शनिवार, 11 अप्रैल 2015

दिल्ली की किल्ली : जब कांप उठी धरा , थर्रा गये सब धरा मेरू , कंपित हो कांपे शेषनाग , आया सारी धरती पर भूकंप महाभारत सम्राट दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की दिल्ली से चम्बल में ऐसाहगढ़ी तक की यात्रा और ग्वालियर में तोमरों का साम्राज्य- 3

दिल्ली की किल्ली : जब कांप उठी धरा , थर्रा गये सब धरा मेरू , कंपित हो कांपे शेषनाग , आया सारी धरती पर भूकंप
महाभारत सम्राट दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की दिल्ली से चम्बल में ऐसाहगढ़ी तक की यात्रा और ग्वालियर में तोमरों का साम्राज्य- 3
* पांडवों की तीन भारी ऐतिहासिक भूलें और बदल गया समूचे महाभारत का इतिहास * भारत नाम किसी भूखंड या देश का नहीं , एक राजकुल का है, जानिये क्यों कहते हैं तोमरों को भारत * ययाति और पुरू के वंशज चन्द्रवंशीय क्षत्रिय राजपूत ( पौरव - पांडव )
नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनंद’’ ( एडवोकेट )
Gwalior Times
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( गतांक से आगे भाग-3 ) पिछले अंक में दिल्ली की किल्ली का जिक्र आ चुका है, या कहिये कि ‘’दिल्ली की किल्ली’’ जिसे आज लौह स्तम्भ या भीमलाट कहा जाता है और आज के महरौली नामक स्थान पर कुतुब मीनार जिसे आजकल कहा जाता है , के निकट मौजूद व स्थापित है ( इस स्थान का नाम जबकि वंशावली एवं शास्त्रों एवं प्राप्त शि‍लालेखों एवं दिल्ली की किल्ली पर खुदे लेख के अनुसार अलग है, जिसका जिक्र हम आगे करेंगें, इसे जिसे कुतुब मीनार कहा जाता है,  उसका असल नाम विजय आरोह पूजन स्तंभ या श्री हरिपूजनध्वज पताका फहराने के लिये बनवाया गया एक समानांतर आरोही स्थल है , तोमर राजवंश की वंशावली में यह कीर्ति पताका ध्वज स्तंभ एवं श्री हरि दर्शन पूजन का आरोही स्थल के रूप में वर्ण‍ित है ।
दिल्ली की किल्ली की स्थापना तोमर राजवंश की महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की राजघराने की मूल वंशावली,  इंद्रप्रस्थ के किले , लालकोट परिसर व आसपास मिले प्राचीन शि‍लालेखों और स्वयं दिल्ली की किल्ली पर खुदे लेख में , किल्ली की स्थापना का व उस पर लेख खोदे जाने के समय काल का वर्णन है , जो कि विक्रम संवत 1109 से महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर (द्वितीय) के महाराजा बनने का समय अंकित है, जिसमें महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर   ( द्वितीय ) द्वारा इसे गाड़कर स्थापित करने एवं भूकंप कर धरती व शेषनाग को थर्रा देने का जिक्र है । शि‍लालेखों एवं तत्समय लिखे गये ग्रंथों ‘’विबुध श्रीधर’’ और ‘’पृथ्वीराज रासो’’  में उल्लेख है कि शेषनाग जो अपने शीष पर मणि‍यों की महामणि‍यां धारण करते हैं , उन्हें कंपा देने वाला या हिला दे कर थर्रा देने वाला कार्य आज तक किसी ने नहीं किया , वह कार्य चन्द्रवंश के राजपूत क्षत्रिय महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर ने कर दिखाया , महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर के एक ही हाथ से, एक ही हुंकार में कील धरा में बल भर कर ठोक देने से शेषनाग कंपित हो गये और बुरी तरह थरथरा गये , यह कार्य सूर्यवंश , चन्द्र वंश ही कोई भी नहीं बल्क‍ि इस चर अचर संपूर्ण जगत में  , सुर , असुर , लोक परलोक में आज तक कोई नहीं कर पाया, शेषनाग के थरथरा कर कांप जाने से से सारी भूमि धरा पृथ्वी कांप गई और समूची भूमि कंपित हो कर बुरी तरह हिल उठी । खैर यह जिक्र व विषय विस्तार हम आगे करेंगें और इन ग्रंथों में कही गयी बातों पर एवं इस किल्ली की स्थापना की वजह एवं स्थापित करने का तरीका और कारण पर आगे विस्तृत विस्तार से चर्चा करेंगें ।
लौह स्तंभ यानि कि दिल्ली की किल्ली पर खुदे लेख , तोमर राजवंश की वंशावली और प्राप्त शि‍लालेखों या शि‍लापट्ट‍िकाओं या अन्य चिह्नों व निशानों पर महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर का राजतिलक व शासनकाल की शुरूआत व इस कील के स्थापना लेखादि में,  इस कील या लौह स्तम्भ या किल्ली पर लेख में महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर का शासन काल विक्रम संवत 1109 से एवं अग्रेजी में सन के हिसाब से कहें तो ( ईसवी सन के अनुसार ई. सन 1052)  से शुरू होना व कील की स्थापना करना अंकित है और इस लेख व किल्ली स्थापना ( गाड़े जाने) के  लेख में चन्द्रवंश के प्रतापी राजपूत क्षत्रिय महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर ( द्वितीय) द्वारा इसकी स्थापना का उल्लेख है ।
....  क्रमश: अगले अंक में जारी

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

द्वापर काल में भगवान श्री कृष्ण का लोकतंत्र , संसद , कानून और प्रजातांत्रिक राजाज्ञायें



द्वापर काल में भगवान श्री कृष्ण का लोकतंत्र , संसद , कानून और प्रजातांत्रिक राजाज्ञायें
नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनंद’’ ( एडवोकेट )
Gwalior Times
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प्रथम भाग – प्रथम अंक
भारत जैसे देश में अक्सर लोकतंत्र या प्रजातंत्र की बातें भी सुनाई कही जातीं हैं और यह भी बताया जाता है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा , सबसे बेहतरीन लोकतंत्र वाला देश है । इसके साथ ही यह भी बताया जाता है कि भारत में इससे पूर्व राजतंत्र था और राजतंत्र बहुत बुरा था तथा राजतंत्र के अनेक दोष व खामीयां गिनाई जातीं हैं ।
यदि जो कहा बताया या पढ़ाया जाता है उसके आधार पर लोकतंत्र की परिभाषा लिखी जाये तो कुछ यूं बनेगी ‘’ जनता का, जनता द्वारा , जनता के लिये शासन’’ ही लोकतंत्र है , और यदि राजतंत्र की परिभाषा बकौल इन के की जाये तो ये लिखी जायेगी कि राजा का प्रजा पर प्रभुत्व संपन्न एकक्ष व एकमात्र राज्य या शासन ही राजतंत्र कहलाता है ।
खैर इस विषय में विद्वानों में गहरे मतभेद हैं और विद्वान , बुद्धिजीवी, इतिहासकार, एवं कानूनविद भी इन दोनों ही परिभाषाओं को भारत के परिप्रेक्ष्य में सही नहीं मानते । और विडम्बनावश भारत में ‘’लोकतंत्र’’ या प्रजातंत्र अभी आज दिनांक तक तो केवल मात्र एक सैद्वांतिक अवधारणा है और व्यावहारिक रूप से यह आज तक भारत देश में तथाकथि‍त प्रजातंत्र अभी तक नहीं आया है, केवल व्यवस्था का नाम बदल देने या पद नाम बदल देने या मात्र व्यक्त‍ि बदल देने से न तो व्यवस्था बदलती है और न उसमें सुधार ही संभव होता है ।
यहॉं यह उदाहरण देना सटीक होगा कि ‘’महाराजा’’ का नाम राष्ट्रपति रख दिया जाये और किसी रियासत या राज्य के राजा का नाम राज्यपाल रख दिया जाये , बाकी सब वही अर्थात प्रधानमंत्री, मंत्री गण एवं सभासद या दरबारी गण ( सांसद और विधायक) और भी कुछ है जिस पर आगे इसी आलेख में सब कुछ चर्चा में आयेगा । बस गुड़ का नाम शक्कर रख देने से और शक्कर का नाम गुड़ रख देने से कभी भी न तो गुड़ का और शक्कर का रूप रंग स्वाद व सवभाव बदलेगा ।
किसी भी शासन व्यवस्था हो या गृह व्यवस्था केवल व्यवस्था कान , पद नाम व व्यक्त‍ि मात्र बदल दिये जाने से वह व्यवस्था नहीं बदलती, बल्क‍ि उसका रूप व स्वभाव एवं व्यावहारिक अमल विकृत एवं दूषि‍त व विद्रूपित हो जाता है , प्रणाली दोषपूर्ण एवं दोषगत हो जाती है, व्यवस्था अपना चरित्र एवं नैतिकतायें खो देती है । और अत्यंत कुरूप व भयावह स्वरूप में प्रकट हो उठती है ।
हम जो आगे विषयवस्तु लिखने जा रहे हैं कि ‘’द्वापरकाल में श्री कृष्ण का लोकतंत्र’’ यह पूर्णत: प्रमाणि‍क एवं सौ प्रतिशत साबित एवं शास्त्रीय है । सारी शासन व्यवस्था का एक सिंहावलोकन एवं विद्वजनों व सुविज्ञों के लिये यह प्रश्न छोड़कर जायेगा कि तब ( द्वापर के श्रीकृष्ण काल) और अब आज के लोतंत्र काल में , क्या फर्क है अब में और तब की शासन व्यवस्था में या उस समय के संविधान संसद कानून राजाज्ञाओं और आज के संसद , कानून, संविधान और सरकारी आदेशों में ।
हम इस विषय को सौ फीसदी प्रमाणि‍कता के साथ विषयवस्तु व समग्र सिंहावलोकनीय सामग्री के साथ पूर्ण करने के साथ ही हमारे लगातार चल रहे एक अन्य आलेख ‘’दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की दिल्ली सं चम्बल में ऐसाहगढ़ी तक की यात्रा’’ में भी आगे भारत यानि तोमर राजवंश के शासन व्यवस्था के ऊपर भी कुछ प्रकाश डालेंगें व उस शासन व्यवस्था का भी एक सिंहावलोकन प्रस्तुत करेंगें ।  
.......... क्रमश: जारी अगले अंक में     

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

हर जिले में बनेगा प्रेस क्लब * आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार की राशि इसी साल से 51 हजार से बढकर हुई दोगुनी * इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, फ़ोटो पत्रकारिता में उत्कृष्टता पुरस्कार अगले साल से

आंचलिक पत्रकारों के लिए लागू होंगी स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना बीमा योजनाएं
* हर जिले में बनेगा प्रेस क्लब * आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार की राशि इसी साल से 51 हजार से बढकर हुई दोगुनी
* इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, फ़ोटो पत्रकारिता में उत्कृष्टता पुरस्कार अगले साल से * आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार समारोह में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने की घोषणाएँ
नरेन्द्र सिंह तोमर ‘’आनंद’’ ( एडवोकेट )
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मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आंचलिक पत्रकारों के लिए स्वास्थ्य बीमा और दुर्घटना बीमा योजनाएँ लागू करने की घोषणा की। मुख्यमंत्री ने इसी साल से आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार की राशि 51 हजार से बढाकर दोगुनी करने की घोषणा की। आज पुरस्कृत सभी पत्रकारों के खाते में शेष राशि जमा कर दी जायेगी।
आज यहाँ समन्वय भवन में जनसम्पर्क विभाग द्वारा स्थापित आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार समारोह में श्री चौहान ने कहा कि जिला मुख्यालयों पर भी प्रेस क्लब के लिए भूमि देने की प्रक्रिया शुरू की जायेगी। इससे आंचलिक पत्रकारों को काम करने में सहूलियत होगी। श्री चौहान ने कहा की भोपाल में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का प्रेस क्लब बनाने के लिए रोड मैप तैयार कर लिया गया है।
मुख्यमंत्री ने अगले साल से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और फ़ोटो पत्रकारिता में उत्कृष्ट कार्य के लिए उत्कृष्टता पुरस्कार स्थापित करने की भी घोषणा की।
आंचलिक पत्रकारिता की कठिनाइयों और विषम परिस्थितियों में अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने का साहस रखने वाले आंचलिक पत्रकारों की सराहना करते हुए श्री चौहान ने कहा कि राज्य सरकार ने उत्कृष्टता को सम्मानित करने की पहल की है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अच्छे काम को सामाजिक मान्यता और सराहना मिलना ही चाहिए। पत्रकार समाज के प्रति अपना दायित्व निभाते हैं इसलिए समाज का भी दायित्व है कि उन्हें सम्मानित करे। उन्होंने कहा कि आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार हर साल समय पर दिए जायेंगे। श्री चौहान ने कहा कि गाँवों और कस्बों से तथ्यात्मक समाचार पाठकों तक पहुँचाना कठिन काम है। समाज में हो रहे अच्छे कामों को अभिव्यक्ति देना अपने आप में समाज की सेवा है। आंचलिक पत्रकार व्यवस्था को जगाने और सतर्क करने का काम करते है। उन्होंने कहा कि स्वस्थ आलोचना को सरकार ने हमेशा सादर स्वीकार किया है और तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने की कोशिश की है।

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

प्रेस क्लब का सदस्यता आवेदन पत्र - निशुल्क डाउनलोड करें

कोई भी पत्रकार, साहित्यकार, लेखक, स्वतंत्र या किसी मीडिया संस्थान से जुड़ा हुआ हो या नहीं हो , चाहे प्रिट मीडिया , इलेक्ट्रानिक मीडिया, अन्य किसी मीडिया या सोशल मीडिया से संबंध रखता हो , प्रेस क्लब की निशुल्क सदस्यता प्राप्त कर सकता है , प्रेस क्लब की सदस्यता पूरी तरह से निशुल्क है, और इसके लिये कोई शुल्क नहीं देना है । अपना आवेदन पत्र पूर्ण रूपेण भर कर हमारे व्हाटस एप्प नंबर 094257 38101 पर या हमारे ई मेल पते gwaliortimes@gmail.com  पर भेज दें । विशेष संपर्क या अन्य जानकारी हेतु हमारी वेबसाइट ग्वालियर टाइम्स www.gwaliortimes.in देखें । सदस्यता आवेदन पत्र निम्न है , इसे डाउनलोड कर इसका प्रिंट निकाल लें और अपने हाथ से भरकर हस्ताक्षरित कर इसे भेजें ।  - नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनंद'' , अध्यक्ष - चम्बल संभाग एवं मुरैना जिला म.प्र

रविवार, 5 अप्रैल 2015

गौ रक्षा पर दो बातें हमारी भी सुन लीजिये

गौ रक्षा पर अपनी बात , हमारा मंतव्य - नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनंद''
कुछ दिन से गौ रक्षा पर बड़े संदेश मिल रहे हैं, व्हाटस एप्प पर भी, फेसबुक पर भी , कई लोग पेज बना कर, ग्रुप बना कर उसमें शामिल कर रहे हैं, खैर हम केवल इतना कहना और याद दिलाना चाहेंगें कि चन्द्रवंश का तोमर क्षत्रिय राजपूत राजवंश का राज चिह्न ही है ''गौ बच्छा रक्षा'' का निशान , और चन्द्रवंशीय क्षत्रिय तोमरों का राज चिह्न परम पराक्रमी महाभारत योद्धा पांडव इन्द्रप्रस्थ महाराज अर्जुन और उनके पौत्र ( अभ‍िमन्यु के पुत्र) महाराजा परीक्षत के महाभारत पर शासनकाल से ही है , स्वयं भगवान श्री कृष्ण द्वारा इसे तोमर राजवंश का राजचिह्न बनवाया गया था । हमारा यह राजचिह्न भगवान श्रीकृष्ण के साथ पांडवों द्वारा मूल निशान , मूल स्थान प्रयाग राज में स्थापित किया गया है और आज दिनांक तक सुरक्ष‍ित है, यह राज चिह्न या हमारा राज निशान हमारे हर किले पर , हमारे हर सिंहासन के ऊपर प्रतिष्ठ‍ित रहता आया है , चाहे वह इन्द्रप्रस्थ का किला हो ( पुराना किला - लालकोट परिसर दिल्ली) या चाहे ऐसाहगढ़ी का गढ़ हो या ग्वालियर का किला , ग्वालियर के किले में किले के ऊपर , किले के राजद्वार ( महाराजा मान सिंह तोमर के राजमहल के राजद्वार पर मंडप चौकी में अलग से प्रतिष्ठ‍ित था ) यह मंडप व चौकी आज भी राजमहल के द्वार पर मौजूद है , इसके अलावा ग्वालियर के किले के नीचे तराई में हर पौर के द्वार पर इसकी समुचित स्थापना व प्रतिष्ठा थी , ऐसाहगढ़ी से लेकर हस्ति‍नापुर व इन्द्रप्रस्थ ( दिल्ली) और ग्वालियर तक पांडवों से लेकर हर राज सिंहासन पर जितने भी तोमर क्षत्रिय राजपूत महाराजा करीब 5500 वर्ष तक सिंहासनारूढ़ रहे , सभी के किलों, राजमहलों और राज सिंहासनों पर '' गौ बच्छा रक्षा'' केा राजचिह्न सदैव ही स्थापित व प्रतिष्ठ‍ित रहा है, तोमर राजवंश के 5500 वर्ष के शासनकाल केवल आज वाला टुकड़ा मात्र भारत ही नहीं अपितु समूचे सप्तद्वाीप , ब्रह्मांड तक , तीन लोक तक यह तोमर - पांडव क्षत्रियों की राजाज्ञा रही और समस्त संपूर्ण विश्व ब्रह्मांड चर अचर , लोक , सप्त लोक, तक गौयें और गौओं के जाये बछड़े सदैव पूर्ण  निर्भय और निष्कंटक विचरण एवं चरनोई सहित साम्राज्य वान , बने रहे, कुल मिला कर तोमर साम्राज्य तो महज प्रतीक था , दरअसल गौओं और बछड़ों , सनातन धर्म का सर्वत्र अखंड राज्य साम्राज्य और धर्म पताका पचरंगी, हरा झण्डा चौकोर जिस पर चन्द्रमा का चिह्न अखंड अकाट्य होकर दसों दिशाओं में चकवर्ती सामाज्य रूप में फहराता रहा है, यहॉं तक कि तोमर राजवंश के राज चिह्न ''गौ बच्छा रक्षा'' के निशान को किसी भी तंग करने, या मारने, श‍िकार करने , भोजन बनाने या सताने की आज्ञा नहीं थी , यहॉं तक कि किसी भी जंगली पशु , जानवर चाहे वह स्वयं सिंह ( शेर ) ही क्यों न हों , गौ और बच्छा को स्पर्श करना तो दूर की बात उनकी ओर देखना मात्र भी निषेध व वर्जित था और ऐसी कोई घटना होते ही दोषी के पूरे कुल कुटुम्ब परिवार खानदान सहित तत्काल मृत्युदंड देकर , बगैर किसी सुनवाई और सफाई के तुरंत मौत के घाट उतार दिया जाता था । तोमर क्षत्रिय राजपूत राजवंश में किसी भी निरपराध, निर्दोष एवं निर्बल व लाचार को दंड देने या उसकी सहायता न करने का सख्त का निषेध है, किन्तु श‍िकार का निषेध नहीं है, किंतु गौ बच्छा रक्षा के मामले में सब कुछ त्याग कर केवल कुल खानदान परिवार सहित दंड मृत्यु सुनिश्च‍ित प्रावधान रहा है । सनातन धर्म और तोमर साम्राज्य के समापन के पश्चात अब यह विषय तोमर राजवंश के लिये अपने राजचिह्न या भारत के राह चिह्न या संपूर्ण महाभारत व विश्व ब्रह्मांड के राजचिह्न की हत्या वध से ज्यादा कुछ नहीं है । अब यह कलयुगी राजाओं या कलयुगी नेताओं के साम्राज्य युग हैं , आचार विचार हीन, धर्म विहीन, नैतिकता व ज्ञान , बुद्धि हीन, ओज व तेज विहीन,  आज्ञा व आदेश हीन ऐसे राजा हैं जिनकी बात देवता, ब्रह्मांड और प्रकृति व मनुष्य तो क्या , खग मृग व पालतू कुत्ते तक नहीं मानते,  इनमें किसके साथ क्या हो रहा है , चूंकि यह लोग सनातन धर्म को ही मानते हैं, अधर्मी विधर्मी , नीति विरूद्ध , शास्त्र विरूद्ध एवं राजाज्ञा विरूद्ध प्रकार के गैर क्षत्रिय व गुलामों व अनुचर श्रेणीयों के कुंठित व क्षुब्ध लोग हैं और समस्त शास्त्रों में यह सब जो चल रहा है वह सब पूर्व से ही वर्ण‍ित है , लिहाजा तोमर राजपूत क्षत्रिय राजवंश इस मामले से अन्य कुराजनीति व कुशासन या कुशास्त्रीय व कुतार्किक व्यक्त‍ियों एवं संस्थाओं से स्वयं को दूर रखना चाहता है, जब तक धर्म हानि और पाप का घट भर कर संपूर्ण न हो जायेगा , तब तक उनका संपूर्ण विनाश नहीं होगा , गौ हत्या या तोमर राजवंश के राजचिह्न की हत्या केवल एक छोटा से पाप मात्र है, वरना इनके पापों की सूची तो बहुत गहरी, घृण‍ित व अति घोर दंडनीय है , वक्त आने दीजिये , कौरवों का जैसे , रावण का जैसे समूचा कुनबा कुटुम्ब सब नाश हुआ , इन सबका भी स्वत: ही हो जायेगा ..... हर पाप अंकित हो रहा है , हर अपराध यह प्रकृति दर्ज कर रही है ..... हालांकि तोमर राजवंश राजपूत क्षत्रिय राजकुल आज भी इतनी ताकत व सामर्थ्य रखता है कि इस संबंध में आज भी निजी राजज्ञा व हुकुम फरमान जारी कर सकता है और पूरे देश में कत्ल ए आम मचवा सकता है और तत्क्षण गौ हत्या बंद करवा भी सकता है और ऐसे आचार नीति व ज्ञान विहीनों को भारत से बाहर किसी भी वक्त खदेड़ भी सकता है, किन्तु शास्त्रों में ऐसी कोई राजाज्ञा या हुकुम फरमान जारी करने का यह वक्त मुकर्रर नहीं है , और उसका समय शास्त्रों में ही सुनिश्च‍ित है ....  केवल मात्र एक यही राजकुल व राजवंश है , जिसके राज निशान या राजचिह्न में न तलवारें मिलेंगीं , न शेर मिलेंगें, न ढाल मिलेगी, न अस्त्र शस्त्रों के निशान और न सांप बिच्छू मिलेंगें ..... बस केवल बच्छे को दूध पिलाती गाय की रक्षा ही मिलेगी .... यही हमारी धर्मध्वजा है, यही हमारा सनातन धर्म है, यही हमारा पांडवों का तोमर राजवंश का शासनकाल था ....... जय श्री कृष्ण .... जय जय श्री राधे