शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

भिण्‍ड- मुरैना तेज हुआ घमासान, राजनीतिक सुपर स्‍टारों का मेला और जमीनी युद्ध का बिगुल बजा

भिण्‍ड- मुरैना तेज हुआ घमासान, राजनीतिक सुपर स्‍टारों का मेला और जमीनी युद्ध का बिगुल बजा

चुनाव चर्चा-4

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

भिण्‍ड सीट पर क्‍लीयर कट कांग्रेस की विजय और खतरे में भाजपा की खबरों से भाजपाई रणखेमे की नींद अचानक उड़ गयी है । लम्‍बे अर्से से भाजपा के गढ़ रहे भिण्‍ड और मुरैना में जहॉं अबकी बार मुरैना वापस क्‍लीयर कट भाजपा को प्रचण्‍ड वोटों के साथ मिलने और कांग्रेस को इसी तरह भिण्‍ड की सीट जाने और प्रचण्‍ड जीत दर्ज कराने की खबरें निसंदेह भाजपा के लिये चिन्‍ता जनक है मगर ऐसा हो रहा है और किया भी क्‍या जा सकता है ।

भिण्‍ड में भाजपा के ढेर होने जा रहे गढ़ के पीछे या कांग्रेस के जीतने के पीछे की वजह महज मात्र प्रत्‍याशी आधारित चुनाव हो जाना है । न तो भिण्‍ड में और न मुरैना में ही पार्टीयों के नाम की बकत इस समय है और न पार्टीयों के नाम का कोई असर ही अबकी बार के चुनाव पर ही है ।

डॉ भागीरथ भिण्‍ड के लोगों की निजी पसन्‍द हैं, इसे भाजपा दरकिनार नहीं कर सकती । भागीरथ कोई आजकल से नहीं बल्कि कई वर्षों से भिण्‍ड के लोगों की जुबान पर चढ़े हुये हैं, भिण्‍ड वाले गाहे बगाहे डॉ. भागीरथ के नाम पर गर्व करते आये हैं । जबकि भाजपा प्रत्‍याशी अशोक अर्गल भिण्‍ड की जनता के लिये नये व अपरिचित चेहरे हैं । डॉं भागीरथ अगर भिण्‍ड से लड़ने गये हैं तो उनके पॉजिटिव पाइण्‍टस भी हैं शायद यही सोच कर डॉ भागीरथ ने भिण्‍ड से लड़ने की इच्‍छा जताई होगी । अशोक अर्गल के पास अभी भिण्‍ड में किसी भी उपलब्धि का बखान करने या श्रेय लेने के लिये भी कुछ नहीं हैं । मुझे लगता है भिण्‍ड में भाजपा के लिये केवल इज्‍जत बचाने की लड़ाई ही शेष बची है ।

राजपूत वोटिंग के लिये मारामारी

भिण्‍ड में चुनाव प्रचार के इस आखरी चरण में राजनीतिक दलों के बीच राजपूत वोटों को हथियाने की जमीनी जंग शुरू हो गयी है । जहॉं भाजपा प्रदेश अध्‍यक्ष नरेन्‍द्र सिंह तोमर ने भिण्‍ड में ताबड़तोड़ सभायें लेकर आक्रामक हमले तेज कर दिये हैं वहीं भिण्‍ड में कल से राजपूत नेताओं और राजनीतिक सुपर स्‍टारों का मेला लगने जा रहा है । कल जहॉं भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह परेड चौराहे पर सभा को संबोधित करेंगें वहीं, कांग्रेस के राजपूत नेता भी कल से ही भिण्‍ड में आगाज करेंगें कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के म.प्र. के अध्‍यक्ष अजय सिंह ''राहुल भैया'' जहॉं भिण्‍ड के कई गॉंवों में जिसमें बबेड़ी भी शामिल है डॉं भागीरथ के लिये प्रचार करेंगें, उल्‍लेखनीय है कि म;प्र. के पूर्व मुख्‍यमंत्री और वर्तमान केन्‍द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह का चम्‍बल के भिण्‍ड और मुरैना क्षेत्र के लोगों में काफी सम्‍मान और प्रभाव है, अजय सिंह राहुल भैया भी अपने मंत्री काल में भिण्‍ड और मुरैना में अपनी विशिष्‍ट छाप छोड़ कर अंचल के नौजवानों में खासा प्रभाव और आकर्षण रखते हैं । निसंदेह राजपूत वोटिंग ही नहीं बल्कि अन्‍य जातियों व समाजों की वोटिंग भी राहुल भैया के दौरे से काफी प्रभावित होगी । मुझे लगता है कि कांग्रेस को राहुल भैया को भिण्‍ड में लगातार कई कार्यक्रम करवाना चाहिये थे । फायदा कई गुना बढ़ जाता । दिग्विजय सिंह ने भाजपा के इस अभेद्य गढ़ को काफी हद तक भेद दिया है और भाजपा की बुनियादें हिला कर खोखला कर डाला है । राहुल भैया भी इस क्षेत्र में यही काम और भी अधिक सशक्‍त ढंग से कर सकते हैं

भिण्‍ड में राजनाथ सिंह और राहुल भैया के कल के कार्यक्रमों के बाद 26 को प्राइम मिनिस्‍टर इन वेटिंग लालकृष्‍ण आडवाणी तथा उनके ठीक पीछे 27 अप्रेल को कांग्रेस के राहुल गांधी के कार्यक्रम देखने को मिलेंगें । इस बीच दिग्विजय सिंह के कमरतोड़ झटके अभी भिण्‍ड के भाजपाईयों को और झेलने पड़ेंगे । अभी तो हालात ये हैं कि दिग्विजय सिंह का नाम सुनते ही भाजपाईयों को पसीने छूट जाते हैं । फिलवक्‍त दोनों पार्टीयों ने भिण्‍ड कवर करने के लिये राजपूत नेताओं की पूरी फौज झोंक दी हैं और घमासान तकरीबन युद्ध जैसे माहौल में बदल गया है ।

लो भईया भिण्‍ड में लव मैरिज और मुरैना में अरेंज्‍ड मैरिज, गुना ग्‍वालियर में दिल वाले दुल्‍हनियां ले जायेगे

आज दैनिक भास्‍कर ने चुनाव को दूल्‍हा, ई.वी.एम. को दुल्‍हन और मतदान को बारात कहा है, इससे मिलता जुलता किस्‍सा ग्‍वालियर चम्‍बल की चारों सीटों पर भी चल रहा है, इन चारों सीटों की सिचुयेशन कुछ यूं वर्णित की जानी चाहिये कि भिण्‍ड में लव मैरिज (मन पसन्‍द प्रत्‍याशी) , मुरैना में अरेंज्‍ड मैरिज (झेलना पड़ेगा मजबूरी का प्रत्‍याशी) , गुना और ग्‍वालियर में दिल वाले दुल्‍हनियां ले जायेंगे ( आल्‍हा ऊदल की तरह जंग करके दुल्‍हन हासिल की जायेगी) गुना ग्‍वालियर में दूल्‍हों की बारात पहले से ही घूम रही है और मुरैना भिण्‍ड में बारात अभी सज रही है । 

मुरैना आखिर चल ही गयी भेलसा की तोप

भाजपा ने मुरैना में जिस तरह सभी वल्‍नरेबलिटीयों का सूपड़ा साफ किया है, भाई वाकई नरेन्‍द्र सिंह तोमर की दाद देनी ही पड़ेगी । समानता दल के रमाशंकर शर्मा को भाजपा में दल सहित विलय करके अपने खिलाफ लगभग सारी बल्‍नरेबलिटीयों का सूपड़ा साफ कर दिया है । मैं समझता हूं इसका दूरगामी परिणाम भी बहुत लाजवाब होगा । राजनीतिक तौर पर मुरैना में नरेन्‍द्र सिंह तोमर ने भाजपा की जड़े इतनी पुख्‍ता और गहरी कर दी हैं कि अब यहॉं भाजपा से पार पाना किसी के बूते की बात नहीं होगी । नरेन्‍द्र सिंह तोमर ने जिस कदर हवा में तलवारें भांजी है उससे सारे राजनतिक आसमान के परिन्‍दे कट कट कर अपने आप उनकी झोली में आ गिरे हैं, यह वाकई हैरत अंगेज है । काबिले तारीफ है, भईया कुछ तो हमारे लिये छोड़ देते ।

वोटिंग वल्‍नरेबलिटी का आखरी धड़ा गूजर वोटों को एक मुश्‍त अपनी झोली में पटकने के लिये आखिर नरेन्‍द्र सिंह तोमर ने तुरूप का इक्‍का चल ही दिया, एक पूर्व मंत्री के कारण गूजर वोट वल्‍नरेबल हो गये थे और कॉग्रेस की झोली में जाने के लिये बेताब हो उठे थे । उधर कॉंग्रेस प्रत्‍याशी ने मीणवाद का कार्ड खेला इधर भाजपा ने गूजर कार्ड आखिर चल ही दिया, गूजरों के हीरो कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला को आखिर मुरैना बुलवा ही लिया । इसके साथ ही मुरैना गूजर मतों की वल्‍नरेबलिटी पूरी तरह खत्‍म होकर नरेन्‍द्र सिंह तोमर के लिये एकमत हो जायेगी । पिछड़े वर्ग की अन्‍य जातियां पहले से ही राजपूतों की पक्षधर हैं । (यह चम्‍बल और राजपूताने का अनचेन्‍जेबल स्‍वत: संचालन सिस्‍टम है) 

कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला का आगमन निसंदेह कांग्रेस के रामनिवास के लिये अंतिम आस टूटने का स्‍पष्‍ट संकेत है । उल्‍लेखनीय है कि कर्नल बैसला का मुरैना के गूजरों पर अंध प्रभाव है और इस प्रभाव को डाउन करने का कोई तोड़ फिलहाल कांग्रेस के पास नहीं है । कर्नल जहॉं भी कहेंगे, गूजर वहीं जायेंगे । अब कोई भी चिल्‍लाता रहे, गूजर कुछ भी नहीं सुनेंगे । इस गलती की शुरूआत रामनिवास रावत ने मीणा कार्ड खेल कर की । मीणा वोट मुरैना सीट पर जहॉं नाममात्र के हैं वहीं भाजपा के मेहरबान सिंह रावत तथा पूर्व विधायक बूंदीलाल रावत एवं मुरैना के किरार यादवों द्वारा जो तोड़ फोड़ सबलगढ़ विजयपुर क्षेत्र में की जानी है वह भी रामनिवास के लिये खतरनाक है । कर्नल बैसला कल करहधाम पर सबेरे 11 बजे गूजरों की पंचायत लेंगे और नरेन्‍द्र सिंह तोमर के पक्ष में मतदान के लिये गूजरों से अपील करेंगे । इस क्षेत्र में ग्‍वालियर के राजा मान सिंह तोमर की रानी मृगनयनी के वंशज तोंगर गूजरों की भी भारी संख्‍या है जिनका पहले से ही झुकाव तोमरो के प्रति है ।   

करहधाम यूं तो उ.प्र. के सिकरवारों की मिल्कियत है और इस आश्रम का पूरा कण्‍ट्रोल यू.पी. के सिकरवार राजपूतों के पास है लेकिन गूजरों का यह सर्वमान्‍य तीर्थ स्‍थान है और मुरैना में इसका नियंत्रण संचालन और सम्‍पादन पूरी तरह गूजरों के हाथ है, इस आश्रम की विशिष्‍ट मान्‍यता यह है कि करह आश्रम से चला हुक्‍म गूजरों के लिये परामात्‍मा का एकमात्र आदेश है और जिसका उल्‍लंघन कतई नहीं हो सकता ।

दूसरा तीर्थ इसी क्षेत्र शनीचरा मंदिर है, जहॉं शनिदेव की प्रतिमा स्‍थापित है , संयोगवश कल यहॉं भी शनीचरी अमावस का मेला भरेगा । और इस मेले पर भी बैसला को भाजपा ले जा सकती है वहीं कल यह मेला राजनीति का मेला बन सकता है ।

भाजपा के लिये सिर्फ शहरी मुसलमान बल्‍नरेबलिटी शेष है, ग्रामीण मुसलमान तो विशुद्ध तोमर राजपूत हैं जिन्‍हें औरंग जेब ने मुसलमान बना दिया था । अत: ग्रामीण मुसलमान मत स्‍वत: ही भाजपा की ओर मुड़ गये हैं ।   

 

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

आग लगाऊ दिग्विजय सिंह की सभाओं में सरकार भेजती है फायर ब्रिगेड

आग लगाऊ दिग्विजय सिंह की सभाओं में सरकार भेजती है फायर ब्रिगेड

चुनाव चर्चा-3

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

आज के अखबारों में खबर छपी है हालांकि खबर का शीर्षक तो दुखद है लेकिन खबर के भीतर जो खबर है वह काफी हैरत अंगेज है, कम से कम मैं तो इसे पढ़ कर चौंक ही गया । खबर भिण्‍ड जिले के एक गॉंव के बारे में हैं, कल भिण्‍ड जिला में एक गॉंव आग लग गई तकरीबन 20 घर पूरी तरह जल कर खाक हो गये, सरकारी आकलन के मुताबिक 15 लाख का माल मशरूका जल कर भस्‍म हो गया ।

वैसे तो इन गर्मी के दिनों में एक तो विकट गर्मी के कारण हर चीज सूख कर ईंधन बन जाती है ऊपर से गर्म हवा की लपटों से जरा सी चिंगारी भी विकराल रूप धारण कर लेती है । हर साल अकेली चम्‍बल ही गर्मीयों में करीब 1 से 7-8 करोड़ रू का नुकसान आग से झेलती है । कई वजह से आग लगती है, कभी बिजली के शॉर्ट सर्किट से तो कभी सिगरेट बीड़ी के ठूंठ से तो कभी चूल्‍हे या बरोसी से उड़े तिलंगों से । चिंगारी से भड़कने वाली यह आग कभी ज्‍वाला बन जाती है तो कभी समूचे गॉंव या खेत खलिहान को भस्‍म कर डालती है । मैं जब छोटा सा था तब से अब तक यह आग देखता आ रहा हूँ हर साल लगती है और सैकड़ों किसानों ( कई जगह के ग्रामीण तो भूमिहीन होकर केवल पशुपालन या अन्‍य लोगों के खेतों में मजदूरी पर ही आश्रित हैं) व ग्रामीणों का सब अन्‍न दाना , कपड़ा लत्‍ता सब लील जाती है । मुझे लगता था कि मैं कुछ बना तो जरूर गरीब ग्रामीणों की इस समस्‍या के लिये कुछ न कुछ करूंगा । खैर चलो हम तो बन नहीं पाये लेकिन जो लोग बने उन्‍होंने कभी गरीब ग्रामीणों के इस आपत्ति काल व आकस्मिक समस्‍याओं के बारे में कभी नहीं सोचा, उन्‍हें अपनी वी.आई.पी. जिन्‍दगी से नीचे इस आम जिन्‍दगी की ओर झांकने का मौका तक नहीं मिला ।

किसी नेता या पत्रकार के लिये एक गॉंव का आग में स्‍वाहा हो जाना या लाखों करोड़ों का नुकसान हो जाना महज एक समाचार हो सकता है लेकिन एक गरीब किसान या ग्रामीण जो कि साल भर की पूरी मेहनत के साथ अपने पूरे घर गॉंव को जल कर भस्‍म होते देखता है, तो उसकी ऑंखों के ऑंसू थमने का नाम नहीं लेते और चन्‍द पलों के भीतर वह राजा से रंक हो जाता है । और मालिक से मजदूर बन जाता है, साल भर के पेट पालन के लिये न जाने क्‍या क्‍या बेचने और गिरवी धरने पर मजबूर हो जाता है । यहॉं तक कि बहू बेटियों की अस्‍मत भी । किसी नेता या किसी पार्टी ने हर साल गरीब ग्रामीणों पर आने वाली इस तयशुदा विपदा के लिये न कभी डायजास्‍टर मैनेजमेण्‍ट चलाया न इसके लिये कोई राहत कोष ही कभी स्‍थापित किया ।

किसान आयोग बनाने और खेती किसानी को मुनाफे को धन्‍धा बनाने या उद्योग का दर्जा देने की बात करने वाले सब इस मुद्दे से अनजान, बेपरवाह और खामोश है । किसान का घर जलना तो जैसे आम बात है , उफ शर्म शर्म शर्म ....

मुझे लोगों के लॉंक (फसल का ढेर गॉंवों में लॉंक कहा जाता है) के साथ साल, रोजी रोटी और सपनों को जिन्‍दा जलते देखने का अवसर कई बार मिला है । मुझे तकलीफ होती है । हर खबर जैसे मुझे झिंझोड़ देती है ।

आज भिण्‍ड के बारे में खबर अखबारों में आयी तो तकलीफ हुयी, भिण्‍ड से मेरा बहुत पुराना गहरा नाता है, पूरी प्रायमरी तक पढ़ाई लिखाई मुझे भिण्‍ड में ही नसीब हुयी वहीं सन्‍त कुमार लोहिया जैसा आदर्श गुरूओं की शिष्‍यता मुझे प्राप्‍त हुयी उनके आशीर्वाद और वरद हस्‍त ने मुझे ज्ञान और विवेक से परिचित कराया, राकेश पाठक (नई दुनिया के सम्‍पादक) प्रवीर सचान (इसरो के वैज्ञानिक) से लेकर विदेशों में सेवायें दे रहे बड़े बड़े वैज्ञानिक और इंजीनियर भारत की उच्‍च स्‍तरीय सेवाओं में पदस्‍थ कई अनमोल मित्र भी मुझे भिण्‍ड से ही मिले । आगे चल कर ससुराल भी भिण्‍ड ही बन गयी । संयोगवश लोकसभा चुनाव भी मैंने भिण्‍ड से ही लड़ा ।

भिण्‍ड में डॉं रामलखन सिंह (वर्तमान सिटिंग सांसद) के विरूद्ध मुझे लोकसभा का चुनाव लड़ने का मौका किला, उनका भी सांसदी का वह पहला चुनाव था मेरा भी यह पहला अवसर था । फर्क यह था कि वे भाजपा के बैनर पर थे हम पैदल थे । बाद में आगे चलकर डॉ. रामलखन सिंह भी हमारे रिश्‍तेदार बन गये ।

डॉं. रामलखन सिंह के हवाले से अखबारों में छपा है कि गॉंव में आग लगने की खबर उन्‍होंने प्रशासन को दी लेकिन प्रशासन ने कहा कि फायर ब्रिगेड उपलब्‍ध नहीं हैं, भिण्‍ड जिला में म.प्र. के पूर्व मुख्‍यमंत्री औंर कॉंग्रेस के राष्‍ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह की सभायें हो रहीं हैं सो फायर ब्रिगेड दिग्विजय सिंह की सभाओं में गयीं हैं ।

मुझे इस खबर से झन्‍नाटा लगना था सो लगा । दिग्विजय सिंह की सभाओं में फायरब्रिगेड भेजना मुझे कुछ अजीबो गरीब सा लगा । या तो हमारे डॉं. साहब झूठ बोल रहे हैं सरासर झूठ या फिर यह सच है तो हैरत अंगेज है ।

क्‍या दिग्विजय सिंह उमा भारती की तरह फायर ब्राण्‍ड नेता हैं जो आग लगाते फिरते हैं, सो सरकार को उनके संग हर सभा में फायर ब्रिगेड भेजनी पड़ती है ।

खैर भाजपाई सोच सकते हैं सोचो सोचो ...गालिब दिल बहलाने को ख्‍याल अच्‍छा है । यूं सोचो कि दिग्विजय सिंह जहॉं जाते हैं वहीं आग लगा आते हैं, जिसे बुझाने के लिये भाजपाईयों को दिन रात एक करके हफ्तों तक पसीना बहा कर पानी छिड़कना पड़ता है । और राजा हैं कि मानते ही नहीं, छेड़ना, ऊंगली करना, आग लगाना, खिला खिला कर मारना ये सब दिग्विजय सिंह की बहुत पुरानी आदतें हैं । और तो और आदमी एक बार आग लगा कर भाग जाये तो भी बात बने मगर दिक्‍कत ये है कि राजा रोज आ धमकते हैं और हनुमान जी जैसी पूंछ पसार कर कभी यहॉं तो कभी वहॉं आग लगा देते हैं, कहॉं कहॉं बुझायें कैसे कैसे बुझायें वाकई टेंशन है । भाजपा के लिये दिग्यिजय सिंह आग लगाऊ मशीन बन गये हैं । ज‍हॉं जाते हैं वहीं गड़बड़ कर देते हैं ।

लगता है भाजपा ने राजा का तोड़ खोज लिया है, इसलिये दिग्विजय सिंह की हर सभा में फायर ब्रिगेड भेजना शुरू कर दी है । अब भईया किसी गॉंव शहर में कहीं आग लगे तो फायर ब्रिगेड के बजाय राजा दिग्विजय सिंह को फोन लगायें जिससे कम से कम फायर ब्रिगेड तो पहुँच जायेगी । मैं तो कहता हूँ कि फोन डायरेक्‍ट्री में फायर ब्रिगेड का नंबर बदल कर राजा साहब का नंबर छाप देना चाहिये । अब भईया मेरे तो राजा साहब से भी अच्‍छे ताल्‍लुक हैं, उनके साथ काम करने का मौका भी मिला है, कभी मौका मिला तो उन्‍हें चिट्ठी लिखकर अवगत करा दूंगा कि अपना नंबर फायर ब्रिगेड में छपवा दीजिये । वैसे तो इस आलेख को वे इण्‍टरनेट पर वे पढ़ ही लेंगें उनके साथ और भी कई हाईप्रोफाइल पढ़ कर उनका नंबर फायर ब्रिगेड में डलवा ही देंगें ।

सिर उठाने लगा राजस्‍थान का मीणा गूजर मुद्दा

राजस्‍थान के गूजर मीणा संग्राम से लगभग सभी भारतवासी अवगत ही हैं, मुरैना से कांग्रेस प्रत्‍याशी रामनिवास रावत भी जाति से मीणा हैं । आज रावत ने अपनी मदद के लिये राजस्‍थान से नमो नारायण मीणा को बुलवाया हैं । उधर रावत के मीणा वाद से मुरैना के गूजर नेता भड़क गये हैं, गूजर वोटो पर अब तक आस टिकाये रामनिवास के लिये चम्‍बल के गूजर समुदाय से खतरे की घण्‍टी बजने लगी है । और रही सही गूजर वोट की आस भी जाती खिसकती नजर आने लगी है ।

गूजर पहले से ही कांग्रेस द्वारा मीणा (राम निवास रावत) को यहॉं टिकिट देने से खफा चल रहे थे अब खुल कर बोलने भी लगे हैं । हालांकि राजस्‍थान मुद्दे की बात गूजर केवल अपनी जाति समुदाय के बीच करते हैं लेकिन आम जनता में बड़ा अलग ही तर्क दे रहे हैं, उनका तर्क है कि मुरैना सामान्‍य सीट है या आरक्षित, अगर आदिवासी (चम्‍बल के गूजर चम्‍बल के मीणाओं को आदिवासी कहते हैं)  ही वोट देना है तो फिर इस सीट को समान्‍य कराने की जरूरत क्‍या थी ।

मैं गूजरों के ऐसे ओछे तर्कों से सहमत नहीं हूँ भई चम्‍बल में मीणा आदिवासी नहीं बल्कि पिछड़े वर्ग में आते हैं, राजस्‍थान की बात राजस्‍थान तक ही रहने दीजिये, और रामनिवास को भी राजस्‍थान से जातिवादी नेता इम्‍पोर्ट नहीं करना चाहिये थे ।

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

सहारा के पत्रकार अनीष की मॉ कॉंग्रेस जिलाध्‍यक्ष (अ.प्र.) का इन्तकाल

सहारा के पत्रकार अनीकी मॉ कॉंग्रेस जिलाध्‍यक्ष (अ.प्र.) का इन्तकाल

मुरैना 21 अप्रेल 09, दैनिंग राष्‍ट्रीय सहारा समाचार पत्र के मुरैना ब्यूरो प्रमुख अनी अफजल की मॉ श्रीमती मोहतरमा हसीना बानों जिलाध्यक्ष कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्‍ठ का आकस्मिक इंतकाल हो गया हैं। इस दुखद घटना के समय सभी पत्रकार बंधुओं ने ईश्‍वर से इस गमगीन माहौल के समय सांत्वना बनाऐ रखने की प्रार्थना की। कांग्रेस की नैत्री के अचानक इंतकाल के बाद कब्रिस्तान में दफनाते समय सैकड़ों अल्पसंख्यक समाज के लोग, कांग्रेस नेता, तथा पत्रकार बंधु उपस्थित थे।

 

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

भिण्‍ड विधायक हत्‍या काण्‍ड – गालिब दिल बहलाने को ख्‍याल अच्‍छा है

भिण्‍ड विधायक हत्‍या काण्‍ड गालिब दिल बहलाने को ख्‍याल अच्‍छा है

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

चुनाव चर्चा-2

जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं प्रचार भी अपनी जवानी पर आता जा रहा है । जहॉं तक ग्‍वालियर चम्‍बल की बात है अंचल की चारों सीटों पर परिणाम तकरीबन साफ और परिदृश्‍य एकदम स्‍पष्‍ट दीवार पर लिखी इबारत के मानिन्‍द सुपाठ्य है ।

भिण्‍ड संसदीय सीट पर जहॉं कांग्रेस उम्‍मीदवार डॉ. भागीरथ भारी भरकम विजय परचम फहराने जाते दीख रहे हैं तो वहीं बिल्‍कुल ऐसा ही मुरैना सीट पर विकट जातीय ध्रुवीकरण के चलते भाजपा प्रत्‍याशी नरेन्‍द्र सिंह तोमर भी ऐतिहासिक जीत (रिकार्ड मतों के साथ) अंकित करने जा रहे हैं । मेरे विश्‍लेषण और आकलन के मुताबिक इन दोनों ही सीटों पर चुनाव लगभग एक चक्षीय से हो गये हैं । मुरैना में हालांकि जातीय और सामाजिक माहौल भाजपा प्रत्‍याशी नरेन्‍द्र सिंह तोमर के एकदम खिलाफ था और अंचल के मतदाता तोमर से एकदम खफा थे लेकिन जातीय ध्रुवीकरण (जो कि होना ही था) और एकमात्र दलीय राजपूत प्रत्‍याशी होने का लाभ न केवल नरेन्‍द्र सिंह तोमर को मिलने जा रहा है अपितु मजबूरी में मिले वोट ( लोगों का कहना है क्‍या करें मजबूरी में वोट देना पड़ रहा है ) भी रिकार्ड होंगें तथा यह भी कि इसमें केवल राजपूत वोट ही नहीं बल्कि अन्‍य तकरीबन सभी जातियों के वोट भी नरेन्‍द्र सिंह तोमर को मिलने जा रहे हैं (सभी वोट मजबूरी के वोट हैं) ।

भिण्‍ड में भी ऐसे ही हालात हैं लेकिन एकदम उल्‍टे यानि यहॉं इस संसदीय सीट पर कॉंग्रेस की यही स्थिति है ( यहॉं मजबूरी का वोट नहीं बल्कि मनपसन्‍द प्रत्‍याशी के लिये वोट होगा) । गोहद विधायक स्‍व. माखन लाल जाटव की हत्‍या के बाद डॉ भागीरथ की जीत पुख्‍ता और पुष्‍ट हो गयी है, यह जीत तो हत्‍या से पहले ही लगभग एकदम सुनिश्चित थी । भिण्‍ड सीट पर भाजपा चुनाव प्रचार की शुरूआत से ही प्रभावहीन थी । ऊपर से माखन लाल जाटव की हत्‍या से भाजपा का चुनाव प्रचार एकदम कोमा में पहुँच गया है और भाजपाई डरते दुबकते चुनाव की बात करते हैं । बचे खुचे भाजपा कार्यकर्ता मुरैना और गुना पलायन कर गये हैं ।

अशोक अर्गल (भाजपा प्रत्‍याशी) को जो जिल्‍लत भिण्‍ड में उठानी पड़ रही है वह स्‍वाभाविक ही थी, चम्‍बल की इन दोनों सीटों पर जो भी हो रहा है उसमें किंचित भी कुछ भी विस्‍मयकारी नहीं है ।

गुना ग्‍वालियर में सीधे मुकाबले भाजपा और कांग्रेस के बीच हैं और ग्‍वालियर में मामूली (अधिक भी संभव है)  अन्‍तराल पर कांग्रेस तथा गुना में लम्‍बे अन्‍तराल पर कांग्रेस का विजयी होना लगभग तय माना जा रहा है ।

मुरैना में सीधा मुकाबला भाजपा बसपा के बीच होगा , कांग्रेस और माकपा तीसरे व चौथे स्‍थान के लिये संघर्ष करेंगे । भिण्‍ड में त्रिकोणीय कहिये या एक पक्षीय कहिये कांग्रेस की विजय के साथ भाजपा और बसपा दूसरे व तीसरे स्‍थान के लिये संघर्ष करेंगीं । मुरैना में हालांकि भाजपा प्रत्‍याशी नरेन्‍द्र सिंह तोमर को बड़ी आसानी से हराया जा सकता है लेकिन प्रतिद्वंदी प्रत्‍याशी इसका लाभ नहीं उठा पा रहे । अव्‍वल तो नरेन्‍द्र सिंह तोमर के कमजोर पक्ष (वीक पाइण्‍टस) से वे पूरी तरह या तो अज्ञान या अनजान हैं या फिर उठा नहीं पा रहे या उठाना नहीं चाह रहे । अन्‍य प्रत्‍याशीयों की तुलना नरेन्‍द्र सिंह तोमर का नकारात्‍मक पक्ष अधिक स्‍पष्‍ट व प्रबल था लेकिन यह नरेन्‍द्र सिंह तोमर का भाग्‍य या मुकद्दर है कि उनकी टक्‍कर में कांग्रेस और बसपा ताकतवर प्रत्‍याशी न देकर कमजोर प्रत्‍याशीयों को लेकर आयीं जो कि चुनाव प्रचार की सामान्‍य और बारीक कैसी भी रणनीति और रीति नीति से सर्वथा नावाकिफ हैं ।

मुरैना 23 करोड़ और विदिशा 37 करोड़ में बिके

मुरैना में हालांकि यह अफवाह भी है कि कांग्रेस ने मुरैना और विदिशा सीट क्रमश: 23 करोड़ और 37 करोड़ रू. में भाजपा को बेची हैं । अब इस अफवाह में कितनी दम है या कितनी सच्‍चाई है यह तो भाजपाई जानें या कांग्रेसी बन्‍धु जानें ।

पार्टीयां बेअसर

भिण्‍ड और मुरैना तथा गुना और ग्‍वालियर चारों सीटों पर राजनीतिक पार्टीयां पूरी तरह बेअसर हो गयीं है इन सीटों पर प्रत्‍याशी की व्‍यक्तिगत छवि और जातीय ध्रुवीकरण एवं सामाजिक समीकरणों पर चुनाव आध्‍धरित हो गये हैं । 

माखनलाल हत्‍याकाण्‍ड- डेमेज कण्‍ट्रोल बेअसर

भाजपा और पुलिस द्वारा गोहद विधायक माखन लाल जाटव की हत्‍या से बनी स्थिति और हुये डेमेज के कण्‍ट्रोल के लिये खेले गये सर्कस और सीरीयल चुनावी अर्थों में बेअसर हो गये हैं । हत्‍याकाण्‍ड में कांग्रेसी नेताओं को लपेटना लोगों के गले नहीं उतर रहा जबकि हत्‍या की सुपारी के लिये पैसे कहॉं से आये किसने दिये, किसको दिये कब दिये कहॉं दिये जैसे सवाल अभी तक अधर में हैं, पैसे बरामद क्‍यों नहीं हुये, कई सवाल पुलिस की भूमिका और भाजपा नेताओं पर सवालिया निशान लगा रहे हैं । इसमें एक अहम सवाल यह भी है कि जो व्‍यक्ति 32 लाख रू. की सुपारी लेकर हत्‍या कर सकता है, क्‍या वही व्‍यक्ति ज्‍यादा रकम मिलने पर झूठा गुनाह नहीं कबूल कर सकता ( संभव है कि झूठा गुनाह कबूल करने के लिये भी पैसे मिले हों) अभी सवाल कई इस हत्‍याकाण्‍ड पर उठ रहे हैं और पुलिस की भूमिका दिनोंदिन संदिग्‍ध ही होती जा रही है ।   

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

माइक्रो आब्जर्वर का प्रशिक्षण 22 अप्रैल को ग्वालियर में

माइक्रो आब्जर्वर का प्रशिक्षण 22 अप्रैल को ग्वालियर में

मुरैना 20 अप्रेल 09/ लोक सभा निर्वाचन के अन्तर्गत 01 मुरैना संसदीय क्षेत्र निर्वाचन हेतु नियुक्त माइक्रो आब्जर्वरका प्रशिक्षण 22 अप्रेल को अपरान्ह 3 बजे कमलाराजा गर्ल्स डिग्री कालेज हॉल नम्बर 2 ग्वालियर में आयोजित किया गया है ।

    कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी श्री एम.के. अग्रवाल के अनुसार इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में 250 माइक्रो आब्जर्वर को प्रशिक्षण दिया जायेगा । इस प्रशिक्षण के दौरान डाकमत पत्र या निर्वाचन कर्तव्य प्रमाण पत्र की सुविधा देने हेतु निर्धारित फार्म वितरित किये जायेंगे । फोटो परिचय पत्र जारी करने के लिए सभी माइक्रो आब्जर्वर को अपने दो पास पोर्ट साईज फोटो ग्राफ्स लाने हेतु निर्देशित किया गया है

लोक सभा निर्वाचन-2009 : मतदान के पहले होगा मॉक पोल

लोक सभा निर्वाचन-2009 : मतदान के पहले होगा मॉक पोल

मुरैना 20 अप्रेल 09/ चुनाव आयोग ने लोकसभा निर्वाचन की पारदर्शिता बनाये रखने के उद्देश्य से मॉक पोल की प्रक्रिया को सर्वोच्च महत्व के साथ करने का कहा है । आयोग ने उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंटों की उपस्थिति में मॉक पोल सुनिश्चित रूप से करने को कहा है । मतदान केन्द्र के पीठासीन अधिकारियों द्वारा मॉक पोल के बाद उसका प्रमाण पत्र भी जारी किया जायेगा ।

       कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी श्री एम.के.अग्रवाल के अनुसार राजनैतिक दलों के पोलिंग एजेंटों की चुनाव के दौरान मौजूदगी बेहतर पारदर्शिता को परिलक्षित करती है । उन्होंने बताया कि मतदान के नियत समय सबेरे 7 बजे से  एक घंटे पूर्व मॉकपोल की प्रक्रिया सभी मतदान केन्द्रों पर सम्पन्न होगी । इसके लिए सभी राजनैतिक दलों के पोलिंग एजेंटों से प्रात: 6 बजे मतदान केन्द्र पर पहुंचने का अनुरोध किया गया है । मॉकपोल के पूरा होने के तत्काल बाद 8 बजे तक उसकी पूरी रिपोर्ट को मतदान केन्द्र के पीठासीन अधिकारी जिला निर्वाचन अधिकारी के माध्यम से मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय द्वारा भारत निर्वाचन आयोग को भेजा जायेगा । संचार नेटवर्क के अंतर्गत मतदान केन्द्र स्तर पर नियुक्त संपर्क अधिकारी के मार्फत सम्पन्न मॉकपोल की जानकारी भेजी जानी होगी ।

       पीठासीन अधिकारियों को मॉकपोल निर्धारित समय पर ही करने के निर्देश दिये गये है । राजनैतिक दलों के पोलिंग एजेंट यदि उक्त निर्धारित समय पर उपस्थित नहीं होते है तो कुछ समय तक रूका जा सकता है । लेकिन इसके बाद भी यदि एजेंट नहीं पहुंचते हैं तो फिर पीठासीन अधिकारी मॉकपोल सम्पन्न करायेगा तथा यह सूचना देगा कि कोई पोलिंग एजेंट इस दौरान उपस्थित नहीं हुआ और वह मतदान निर्धारित समय सबेरे 7 बजे से शुरू करवायेगा । मॉकपोल इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन की काम करने की स्थिति की जांच के लिए किया जायेगा, जिसका उल्लेख पीठासीन अधिकारियों को उनके द्वारा भेजे जाने वाले प्रमाण-पत्र में करना होगा ।

       आयोग ने मॉकपोल के संबंध में विशेष निर्देश निर्वाचन प्रक्रिया से जुडे अधिकारियों को दिये है । जिसमें उम्मीदवारों द्वारा नियुक्त चुनाव एजेंटों का उनकी तैनाती के पोलिंग स्टेशन अथवा निकट के मतदान केन्द्र का मतदाता होना जरूरी होगा, इस पर सख्ती से अमल होना है । उम्मीदवारों को यह सलाह दी गई कि उनके एजेंट मतदान शुरू होने के पर्याप्त समय पूर्व मतदान केन्द्र पहुंच जाएं ताकि मतदान के पूर्व की औपचारिकताएं जैसे उन्हें प्रवेश पत्र का जारी होना, मॉकपोल (कृत्रिम मतदान) का संचालन आदि काम समय पर हो जाएं । मॉकपोल का संचालन पीठासीन अधिकारी उम्मीदवारों के चुनाव एजेंटों की मौजूदगी में करेंगे । अधिकारियों को एक निर्धारित प्रारूप में मॉकपोल सर्टिफिकेट तैयार कर उस पर दस्तखत करना होगें । उन्हें इस सर्टिफिकेट में चुनाव एजेंटों के नाम और उन उम्मीदवारों के नाम भी दर्शाना होंगे जिनका वे प्रतिनिधित्व कर रहे है तथा उनके दस्तखत भी लेना होंगे ।

 

अनुपस्थित सचिवों को नोटिस

अनुपस्थित सचिवों को नोटिस

मुरैना 19 अप्रैल 2009/ मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत श्री अभय वर्मा ने रोजगार गारंटी योजना में किये गये व्यय की रोकड़वहीं (कैशबुक) के परीक्षण के दौरान अनुपस्थित रहने वाले एक दर्जन ग्राम पंचायतों के सचिवों को नोटिस जारी किये हैं ।

    विदित हो कि गत 6 अप्रेल को जनपद पंचायत पोरसा में ग्राम पंचायत बरबाई, अझेड़ा, अमिल्हेड़ा, हिंगावली, लुधावली, विण्डवा , रनहेरा, चापक , भदावली, खोयला, भजपुरा और कसमढ़ा के सचिवों की अनुपस्थिति के कारण कैशबुक का परीक्षण नहीं हो सका । इसके लिए इन सचिवों को कारण बताओं सूचना पत्र तामिल कराने हेतु

लोक सभा निर्वाचन 2009 : संवेदनशील मतदान केन्द्रों पर होगी माइक्रो ऑब्जर्वर की तैनाती

लोक सभा निर्वाचन 2009 : संवेदनशील मतदान केन्द्रों पर होगी माइक्रो ऑब्जर्वर की तैनाती

प्रेक्षकों की मौजूदगी में प्रशिक्षण सम्पन्न

मुरैना 19 अप्रैल 2009/ लोकसभा िनर्वाचन 2009 के िलए मुरैना िजले के संवेदन शील एवं अति संवेदन शील मतदान केन्द्रों पर नजर रखने के िलये िनयुक्त िकये गये  माइक्रो आर्ब्जवर को आज मास्टर ट्रेनर्स द्वारा शासकीय पॉलीटेक्निक कालेज में प्र‡„ाक्षण िदया गया।

 

प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिले के लिए भारत निर्वाचन आयोग द्वारा नियुक्त प्रेक्षक श्री डी.पी.रेड्डी, श्री राकेश कुमार, श्री प्रमोद कुमार पटनायक और श्री हृषिकेश कुमार तथा कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी श्री एम के. अग्रवाल ने माइको आर्ब्जवर्स को मतदान केन्द्र की विभिन्न व्यवस्थाओं और मतदान के दौरान किसी भी आकस्मिक घटना होने के संबंध में वे किस प्रकार स्थिति पर नियंत्रण करेंगे इन बारीकियों से और उनके दायित्वों से अवगत कराया। प्रशिक्षण में माइक्रो आर्ब्जवर को इलेक्ट्रानिक वोटिग मशीन से मतदान की प्रक्रिया को भी समझाया गया।

       प्रशिक्षण में बताया गया कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष ढंग से चुनाव सम्पन्न कराने के लिए माइक्रो ऑब्जर्वर को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है । उन्हें बीडियो ग्राफर की सुविघा भी उपलब्ध कराई जायेगी । अत: वे अपनी डयूटी की गंभीरता को समझें और मुस्तैदी पूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन करें । इसमें किसी भी प्रकार की उदासीनता पर सख्त कार्रवाई भी होगी । मतदान के दौरान पीठासीन अधिकारी को कोई निर्देश न दें अपितु सावधानी पूर्वक मतदान प्रक्रिया का पर्यवेक्षण करें और उसकी रिपोर्ट प्रेक्षक को सौंपे । यदि मतदान के दौरान कोई अनियमितता दिखाई दे तो उसकी सूचना तत्काल संबंधित प्रेक्षक को दी जाये । माइक्रो ऑब्जर्वर को निर्वाचन प्रेक्षक के सीधे नियंत्रण में काम करना होगा । मतदान के दिन माइक्रो ऑब्जर्वर को मोकपोल पर नजर रखनी है । यदि प्रमुख दलों के अभ्यर्थियों के एजेण्ट की गैर मौजूदगी में मोकपोल हुआ तो उसकी सूचना तत्काल प्रेक्षक को अवश्य दी जाये । माइक्रोओब्जर्बरों को 29 अप्रैल को वितरण स्थल पर उपस्थित होना है, जहां उन्हें प्रेक्षक द्वारा यह बताया जायेगा कि उन्हें किस मतदान केन्द्र पर ड्यूटी देना है । माइक्रो आब्जर्वर को मतदान दिवस 30 अप्रैल को अपने मतदान केन्द्र पर प्रात: 6 बजे पहुंचना होगा । माइक्रो ऑब्जर्वर को ई. व्ही. एम. का व्यवहारिक ज्ञान एवं आयोग के दिशा-निर्देशों से अवगत कराया गया ।

       इस अवसर पर अपर कलेक्टर (विकास) श्री अभय वर्मा, उप जिला निर्वाचन अधिकारी श्री आर.पी. एस. जादौन, एस.डी.एम. श्री संदीप माकिन और डा. एम.एल. दौलतानी उपस्थित थे ।

 

रतनजोत : पड़त भूमि के लिए वरदान

रतनजोत : पड़त भूमि के लिए वरदान

Article BY: Regional Public Relations Office- Gwalior Chambal Region

रतनजोत अर्थात जेट्रोफा करकस अर्थात जैव ईंधन वनस्पति पड़त भूमि के लिये वरदान साबित हो रही है । भारतवर्ष में यह सफेद अरण्ड, विदेशी अरण्ड, चंद्रजोत, काला अरण्ड, रेंडा एवं किड बिजौला इत्यादि नामों से भी जानी जाती है। यह यूफोरविएसी फैमली का पौधा है भिण्डी भी इसी फैमली में आती है । यह उष्ण एवं उपोष्णा कटिबन्धीय क्षेत्रों में बहुतायत में पाया जाता है । यह अत्यंत सूखारोधी वनस्पति है किन्तु जल भराव को भी सहन करने की क्षमता रखती है । इसे कोई जानवर नहीं खाता और न ही इसकी पैदावार के लिये रासायनिक खाद अथवा कीटनाशकों की आवश्यकता होती है । रतनजोत अर्थात जेट्रोफा बहुवर्षीय फसल है जो लगातार कई वर्षों तक पैदावार देती है । इसका उपयोग औषधीय,औद्योगिक, जैव ईंधन के रूप में तथा खेतों में बाड़ के रूप में भी किया जाता है । इधर जैव ईधंन के रूप में रतनजोत के उपयोग के बाद कृषक रतनजोत की खेती में अधिक रूचि लेने लगे हैं और जागरूक भी हुये हैं ।

      बहुआयामी वनस्पति रतनजोत अर्थात जेट्रोफा की आधा दर्जन प्रजातियां हैं । दक्षिण भारत तथा बंगाल में जंगल एवं पड़त भूमि में जेट्रोफा ग्लेंडुलिफेरा बहुतायत में पाया जाता है। इसके बीज आकार में छोटे तथा जेट्रोफा करसक की तुलना में कम तेल वाले होते हैं । अन्य प्रजातियों में जेट्रोफा मल्टीफिडा, जेट्रोफा पंडरिफोलिया, जेट्रोफा पोडागिरिका तथा जेट्रोफा गोसिपिफोलिया है ।

       भारत के तीव्र आर्थिक विकास में पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति हेतु विदेशों पर निर्भरता एवं उनकी आसमान छूती कीमतें देश के आर्थिक विकास में एक बड़ी बाधा है । ऊर्जा के इस चिंताजनक परिदृश्य में रतनजोत एक अनमोल वानस्पतिक संपदा के रूप में उभरी है । इसके बीजों से मिलने वाले तेल को एक सरल उपचार के बाद इंजनों में डीजल के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है । वहीं दूसरी ओर यह पर्यावरण के लिये सुरक्षित हैं क्योंकि इसमें सल्फर नहीं रहता है ।

रतनजोत में बीज के वजन का 35-40 प्रतिशत एवं गिरि के वजन को 50-60 प्रतिशत तेल होता है । जिसे आर्थिक रूप से उद्योगों के लिये प्रयोग किया जा सकता है । मुख्यत: साबुन बनाने में, जलाने के लिये, लुब्रीकेंट व मोमवत्ती बनाने में इसके तेल का उपयोग किया जाता है । इसके तेल से प्लास्टिक व सिन्थेटिक फाइबर के लिये कच्चा माल भी तैयार किया जाता है । चीन में यह वार्निश बनाने के काम में आता है । रतनजोत की छाल से नीले रंग की डाई मिलती है, जिसमें कपड़ों व मछली पकड़ने वाले जाल को रंगा जाता है । इसका तेल सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण के लिये भी काम में लाया जाता है ।

रतनजोत को कोई जानवर नहीं खाता इसलिये इसे वानस्पतिक बागड या बंधान के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है । इस उपयोग के लिये पौधों को कम दूरी पर लगाना चाहिये। इस तरह रोपित बागड से मृदा संरक्षण, बंधान, सुदृढ़ीकरण एव फसली पौधों की अवांछित जानवरों से रक्षा होती है, साथ ही रतनजोत के बीजों को बेचकर अतिरिक्त लाभ प्राप्त किया जा सकता है । रतनजोत वर्ष में एक बार अपने सारे पत्ते गिरा देता है, जिससे भूमि को जहां एक ओर कार्बनिक पदार्थ मिलता है, वहीं दूसरी ओर जैविक क्रियायें मिट्टी में बढ़ जाती हैं ।

रतनजोत में जेट्रोफिन नाम का रासायनिक पदार्थ पाया जाता है । जिसमें केंसर प्रतिरोधी क्षमता होने के कारण इसका उपयोग केंसर रोधी औषधियों के निर्माण में किये जाने की अपार संभावनायें मिली है । इसके तेल का उपयोग त्वचा संबंधी रोग जैसे दाद, खाज, खुजली आदि के उपचार हेतु भी किया जाता है ।

 

जेट्रोफा विभिन्न प्रकार की जलवायु एवं भूमि पर लगाया जा सकता है । शुष्क व अर्ध्दशुष्क पथरीली, रेतीली, बलुई एवं कम गहराई वाली भूमि पर आसानी से लगाया जा सकता है । यह वर्ष में एक बार पत्ते गिरा देने वाला, चिकना, मुलायम काष्ठ युक्त बहुवर्षीय झाड़ीनुमा पौधा है । इसकी ऊचांई 3-4 मीटर, पत्तियां हृदयकार, हल्के पीले हरे रंग की तथा चिकनी होती हैं । पत्तियां तने पर एकान्तर क्रम में विन्यासित होती हैं। शाखाओं के अंतिम सिरे पर सितम्बर से नवम्बर तक सफेद रंग के फूल लगते हैं । अक्टूबर से दिसम्बर तक फल गुच्छों में लग जाते हैं जो कि केप्सूल के रूप में शुरू में हरे रंग के रहते हैं । पकने पर पीले व बाद में कालापन लिये गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं । फल के अंदर अमूमन 3-4 बीज होते हैं जो आकार में छोटे व कालिमा लिये गहरे भूरे रंग के होते हैं ।

रतनजोत का प्रबर्धन बीज एवं कटिंग दोनों तरीकों से संभव है । इसके बीजों एवं कलमों से नर्सरी तैयार कर खेतों में रोपण किया जा सकता है । बीज से नर्सरी तैयार करने के लिये रेत, मिट्टी व गोबर की खाद को 1:1:1 के अनुपात में 500 ग्राम की पॉलिथीन की थैलियों में भरकर उनमें बिजाई कर दी जाती है । बिजाई के बाद झारे से पानी लगाकर मिट्टी को नम रखा जाता है ।

बिजाई फरवरी - मार्च व जुलाई- अक्टूबर में की जाती है । बिजाई के लिये बड़े स्वस्थ्य व भारी बीजों का प्रयोग किया जाता है, इसके लिये बीजों को पहले 24 घंटे पानी में भिगोना चाहिये । नीचे बैठे भारी बीजों की मिट्टी खाद मिश्रण युक्त थैलियों में 2-3 से.मी. गहराई पर बोना चाहिये । बिजाई के 4-6 माह बाद पौधे खेत में लगाने के लिये तैयार हो जाते हैं ।

कलम (कटिंग) से पौधे तैयार करने के लिये कलमों को मातृ पौधे से एकत्रित किया जाता है । ध्यान रहे कि कलमें हरी मुलायम 30-45 से.मी. लम्बी व 3-4 से.मी. मोटी व अधिक आंख (बड) युक्त हों । कलमें क्यारियों में 15


15 से.मी. की दूरी पर लगाई जाती हैं। कलमों में 20-25 दिन में जड़ें आ जाती हैं । 6 माह से एक वर्ष के पौध को खेतों में लगाया जा सकता है । कलम लगाने का उपयुक्त समय फरवरी-मार्च होता है । इस विधि से तैयार पौधों में फल जल्दी आते हैं । नर्सरी में तैयार 6-8 माह तक के पौधों का खेतों में रोपण बरसात आने पर जुलाई से सितम्बर तक किया जाता है । पौधों को 30
30
30
से.मी. से 45
45
45
से.मी. के गढ्ढों में 2
2
मीटर या 3
1.5
मीटर पर लगाया जाना चाहिये । गढ्ढों में यदि 1-2 किग्रा सडी गोबर की खाद, 50 ग्राम नत्रजन (100 ग्राम यूरिया) 30 ग्राम स्फुर (200 ग्राम एस.एस.पी) व पोटाश (50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश) मिलाकर गढ्ढे को भरें । यदि पौध रोपण के बाद वर्षा न हो तो सिंचाई अवश्य करें । बीज और कलमों को बरसात के समय सीधे भी खेत में गढ्ढे खोदकर व खाद डालकर लगाया जा सकता है । कलम द्वारा तैयार पौधों में बीजोत्पादन अप्रेक्षाकृत जल्दी एवं अधिक होता है । मार्च माह में पौधों को 60-90 से.मी. जमीन  से ऊपर काट दिया जाता है ताकि नई शाखायें निकल सकें। काटने की क्रिया केवल 2-3 वर्ष तक ही करें । इससे पौधे में शाखायें अधिक बन जाती हैं व बीजोत्पादन अधिक होता है ।

रतनजोत को 3


1.5 मीटर में रोपाई कर इसकी पंक्तियों के मध्य में अन्तरवर्तीय फसलें जैसे- कालमेघ, असंगध, मूंग, उड़द व तिल आदि की फसलें ली जा सकती हैं । प्रथम वर्ष रोपाई के बाद पर्याप्त वर्षा न होने पर हल्की सिंचाई करें। शीत व ग्रीष्म ऋतु में क्रमश: 15-20 दिन एवं 7-8 दिन पर सिंचाई करते रहें । दूसरे वर्ष से सिंचाई की आवश्यकता नही होती हैं परंतु सीमित मात्रा में सिंचाई करने से भी बढवार व फलन अच्छा किया जा सकता है। छाल खाने वाली इल्लियां व फलीछेदक इल्लियां रतनजोत के प्रमुख कीट हैं । इसके नियंत्रण हेतु क्विनॉलफॉस 25.सी. या रोगर (2 मिली/लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिये। कॉलररोट नामक बीमारी इस फसल की शुरूआत में या नर्सरी में देखी जाती है अत: नर्सरी में कार्बन्डाजिम नामक दवा से उपचार कर बीज बोएें । खेत में बीमारी का प्रकोप होने पर इसी दवा को 0.02 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें ।

दूसरे या तीसरे वर्ष फल आने लगते हैं । प्रथम तुड़ाई में 2-5 क्वि. प्रति हैक्टर उपज प्राप्त होती है । चार -पाँच वर्षों के बाद 8-14 क्वि. प्रति हैक्टर उत्पादन प्राप्त होने लगता है।

रतनजोत का उपयोग जैव डीजल बनाने में प्रमुखता से किया जाता है । इसके तेल को ट्रांस्एस्टीरिफिकेशन विधि द्वारा बायोडीजल में परिवर्तित किया जाता है । इसमें सबसे पहले रतनजोत के तेल को छाना  जाता है । इसके बाद वसा दूर करने के लिए क्षार से क्रिया कराई जाती है । इसमें अल्कोहल और एक उत्प्रेरक (सोडियम या पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड) मिलाया जाता है, जिसके कारण रतनजोत के तेल में उपलब्ध ट्राइग्लिसराइड्स इनसे क्रिया कर ईस्टर व ग्लिसरॉल का निर्माण करते हैं । जिन्हें अलग-अलग करके शुध्द कर लिया जाता है । ईस्टर को बायोडीजल के रूप में प्रयोग करते हैं ।