुछ धर्म यहॉं गारियाया करते ।।

कुलघाती कुल हीन यहॉं, वर्णसंकरों का मेला रोज सजा ।

जिनके उर में ज्ञान नहीं पाप सिर पर चढ़ कर बोल रहा ।।

हर नाम के पीछे राज छिपे हैं, राजों से फेसबुक पटी हुयी ।

खुद नंगी, सबको नंगा करती, लूटे वो जो पहले लुटी हुयी ।।

हर शख्‍स यहॉं जो नामी है, छोरी रचती उसकीं बदनामी हैं ।

खुद की इज्‍जत पता नहीं, पर लेती इज्‍जत जो भी नामी है ।।

यहॉं रंग रूप के सौदागर नया नित नूतन जाल बिछाते हैं ।

भोली कन्‍याओं को बहला अपने दल का सदस्‍य बनाते हैं ।।

यहॉं नाम सारंगी जिसका, वह नारंगी बन कर  लीला दिखा रही ।

अब यहॉं भड़ुओ की मण्‍डी, खोज ग्राहक दे दे आमंत्रण बुला रही ।।

खाली पीला लूट पीट कर, खाली ठेंगा उसे थमाते ।

दे अखबारों में विज्ञापन फोन नंबर भी उसे थमाते ।। 

 

अगले अंक में जारी....