शनिवार, 17 अप्रैल 2010

मुरैना में दिन भर की बिजली कटौती के साथ रात भर की जाने वाली बिजली कटौती से हडकम्प

मुरैना में दिन भर की बिजली कटौती के साथ रात भर की जाने वाली बिजली कटौती से हडकम्प

मुरैना 17 अप्रेल , चम्बल में यू तो भ्रष्ट व बेईमान अधिकारीयों को पदस्थ कर जनता का लहू चूसना आम बात है, स्थानीय नेताओं के पालतू और कमाई अधिकारीयों का जुल्मो सितम इस हद तक पार कर गया है कि साल भर चलने वाली बिजली कटौती भारी भीषण गर्मी और घुआंधार मच्छरों के बीच बढ़ा कर दिन भर की बिजली क्औती के साथ पिछले दो दिनों से रात में भी शुरू कर दी गयी है ! उल्लेखनीय है स्थानीय भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारीयों और नाकारा हो चुकी नगर पालिका के सितमो आलम ये हैं कि भारी मच्छरों से त्रस्त शहर में पिछले तीन साल से मच्छरों के लिये न तो कोई दवा कभी छिड़कावायी गई और न फोगिंग ही करवाई गई ! जबकि नगरपालिका के पास फोगिंग मशीन उपलब्ध है !

ऐसे में पूरे दिन भर सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक और फिर अब रात में भी इसी कदर की जाने वाली बिजली कटौती ने शहरवासीयों का जीना मुहाल कर दिया है ! जहाँ शहरवासी इस बिजली कटौती से न केवल सकते में हैं बल्कि उनमें भारी आक्रोश भी भड़क गया है ! जहाँ गर्मी की मौसमी बीमारीयों की चपेट में आकर लोगों में मजीलस,खुजली और चिकनगुनियां जैसे रोग फैल गये हैं वहीं बानमौर के एक सरकारी छात्रावास के 30 में से 29 बच्चों के एक साथ चपेट में आ जाने से सारे बच्चे छात्रावास से भगा दिये गये हैं और बिना कोई चिकित्सा कराये हरिजन दलित गरीब बच्चों से छात्रावास खाली करा लिया गया है ! अंचल में व्याप्त सरकारी लापरवाही के बदइंतजामी का शिकार होकर जहाँ बीमारीयों और मच्छरों से जनता त्रस्त हेै वहीं रात भर और दिन भर की बिजली कटौती से चारों ओर कोहराम मचा है व आक्रोश व्याप्त हो गया है !

 

एयरटेल की नेटवर्क फिर ध्‍वस्‍त, शिकायतें न दर्ज हो रहीं न सुनवाई हो रही है, बड़े बड़े दावों के पीछे ढोल की पोल

एयरटेल की नेटवर्क फिर ध्‍वस्‍त, शिकायतें न दर्ज हो रहीं न सुनवाई हो रही है, बड़े बड़े दावों के पीछे ढोल की पोल 

क्‍या आप भी किसी मोबाइल सेवा प्रदाता कम्‍पनी की ठगी का शिकार हैं तो इसे ध्‍यान से पढ़ें

हर तीसरे दिन लुप्‍त हो जाता है एयरटेल का नेटवर्क

यूं ही नहीं चलते लाखों के इनामी टी.वी. कार्यक्रम कम्‍पनीयों के , इस तरह करोड़ो अरबों बटोरतीं हैं कम्‍पनीयॉं, और चलाती हैं देश की आवाज और क्रेजी किया रे जैसे लुभावने कार्यक्रम

मुरैना 17 अप्रेल 10 , विगत 8 फरवरी से गड़बड़ाया एयरटेल (भारती एयरटेल) का नेटवर्क पिछले दिनों की तरह आज फिर ध्‍वस्‍त हो गया ।

विगत 8 फरवरी से ठप्‍प हुये एयरटेल संचार प्रणाली में मजे की बात यह भी है कि उपभोक्‍ताओं को जम कर कम्‍पनी द्वारा चूना भी लगाया जा रहा है । जहॉं कम्‍पनी द्वारा घोषित टोल फ्री शिकायत नंबर 198 कभी भी नहीं लगता वही कम्‍पनी जबरन बाध्‍य कर शिकायतें पहले खुद ही पैदा करती है और उसके बाद शिकायत दर्ज कराने के पैसे वसूलती है ।

जहॉं कम्‍पनी कुछ नंबरों पर एस.एम.एस. से शिकायत भेजने के लिये शुल्‍क नहीं लेती थी मसलन 121, अब इस नंबर पर भी एस.एम.एस. भेजने के पैसे काटे जाते हैं वह भी 1 रू. प्रति एस.एम.एस. की दर से शुल्‍क वसूलती है , आज हमने जब 198 , 121 सभी नंबरों के फेल होने पर 121 पर एस.एम.एस. भेजे तो पूरे 6 रू. काट लिये गये ।

उल्‍लेखनीय है कि कम्‍पनी के नेटवर्क टावर विगत 8 फरवरी से चम्‍बल में उपलब्‍ध नहीं हो रहे हैं । सैकड़ों उपभोक्‍ता कम्‍पनी के पास शिकायत दर्ज कराने को झकमारी करते फिर रहे हैं , अव्‍वल तो कम्‍पनी शिकायत ही दर्ज नहीं करती और कोई उपभोक्‍ता पैसे खर्च कर शिकायत दर्ज भी करवा दे तो फिर उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती । उपभोक्‍ता पैसे खर्च करता रहता है और ठगा जा कर कम्‍पनी की चालबाजी और धोखाधड़ी का शिकार होता रहता है ।

कम्‍पनी के तमाम उपभोक्‍ता मोबाइल आफिस के नाम से इण्‍टरनेट सेवायें प्रयोग करते हैं , उनके साथ कम्‍पनी न केवल धोखाधड़ी कर रही है बल्कि जम कर ठगी भी कर रही है । कुछ उपभोक्‍ताओं से मासिक शुल्‍क एकमुश्‍त काट कर कम्‍पनी महीने भर इण्‍टरनेट सेवायें प्रदान करने का वायदा करके साधारण संचार नेटवर्क तक उपलब्‍ध नहीं करा पाई वही कुछ उपभोक्‍ता 10 रू प्रति दिवस का भुगतान करके भी इण्‍टरनेट छोडि़ये साधारण फोन पर बात भी नहीं कर पाये । और विगत 8 फरवरी से तकरीबन हर दूसरे दिन अपने गांठ से पैसे खर्च करके शिकायतें भी करते रहे और रोजाना 10 रू भी कटाते रहे फिर भी वही ढाक के तीन पात ही रहे ।

इससे भी आगे बढ़ कर कम्‍पनी और भी कई करिश्‍मे दिखाती है , मसलन इस कम्‍पनी की मोगाइल सेवाओं पर बिना चालू किये ही अपने आप ही अश्‍लील गानों की कालर टयून नामक सेवा प्रारंभ हो जाती है और जबरन रातों रात आपके मोबाइल फोन से 60- 70 रूपये गायब हो जायेंगें ।

और भी तमाशा ये हैं कि आप के फोन पर कोई भी सुविधा आप प्राप्‍त करें या न करें यदि आपने अपना बैलेन्‍स 100 रूपये से ऊपर मोबाइल में रखा है तो रातों रात सैकड़ों रूपये गायब होकर चन्‍द पैसे का बैलेन्‍स मात्र शेष रह जायेगा । कई उपभोक्‍ताओं के इस तरह सैकड़ो हजारों रूपये साफ हो चुके हैं । जिसकी शिकायतें जागो ग्राहक जागो और ट्राई तक हो चुकीं हैं , ज्‍यादा पीछे पड़ने वाले ग्राहक के पैसे तो कम्‍पनी लौटा देती है लेकिन लापरवाह , सुस्‍त या शिकायत न करने वाले या पीछे न पड़ने वालों के पैसे कम्‍पनी हजम कर जाती है । हमने इस समाचार के सम्‍बन्‍ध में सभी साक्ष्‍य प्राप्‍त कर लिये हैं और हमारे पास सुरक्षित हैं । जनहित में सूचित करते हैं कि ऐसी किसी भी कम्‍पनी से पीडि़त होने पर बी.एस.एन.एल. के फोन से टोल फ्री नंबर 1800-11-4000 पर शिकायत तुरन्‍त दर्ज करायें ।    

 

 

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

दिग्विजय सिंह: उन्‍हें बोलने दीजिये, आप सुन लीजिये, सुन तो लीजिये फिर आपको जो करना है करिये

दिग्विजय सिंह: उन्‍हें बोलने दीजिये, आप सुन लीजिये, सुन तो लीजिये फिर आपको जो करना है करिये

नरेन्‍द्र सिंह तोमर '''आनंद''

पिछली केन्‍द्र सरकार भी कांग्रेस की ही थी , संसद का प्रसंग है लोकसभा में परमाणु करार के ऊपर बहस चल रही थी , विपक्षी हो हल्‍ला मचा रहे थे, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी लीलीवती कलावती का सत्‍यनारायण कथा का प्रसंग बांच रहे थे , शोरगुल बढ़ता देख राहुल गांधी बड़ी शालीनता से बोले - देखिये आप मुझे सुन तो लीजिये, सुन तो लीजिये मुझे बोलने दीजिये, आपको ठीक लगे तो या न ठीक लगे तो जैसा भी हो आप वैसा कीजिये पर सुन लीजिये । मैच का सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर सार्वजनिक तौर पर चल रहा था और पूरा देश टकटकी लगा कर दूरदर्शन पर संसदिया कुश्‍ती को निहार रहा था ।

आज लोकसभा नहीं लोकराष्‍ट्र के समक्ष केवल बोलने वाला बदला है, बात जस की तस है, माहौल माया भी जस की तस है , सरकार के खिलाफ किसी ने बोलने की हिमाकत की है, सच बोलने की जुर्रत की है और शर्म की बात ये है कि वह नालायक घर का ही आदमी है , कांग्रेस का ही नेता है ... चुल्‍लू भर पानी में डूब मरने वाला सीन है । चिदम्‍बरम कठघरे में... रिंग मास्‍टर है दिग्विजय सिंह ।

दिग्विजय सिंह किसी चीनी के बतासे का नाम नहीं कि गपक कर लीलना इतना आसान हो, दिग्विजय सिंह ने राजनीतिक कारीगरी अपने गुरू अर्जुन सिंह से सीखी है , और अर्जुन सिंह अपने जमाने के जाने माने राजनीतिक चाणक्‍य रहे हैं । दिग्विजय सिंह ने लगातार दो सत्‍ता काल म.प्र. में चलाये हैं पूरे दस साल कूटनीतिक राज्‍य काल पूर्ण किया है । संयोगवश उनका सत्‍ता काल मुझे देखना और भोगना नसीब हुआ है , मुझे उनकी क्षमतायें, कमजोरियां अधिक बेहतर पता हैं । दिग्विजय सिंह कभी क्रोधित हुये हों, आपे से बाहर हुये हो मैंने कभी नहीं सुना, मैंनें उन्‍हें सदा हॅसमुख और प्रसन्‍नचित्‍त देखा सुना है । ऐसी कूटनीतिक सत्‍ता चलाई कि सम्‍पूर्ण म.प्र. जिसमें वर्तमान छत्‍तीसगढ़ भी शामिल है में कोई नक्‍सली पत्‍ता भी नहीं खड़का । दिग्विजय सिंह नक्‍सली सर्जरी और नक्‍सली इलाकात व हालात के बेहतर जानकार हैं । ऐसे में उनके लेख को या उनकी बातों को हवा में तो कतई नहीं उड़ाया जा सकता ।

अभी सुबह फेसबुक पर कांग्रेस के अधिकृत समूह का एक संदेश पढ़ रहा था जिसमें सूचित किया जा रहा था कि दिग्विजय सिंह को सार्वजनिक तौर पर बोलने से कांग्रेस द्वारा मना किया गया है । और वगैरह वगैरह बिजली नहीं थी मोबाइल पर ही हेडलाइन पढ़ कर छोड़ दिया । लेकिन मेरे मन में सवाल आया कि आखिर ऐसा क्‍या हुआ कि कांग्रेस को दिग्विजय सिंह जैसे खुशमिजाज मिलनसार और भले आदमी का टेंटुआ दबाने को मजबूर होना पड़ा । और बोलती बन्‍द रखने के निर्देश देने पड़े , मैंने खोजना शुरू किया तो फेसबुक पर ही भाई आलोक तोमर के डेट लाइन इण्डिया में प्रकाशित एक आलेख पर नजर पड़ी उसे पूरा पढ़ा तो माजरा समझ आया । हालांकि रात को विदेश से मेरी एक महिला मित्र ने कुछ संकेत मुझे भेजे थे लेकिन मैं खुल कर उसे समझ नहीं पाया, उन्‍होंनें आलेख की कटिंग भी पोस्‍ट की लेकिन अधिक ज्‍यादा मेरे पल्‍ले पड़े नहीं पड़ा । फिर भी नक्‍सलवाद की समस्‍या पर और चिदम्‍बरम व केन्‍द्र सरकार पर जो मेरे मन में था मैंने कह दिया । अब यह संयोग की बात है कि दिग्विजय सिंह ने जो भी लिखा होगा उससे मेरी राय बहुत हद तक संयोगवश ही पूरी तरह मेल खा गई ।

मामले का भूत टटोलते टटोलते मेरे दिमाग में कई विचार एक साथ उभरे कि अगर क्‍या दिग्विजय सिंह की जगह राहुल गांधी ने यह सब कहा होता तो क्‍या कांग्रेस राहुल गांधी का टेंटुआ दबाती और बोलती बन्‍द कराती, या फिर जब कांग्रेस अपने अंदर ही वाक् अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता नहीं दे सकती तो देश को कैसे वाक् अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता मिल पायेगी या कायम रह सकेगी, जब कि देश का संविधान इसकी गारण्‍टी देता है लेकिन मेरी समझ में इतना तो आ ही गया कि लेकिन कांग्रेस में इसकी गारण्‍टी नहीं है, आप नेता नहीं चमचे बने रहिये , चमचे बन कर चमचा हिलाते रहिये चमचे से नेता बनने की जुर्रत की तो नेता की बोलती बन्‍द करा दी जायेगी ।

खैर चमचागिरी तो कांग्रेस के गुप्‍त संविधान में न जाने कब से घुसी पड़ी है और काबिल नाकाबिल के बीच योग्‍यता का बहुत तगड़ा मापदण्‍ड बन कर काम कर रही है , लेकिन इस नये रूप में इसका प्रकट होना मुझे पहली बार देखने को मिला है । खैर फर्क क्‍या पड़ता है मुर्दे पे जैसा सौ मन काठ वैसा सवा सौ मन काठ , फिर भी मुर्दा करता ठाठ ।

अब राहुल की तरह फिर दिग्विजय को कहना पड़ेगा क्‍या कि बोल तो लेने दीजिये, पहले आप सुन तो लीजिये.... वे देश के सामने बोले देश की समस्‍या और सरकार की फेलुअरिटी पर बोले ... कांगेस को गर्व होना चाहिये था देश की सबसे बड़ी पंचायत में हमारे नेता बोले... खुल कर बोले जम कर बोले... लोकतंत्र की गौरव मयी परम्‍परा के अनुसार बोले, पार्टी के किसी अन्‍दरूनी मामले पर नहीं बल्कि सार्वजनिक रूप से जवाबदेह देश की सरकार के साधारण कामकाज पर बोले ।

लेकिन अफसोस देश की रेल के लिये रेल एन्जिन बनने का दावा करने वाली कांग्रेस का इंजन इतना घसीटूराम होगा मुझे यह जान सोच कर हैरत है । एक तो कांगेस में चमचागिरी भारी दूजी आपस की मारा मारी तीजी ठाकुरों के खिलाफ अन्‍दरूनी तीर तैयारी । वैसे भी अब राजनीति में राजपूतों को जिस कदर लतिया धकिया कर जलील धमील कर बाहर के रास्‍ते दिखाये जा रहे हैं , उससे इन राजपूत नेताओं को इतना समझ और तमीज तो अब आ ही जाना चाहिये कि हर संकट में राजपूत सम्‍मेलन बुला कर अपनी नींव पुख्‍ता करके समाज के खिलाफ या यूं कहिये कि समाज के लिये नहीं कुछ भी करने पर आखिर अंजाम कितने बुरे होते हैं, चाहे वे ठाकुर अमर सिंह हों, अर्जुन सिंह हो या दिग्विजय सिंह, नटवर सिंह या जसवन्‍त सिंह , सारे शेरों की जो हालात हजामत की गयी है उसके लिये आखिर कौन जिम्‍मेवार है । अब राष्‍ट्रीय जनता दल में ठाकुर रघुवंश प्रसाद सिंह बचे हैं सो वे भी कबहुं कभार लालू जी के खिलाफ बोलने लगते हैं, इन्‍तजार करिये वो कब बाहर आते हैं ।

वैसे भी पहले दर्जे की राजनीति में अब सिंह बचे ही कितने हैं सिंहों के शिकार पर तो सरकारी प्रतिबंध भी है लेकिन शेरों को गुलेलों से ढेर किया जा रहा है, है न मजे की बात ।

अर्जुन सिंह , दिग्विजय सिंह म.प्र. के ऐसे शेर हैं जो शिकार हो ही नहीं सकते ... विश्‍वास नहीं तो शिकार करके देख लीजिये आप उन्‍हें जलील कर सकते हैं .. अपने घर में किसी को भी जलील किया जा सकता है , आप उन्‍हें पद से उतार कर नीचे या पीछे धकेल सकते हैं ... राजनीतिक हत्‍या नहीं कर सकते , आप करते रहिये वे कभी नहीं मरेंगे । अर्लुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल की लोकप्रियता का अंदाजा शायद अभी आपको नहीं होगा लेकिन मैं इशारे में बता देता हूं , अगर म.प्र. के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस मुख्‍यमंत्री के रूप में अजय सिंह राहुल का नाम घोषित कर देती तो आज म.प्र. में कांग्रेस की सरकार होती सौ नहीं हजार फीसदी । क्‍या समझे, नहीं समझे, समझ जाओगे .... जय हिन्‍द          

 

आलेख - चंदेरी: ऑल इज़ वेल, आमिर के बहाने करवट लेता वस्त्रोद्योग -श्रीमती राजबाला अरोरा

आलेख - चंदेरी: ऑल इज़ वेल, आमिर के बहाने करवट लेता वस्त्रोद्योग -श्रीमती राजबाला अरोरा

दियों से साड़ी का भारतीय संस्कृति से चोली दामन का साथ रहा है । साड़ी ही है, जो पूरे भारत में उपयोग में लाया जाने वाला विभिन्न रूपों, रंगों व डिजाइनों में उपलब्ध पारम्परिक परिधान है। जब भी साड़ियों की बात हो तो चंदेरी साड़ियो का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नही सकता । अब तो फिल्मी हस्तियाँ व माडल भी चन्देरी साड़ियों को पहन कर रैंप पर जलवे बिखेरती नजर आती हैं । विश्व प्रसिध्द चंदेरी साड़ियां आज भी हथकरघे पर बुनी जाती हैं । जिनका अपना ही एक समृध्दशाली इतिहास रहा है। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि चंदेरी हथकरघा वस्त्रोद्योग को बुलंदियों तक पहुँचाने वाले बुनकर कलाकार आज आर्थिक विसंगतियों का दंश झेल रहे हैं । ऐसे में ठंडी हवा के झौंके की तरह 'ऑल इज़ वेल' वाले  फिल्म अभिनेता आमिर खान ने चंदेरी आकर बुनकरों को उत्साहित किया है । सुखद बात है कि आज आमिर के बहाने ही सही चंदेरी हथकरघा बस्त्रोद्योग फिर से चर्चा में है ।

       दरअसल दो साल पहले योजना आयोग ने बुनकरों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए कई कल्याण कारी कदम उठाने का फैसला लिया था । आयोग ने अन्य उत्पादों की भाँति हथकरघा वस्त्रोद्योग को बढ़ावा देने एवं उसके प्रचार प्रसार के लिए सेलिब्रिटी का सहारा लेने का निर्णय लिया । इसी तारतम्य में आयोग की सदस्या सैयदा हमीद ने आमिर खान से सम्पर्क किया, ताकि मशहूर चंदेरी वस्त्रों की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित किया जा सके।  सैयदा हमीद की यह कोशिश रंग लाई । आमिर खान अभिनेत्री करीना के साथ अपनी फिल्म ''थ्री इडियट्स'' की पब्लिसिटी के लिए म.प्र. में अशोक नगर जिले के चंदेरी नगर जा पहुँचे । वहाँ एक बुनकर के घर में उन्होनें हथकरघे पर शटल चलाकर कपड़ा बुना । बाद में बुनकर द्वारा उस कपड़े को पूरा किया गया । फिर मुम्बई में ''थ्री इडियट्स'' के प्रोमो के दौरान फिल्मी हस्तियों ने उन वस्त्रों को धारण कर चन्देरी की कलाकारी का  प्रदर्शन भी किया ।

       यूँ तो चंदेरी का पारंम्परिक वस्त्रोद्योग काफी पुराना है । प्राचीन काल से ही राजाश्रय मिलने के कारण इसे राजसी लिबास माना जाता रहा है । राजा महाराजा,नवाब, अमीर, जागीरदार व दरबारी चंदेरी के वस्त्र पहन कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते थे । मुगलकालीन मआसिरे ''आलमगीरी'' के अनुसार 13 वीं -14 वीं ईसवी में चंदेरी का परम्परागत हथकरघा वस्त्रोद्योग अपने चरम पर था । तब वहाँ गुणवत्ता की दृष्टि से उच्च श्रेणी के सूती कपड़े बुने जाते थे । 1857 में सैनिक अधिकारी रहे आर.सी. स्टर्नडैल ने चंदेरी के वस्त्रों का बखान करते हुए लिखा है कि चंदेरी में बहुत ही उम्दा किस्म की महीन और नफीस मलमल तैयार की जाती थी, जिसमें 250 से 300 काउण्ट्स के धागों से  बुनाई होती थी, जिसकी तुलना ढाका की मलमल से की जाती थी ।

       एक जनश्रुति के अनुसार मुस्लिम संत निजामुद्दीन औलिया ने अपने कुछ बंगाली मुरीदों को जो कुशल बुनकर थे, अलाउद्दीन खिलजी के प्रकोप से बचाने के लिए चंदेरी भेज दिया था। बाद में उनमें से कई  अपने वतन लौट गये, लेकिन जो बचे, वे वहीं ढाका जैसी मलमल बनाने लगे । सोने की ज़रदोजी के काम की वजह से चंदेरी की साड़ियां अन्य क्षेत्र की साड़ियों से श्रेष्ठ मानी जाती थीं । इन पर मोहक मीनाकारी व अड्डेदार पटेला । (अलंकृत कटवर्क ) का काम भी किया जाता था । वस्त्रों में रेशम, कतान, सूत, मर्सराइज्ड, विभिन्न रंगों की जरी एवं  चमकीले तार का प्रयोग किया जाता था ।

       प्राचीन काल में चंदेरी वस्त्रों का उपयोग साड़ी, साफे दुपट्टे, लुगड़ा, दुदामि, पर्दे व हाथी के हौदों के पर्दे आदि बनाने में किया जाता था, जिसमें अमूमन मुस्लिम मोमिन व कतिया  और हिन्दू कोरी बुनाई के दक्ष कारीगर थे । उन्हें यह कला विरासत में मिली थी । धागों की कताई रंगाई से लेकर साड़ियों की बुनाई का कार्य वे स्वयं करते थे ।

       नाजुक व पारदर्शी होना ही चन्देरी के  कपड़ों की खासियत थी । कहते हैं कि एक बार चंदेरी से मुगल बादशाह अकबर को बाँस के खोल में बंद कपड़ा भेजा गया । उस कपड़े को जब बाँस के खोल से बाहर निकाला तो उससे पूरा हाथी ही ढंक गया । वीर बुंदेला शासक तो पगड़ियां भी चंदेरी में बने कपड़े की पहनते थे । उनके शासन काल में पारम्परिक चंदेरी वस्त्रों की गुणवत्ता की परख उस पर लगी शाही मुहर, जिसमें ताज एवं ताज के दोनों ओर खड़े शेर अंकित होते थे, से की जाती थी । कालांतर में चंदेरी वस्त्रों पर बादल महल दरवाजे की मुहर लगाई जाने लगी । बुनकरों की कला का जादू प्राचीन काल से लेकर आज तक धनाढय व उच्च मध्यम वर्ग के दिलों पर आज भी राज कर रहा है । आज भारत में चंदेरी वस्त्रों की अपनी विशिष्ट पहचान है । ''अशर्फी बूटी'' के नाम से विख्यात चंदेरी वस्त्रों की देश ही नहीं विदेशों में भी धूम है । भारत में चंदेरी में बने वस्त्रों को नक्कालों से बचाने की मुहिम में जी.आई. (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) मानक से संरक्षित किया जा रहा है । डब्ल्यू. टी. ओ. (वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन) का सदस्य होने के नाते वर्ष 1999 में पारित  रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत भारत ने भी जी.आई. मानक को मान्यता दी है ।

       कपड़ों की नफासत व नजाकत मुझे सदैव चंदेरी के वस्त्रों के प्रति आकर्षित करती रही। माँ की संदूक में रखी बनारसी सिल्क, कांजीवरम, व तनछुई साड़ियों के बीच सहेजकर रखी चंदेरी साड़ी का कोमल एहसास मेरी उत्सुकता को लगातार बढ़ाता रहा । मन में सदा प्रश्न उठते रहे कि कैसे बनते होंगे इतने सुंदर और महीन कपड़े ? पिछले साल जब मेरे पतिदेव का चंदेरी दौरे पर जाने का कार्यक्रम बना, तो मैं भी चंदेरी को पास से देखने का लोभ संवरण न कर सकी और चल पड़ी उनके साथ म.प्र. की प्राचीन व चेदिवंश के राजा शिशुपाल की नगरी चंदेरी की यात्रा पर ।

       चंदेरी मूलत: बुनकरों की नगरी है । विंध्याचल की पहाड़ियों के मध्य बेतवा नदी के किनारे बसा छोटा सा शहर है । सरकारी आंकड़ो की माने तो यहाँ की आबादी का साठ प्रतिशत हथकरघे के बुनकर व्यवसाय से जुड़ा है । ऐतिहासिक दृष्टि से समृध्दता व वैभव से परिपूर्ण चंदेरी की गौरवगाथा भी कम रोचक नहीं है । चंदेरी के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों को देखने के पश्चात घूमते-घूमते जब हम एक बुनकर के घर पहुँचे तो वास्तविकता को कल्पना से कहीं भिन्न पाया । वहाँ हमने छोटे से कमरे में पसीने से लथपथ एक व्यक्ति को देखा, जो बल्ब की मध्दिम रोशनी में हथकरघे पर बैठकर साड़ी बुन रहा था । यह वही व्यक्ति था, जिसे कुछ अरसा पूर्व परम्परागत चंदेरी के कुशल कारीगर के रूप में राष्ट्रपति सम्मान से नवाजा गया था। उसका नाम है श्री तुलसीराम । तुलसीराम का परिवार चंदेरी का एकमात्र ऐसा परिवार है, जहाँ उसके माता-पिता अब भी वस्त्र बुनाई का अति प्राचीन 'नालफेरमा करघा' उपयोग में लाते  हैं । तुलसीराम के बूढ़े माता पिता की आयु 90 वर्ष पार कर चुकी है। हमने उन्हें नालफेरमा करघे पर बिना चश्मे के रंगीन धागों के शटल को ताने से गुजार कर तत्परता से थोड़ी ही देर में साड़ी की सुंदर बूटी व किनारी निकालते देखा, जो  कम काबिले तारीफ नहीं है। श्री तुलसी राम ने हमें बताया कि उत्कृष्ट मोटिफयुक्त एक साड़ी तैयार करने में कई हफ्ते लग जाते हैं, जिसका मेहनताना मात्र दो हजार ही मिल पाता है । कच्चे माल की निरंतर बढ़ती कीमतों और मुनाफाखोर बिचौलियों के कारण आज परम्परागत लूम बंद होते जा रहे हैं ।

       चन्देरी में अब नए मैकेनिकल तेजी से बुनाई करने वाले लूम प्रचलन में आ चुके हैं । परिवर्तन के इस दौर में बुनाई के तौर तरीकों, औजारों, तकनीक एवं सूत के संयोजन में बहुत बदलाव आया है । सन् 1890 तक इस उद्योग में हाथ कते सूत का उपयोग होता था अब मजबूती की दृष्टि से मिल के धागों ने इसका स्थान ले लिया है । सिंधिया शासकों द्वारा चंदेरी के बुनकरों को आर्थिक सुदृढ़ता प्रदान करने हेतु सन् 1910 में टेक्सटाइल ट्रेनिंग सेंटर स्थापित कर चंदेरी की कला को संरक्षित करने का प्रयास किया गया । वर्ष 1925 में सर्वप्रथम नवीन तकनीक के माध्यम से बार्डर के साथ -साथ जरी का उपयोग बूटी बनाने में किया जाने लगा । वर्ष 1940 में पहली बार सूत की जगह रेशम का उपयोग हुआ ।

       पूर्व में दो बुनकरों द्वारा हस्तचलित थ्रो शटल पध्दति वाले नालफेरमा करघे का स्थान अब फ्लाई शटल पध्दति वाले लूम ने ले लिया, जिसमें एक ही बुनकर अपने हाथ व पैरों से करघे को संचालित करता है । इस प्रकार पूर्व में जहाँ पुरानी पध्दति थ्रो शटल पध्दति (नाल फेरमा)में एक ही करघे पर दो बुनकरों को लगाया जाता था, वहीं फ्लाई शटल पध्दति से अकेला बुनकर करघे को संचालित करने लगा । साथ ही नई प्रणाली में जैकार्ड एवं डाबी के उपयोग से बार्डर भी आसानी से बनाया जाने लगा है। चंदेरी साड़ियों में रंगो का प्रयोग 50 वर्ष से ज्यादा पुराना नहीं है । पूर्व में चंदेरी साड़ियाँ केवल बिना रंगों वाली सूत से तैयार की जाती थी । शनै: - शनै: साड़ी के सफेद बेस पर रंगीन बार्डर बनाया जाने लगा । प्रारंभ में फूलों से प्राप्त प्राकृतिक रंगो का ही इस्तेमाल किया जाता था, जिसमें केवल बुने कपड़े ही रंगे जाते थे । आज अधिकांश बुनकर बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए पक्के रासायनिक रंगों का प्रयोग कर रहे हैं।

       सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रभाव के फलस्वरूप कम्प्यूटर द्वारा नाना प्रकार की ज्यामितीय डिजाईन व उनका विभिन्न प्रकार से संयोजन ने राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय बाजार की मांग बढ़ा दी है, जिसके प्रभाव स्वरूप चंदेरी साड़ियों में भी विविधता देखी जा सकती है । जहाँ कभी चंदेरी में केवल हाथ कते सूती धागों से ही काम किया जाता था, वहीं अब मजबूती व सुंदरता के लिहाज से मिल के सूती धागों के साथ - साथ रेशम का भी खूब उपयोग किया जाने लगा है । बाजार की मांग को देखते हुए अब कुछ कुछ बनारसी पैटर्न का प्रभाव भी चंदेरी साड़ियों में परिलक्षित होने लगा है । ताने एवं बाने में सिल्क का प्रयोग कर बनारसी, तनछुई जैसा भारी एवं कीमती कपड़ा भी अब यहाँ तैयार किया जाने लगा है ।

       वर्ष 2008 - 2009 में किए गये सरकारी सर्वे के अनुसार चंदेरी में सहकारी व गैरसहकारी क्षेत्रों में हथकरघों की संख्या 3924 थीै जिनमें से 3572 करघे चालू अवस्था में पाये गये । इन करघों से लगभग 10716लोगों को  रोजगार मिल रहा हैं। चंदेरी में हथकरघा वस्त्रोद्योग के क्षेत्र में कार्य कर रहे स्वसहायता समूहों, सहकारी समितियों, स्वयं सेवी संगठनों की संख्या 93 है जिनमें 56  मास्टर वीवर्स हैं । तब इस व्यवसाय का सालाना टर्न ओवर  22 करोड़ रूपये आंका गया था 

       योजना आयोग की अनुशंसा पर भारत सरकार ने चंदेरी हथकरघा वस्त्रोद्योग के विकास हेतु लगभग पच्चीस  करोड़ रूपये की परियोजना को मंजूरी दी है । इस परियोजना के तहत म.प्र. सरकार ने 4.19 हेक्टेयर भूमि प्रदान की है । परियोजना में  आवास कार्यशाला पहुँच मार्गो का निर्माण किया जावेगा ।  पीने का पानी व व्यवसाय के लिए पर्याप्त पानी के लिए राजघाट बांध से 11.5 किलोमीटर लम्बी पाइप लाइन बिछाई जावेगी । साथ ही कच्चे माल के लिए बैंक स्थापित करना व मार्केटिंग आदि जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी म.प्र. सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है ।

       काल चक्र तेजी से घूम रहा है । बदजुबान शिशुपाल के कदाचरण से शापित नगरी चंदेरी के शाप मुक्ति का समय आ चुका है । परिवर्तन के इस दौर मे चंदेरी के बुनकर तथा अन्य व्यवसायों में जुटे उद्यमी नई पहचान के फलस्वरूप अपने प्राचीन वैभव, समृध्दि और संपन्नता को पुन: हासिल करेंगे । आमिर के बहाने ही सही अब देश और विदेश का नव धनाढय वर्ग चंदेरी की तरफ फिर से आकर्षित होने लगा है । कई साल पहले म.प्र. सरकार ने दिल्ली के पांच सितारा होटल 'ताज' में चंदेरी वस्त्रों से बने परिधानों पर केन्द्रित फैशन शो कर अपने दायित्व की इतिश्री मान ली थी । अब आमिर खान के मुम्बई चंदेरी शो के बाद म.प्र. सरकार को चाहिए कि वो देश के अन्य मेट्रोपोलिटन टाउन तथा विदेशों में चंदेरी फैशन शो आयोजित करे ताकि चंदेरी की शोहरत और समृध्दि को वापस लाया जा सके ।

इति।

आलेख -श्रीमती राजबाला अरोरा,

ग्वालियर

 

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

भारत सरकार द्वारा ज्योतिषीय चिन्हों पर कल 12 विशेष डाक टिकट जारी किये जाएंगे

भारत सरकार द्वारा ज्योतिषीय चिन्हों पर कल 12 विशेष डाक टिकट जारी किये जाएंगे

डाक विभाग कल ज्योतिषीस राशिचक्र पर विशेष डाक टिकट जारी कर रहे हैं। डाक विभाग राशिचक्र संकेतों पर टिकटों के सेट के साथ-साथ जो डिजाइनें शामिल किया  है, उनकी अवधारणाएं भारतीय लोक कलाओं से ली गई हैं। इसमें 4 प्रतुख रंगों में 12 राशियों के संकेत दिए गए हैं। ये चार रंग पृथ्वी, वायु, अग्नि तथा जल के प्रतीक हैं।

       ये डाक टिकट 15 अप्रैल, 2010 से समूचे देश में डाक टिकट ब्यूरो प्राप्त किए जा सकेंगे। डाक विभाग भारत की समृध्द सांस्कृतिक धरोहर की झांकी प्रस्तुत करने के लिए समय-समय पर ऐसे विशेष डाक टिकटों को जारी करता रहता है।