लाभकारी है- नीबू वर्गीय फलों की खेती
Article Presented By: Zonal Public Relations Office, Gwalior-Chambal Zone
ग्वालियर,18 मई 09। नीबू वर्गीय फलों में माल्टा, मौसम्बी, किन्नू, संतरा, लेमन, कागजी नीबू, ग्रेपफ्रूट, चकोतरा आदि आते हैं । गिर्द क्षेत्र की जलवायु लगभग सभी प्रकार के नीबू वर्गीय फलों की खेती हेतु उत्तम है । परन्तु अभी तक इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा कागजी नीबू,ही लोकप्रिय है एवं अधिकांश क्षेत्रों में इसकी खेती बड़ी आसानी से की जा रही है । माल्टा,मौसम्बी,नारंगी एवं किन्नू के पौधे भी जहाँ पर लगाये गये हैं उनकी वानस्पतिक वृद्वि व फलत अच्छी है । सीडलैस नीबू लगाने की इस क्षेत्र में काफी संभावनायें हैं ।
नीबू वर्गीय फलों की वृद्वि एवं फलत प्रारम्भ में अच्छी होती है । परन्तु समुचित रख-रखाव के अभाव में कुछ समय पश्चात इनकी वृद्वि धीरे-धीरे कम होने लगती है । प्रतिकूल घटकों के प्रभाव से नीबू वर्गीय फलों में हृास के लक्षण जैसे पौधों में पत्तियाँ पीली व छोटी हो जाना,टहनियाँ सूखना,फलों का आकार छोटा होना एवं फलत कम हो जाने से धीरे-धीरे पौधा अनुत्पादक हो जाता है । नीबू वर्गीय फलों के पौधों के ह्रास को रोकने के लिए एवं नये बगीचे लगाने से पहले कुछ जानकारियां रखना नितान्त आवश्यक होता है । मसलन उद्यान लगाने हेतु दोमट एवं बलुआ दोमट भूमि अच्छी रहती है जिसमें उचित जल निकासी हो सके।
भूमि का पी एच. मान 6 से 7.5 के बीच हो। स्वस्थ एवं विश्वसनीय स्त्रोत के पौधे ही रोपे जावें। पौधों को लगाते समय गङ्ढों में 40 ग्राम क्लोरोपाइरीफास दवा एवं 25 किलो सड़ा गोबर खाद/कम्पोस्ट तथा 100 ग्राम डी.ए.पी.,125 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास डालें। फिर एक-दो पानी लगाने के बाद 125 ग्राम यूरिया प्रति वर्ष दें । इस मात्रा को पौधों की उम्र के हिसाब से हर साल बढ़ाते रहें । 'जब पौधे की उम्र दस साल हो जाये तब खाद एवं उर्वरक की मात्रा स्थिर कर देना चाहिये । उर्वरक की आधी मात्रा सितम्बर तथा आधी दिसम्बर में देना चाहिये । इसके अलावा दस साल की उम्र के पौधे को लेश तत्व 15 किलो मैग्नीशियम तथा 30 किलो सल्फर का उपयोग करें । साथ ही जिंक,कॉपर,बोसन,कैल्सियम,आयरन आदि सूक्ष्म तत्वों का भी छिड़काव करें ।
समय-समय पर उद्यानों/बगीचों में लगाये पौधों का अवलोकन कर उनके थालों की साफ सफाई एवं निंदाई-गुड़ाई तथा सिंचाई करते रहना चाहिये । जुलाई-अगस्त के महीनों में कागजी नीबू एवं किन्नू के पौधों में केंकर का प्रकोप अधिक होता है । अत: इसकी रोकथाम हेतु 3 ग्राम ब्लीटोक्स प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कें तथा स्ट्रेप्टोसायक्लीन दवा का 100-200 ग्राम पी.पी.एम.का घोल का दो-तीन बार 15 दिनों के अन्तर से छिड़काव करें । यदि पौधों की जड़ों एवं तनों पर गौंद निकल आये तो 450 ग्राम कॉपर सल्फेट, 900 ग्राम चूना 9 लीटर पानी में घोलकर प्रभावित जड़ तनों की छाल छील कर लेप कर दें।
साधारणत: पोषक तत्वों की कमी के लक्षण अलग-अलग पहचानना कठिन होता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए जिंक सल्फेट 2.25 कि.ग्रा.,कॉपर सल्फेट 1.35 कि.ग्रा.,मैग्नीशियम सल्फेट 0.90 कि.ग्रा.,फेरस सल्फेट 0.90कि.ग्रा.,बोरिक अम्ल 0.45 कि.ग्रा.,मैग्नीशियम सल्फेट 0.90 कि.ग्रा.,यूरिया 4.50 कि.ग्रा.,चूना 4.00कि.ग्रा.,पानी 450 लीटर में घोल बनाकर छिड़काव करें। यह घोल एक हेक्टर क्षेत्र के लिए पर्याप्त होगा ।
पुराने उद्यानों का जीर्णोद्वार-ऐसे बगीचे जो देखरेख की कमी के कारण अनुत्पादक हो गये हैं । उनकी अच्छी देखभाल कर आर्थिक दृष्टि से उपयोगी बनाया जा सकता है । दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में पौधों की सूखी टहनियों की कटाई छंटाई करें। थालों की गुड़ाई कर प्रति पेड़ एक किलोग्राम डी.ए.पी.,750 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास तथा 40-50 किलो ग्राम सड़े हुए गोबर खाद को भली भाँति मिला दें। तत्पश्चात पेड़ों की सिंचाई करें। जनवरी-फरवरी में फूल आने के बाद सिंचाई कम करें। नमी बनाये रखें जब तक फल सेट नहीं हो जाता अप्रैल में 750 ग्राम यूरिया,750 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास प्रति पेड़ की दर से गुड़ाई कर थालों में मिला दें । 3-5 ग्राम एग्रीमीन नामक दवाई प्रति लीटर पानी में छिड़काव करें । जुलाई-अगस्त में क्लाइटॉम्स या डायथेन जेड-78 दवा 3 ग्राम एक लीटर पानी में तथा यूरिया 1-2 प्रतिशत का घोल एक साथ मिलाकर छिड़काव करें । पुराने अनुत्पादक बगीचे से अधिक आर्थिक लाभ मिलेगा ।
नीबू वर्गीय फलों की उन्नत ढंग से खेती करने या इससे सम्बंधित समस्या के निराकरण हेतु जिले के उपसंचालक उद्यान एवं सहायक संचालक उद्यान तथा विकास खण्ड स्तर पर उद्यान अधीक्षक एवं ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारियों से सम्पर्क कर सकते हैं ।
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