गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
समाचार अपडेशन- बिजली कटोती के कारण नहीं
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सोमवार, 15 फ़रवरी 2010
व्यंग्य- वैलेण्टाइन एक स्टाइल........इस मुर्दे का वैलण्टाइन मना दो
वैलेण्टाइन एक स्टाइल........इस मुर्दे का वैलण्टाइन मना दो
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
वैलेण्टाइन की धूम में फंसे लाल बजरंग ।
डाल लाल तौलिया नारि में, डण्डा लीनो संग ।।
डण्डा लीनो संग जोड़े ढूंढ रहे पार्कन में भीतर ।
लोग लुगाई देख कर देते गीदड़ भभकी तीतर ।।
रस्साकस्सी चल रही, प्रेमपत्र दिवस पे देखो ।
बजरंगी सब टूट रहे, बिन नाथे सॉंड़ हो जैसे ।।
इक बजरंगी मिल गया नेता बनत भुजंग ।
चुपके से हम पूछ लिये, का बात हुयी है तंग ।।
क्या बात हुयी है तंग, क्यूं खलनायक बन गये ।
बीवी छोड़ के भागी या फिर बहिन को ले गये ।।
क्यूं विचलित हो मित्र, चित्त में चैन जो धरिये ।
असल क्या है बात भई सो अब हमसे कहिये ।।
बजरंगी शरमा गया, बोला, मुख का खोल कपाट ।
क्यूं घुमा फिरा कर रहे व्यंग्य मजाक सपाट ।।
नहीं यार दादा जरा, बात नहीं कुछ खास ।
इक घरवारी जो मिली, नहीं डालती घास ।।
नहीं डालती घास, न उसका रूप सुहावन ।
सो रोकन वैलण्टाइन कों ये फार्मूला है पावन ।।
देखें रूप अपार नव यौवना सब मिलें यहॉं पर ।
जो हम ना कर पा रहे, लेते आ आनंद यहॉं पर ।।
देख के पूरा सीन पाते सुख स्वर्ग इसी दिन ।
सो रोकन के वास्ते, लेना डण्डा तान इसी दिन ।।
जो घरवारी से ना मिला, हम उसे यहॉं तलाशें ।
डर जाते प्रेमी युगल और हम फिर उसे तराशें ।।
छोटा सा ये शहर है, पार्क नहीं ना गार्डन भरपूर ।
इक दिन आता साल में सो आते इतनी दूर ।।
ना ताल कटोरा यहॉं कोई, ना बुद्धा सा मेल ।
बस इक दिन के वास्ते देखत आकर खेल ।।
देखत आकर खेल, घर जा किस्सा कहते ।
पर बेअसर वो बेखबर उस पे रंग न चढ़ते ।।
जो हम डण्डा लाते यहॉं, रोकन वैलण्टाइन दिवस ।
धमकाने हड़काने चलें साथ लिये हम ये दिवस ।।
नहीं काम आता यहॉं, पर घर रोज दिखलाता जलवा ।
ससुरी वैलेण्टाइन मना दे और खिला दे हलवा ।।
पर वे चौथ पंचमी रटती व्रत बतला कर रोज ।
तब फिर हम पर गुस्सा छाता, डण्डा बरसाते रोज ।।
इतने में थे आ गये पुलिससिया खाकी वर्दी ।
बजरंगी कूटे सभी, दूर करा दी सर्दी ।।
दूर करा दी सर्दी, जम कर लात लगाईं ।
अस्पताल भर्ती किये, हिदायत साथ बताई ।।
खबरदार जो नजर आये किसी पार्क के पास ।
थानेदार सा मना रहे न्यू वैलंटाइन खास ।।
अस्पताल में पड़े बजरंगी यूं कराहें ।
पूरे अस्पताल में गूंज रहीं उनकी ये आहें ।।
इक बजरंगी के सीने पर डाक्टर ने आला आन धरा ।
बजरंगी ने बगल खड़ी इक नर्स पे अपना ध्यान धरा ।।
देख नर्स की चंचलता, बजरंगी की सांसे रूक गयीं ।
डाक्टर बोला इस मरीज की क्यूं हलचल रूक गयीं ।।
सीने में धड़कन नहीं, ना नैनों में चंचलता ।
क्यूं इस मुर्दे को पुलिस, लायी यहॉं पे नर्स बता ।।
जाओ इसको मुर्दाघर ले जा ठिकाने पर पहुँचाओ ।
मरा दिमाग और मरा शरीर इन्हें यहॉं पे मत लाओ ।।