राकेश पाठक के बाद अब देव श्रीमाली भी इण्टरनेट ब्लागिंग पर
ब्लागिंग ने बदली साहित्य व पत्रकारिता की दुनिया
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
वेब पत्रकारिता और वेब साहित्य के धुऑंधार धमाके और बृहद पाठक वर्ग ने नामी गिरामी पत्रकारों और प्रिन्ट व टी.वी. चैनल मीडिया के बेताज बादशाहों को भी अपनी ओर खींच लिया है ।
मध्यप्रदेश के सम्मानित प्रतिष्ठित व पुरूस्कृत पत्रकार राकेश पाठक ने अभी चन्द रोज पहले वेब ब्लागिंग में कदम रख कर इण्टरनेट मीडिया और वेब पत्रकारिता व वेब साहित्य की श्रेष्ठता व उत्कृष्टता वृद्धि में एक नया सोपान रचने की व इस मीडिया की सर्वोच्च पाठक संख्या एवं लोकप्रियता को महत्व दे दिया था ।
राकेश पाठक एक मशहूर और कलम के धनी पत्रकार का नाम है, मेरा सौभाग्य है कि भिण्ड की गलियों में मेरा बचपन आज के इतने बड़े पत्रकार के साथ गुजरा, उनकी इण्टरनेट पर कलम चलने की खबर मुझे मेरी ही वेबसाइट ने दी तो मुझे सर्वाधिक प्रसन्नता हुयी, मैंने वर्ष 2002 में एक शुरूआत की थी, समय गुजरते काफी सीखा और सन 2002 की शुरूआत ने आज एक बहुत बड़ा रूप धारण कर लिया, मैंने स्वप्न में कभी ऐसी कल्पना नहीं की थी । पिछले दो तीन साल से मुझे लगता था कि अच्छे पत्रकार व साहित्यकार इस अति सशक्त व सक्षम मीडिया का इस्तेमाल प्रारंभ कर दें, तो विश्व का बहुत बड़ा जिज्ञासु वर्ग जो भारत के बारे में बहुत कुछ जानना चाहता है, यहॉं के साहित्य को धरोहर मान कर प्रतिष्ठा देता है और चम्बल घाटी तथा मध्यप्रदेश, यहॉं की परम्परायें, संस्कृति, इतिहास, ताजा समाचार आदि जानना चाहता है वह निसन्देह लाभान्वित होगा ।
राकेश भाई का ब्लाग एड्रेस मुझे नहीं मिल पाया, खैर वह आ ही गये हैं तो वह भी किसी दिन मिल जायेगा । और ग्वालियर टाइम्स पर दिखने लगेगा ।
अब कल जब मैं ई मेल देख रहा था, तो वेबसाइट ने अलर्ट भेजा कि भाई देव श्रीमाली जी ने भी ब्लागिंग में एण्ट्री कर दी है और बोल चम्बल बोल में बोलना शुरू कर दिया है । श्रीमाली ग्वालियर टाइम्स पर आटो अपडेट मैथड से पढ़ने को मिलेंगे !
देव श्रीमाली जी एन.डी.टी.वी. के संवाददाता हैं, और प्रतिष्ठित पत्रकार हैं । संयोगवश अभी चन्द दिवस पूर्व 2 फरवरी को जनसम्पर्क संचालनालय की कार्यशाला में श्रीमाली जी से भेंट हुयी थी । और वहॉं मुझे भी बोलने का अवसर मिला तथा श्रीमाली जी ने भी इण्टरनेट पत्रकारिता और इस ताकतवर मीडिया का सशक्त व्याख्यान किया । वहॉं ब्लागिंग और पोडकास्टिंग तथा फीडिंग व रीडिंग जैसे अत्याधुनिक विषय जिक्र में आये । उसके चन्द रोज के भीतर ही देव श्रीमाली जी ने अपनी सशक्त एण्ट्री भी कर दी ।
देव श्रीमाली के ब्लाग को मैंने पढ़ा, काफी अच्छा लिखा गया है, उन्होंने अनिल साधक को भी स्मरण किया है, संयोगवश अनिल साधक जी के साथ किसी कार्यक्रम में मेरे चित्र थे, मैंने उन्हें तलाशवाया लेकिन मिल नहीं सके, एक पत्रकार उन्हें लेकर दो साल पहले चला गया, फिर लौटाये नहीं । मेरा मन था कि साधक को हम भी आत्मीय श्रद्धांजलि अर्पित करते, मुरैना की या चम्बल की माटी के इस होनहार व यशस्वित पत्रकार (उनके व्यवहार से मैं काफी प्रभावित था) पर चन्द शब्द चम्बल से भी आते । वह कमी श्रीमाली जी ने पूरी कर दी है । श्रीमाली जी भिण्ड के हैं । अभी तक मुरैना ही इण्टरनेट पर अधिक था, उसकी कमीपूर्ति अब भाई राकेश पाठक और देव श्रीमाली जी कर देंगें ।
मैंने प्रिन्ट मीडिया में अनेक वर्षो तक लिखा, लेकिन वह संतुष्टि नहीं मिली जो इण्टरनेट पर काम करने में आयी । मैंने हमेशा प्रयास किया कि चम्बल के बदनुमा कलंक ''डकैत'' जैसे धब्बे इसके माथे से हटना चाहिये । और ऐसी खबरों व आलेख से यथासंभव परहेज किया, क्योंकि जितना भी समकालीन साहित्य व समाचार उपलब्ध था, वह अतिश्योक्ति पूर्ण एवं ऊलजलूल था, वह सच के निकट से कम गुजरता था ।
लेखकों, उपन्यासकारों और फिल्मकारों ने चम्बल का प्रस्तुतीकरण कुछ ऐसा कर दिया कि आज भारत के किसी भी शहर में मुरैना, भिण्ड या चम्बल वालों को कोई मकान देने को तैयार नहीं होता, जबकि सच्चाई तो इससे किलोमीटरों दूर की बात है ।
अभी ताजा कुछ खबरें आयीं, कुछ अपहरण हुये, तो चम्बल वालों की तलाश की गयी, कौन कौन चम्बल वाले पड़ौस में रहते थे, या वहॉं नौकरी करते थे, वगैरह वगैरह । यह सब आखिर क्या था, चम्बल पर वही बदनामी का हमला । चम्बल का एक बेटा जब देश की सीमा पर अपना बलिदान देता है, तो उसे इस प्रकार हाइलाइट नहीं किया जाता । अभी 26 जनवरी को भोपाल दूरदर्शन ने ग्वालियर लिंकिंग में चम्बल के फौजीयों पर एक फिल्म का शाम को प्रसारण किया था, जिसमें फौजीयों की विधवाओं की मार्मिक दशा को काफी सशक्त रूप से दूरदर्शन ने उठाया, मगर अफसोस चम्बल को बदनाम करने वालों को इस फिल्म का मर्म आज तक नजर नहीं आया । मैंने इतनी अच्छी डॉक्यूमेण्ट्री अभी तक चम्बल पर नहीं देखी ।
तो भईया चम्बल पर लिखो, खूब लिखो लेकिन सिर्फ सच लिखो, ऐसा मत लिखो कि कोई यहॉं नौकरी करने को तैयार नहीं हो । यहॉं स्थानान्तरण होते ही अधिकारी कर्मचारी खौफ खा जाते हैं, और यहॉं आना ही नहीं चाहते ।
डकैत और बागी दोनों भिन्न शब्द हैं, पहले फर्क समझों फिर लिखो । जिन चन्द छिछोरों को मीडिया डकैत या बागी बना कर महिमा मण्डित कर चम्बल को बदनाम करने पर तुला है, दरअसल न तो वे डकैत हैं न बागी । सिर्फ अपहरण उद्योग चलाने वाले या आतंक व गुण्डागर्दी करने वाले मवेशी चोर मात्र हैं, कभी मवेशीयां हांक ले जाते हैं तो कभी आदमी । उनका काम हॉंक कर ले जाना है, इसे डकैती या बगावत नहीं कहते ।
कभी फुरसत हुयी तो चम्बल पर लिखना तो बहुत है, लिखूंगा भी और चम्बल के नाम पर अर्जी फर्जी मनगढ़न्त लिखकर नाम बटोरने, धन बटोरने वालों की सच्चाई भी सामने लाऊंगा ।
भईया राकेश पाठक और देव श्रीमाली जी शुभकामनायें ।