शनिवार, 13 जून 2009

न्यायिक सुधार- समय की मांग

न्यायिक सुधार- समय की मांग

एम.एल. धर*

विधि मंत्री का पदभार संभालने के तुरंत बाद श्री वीरप्पा मोइली ने वक्तव्य दिया कि संप्रग सरकार अगले पांच वर्षों में न्यायिक सुधारों पर जोर देगी और यह भी सुनिश्चित करेगी कि न्याय पाने के इच्छुक लोगों की कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति सहित हर व्यक्ति को कानून सुलभ होगा। यह चरितार्थ होने में अभी समय लगेगा कि न्याय '' सरल, तेजी से, सस्ता, प्रभावी और संतोषजनक'' हो। श्री वीरप्पा मोइली के कथन में अधिक ध्यान देने योग्य बात यह है कि न्यायिक सुधार आंशिक और खण्डित नहीं होंगे। उन्होंने कहा, '' इसे पूर्णतावादी होना होगा। सिर्फ एक पक्ष से निपटने से मदद नहीं मिलेगी।''

न्यायिक संस्था और विधि का शासन आधुनिक सभ्यता और लोकतांत्रिक शासन की आवश्यकता है। यह महत्तवपूर्ण है कि न्याय प्रदान करने के प्रभावी तंत्र को सुनिश्चित करने के जरिए न्याय तंत्र और विधि के शासन में लोगों की आस्था न सिर्फ परिरक्षित है बल्कि उसे बढ़ाने के साथ-साथ उसे हासिल करने का यह सरल रास्ता भी है।

दशकों से न्याय तंत्र में सुधारों की आवश्यकता महसूस की जा रही है क्योंकि सस्ता एवं शीघ्र न्याय कुल मिलाकर भ्रामक रहा है। अदालतों में लंबित मामलों को जल्दी निपटाने के उपायों के बावजूद 2 करोड़ 50 लाख मामले लंबित हैं। विशेषज्ञों ने आशंका प्रकट की है कि न्याय तंत्र में जनता का भरोसा कम हो रहा है और विवादों को निपटाने के लिए अराजकता एवं हिंसक अपराध की शरण में जाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। वे महसूस करते हैं कि इस नकारात्मक प्रवृत्ति को रोकने और इसके रुख को पलटने के लिए न्याय तंत्र में लोगों का भरोसा तुरंत बहाल करना चाहिए।

पिछले पांच दशकों से भारतीय विधि आयोग, संसदीय स्थायी समितियों और अन्य सरकार द्वारा नियुक्त समितियों, उच्चतम न्यायालय की अनेक पीठ, प्रतिष्ठित वकील और न्यायाधीश, विभिन्न कानूनी संघ#संगठन और गैर सरकारी संगठनों जैसे विभिन्न कानूनी स्थापित#सरकारी प्राधिकरणों ने न्याय तंत्र में समस्याओं की पहचान की है और उनको जल्दी दूर करने का आह्वान किया है। फिर भी, ऐसी अनेक सिफ़ारिशों का प्रभावी कार्यान्वयन अब भी लंबित है। गृह मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति के अनुसार (2001) विधि आयोगों की प्राय: 50 ऽ रिपोर्ट कार्यान्वयन की प्रतीक्षा में हैं।

न्यायिक सुधारों का कार्यान्वयन नहीं होने के कारणों में से एक के रूप में न्याय तंत्र को कम बजटीय सहायता का भी उल्लेख किया जाता रहा है। 10वीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007) के दौरान न्याय तंत्र के लिए 700 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे जो कुल योजना व्यय 8,93,183 करोड़ रुपए का 0.078 प्रतिशत था। नवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान तो आवंटन और कम था जो सिर्फ 0.071 प्रतिशत था। यह माना गया है कि इतना अल्प आवंटन न्याय तंत्र की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी अपर्याप्त है। यह कहा जाता है कि भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ 0.2 प्रतिशत ही न्याय तंत्र पर खर्च करता है। प्रथम राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग के अनुसार, एक को छोड़कर सभी राज्यों ने अधीनस्थ न्याय तंत्र के लिए अपने संबंधित बजट का 1 ऽ से भी कम उपलब्ध कराया है जो अधिक संख्या में लंबित मामलों से पीड़ित हैं।

परंतु संसाधनों का अभाव ज्यादातर नागरिकों, खासतौर पर उन वंचित तबकों, को न्याय या किसी अन्य मूल अधिकार से इंकार करने का कारण नहीं हो सकता जिनकी ''अस्पष्ट कानूनों और प्रभावी बाधा के रूप में कार्य करने वाली उच्च लागत के कारण न्याय तक सीमित पहुंच है''''न्याय में देरी न्याय देने से इंकार है'' इस बात को मानते हुए उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने पी. रामचंद्र राव बनाम कर्नाटक (2002) मामले में हुसैनआरा मामले की इस बात को  दोहराया कि, ''शीघ्र न्याय प्रदान करना, आपराधिक मामलों में तो और भी अधिक शीघ्र, राज्य का संवैधानिक दायित्व है, तथा संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 21, 19, एवं 14 तथा राज्य के निर्देशक सिध्दांतों से भी निर्गमित न्याय के अधिकार से इंकार करने के लिए धन या संसाधनों का अभाव कोई सफाई नहीं है। यह समय की मांग है कि भारतीय संघ और विभिन्न राज्य अपने संवैधानिक दायित्वों को समझें और न्याय प्रदान करने के तंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में कुछ ठोस कार्य करें।''

अन्य प्रमुख कारकों में पिछले दशकों से न्याय तंत्र के बुनियादी ढांचे में सुधार लाने की उपेक्षा, न्यायाधीशों की रिक्तियों को भरने में असाधारण देरी और आबादी एवं न्यायाधीशों के बीच बहुत निम्न अनुपात शामिल हैं। न्याय तंत्र के कार्य निष्पादन को सुधारने के लिए इन कारकों पर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है।

120वें विधि आयोग की रिपोर्ट में इस बात की ओर संकेत किया गया है कि भारत, दुनिया में आबादी एवं न्यायाधीशों के बीच सबसे कम अनुपात वाले देशों में से एक है। अमरीका और ब्रिटेन में 10 लाख लोगों पर करीब 150 न्यायाधीश हैं जबकि इसकी तुलना में भारत में 10 लाख लोगों पर सिर्फ 10 न्यायाधीश हैं। अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने सरकार को न्यायाधीशों की संख्या में 2007 तक चरणबध्द ढंग से वृध्दि करने का निर्देश दिया था ताकि 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीश हो जाएं, जो अब तक पूरा नहीं किया गया है।

न्यायाधीशों की अनुमोदित रिक्तियों को भरने के लिए भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। केवल प्रक्रियागत देरी के कारण न्यायाधीशों के 25 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। उच्च न्यायालयों में 6 जनवरी 2009 को 886 न्यायाधीशों की नियुक्ति की मंजूरी थी मगर वहां सिर्फ 608 न्यायाधीश कार्य कर रहे थे जिससे स्पष्ट है कि न्यायाधीशों के 278 पद रिक्त पड़े थे। इसी प्रकार, पहली मार्च 2007 को 11,767 अधीनस्थ न्यायाधीश कार्य कर रहे थे और 2710 पद रिक्त पड़े थे।

हालांकि, हाल के वर्षों में अदालतों की कार्य प्रणाली में सुधार लाने के लिए उपाय किए गए हैं। केंद्र सरकार ने फरवरी 2007 में बेहतर प्रबंधन के लिए न्याय प्रदान करने के तंत्र में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के लिए देश की सभी जिला एवं अधीनस्थ अदालतों के कम्प्यूटरीकरण और उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने के लिए योजना मंजूर की थी। 442 करोड़ रुपए की यह योजना दो वर्ष में पूरी की जानी थी। इस परियोजना के तहत अब तक न्यायिक अधिकारियों को 13,365 लेपटॉप, करीब 12,600 न्यायिक अधिकारियों को लेज़र प्रिंटर उपलब्ध कराए जा चुके हैं तथा 11,000 न्यायिक अधिकारियों एवं अदालतों के 44,000 कर्मियों को सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उपकरण इस्तेमाल करने का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। 489 जिला अदालतें और 896 तालुका अदालतों के परिसर में ब्रॉडबैण्ड संपर्कता उपलब्ध कराई गई है। इस परियोजना के तहत, देश में सभी अदालत परिसरों में कम्प्यूटर कक्ष स्थापित किए जाने हैं। अदालतों के  ई-समर्थ बनने से अधिक दक्षता से कार्य करने और मुकदमों का तेजी से निपटारा करने में मदद मिलेगी। इससे उच्च अदालतों के साथ इन अदालतों का नेटवर्क बनेगा तथा इस प्रकार अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होगी।

ढांचगत सुविधाओं के विकास के लिए केंद्र प्रायोजित एक और योजना 1993-1994 से चल रही है जिसमें अदालत के भवनों और न्यायिक अधिकारियों के लिए आवासीय जगहों की स्थापना शामिल है। इस योजना के तहत 2006-07 से 2008-09 तक राज्यों को 286 करोड़ 19 लाख रुपए जारी किए गए हैं। 10 वर्ष की अवधि के लिए ऐसी आवश्यकताओं के अनुमानों वाली सापेक्ष योजना के आधार पर 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान न्याय तंत्र के लिए परिव्यय की मांग की गई है।

इस बीच, एक से अधिक पारी में काम करके अदालतों के मौजूदा बुनियादी ढांचे के अधिकतम इस्तेमाल से मुकदमों को तेजी से निपटाया जा सकता है। गुजरात ऐसा राज्य है जहां सांध्यकालीन अदालतें कार्य कर रही हैं और सराहनीय परिणाम दे रही हैं।

11वें वित्त आयोग की सिफारिश पर बनाई गई फास्ट ट्रैक अदालतें भी लंबित पड़े मुकदमों को निपटाने में प्रभावी सिध्द हुई हैं। इसके मद्देनज़र सरकार ने राज्यों को केंद्रीय सहायता उपलब्ध करवा कर सत्र स्तर पर संचालित 1,562 फास्ट ट्रैक अदालतों की समय अवधि बढ़ा दी है। केंद्रीय विधि मंत्रालय के अनुसार, इन अदालतों में 28 लाख 49 हजार मुकदमें स्थानांतरित किए गए थे जिनमें से 21 लाख 83 हजार का निपटारा हो चुका है।

केंद्र सरकार का, ग्रामीण आबादी को उसके घर पर ही न्याय प्रदान करने के लिए ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 के तहत  पंचायत स्तर पर 5 हजार से अधिक ग्राम न्यायालय स्थापित करने का प्रस्ताव है। इन अदालतों में सरल एवं लचीली प्रक्रिया अपनाई जाएगी ताकि इन मुकदमों की सुनवाई और निपटारा 90 दिन के भीतर किया जा सके।

वैकल्पिक विवाद निवारण का सहारा लेने से विवाचन, बातचीत, सुलह और मध्यस्थता के जरिए लंबित मामलों में कमी लाने में बहुत मदद मिल सकती है। अमरीका और कई अन्य देशों में विवाद समाधन तंत्र के रूप में वैकल्पिक विवाद निवारण बहुत सफल रहा है। भारत में विवाचन सुलह अधिनियम 1996 पहले से ही है और सिविल प्रक्रिया संहिता को भी संशोधित किया गया है। हालांकि, पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित मध्यस्थता एवं सुलह कराने वालों के न होने से इन उपायों पर बुरा असर पड़ता है। न्याय की मुख्यधारा में वैकल्पिक तंत्र को विकसित करने के मद्देनज़र न्यायिक अधिकारियों और वकीलों को प्रशिक्षित करने की ज़रूरत है।

इन सभी उपायों को और सुदृढ़ करने तथा इनका विस्तार करने की आवश्यकता है लेकिन सुधारों को अमलीजामा पहनाते हुए भावी आवश्यकताओं को ज़हन में रखना होगा क्योंकि शिक्षा के प्रसार के फलस्वरूप अपने कानूनी अधिकारों के बारे में समाज के और अधिक तबकों के जागरूक होने से भविष्य में मुकदमेबाजी और बढ़ेगी।

सरकार को समग्र न्याय प्रक्रिया को भी दिमाग़ में रखना होगा जो मुकदमों को निपटाने में बाधा डालने के लिए अंतहीन जिरह संबंधी अपील और देरी करने वाले वकीलों की भूमिका को अनुमति देती है। न्याय में देरी को कम करने के जरिए वाद प्रक्रिया और सिविल प्रक्रिया में बदलाव लाने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (संशोधन अधिनियम), 2002 के बावजूद, स्थिति अब भी संतोषजनक होने से कोसों दूर है। तुच्छ मुक़दमेबाजी के मसले से भी निपटना होगा और लागत में अत्यधिक वृध्दि करना इसका एक रास्ता हो सकता है। पुलिस जांच तंत्र को मजबूत और आधुनिक बनाने की ज़रूरत है जिससे न्याय तंत्र पर बोझ कम होगा।

न्याय प्रदान करने के तंत्र की सभी जटिलताओं और सूक्ष्म अंतरों पर साकल्यवादी रूप से विचार करने से यह स्पष्ट है कि न्याय तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान संकट एवं त्रुटियों पर विचार करना होगा।

यह भी याद रखना होगा कि न्याय में देरी, पर्याप्त सबूतों का नहीं होना और वास्तविक जीवन की स्थितियों में संवैधानिक एवं कानूनी सिध्दांतों को लागू करने में असमर्थता लोगों के जीवन में तबाही लाते हैं।

नए विधि मंत्री को न्यायिक सुधारों के लिए सब कर्मचारियों को तथा सभी राज्य सरकारों, न्यायिक एवं कार्यपालक निकायों और बार एसोसिएशनों को साथ लेकर चलने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। न्यायिक सुधारों की सफलता बहुत हद तक इसी पर निर्भर करेगी।

 

शुक्रवार, 12 जून 2009

सूचना का अधिकार बना मददगार- हक के लिए लड़िए राजेश की तरह

सूचना का अधिकार बना मददगार- हक के लिए लड़िए राजेश की तरह

Jun 11, 09:22 pm

जागरण याहू इण्डिया से साभार

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। अगर आप फ्लैट खरीदने की योजना बना रहे हैं तो सबसे पहले सूचना के अधिकार कानून [आरटीआई एक्ट] के जरिए यह जान लें कि वह वैध है या अवैध। दिल्ली के राजेश मेहता ने ऐसा नहीं किया और उन्हें तमाम मुसीबतें झेलनी पड़ी।

हालांकि अपने बिल्डर की गतिविधियों पर शक होने पर जब राजेश ने उसके खिलाफ जंग छेड़ी तो सूचना के अधिकार कानून ने ही उन्हें जीत की राह दिखाई। उनके इस कारनामे के कारण 'नेशनल आरटीआई अवा‌र्ड्स' की नागरिक श्रेणी में उनका नामांकन हुआ है।

राजेश ने 2005 में दिल्ली के बुराड़ी इलाके में हूवर अपार्टमेंट्स में दो बेडरूम का फ्लैट खरीदा। लेकिन उसका कब्जा लेने से कुछ दिन पहले उन्हें पता चला कि अपार्टमेंट का बिल्डर फ्लैटों में भूमिगत जल की आपूर्ति कर रहा है, जबकि सप्लाई दिल्ली जल बोर्ड [डीजेबी] को करनी थी। राजेश को शक हुआ। उन्होंने बोर्ड में पानी के कनेक्शन के लिए आवेदन किया, तो उनसे हूवर अपार्टमेंट्स को मंजूरी दिए जाने संबंधी दस्तावेज मांगे गए। राजेश समझ गए कि कुछ गड़बड़ है। तब उन्होंने सूचना के अधिकार कानून के तहत आवेदन देकर दिल्ली म्यूनिसिपल कार्पोरेशन से हूवर अपार्टमेंट्स की वैधता की जानकारी मांगी।

वहां से उन्हें जो जानकारी मिली, उसके मुताबिक हूवर अपार्टमेंट्स लाल डोरा की जमीन पर अवैध रूप से बना था। उन्होंने आरटीआई एक्ट के तहत एक और आवेदन जमा किया तो पता चला कि कार्पोरेशन उस अपार्टमेंट को गिराने का आदेश जारी कर चुका है। यह भी पता चला कि बिल्डर पीके गुप्ता पर 2003 में पानी चोरी करने का मामला दर्ज हुआ था और उस पर डीजेबी के 23 लाख रुपये बकाया हैं।

इसके बाद राजेश ने लोन देने वाले इंडियन ओवरसीज बैंक को निशाने पर लिया। उन्होंने बैंक से पूछा कि एक अवैध बिल्डिंग में फ्लैट खरीदने के लिए लोन कैसे पास किए गए? राजेश के इस अभियान में उनके अपार्टमेंट के और भी फ्लैटधारक जुड़ गए थे। उनकी एकजुटता से परेशान बिल्डर ने राजेश को धमकी भी दी, लेकिन वे डिगे नहीं।

पुलिस ने भी शुरू में मामला दर्ज करने में आनाकानी की, लेकिन जब राजेश मय सबूतों के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकार के पास पहुंचे तो उम्मीद की किरण चमकी। बिल्डर के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। मेहता कहते हैं, 'समय पर कार्रवाई न करके दिल्ली म्यूनिसिपल कार्पोरेशन, सरकारी बैंक और पुलिस ने अवैध फ्लैट बेचने में बिल्डर की मदद की, लेकिन आरटीआई एक्ट ने इस साठगांठ को उजागर कर दिया।'

 

गुरुवार, 11 जून 2009

CBI unleashes a countrywide campaign to curb corruption - All the 16 Heads of Zones conducting Special Drives in their respective areas

CBI unleashes a countrywide campaign to curb corruption - All the 16 Heads of Zones conducting Special Drives in their respective areas

 

New Delhi, 10-06-2009

          CBI has unleashed a countrywide campaign to curb corruption. All the 16 Heads of Zones are conducting Special Drives in their respective areas. In this countrywide operation, searches are continuing in several places and total 67 cases have been registered so far. CBI has also enlisted support from common men by a special drive through SMS campaign on seeking information on these cases or new cases.

          During Special Drive in Delhi today, 8 cases were registered in Special Crimes (Hqrs) Zone relating to Forged Scheduled Tribes Certificates. Employees of different government/PSUs had secured jobs on the basis of these forged certificates. Departments covered were, Income Tax, Doordarshan, Delhi Jal Board, C.I.S.F and Oriental Insurance Company Ltd etc. Searches were conducted at the official and residential premises of the officials. Some incriminating documents were also seized.

          ACB Delhi has conducted searches in Delhi today at 12 places of the accused 3 Jes & 2 Superintending Engineers (retired). These JEs/Superintending Engineers caused undue advantage of more than Rs. one crore to the contractor and corresponding loss to the Delhi Development Authority during 2003-2005. During searches, 6 bank lockers were found in possession of the accused public servants. So far one locker has been searched from which Rs. 9,72,000/- cash, 10 gold biscuits, 29 gold coins, and 810 grams of gold jewellery have been recovered. The cash available in the bank accounts is around Rs. 60 lakhs. Searches of other lockers are still being continued.

          The Economic Offences Zone is conducting searches today in several places at Delhi, Chattisgarh, Katni (MP), Punjab, UP, Bangalore, Nagaland, Jind (Haryana), Bangalore, Rookri (Utrakhand) in 7 separate cases involving data theft, supply of sub standard quality of dolomite to Bokaro Steel Plant, causing undue loss to the Vijaya Bank to the tune of Rs.1,33,70,645/- by proprietor of a Punjab based firm, cheating the Punjab National Bank by violating overall credit facility by another firm, several irregularities in the accounts by not creating any stocks hypothecated to the bank, enhancing the credit facility of the bank without obtaining any collateral securities and obtaining loan fraudulently on production of forged receipts and records to the Punjab National Bank.

          Similarly CBI has also conducted raids in special drives today in other parts of India. The details are still coming in.

          The consolidated All India position, as of now, is: Total cases 67 including Anti Corruption cases, Economic Offences cases, Bank Security & Fraud Cases and Special Crime Cases.

          The cases have been reported from Delhi Zone (4), Bhopal Zone (2), Lucknow Zone (8), Chandigarh Zone (4), Patna Zone (4), Kolkata Zone (2), Gauwhati Zone (3), Chennai Zone (5), Hyderbad Zone (3), Mumbai-1 Zone (5), Mumbai-2 (1) Zone, Anti Corruption Zone (3), Economic Offences Zone (8), B&FC Zone (6), Special Crime Zone (8), STF (1).

          In order to have demonstrative impact, extensive special drives, preferably at least once every quarter are organized to target the known corrupt departments/organisations and identified public servants so as to attack corruption both at the grassroot and high levels. During these drives, extensive and simultaneous searches/surprise checks are conducted to detect quality cases.

          It has also been decided that countrywide SMS campaign will be unleased for a fortnight from now, to elicit detailed information about these cases and to seek information for fresh cases.

 

 

किशोरी को बुरी नियत से छेडा (DAINIK MADHYARAJYA)

किशोरी को बुरी नियत से छेडा

मुरैना 9 जून 09 (दैनिक मध्‍यराज्‍य)  ..अंबाह क्षेञ के ग्राम सीतापुर जौंहा में एक दलित किशोरी के साथ गांव के ही एक मनचले युवक ने उस समय बुरी नियत से छेडखानी की जब वह जंगल में अकेली थी राधा नामक किशोरी के साथ छेडखानी करने वाला  अर्जुन बघेल उसी गांव का रहने वाला है पुलिस ने उसके बिरूद्ध मारपीट व छेडखानी का मामला कायम कर जांच शुरू कर दी है।

 

दलित को बंधक बनाकर पीटा (DAINIK MADHYARAJYA)

दलित को बंधक बनाकर पीटा

मुरैना 9 जून 09 (दैनिक मध्‍यराज्‍य)  ...पोरसा थाना क्षेञ के ग्राम वरकापुरा में एक दलित युवक को बांध कर नामजद आरोपियों ने मारपीट कर उस का जातियअपमान किया पुलिस ने मामला कायम कर लिया है।

पुलिस सूञों से मिली जानकारी के अनुसार पुरानी रंजिश को लेकर ग्राम रामचंद का पुरा निवासी  सुमेर जाटव को ग्राम वरकापुरा में पकड कर आरोपी दाताराम,महेंन्द्र सखवार गिरंदकापुरा तथा भूरा,अर्जन,राजू तोमर और शिवसिंह राजू नाई जोटई ने पकड कर उसे बंधक बना लिया और लाठी डंडों से मारपीट कर चोटिल कर दिया और जाति सूचक गालिंया देकर जातिय अपमान किया।

पुलिस ने फरियादी की शिकायत पर उक्त आरोपियों के खिलाफ धारा 323,294,506वी 147,148 तथा हरिजन एक्ट का मामला कायम कर लिया है।

 

विज्ञापन- जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, मुरैना (म.प्र.) (DAINIK MADHYARAJYA)

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, मुरैना (म.प्र.)

(जिला न्यायालय परिसर)

क्रमांक 287 धारा 12 सूचना-पत्र           मुरैना,दिनांक 02609

प्रकरण क्रमांक 24508

                                     भरत लाल शर्मा

                                          बनाम

                                       एस डी वीडी

सूचना-पत्र

(अन्तर्गत धारा -12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 )

प्रति,

चारभाई बीडी रेखा, बीडी लोहा मण्डी किलागेट रेती फाटक ओडक स्कूल के पास, शंकर जी मंदिर  के बगल से रमन का पुरा ग्वालियर प्रोपराईटर गिरीष कुमार

आपके विरूद्ध परिवादी द्वारा इस फोरम में परिवाद-पत्र प्रस्तुत किया है, जिसकी प्रतिलिपि आपकी ओर भेजी जा रही है। अत: सूचना-पत्र प्राप्ति के 30 दिवस के अन्दर अपना जवाब तथा दस्तावेज प्रस्तुत करें।

आप दिनांक 30.6.09 को प्रात: 11 बजे स्वयं अथवा अपने अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा पक्ष समर्थन हेतु उपस्थित रहें, अन्यथा

आपके विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही की जावेगी।

नियत दिनांक को किन्ही अप्रत्याशित क ारणों से अवकाश हो जाने पर प्रकरण आगामी कार्य दिवस में विचार हेतु लिया जावेगा।

                                                              अध्यक्ष

                               जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम मुरेना

                                                            मुरैना (म.प्र.)