भारतीय
जनता पार्टी ने 19 सीटें जीत कर , कांग्रेस को 9
सीटें थमा कर दिये कूटनीतिक संदेश , कांग्रेस को प्राप्त 9
में से 7 सीटें बागीयों ( डकैत प्रभावित) ग्वालियर चम्बल क्षेत्र से
मिलीं
नरेन्द्र सिंह तोमर ‘’आनंद’’
म
प्र विधानसभा के उपचुनावों के परिणामों पर अगर एक सरसरी नजर डालकर सिंहावलोकन करें
तो तमाम राजनीतिक परिप्रेक्ष्य स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं जिनका विष्लेषण हम यहां
प्रस्तुत कर रहे हैं ।
इस
उपचुनाव में भाजपा ने 28 में से 19 सीटें जीत कर राजनीति की एक नई परिभाषा और अर्थ
दे दिये हैं और केवल 9 सीटें कांग्रेस को देकर उसके 15 महीने के कार्यकाल पर
प्रश्नचिह्न लगा दिये हैं या कांग्रेस की गलत चुनावी रणनीति और प्रदेश कांग्रेस की
असफलता या उसके धार विहीन नेतृत्व को नख दंत विहीन घोषित कर दिया है , यह सब विश्लेषण इस आलेख में हम कर रहे हैं ।
चित्त भी मेरी पट्ट भी मेरी
अगर
इन विधानसभा उपचुनावों के परिणामों पर गौर करें तो अधिकांश कांग्रेस सीटें वही
निकली या जीती हैं कांग्रेस ने, जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की ‘’बी’’
टीम यानि सिंधिया के पुराने खिदमतगार दरबारीयों ने चुनाव लड़ा ।
यानि इधर से भी सिंधिया और उधर से भी सिंधिया ने ही चुनाव लड़ा ।
इस
संबंध में एक पोस्ट हमने उस समय टिकट सूची के वक्त लिखी थी सामायिक होने के कारण
उल्लेखनीय है – इत हैं चमचा , उत हैं चमचा ..... वगैरह
वगैरह
कांग्रेस
को खुशी मनानी चाहिये कि आखिर फिर भी कांग्रेस नहीं , सिंधिया ही जीते , सिंधिया की कृपा से ही अंतत:
कांग्रेस की कुछ सीटें आईं ।
मुरैना
विधानसभा के चुनाव परिणाम की बात करें तो बसपा प्रत्याशी रामप्रकाश राजौरिया 20
वें राउंड तक करीब दस हजार वोटों से आगे चलते रहे , पहले कांग्रेस के
राकेश मावई से फाइट करते रहे , उसके बाद भाजपा के रघुराज
सिंह कंसाना से फाइट करने लगे और कांग्रेस तीसरे नंबर पर चली गई । अचानक ही केवल
तीन राउंड में यानि 21, 22, 23 वें राउंड में पूरे परिणाम
हैरतअंगेज तरीके से पलट गये और पूरे प्रदेश में केवल एक सीट बसपा की जो शो हो रही
थी , अचानक शो होना बंद हो गई । इसके बाद , दूसरे नंबर पर सिंधिया के भाजपा से रघुराज कंसाना और पहले नंबर पर सिंधिया
के बी टीम सदस्य राकेश मावई ( कांग्रेस ) दिखने लगे , गोया
सिंधिया का प्रभाव ही मुरैना सीट पर अचानक ही भाजपा और कांग्रेस के रूप में महज
तीन राउंड में नजर आने लगा , और पहले के 20 राउंड का इतिहास
बिल्कुल उसी तरह से बदल गया या गायब कर दिया गया , जैसे भारत
का इतिहास अंग्रेजों ने बदल दिया और राम
भी गायब हो गये , प्रकाश भी गायब और श्रीकृष्ण भी गायब ,
महाभारत , रामायण सब गायब हो गये भारत के इतिहास में से ।
समान
ही कहानी दिमनी विधानसभा सीट की है ।
केवल
एक घंटे में भाजपा सें कांग्रेस में आकर टिकट ले आने वाले रवीन्द्र तोमर सिंधिया
के खिदमतगारों के साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के चरण सेवक बनकर कांग्रेस में
शामिल होने से लेकर टिक्ट लेने तक ज्योतरादित्य सिंधिया के अंधभक्त रहे हैं ।
यह सिंघिया की कांग्रेस में ‘’बी टीम’’ के अहम और
खास नुमांइंदे हैं ।
खास
बात है कि अपने नाम के साथ भिडोसा लिखने वाले रवीन्द्र तोमर का न तो भिडोसा से कोई
ताल्लुक है और न कोई घर , जमीन या जायदाद ही भिडोसा में
है – यह सब खुद ही रवीन्द्र तोमर ने इसी निर्वाचन में निर्वाचन आयोग को दिये गये
शपथ पत्र में खुद ही लिख कर कहा और दिया है । मुरैना जिला में रवीन्द्र तोमर का न
घर है और न चुनाव में मुरैना जिला का पता दिया है । रवीन्द्र तोमर के शपथपत्र के
मुताबिक , उनके घर मकान संपत्ति सब इटावा जिला उत्तर प्रदेश
में और भिण्ड तथा ग्वालियर में है । बैंक अकाउंट तमाम हैं मगर सब इटावा
उत्तरप्रदेश और ग्वालियर में हैं । उसके बाद एक जगह बड़ा गांव में कुछ खेत होने का
उल्लेख है । इसके सिवा कहीं कुछ नहीं है मुरैना जिला में । इसके बावजूद अपने नाम
के आगे भिडोसा लिखना , यह समझ से परे है । बड़ा गांव नाम के
साथ लिखते तो भी बात गले उतर जाती ।
खैर
यह सीट भी सिंधिया के ही खाते में दूसरे तरीके से गई सिंधिया के ही कृपा पात्र और
खास आदमी ने कांग्रेस की ओर से इस सीट पर सिंधिया का नाम इतिहास में पहली दफा लिख
दिया ।
भाजपा की 19 और कांग्रेस की 9 सीटों के मायने और
7 सीटें कांग्रेस की क्षेत्र विशेष में के
मायने
पूरी
28 विधानसभा सीटों में से 19 सीटें भाजपा ने और 9 सीटें कांग्रेस ने जीतीं हैं , सन 2018 में इनमें से 27 सीटें कांग्रेस जीती थी ।
अगर
देखें तो 27 में से 19 सीटें कांग्रेस ने खो दी हैं ।
और
7 सीटें केवल क्षेत्र विशेष में कांग्रेस जीती है , जिनमें सुमावली ,
गोहद , ग्वालियर पूर्व की सीटें , ब्यावरा सीट , इस क्षेत्र विशेष में शुद्ध कांग्रेसी
प्रत्याशीयों और कांग्रेस की स्पष्ट व शुद्ध जीत है , मेहगांव
और जौरा सीट पर सभी राउंड पर नजर डाली जाये तो हर राउंड में जबरदस्त फाइट कांग्रेस
ने भाजपा से की है , और मेहगांव विधानसभा सीट पर तो तमाम
राउंड तक कांग्रेस निकटतम भाजपा प्रत्याशी से आगे बढ़त बनाये हुये रहे हैं ।
मेहगांव
सीट पर भी शुद्ध कांग्रेसी से मुकाबला ज्योतिरादित्य सिंधिया से रहा है ,और हेमंत कटारे ने मार्केबल वोट और वोट प्रतिशत हासिल कर भिण्ड जिले की
राजनीति में एक नया अध्याय लिखा है और सिंधिया के अनुयायी कहे जाने वाले राकेश
चौधरी को राजनीति के नेपथ्य में फेंक दिया है और राजनीति के अंतरिक्ष में उल्का
पिंड के मानिंद लटका कर अप्रत्यक्ष रूप से भिंड जिला में राकेश चौधरी का
प्रतिस्थापन खुद को स्थापित कर दिया है और स्वर्गीय सत्यदेव कटारे का असल
उत्तराधिकारी ही नहीं बल्कि उनसे कहीं बढकर खुद को साबित कर दिया है , सत्यदेव कटारे अटेर विधानसभा से बाहर चुनाव नहीं लडे इसलिये वे जिले के
सर्वव्यापी नेता नहीं बने , जबकि हेमंत कटारे ने इस मिथक को
तोड़कर मेहगांव विधानसभा में दमदार और सशक्त जीतने वाली मौजूदगी दर्ज करा कर तमाम
राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया है , और भावी राजनीतिक
विश्लेषणों में एक विषय बना दिया है । भले ही हेमंत कटारे ने मेहगांव विधानसभा न
जीती हो मगर जीत का अंतर पहली बार एकदम घटा कर और लगातार बढ़त बना कर मेहगांव
विधानसभा की राजनैतिक जमीन को कुछ सोचने का विषय कर दिया है ।
फूल
सिंह बरैया की हार भी सम्मानित और प्रतिष्ठित है , मात्र 161 वोट के अंतर
से भाजपा की रक्षा सिरोनिया से हारे कांग्रेस प्रत्याशी फूल सिंह बरैया की हार का
कोई भी विशेष राजनीतिक महत्व और अर्थ नहीं है , इस महज एक
कुयोग और राजनीतिक दुर्घटना मात्र ही कहा जा सकता है , और
विजयी रक्षा सिरोनिया को हमेशा ही सोचना पड़ेगा कि वह हारी है या जीती है ।
इसी
तरह डबरा में इमरती देवी और विजई कांग्रेस प्रत्याशी भी 3 साल तक सोचते रहेंगें कि
वे हारे हैं या जीते हैं । मगर लाख सोचने पर तमाम लोग इसे वोट नहीं देने वालों और
नोटा को मिले वोटों को ही जिम्मेदार समझेंगें ।
राजनीतिक
सियासतदानी में कौन कौन घटेगा और कौन कहां किस मुकाम की ओर जायेगा तथा बढ़ेगा
इस
उपचुनाव के परिणामों के वैसे तो कोई सत्ता आने जाने से खास ताल्लुक नहीं है , भाजपा को महज 8 सीटें जीतनी थीं सो बहुत आसान थीं और सबको ही उम्मीद थी,
सो वो तो दोपहर एक बजे तक सब साफ हो ही गया था , 8 सीट के बाद की कोई भी सीट भाजपा या शिवराज के लिये केवल प्लस मात्र थी और
समर्थन से लंगड़ी लूली या दवाब में रहने वाली सरकार से बाहर मुक्त सरकार के रूप
में उपलब्धि मात्र थी । सो 8 की जगह 19 सीटें जीत कर वह बात भी खत्म हो गई । मतलब
कमलनाथ की सरकार के भी एक्स्ट्रा बल अब भाजपा में और शिवराज में आ गये । और अब
शिवराज सरकार मनमर्जी से निर्णय ले सकती है और कायदे कानून बना सकती है और चला
सकती है ।
इस
सबके भी कुछ लंबी दूरी के मायने हैं , जिसमें बहुत से राजनेताओं का
और राजनैतिक दलों का सुदीर्घ भविष्य और राजनीति तथा रणनीति छिपी हुई है ।
प्रदेश
स्तर से स्थानीय जिला , तहसील व ब्लाक स्तर तक राजनैतिक चेहरे
बदलने की दरकार सत्तारूढ़ भाजपा और अपदस्थ कांग्रेस दोनों को ही रहेगी तो बसपा और
जैसी पार्टीयों का अभी अपनी खोई हुई जमीन तलाशनी होगी ।
इस
विषय पर विश्लेषण करने से पहले यह जरूरी होगी कि कहां क्यों व कैसे कौन कौन हारे
या जीते
सबसे
पहले कांग्रेस की बात करें – तो कांग्रेस की सरकार अपदस्थी के बाद पुनर्वापसी की
प्रायिकता पर बात करना लाजिमी होगा
कांग्रस
को लौटा कर फरवरी 2020 और 8 मार्च तथा उसके बाद के घटनाक्रम में वापस लाना होगा , 23 फरवरी 20 तक कांग्रेस में मंत्री रहे तमाम लोग ट्विटर , फेसबुक पर खुद की और कांग्रेस सरकार की उपलब्धियां बता रहे थे , सार्वजनिक कार्यक्रम की तस्वीरें बढ़ा चढ़ा कर शेयर कर रहे थे और कांग्रेस
सरकार को सबसे बेहतरीन सरकार बता और साबित करने में जुटे थे । यह सब कुल 22
कांग्रेसी अंतत: 25 फरवरी 2020 से लापता होने लगे और सोशल मीडिया पर इनके अपडेटस
आने बंद हे गये । 28 फरवरी तक पूरी तरह से इनकी नेटवर्किंग जुदा ओर अलहदा होने लगी
।
मार्च
2020 में कांग्रेस तब तक मुंह पर ठीपुरी रखे मौन बैठी रही और महाराज के चरण चुबन
में लगी रही जब तक खुद महाराज यानि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुद ही इस्तीफा नहीं
दे दिया और उसके बाद खुद ही अपने इस्तीफे को ट्विटर के जरिये सार्वजनिक नहीं कर
दिया । तब तक कांग्रेस के सभी नेता प्रदेश स्तर से लेकर ( सिंधिया पीड़ित या
प्रभावित जिलों के जिला स्तरीय और तहसील स्तर तक ) नीचे के स्तर तक के कांग्रेस
नेता सिंधिया के अंधे चमचे और चरणदास तथा चरण भक्त थे ।
सिंधिया
के इस्तीफे और खुद ही सबको बताने के लिये सवार्वजनिक कर देने की बाद भी अंधभक्त
कांग्रेसी बेहद दहशतजदा और डरे हुये थे और तब भी कुछ बोलने या कहने या सोशल मीडिया
पर कहने से भयभीत और मुंह बंद थे ।
जब
सिंधिया शाम को भाजपा जाइन करने वाले थे तब उस वक्त हमने पहली पोस्ट लिखी फेसबुक
पर और सिंधया को इस सबके राजनैतिक मायने समझा दिये , ज्योतिरादित्य तो खैर
जब तब ही सोशल मीडिया पर आते हैं , उनके सोश मीडिया को उनकी
पत्नी ही चलातीं हैं , और वे ही हर समय सोशल मीडिया के जरिये
जन संपर्क में रहतीं हैं और पोस्ट , कमेंट और रिप्लाई करतीं
हैं । अलबत्ता सिंधिया का सोशल मीडिया नेटवर्क प्लेटफार्म इसीलिये बेहद सशक्त और
समर्थ है क्योंकि यह उनके किसी भी चमचे या कर्मचारी द्वारा नहीं चलाया जाता बल्कि
उनकी पत्नी प्रियदर्शनी राजे द्वारा ही संचालित किया जाता है ।
खैर
अंतत: कुछ समय पश्चात ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा ज्वाइन कर ली , बाद में उनके समर्थकों ने भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली । उधर
दूसी ओर तत्समय बैंगलोर एपिसोड लगातार चल रहा था , लगातार
वीडियो और तमाम लिखत दस्तावेजों के फोटोग्राफ और बयान वगैरह आ रहे थे , हमें भी मिल रहे थे , मगर कांग्रेस केवल इंतजार कर
रही थी , कि कुछ नहीं होगा , कोई
इस्तीफा नहीं देगा और सब कांग्रेस में ही रहेंगें ।
उधर
दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से कांग्रेस के द्वितीय स्तर और कैडर के नेताओं ने
ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ बयानों की
हवाई फायरिंग शुरू कर दी , और फिर उनसे नीचे तीसरे , चौथे और पांचवें छठे स्तर
के नेताओं ने सोशल मीडिया पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ बम्बार्डमेंट शुरू कर
दिया , उधर कांग्रेस बंगलौर में बागीयों को मनाने में लगी
रही और इधर सिंधिया को गरियाती रही ।
अंतत:
बंगलौर एपिसोड में हैरत अंगेज तरीके से मुरैना जिला के तीन लोग ऐदल सिंह कंसाना , रघुराज कंसाना और गिर्राज डंडोतिया भी जुड़ गये और अचानक बंगलौर पहुंच गये
।
कुल
मिलाकर फिर सबको पता ही है कि क्या हुआ , कमलनाथ अपदस्थ हो गये ,
शिवराज पदस्थ हो गये । फिर कोरोना का ग्रहण लग गया और फिर अंतत:
उपचुनाव का आगमन हो गया ।
अब
इस सबमें ऊपर कुछ तो विश्लेषण लायक मिल ही गया होगा कि ऊपर क्या है जो सुधारा जाये
।
क्रमश: जारी अगले अंक में ......
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