हल्दी जर्दी ना तजै, खटरस तजै ना आम । शीलवान गुन ना तजै, ना औगुन तजै गुलाम ।।
चम्बल में विद्युत सप्लाई पूर्णत: ध्वस्त: लगातार नवदुर्गा में ब्लैक आउट
कहाँ तक बयां करें हालात ए गुलिस्तां, यहाँ हर शाख पे उल्लू बैठा है
नोट – इस समाचार में पूर्व में प्रकाशित समाचारों के कतिपय अंश तारतम्यवश यथावत अंत में रख लिये गये हैं
मुरैना 20 अक्तूबर 07 ! फर्जी दावे करने झूठी वाहवाही बटोरने में लगी म.प्र. सरकार की पीठ पिछाड़ी भारतीय जनता पार्टी भारत सरकार के परमाणु करार का विरोध कर देश को बिजली मिलने और बनाने से रोकने के लिये भले ही नंगा नाच रच रही हो, लेकिन बी.बी.सी. हिन्दी द्वारा विचार प्रतिक्रिया स्तम्भ में भारत की जनता ने ''परमाणु करार विरोधीयों और बिजली समस्या पैदा कर देश का विकास ठप्प कर फर्जी बातें करने वाले, परमाणु करार से देश में बिजली पैदा न होने देने और राष्ट्र को बिजली संकट में फंसाये रखने वाले ऐसे जनविरोधी विचारधारा वाले राजनीतिक दलों और राजनेताओं के मुँह पर करारा तमाचा जड़ा है, यह स्तम्भ अभी बीबीसी पर जारी है आप पढ़ सकते हैं कि भारत की जनता इनके बारे में क्या कहती है ।
और दावे दर दावे तथा आश्वासन दर आश्वासन के बावजूद पूरी तरह फेल हो चुकी सरकार की नपुंसकता के चलते अंततोगत्वा पिछले 12 अक्टूबर से चम्बल घाटी में कहर मचा रही बिजली व्यवस्था अपने चरम पर आकर जहॉं हिन्दूओं के प्रमुख आस्था एवं भक्ति पर्व नवरात्रि आरम्भ वाले दिन 12 अक्तूबर को ही न केवल पूरे दिन ही गुल रही वहीं रात को भी हिन्दूवादी भाजपा सरकार ने लोगों को माता की आरती तक नहीं करने दी । जहॉं व्रत उपवास कर नवरात्रों में लोग माता की भक्ति उपासना व अर्चना पूजा के लिये साल भर से उस दिवस का इन्तजार करते हैं जब माता घर में विराज कर प्रत्येक हिन्दू के घर नौ दिन की मेहमानी करती हैं, लोग व्रत उपवास तो छोडि़ये नहा धो भी नहीं पाये, माता की कलश व घट स्थापना पवित्र जल भर कर की जाती है तथाकथित हिन्दूओं के हिमायती भाजपाईयों ने लोगों को इस दिन ऐन माता की प्रतिष्ठा व स्थापना के दिन यानि 12 अक्तूबर को ही एक एक बूंद पानी के लिये तरसा दिया । बिल्कुल ठीक यही हालात अष्टमी वाले दिन यानि अंतिम पर्व दिवस यानि 19 अक्टूबर को जब कि लोग इस दिन पूरे दिन अनुष्ठान व यज्ञ हवन आदि करते हैं को भी सुबह 6 बजे गुल हुयी बिजली रात आठ बजे आई । लो भईया कर लो पूजा और हवन । बुधवार 17 अक्टूबर को पूरे 17 घण्टों के लिये पूर्णत: ठप्प हो ही गयी ! मजे की बात यह है कि हम एक सम्भागीय मुख्यालय शहर मुरैना की बात कर रहे हैं । गॉंवों और किसानों का आलम तो यह है कि अगर दिन भर में बीस मिनिट भी मिल जाये तो समझिये ''यूरेका यूरेका '' यानि मतलब समझ गये होंगे आप । समूची चम्बल घाटी का आलम यही है जनाब ।
उल्लेखनीय है कि विगत 12 अक्टूबर 07 से चम्बल घाटी की बिजली सप्लाई पूरी तरह चरमरा गयी थी और दिन में पीक वर्किंग टाइम में लगभग 6-7 घण्टे तथा रात में करीब 3-4 घण्टे की बेहिसाब अनाप शनाप कटौती चल रही थी, जिसका न समय तय था न कोई घोषणा ही इस मुतल्लिक जारी हुयी थी !
उधर दूसरी ओर सरकार दावा दर दावा ठोकने में लगी थी कि हम बहुत ज्यादा बिजली पैदा कर रहे हैं और अब कोई बिजली संकट नहीं है ! जबकि सच यह है कि चम्बल में धुंआधार कटौती चल रही थी !
अभी हाल ही में राष्ट्रीय जनता दल के मध्यप्रदेश के महासचिव नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द'' ने दिनांक 29 सितम्बर 2007 को लिखित शिकायती आवेदन चम्बल सम्भाग के अधीक्षण यंत्री को दिया था, जिसकी पावती ग्वालियर टाइम्स के कार्यालय में सुरक्षित है, यदि इस आवेदन को ही पढ़ लिया जाता और इस पर कार्यवाही कर दी गयी होती तो चम्बल सम्भाग में मध्यक्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी के शराबी अधिकारी और कर्मचारीयों की करनी व करतूतों की न केवल सच्चाई सामने आ जाती बल्कि चम्बल की बिजली कटौती की समस्या भी सुलझ गयी होती । ( हम इस आवेदन की फोटो प्रति स्कैन कर अलग से विस्तृत आलेख इस सम्बन्ध में शीघ्र जारी करेंगें जो कि ग्वालियर टाइम्स समूह की सभी वेबसाइटों पर उपलब्ध होगा । आप भी इस अंधेरगर्दी, भ्रष्टाचार और गुण्डागर्दी की कहानी का ऑखों देखा हाल भुक्तभोगी की जुबानी मय सबूत पढ़ सकेगें ) श्री तोमर का यह आवेदन आज की तारीख तक कार्यवाही के लिये लम्बित है ।
अभी हाल ही में म.प्र. के एक मंत्री रूस्तम सिंह ने मुरैना जिले में की जा रही अन्धाधुन्ध बिजली कटौती पर बिजली वितरण कम्पनी पर ऑंखे तरेरते हुये गीदड़ भभकी दी थी, लेकिन वह बेअसर रही ।
अभी हाल ही में दो बड़े बिजली उत्पादन के अडडे जहाँ उदघाटित हुये हैं जिसमें एक लालकृष्ण आडवाणी जी ने किया वहीं दूसरा मुरैना के ऐन निकट ही ग्वालियर जिले में केन्द्रीय मंत्री सुशील कुमार शिन्दे ने किया ! जिसमें दावा यह था कि म.प्र. विशेषकर चम्बल ग्वालियर की बिजली समस्या अब पूर्णत: समाप्त !
उधर भगवान की दया से प्रदेश में बरसात भी अच्छी भली चल रही है, बाढ़ आ रही है, बांधो के इमरजेन्सी गेट खोल कर जरूरत से ज्यादा इकठठा हुआ पानी निकालना पड़ रहा है !
फिर भी बिजली नहीं होना जहाँ हैरत अंगेज और गजब की जादूगिरी है वहीं कुछ चौंकाने वाले सवालों की भी जन्मदाता ! मसलन बिना बिजली मिले म.प्र. की जनता अरबों रूपया की बिल भरपाई वर्ष सनृ 2000 से करती आ रही है ! उल्लेखनीय है कि प्रदेश में एवरेज बिलर्स की संख्या 70 फीसदी है, जिन्हें बिजली मिले या न मिले एक निश्चित औसत राशि बिजली विभाग को देनी ही पड़ती है ! और यह राशि प्रतिमाह करोड़ों रू में और वर्ष 2000 से अब तक अरबों रू में पहुँच चुकी है !
जहाँ सरकार बिजली चोरी और जनता को चोर ठहराने में कोई कसर बकाया नहीं रखती वही अब यह सवाल भी जोरदार है कि बिना बिजली दिये की गयी अरबों रू की यह वसूली क्या नाहक नहीं है ? और क्या सरकार चोर नहीं है ? जिसने जनता की जेब पर डाका डाला है ! सरकार में यदि भलमनसाहत है तो पहले तो उनका पैसा लौटाये जिन्होंने इतने वर्ष तक बिना बिजली मिले भी पूरा बिल भुगतान किया है, उनकी बिजली तो कटी लेकिन बिलों में कटौती या उनकी धन वापसी की बात अभी तक क्यों नहीं हुयी ! यह सवाल यक्ष प्रश्न है, जिसका उत्तर सरकार को जनता को चोर कहने से पहले अनिवार्यत: देना होगा, तभी जनता के गले बात उतरेगी, वरना जनता आपको चोर कहती रहेगी, और आप जनता को !
विगत सोमवार 6 अगस्त से 8 अगस्त जो चम्बल में बिजली सप्लाई का जो कहर हुआ वह न केवल शर्मनाक बल्कि संभवत: म.प्र. के इतिहास में पहली बार हुआ जबरदस्त बलैक आउट है ! जिसमें 6 अगस्त सुबह से लेकर सारे दिन और सारी रात फिर 7 अगस्त को सारा दिन और सारी रात फिर 8 अगस्त को दोपहर 12 बजे तक लगातार सप्लाई ठप्प यानि पूर्णत: बन्द यानि ब्लैकआउट ! फिर दोबारा 8 अगस्त को शाम 4 बजे से रात 7:45 बजे तक पुन: सप्लाई बन्द ! गजब, अदभुत, चमात्कारिक, वाह क्या कहने ! बिजली वाले हुये या अलाउददीन के चिराग के जिन्न !
अब इसमें लोग कह रहे थे कि भईया आरक्षण की भर्ती है, आरक्षण का स्टाफ है तो यह तो होना ही है , अब ऐसी अवस्था में यदि लोग ऐसा कहते हैं तो हम पूछते हैं कि क्या गलत कहते हैं ! आरक्षण के नाम पर अयोग्य लोगों या कम योग्य लोगों के सहारे ऐसे संवेदलशील टैक्नीकल काम छोड़े जायेंगे तो यह तो होगा ही ! अव्वल तो वे कुछ जानते ही नहीं, दूसरे हराम की चाट पंजीरी का ऐसा स्वाद उनके मुँह लगा है कि, सरकार बाद में बिजली बेच पायेगी वे यहीं फैक्ट्रीयों और इण्डस्ट्रियों में जम कर बिजली बेच देते हैं, उनके बैंक बैलेन्स और कोठीयों की लम्बाई चौड़ाई तो लगभग यही कहानी कहती है ! वहीं दूसरी ओर कुछ लोग यह भी कहते हैं कि बजली वालों को चोर और डकैतों से हफ्ता वसूली मिलती है, और कब कब कहाँ की बिजली गुल की जायेगी इसकी खबर चोरों डकैतों को रहती है और बिजली विभाग के गुप्त शिडयूल के अनुसार ही उनका गुप्त शिडयूल चलता है ! अगर लोग ऐसा कहते हैं, तो अब लोग क्या गलत कहते हैं ?
उल्लेखनीय है कि मुरैना और भिण्ड दोनों ही जिलों में बिजली को लेकर अभी हाल ही पिछले दस पन्द्रह दिनों में भारी जनआक्रोश और उपद्रव हुआ जहाँ महिलाओं ने जगह जगह कई आन्दोलन किये और पुतले फूंके, बिजली वालों की धुनाई पिटाई कर डाली वहीं लगता है सारी चम्बल घाटी में महिलाओं की फौज मानो कमर कसकर विद्रोह और विरोध पर उतारू है और प्रदर्शन, धरना, विरोध से लेकर धुनाई पिटाई भी उनके आन्दोलन का हिस्सा है, मजे की बात ये है कि उनके साथ कोई राजनीतिक दल नहीं हैं, जनता अपनी लड़ाई खुद लड़ रही है !
पिछले सप्ताह म.प्र. शासन के पूर्व कांग्रेस मंत्री राकेश चौधरी को जरूर भिण्ड में बिजली समस्या को लेकर न केवल सड़कों पर आना पड़ा बल्कि भिण्ड कलेक्ट्रेट की तालाबन्दी करना पड़ी, उनके तालाबन्दी आन्दोलन को जनता का इतना व्यापक समर्थन मिला कि भिण्ड की सडृकों पर जनता समाये नहीं बन रही थी, उन्होंने न केवल कुशलता और सफलतापूर्वक कलेक्ट्रेट भिण्ड की तालाबन्दी कर दी बल्कि जनता के हीरो भी बन गये ! यह भी स्मरणीय है कि भिण्ड के वर्तमान भाजपा विधायक नरेन्द्र सिंह कुशवाह भी बिल्कुल ठीक इसी तरह विधायक बने ! बस फर्क यह था कि उस समय कांग्रेस की सरकार थी और इसी बिजली के लिये आन्दोलन नरेन्द्र सिंह कुशवाह ने इसी तरह जनता को साथ लेकर किया था ! और कई बिजली वालों की पिटाई धुनाई की थी, और पहले वे अखबारों की सुर्खियां बनें, फिर भिण्ड के विधायक ! तब राकेश चौधरी भिण्ड के विधायक और बाद में सरकार के मंत्री थे ! अब बिल्कुल वही सिचुएशन एकदम उल्टी है ! यानि आप समझ ही गये होंगे कि इसका अर्थ क्या है !
मुरैना की स्थिति थोड़ी भिन्न है, विशुध्द रूप से आरक्षित सीट रहने और भाजपा का अखण्ड गढ़ रहने से यहाँ जननेतृत्व का अभाव है, यहाँ के विधायक, सांसद जननेता की परिभाषा से परे हैं , चाटुकारिता और कृपालुता के भरोसे राजनीति करने वाले नेताओं के साये में मुरैना जिला की जनता को अपनी लड़ाई खुद लड़ना पड़ती है, लड़ती आयी है, और लड़ भी रही है ! नेता, विधायक, मंत्री, सांसद सब अपनी अपनी पीठ खुद ही थपथपाते रहते हैं, थपथपा रहे हैं, उनका हमेशा ही खैरियत अलार्म और ''जी सर'' ''यस सर'' तकिया कलाम चालू रहता है !
जनता चोर और वे साहूकार, वाह भई वाह उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे ! लोकतंत्र में जनता कोतवाल होती है, और सरकार चोर, लोकतंत्र का मतलब तो यही है भईया ! जनता अधिकारी होती है, और सरकारी लोग उसके नौकर यानि सेवक यानि पब्लिक सर्वेण्ट ! मगर यहाँ तो उल्टी ही गंगा बह रही है !
क्या कहता है बिजली विभाग ?
आज के दैनिक भास्कर में बिजली विभाग का स्पष्टीकरण यानि पक्ष प्रकाशित है, हम दैनिक भास्कर से साभार इसे यहाँ दे रहे हैं - महकमे के बिजली के तार चार पाँच जगह पर टूट गये थे, रात का समय होने की वजह से तारों को जोड़ा नहीं जा सके, हालांकि बुधवार की दोपहर को शहर की आपूर्ति को सामान्य बना लिया गया है- पी.के.सिंह, एस.ई. विद्युत मण्डल मुरैना !
क्या उक्त पक्ष स्पष्टीकरण से कुछ जाहिर नहीं होता - 1. ये लोग 24 घण्टे के पूर्णकालिक कर्मचारी यानि लोकसेवक यानि पब्लिक सर्वेण्ट नहीं हैं 2. बिजली के तार टूटना एक सामान्य और आम बात है जो सनृ 2000 से आज तक रोजाना हो रही है 3. ट्रान्सफार्मर फुंकना आम बात है जो सन 2000 से रोजाना फुंक रहे हैं 4. रात के वक्त बिजली महकमा काम नहीं करता 5. चार पाँच जगह के बिजली के तार तीन दिनों में जोड़ पाते हैं बेचारे 6. दारू पीकर होश में आने में कर्मचारीयों को तीन दिन से ज्यादा भी लग जाते हैं !