अन्धाधुन्ध बिजली कटौती: गुस्साई जनता ने मुरैना बिजलीघर के अधीक्षण यंत्री कार्यालय को ताला लगाया
न फरियाद सुनने वाला कोई, न हाकिम न हक्काम, हुआ हुक्का तमाम
मुरैना 19 जुलाई 08, अंतत: मुरैना की आक्रोशित जनता के सब्र का बांध टूट ही गया और बुधवार को मुरैना के बिजली घर पर जम कर धरना प्रदर्शन के बाद अधीक्षण यंत्री के कार्यालय को ताला जड़ दिया । मजे की बात ये रही कि घटनाक्रम के दरम्यान दोपहर डेढ़ बजे तक बिजलीघर के आला दर्जे के भ्रष्ट रईस अधिकारी अपने दफ्तर नहीं पहुँचे थे ।
उल्लेखनीय है बिल्कुल ठीक इसी तरह लगभग एक साल पहले जब ग्वालियर टाइम्स की टीम मामले की पड़ताल करने और शिकायत करने इसी बिजलीघर पर पहुची थी तब भी दोपहर दो बजे तक सुपरवाइजर से लेकर ए.ई., जे.ई., डी.ई. और एस.ई. तक कोई अधिकारी दफ्तर में नहीं मिला था, इसके बावजूद हमने अधीक्षण यंत्री के स्टेनो को शिकायत जमा कर पावती प्राप्त की थी । इसी शिकायत में एक शराबी और अभ्रद्र व्यवहार करने वाले इंजीनियर की भी शिकायत दर्ज थी, लेकिन महकमे की अधीक्षण यंत्री के नाम प्रस्तुत यह शिकायत आज तक कार्यवाही के लिये लंबित है और शराबी इंजीनियर जहॉं का तहॉं त्यों का त्यों पदस्थ और धांधलीशीन है । खैर इसका तो हम वक्त रहते अपने आवेदन को आपके सामने पेश जरूर करेंगें और बतायेंगें कि असल में क्या चल रहा है । आवेदन की पावती आपको दिखायेंगे जरूर ।
अब जनता की सुनिये, बुधवार को नैनागढ़ रोड मुरैना की बिलबिलाई जनता ने अपनी फरियाद सुनाने के लिये जब मुरैना के बिजली घर पर पहुँची तो कोई भी अधिकारी उन्हें वहॉं नहीं मिला । गुस्साई जनता ने धरना प्रदर्शन मुर्दाबाद और जो बेचारी कर सकती थी किया । अंतत: कोई अधिकारी न होने पर अधीक्षण यंत्री कार्यालय पर ताला जड़ दिया ।
कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं पहुँचा
चम्बल के सम्भागीय मुख्यालय के नाम पर शहर मुरैना में यूं तो कमिश्नर साहब तक की बैठक (कचहरी) है । लेकिन गरीब लाचार जनता की सुनने वाला कोई नहीं । कमाई, पद व मद में मगरूर प्रशासननिक अधिकारीयों को दो घण्टे तक चले जनताई शिकवो शिकायत पर ध्यान देने की जरूरत ही महसूस नहीं हुयी । कम से कम अम्बाह में तहसीलदार और एस.डी.एम. (तहसील के सबसे बड़े प्रशासनिक अधिकारी ) तो पहुँच गये थे । मगर मुरैना में सोता रहा जिला और संभागीय प्रशासन । मजे की बात यह कि क्षेत्र का स्थानीय विधायक और मंत्री भी शहर में शिलान्यासी श्रेय बटोरता घूमता रहा मगर उसे भी जनता की तकलीफ सुनने देखने की फुरसत नहीं मिली ।
लोकतंत्र में ऐसे अधिकारी मंत्री और विधायकों के लिये भई हम तो यही कहेंगें कि डूग मरो चुल्लू भर पानी में, शर्म शर्म शर्म ......।