बुधवार, 18 मार्च 2009

अखबारों में छाने लगीं प्रायोजित खबरें

मुरैना 18 मार्च 09, अखबार विज्ञापनों के लिये बिकते हैं यह आपने सुना ही होगा लेकिन अब खबरें भी बिक कर लिखीं जाने लगीं हैं या फिर अखबार बेचने के लिये खबर का फर्जीकरण आप कुछ भी मान लें । मगर हमारी नजर में यह पीत पत्रकारिता सबसे निकृष्ट यानि घटिया रूप है ।
अखबार हमारे मुरैना जिला का जातिगत वोट गणित बता रहा है , यह इस अखबार में आज की प्रकाशित खबर का ताजा चित्र है । खबर में कोई महोदय ने लिखा है कि मुरैना संसदीय क्षेत्र में इत्ते ठाकुर उत्ते ब्राह्मण इत्ते फलाने उत्ते ढिकाने हैं ।
हालाँकि यह खबर लागू आचार संहिता के खिलाफ है पर महोदय ने छाप दी है । खैर सबके अपने अपने ढंग हैं कमाई के , पर सच यह है कि अखबार द्वारा छापे तथ्य व आँकडे सरासर फर्जी एवं मनगढन्त हैं, सबूत हमारे पास हैं ।
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मंगलवार, 17 मार्च 2009

व्‍यंग्‍य/ मसखरे नेताजी, पोल पोलिंग की भाग-1 चुनाव से जुड़ी रोचक बातें, क्‍या वाकई जीता हुआ उम्‍मीदवार जनप्रतिनिधि होता है

व्‍यंग्‍य/ चुनाव से जुड़ी रोचक बातें, क्‍या वाकई जीता हुआ उम्‍मीदवार जनप्रतिनिधि होता है

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

मसखरे नेताजी, पोल पोलिंग की भाग-1

विशेष टीप-  गणित की 7 प्रमेय विशेष प्रसिद्ध रहीं हैं, जिन्‍हें विश्‍व में कभी कोई गणितज्ञ हल नहीं कर पाया । इन प्रमेयों को भारत के रेल्‍वे के एक मामूली और नाकारा समझे जाने वाले रोजाना बेइज्‍जत किये छोटे से क्‍लर्क रामानुजम ने हल करके रद्दी के यानि कचरे के डिब्‍बे में फेंक दिया था । जो कि विश्‍व प्रसिद्ध गणितज्ञ को नजर आयीं तों उसने रामानुजम को विश्‍व का महान गणितज्ञ नवाजा । स्‍वामी विवेकानन्‍द की कहानी भी कोई भिन्‍न नहीं हैं । उन महान विद्वानों को नतमस्‍तक होते हुये मैं भी ऐसी अबूझ 7 चुनावी प्रमेय अर्थात समस्‍यायें यानि पहेलियॉं प्रस्‍तुत करने की धृष्‍टता कर रहा हूँ जो अभी तक अनसुलझीं हैं, जो इन्‍हें सुलझायेगा निसंदेह भारत के इन दोनों रत्‍नों यानि भारत रत्‍न (अभी तक ये महान भारतीय भारत रत्‍न से नहीं नवाजे गये हैं क्‍योंकि ये राजनीतिज्ञ नहीं थे, न इनका कोई रिश्‍तेदार कभी विधायक या सांसद ही बन पाया) की टक्‍कर का मेरी नजर में महान भारतीय, पूज्‍य भारतीय होगा ।     

क्‍या आपने कभी ध्‍यान दिया है कि आपके यहॉं के निर्वाचन क्षेत्र से कुल कितने उम्‍मीदवार चुनाव में खड़े हुये और उनमें से हरेक को कितने कितने वोट मिले ।

आईये भारतीय लोकतंत्र की कुछ मजेदार रोचक बातों पर मुलाहिजा गौर फरमायें ।

मान लीजिये कि एक विधानसभा या एक लोकसभा चुनाव सम्‍पन्‍न हुआ और चुनाव में कुल 16 प्रत्‍याशी खड़े हुये जिसमें इस क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्‍या 500 है । जब चुनाव हुआ तो कुल 480 लोगों ने वोट डाले ।

चुनाव में हर मतदाता ने अपनी अपनी पसन्‍द का वोट डाला यानि अपने मनपसन्‍द प्रत्‍याशी को वोट किया ।

मतगणना हुयी और चुनाव परिणाम मान लीजिये कि निम्‍न प्रकार रहा %

 

क्रमांक

प्रत्‍याशी

प्राप्‍त मत    

1.     

रामलाल

212

2

मनोहर सिंह

37

3

रामकली

10

4

लालूराम

5

5

करियाचन्‍द

50

6

रामनिवास

30

7

छिद्दी लाल

21

8

ओमवीर सिंह

11

9

रामबेटी

9

10    

राजकुमारी

4

11    

धनियाराम

3

12    

सेठ गिरधारी लाल

5

13    

केशव चन्‍द्र

16

14    

गिरवरलाल

18

15    

धनुई

40

16

करोड़ीमल

9     

कुल वोट

 

480

 

अब ऊपर की सारणी के मुताबिक सर्वाधिक 212 वोट पाने वाला प्रत्‍याशी रामलाल है ।

कुल वोट चूंकि 480 पड़े हैं जिसका आधा यानि 50 फीसदी 240 होता है अर्थात क्षेत्र के आधे से अधिक मतदाताओं ने रामलाल को वोट नहीं दिया । केवल 212 लोगों ने रामलाल को वोट दिया है । इस प्रकार रामलाल केवल 212 लोगों का प्रतिनिधि सिद्ध हुआ । और 480 में से 212 घटाईये तो प्राप्‍त संख्‍या 268 होती है । अत: सिद्ध हुआ कि विजयी प्रत्‍याशी रामलाल 268 लोगों यानि मतदाताओं का प्रतिनिधि नहीं हैं ।

अब जिन 268 लोगों ने रामलाल को वोट नहीं दिया उनका रामलाल किस हिसाब से प्रतिनिधि कहलायेगा । क्‍या रामलाल उनका प्रतिनिधि माना जाना चाहिये । क्‍या वे 268 मतदाता जिन्‍होंने रामलाल को वोट नहीं दिया, रामलाल को अपना प्रतिनिधि मानेंगें । या रामलाल के पास अपनी समस्‍या लेकर जायेंगें ।

नहीं कदापि नहीं, वे कतई रामलाल को अपना प्रतिनिधि नहीं मानते इसलिये उन्‍होंने रामलाल को वोट नहीं दिया । अब इन 268 लोगों पर भी रामलाल को उनका जनप्रतिनिधि कह कर थोपा जाना क्‍या उचित है । क्‍या वे 268 मतदाता अगले 5 वर्ष तक बिना प्रतिनिधि के भारत के लोकतंत्र में रहेंगे । (वर्तमान व्‍यवस्‍था में तो रह रहे ही हैं) क्‍या रामलाल के खिलाफ आये 268 वोट उसके मिले 212 वोटों से अधिक नहीं हैं । क्‍या वाकई इस तरह रामलाल जीता या हारा । फिर रामलाल को समूचे क्षेत्र का जनप्रतिनिधि कैसे माना जाये । ये 268 लोग तो 5 साल तक रामलाल से मिलने तक नहीं जायेंगें, और रामलाल भी हरेक को इन 268 में ही गिनेगा और अधिकतर (चेले चमचों को छोड़ कर ) लोगों को सुनेगा ही नहीं । देश में यही चल रहा है कि नहीं ।    

चलिये आप इस पहेली को सुलझाईये, मैं दूसरी पहेली तब तक आपको देता हूँ । और विचार करिये कि कितना निर्दोष और निष्‍पक्ष है हमारा निर्वाचन और कितनी वोट पावर से समृद्ध या कमजोर (ऋणात्‍मक)होता है हमारा जनप्रतिनिधि । इस पहेली को बूझें तो जानें । या फिर वर्तमान या पूर्व विधायक या सांसद या चुनाव लड़ने के इच्‍छुक भावी सांसद या विधायक से इसका समाधान अवश्‍य पूछें । और मुझे अवश्‍य बतायें, मैं इसका समाधान अवश्‍य प्रकाशित करूंगा ।  

 

क्रमश: जारी....