सूचना का अधिकार बना मददगार- हक के लिए लड़िए राजेश की तरह
Jun 11, 09:22 pm
जागरण याहू इण्डिया से साभार
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। अगर आप फ्लैट खरीदने की योजना बना रहे हैं तो सबसे पहले सूचना के अधिकार कानून [आरटीआई एक्ट] के जरिए यह जान लें कि वह वैध है या अवैध। दिल्ली के राजेश मेहता ने ऐसा नहीं किया और उन्हें तमाम मुसीबतें झेलनी पड़ी।
हालांकि अपने बिल्डर की गतिविधियों पर शक होने पर जब राजेश ने उसके खिलाफ जंग छेड़ी तो सूचना के अधिकार कानून ने ही उन्हें जीत की राह दिखाई। उनके इस कारनामे के कारण 'नेशनल आरटीआई अवार्ड्स' की नागरिक श्रेणी में उनका नामांकन हुआ है।
राजेश ने 2005 में दिल्ली के बुराड़ी इलाके में हूवर अपार्टमेंट्स में दो बेडरूम का फ्लैट खरीदा। लेकिन उसका कब्जा लेने से कुछ दिन पहले उन्हें पता चला कि अपार्टमेंट का बिल्डर फ्लैटों में भूमिगत जल की आपूर्ति कर रहा है, जबकि सप्लाई दिल्ली जल बोर्ड [डीजेबी] को करनी थी। राजेश को शक हुआ। उन्होंने बोर्ड में पानी के कनेक्शन के लिए आवेदन किया, तो उनसे हूवर अपार्टमेंट्स को मंजूरी दिए जाने संबंधी दस्तावेज मांगे गए। राजेश समझ गए कि कुछ गड़बड़ है। तब उन्होंने सूचना के अधिकार कानून के तहत आवेदन देकर दिल्ली म्यूनिसिपल कार्पोरेशन से हूवर अपार्टमेंट्स की वैधता की जानकारी मांगी।
वहां से उन्हें जो जानकारी मिली, उसके मुताबिक हूवर अपार्टमेंट्स लाल डोरा की जमीन पर अवैध रूप से बना था। उन्होंने आरटीआई एक्ट के तहत एक और आवेदन जमा किया तो पता चला कि कार्पोरेशन उस अपार्टमेंट को गिराने का आदेश जारी कर चुका है। यह भी पता चला कि बिल्डर पीके गुप्ता पर 2003 में पानी चोरी करने का मामला दर्ज हुआ था और उस पर डीजेबी के 23 लाख रुपये बकाया हैं।
इसके बाद राजेश ने लोन देने वाले इंडियन ओवरसीज बैंक को निशाने पर लिया। उन्होंने बैंक से पूछा कि एक अवैध बिल्डिंग में फ्लैट खरीदने के लिए लोन कैसे पास किए गए? राजेश के इस अभियान में उनके अपार्टमेंट के और भी फ्लैटधारक जुड़ गए थे। उनकी एकजुटता से परेशान बिल्डर ने राजेश को धमकी भी दी, लेकिन वे डिगे नहीं।
पुलिस ने भी शुरू में मामला दर्ज करने में आनाकानी की, लेकिन जब राजेश मय सबूतों के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकार के पास पहुंचे तो उम्मीद की किरण चमकी। बिल्डर के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। मेहता कहते हैं, 'समय पर कार्रवाई न करके दिल्ली म्यूनिसिपल कार्पोरेशन, सरकारी बैंक और पुलिस ने अवैध फ्लैट बेचने में बिल्डर की मदद की, लेकिन आरटीआई एक्ट ने इस साठगांठ को उजागर कर दिया।'
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