सोमवार, 22 जून 2009

आवारा मसीहा पर समीक्षा गोष्ठी आयोजित (दैनिक मध्‍यराज्‍य)

आवारा मसीहा पर समीक्षा गोष्ठी आयोजित

मुरेना 21 जून 09 (दैनिक मध्‍यराज्‍य)  मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश भोपाल द्वारा संचालित पाठक मंच योजना के अन्तर्गत विगत दिवस विष्णुप्रभार की कृति आवारा समीहा समीक्षा के लिये प्रस्तुत की गयी। अवारा समीहा का सक्षित परिचय प्रस्तुत करते हुये। पाठक मंच क ी मुरैना ईकाई संयोजक देवेन्द्र तोमर ने कहा  कि विष्णुप्रभाकर की कृति

आवारा समीहा सरदचन्द्र चटर्जी की प्रमाणीत जीवनी है जिसमें सरदबाबू के अनेक अनछूऐ पहलू उदघाटित हुये है। महातमा गांधी पर लिखे गये शरद बाबू के लेख से दो बाते स्पष्ट होती है प्रथम तो दोनो के बीच विरोधा भाष की अवधरणा र्निरमुल  साबित होती है। दूसरा यहस्पष्ट होता है कि दोनो के बीच विरोध होते हुये भी एक स्नेह अपनत्व और संम्मान की भावना थी। इसी प्रकार चाय वह शरतजी का  कवि रूप हो या फिर उनके वैचारिंक जीवन के विवाद ग्रस्थ पहलु उपन्यास में एक-एक चीज परत-दर-परत खुलती चली जाती है।

इसी क्रम में भगतवती प्रसाद कुलक्षेट ने कहा की विष्णुप्रभाकर ने अथक परिश्रम करके शरत चन्द्र की जीवनी को कृति का जैसा रूप दिया है। उसके लिये वे कोटिस बधाई के पात्र है। आवारा मसीहा कृति के शीर्षक विजोड नायक के चरित्र के अनुकूल है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी शरत जी के जीवन के विविध पहलू एक साथ दूसरी जगह मिलना  न केवल कठिन बिल्क असंभव है।

विक्रांत तोमर का मानना था कि साहित्य,संस्कृति और कला के  प्रति  अगाध प्रेम शरत जी को विरासत में मिला था उनके पिता मोतीलाल जी यायावरी, प्रवृति के स्वप्नदर्शी व्यक्ति थे। उन्होंने भी कही बधकर जीवन जीना पसंद नहीं किया।

श्रीमती साधना पाठक ने कहा कि कृति में शरत के बचपन के प्रसंग और उनके प्रसंगो के युवा और प्रोढ़ होने की कथा को विष्णु जी ने बडे मार्मिक ढ़ग से तथा अत्यंत सटीक रूप में प्रस्तुत किया है। मसलन धीरू को मारने पर शरत को मां के हाथों पिटना पड़ा और पिटने के बाद भी शरत ने शैशव की इस संगिनी को आधार बनाकर अपने कई उपन्यासों की नायिकाओं का सृजन किया। विष्णु जी तो यह तक लिखते है कि देवदास की पारो,बड़ी दीदी की माधवी और श्रीकांत की राजलक्ष्मी यह सब धीरू का विकसित और  विराट रूप है।

जी.एन. निगम ने कहा कि उपन्यास कही कही बहुत मार्मिक बन पडा है। कृति के अनेक पहलू पाठक को जीवन जीने की प्रेरणा देते है। विशेषांक तोमर का मानना था कि शरत बाबू ने संस्कारों में मिले जीवन मूल्यों को सहेज कर रखते हुए जिन मौलिक सिद्धान्तों की स्थापना की वे उनके प्रगतिशील होने का प्रमाण देते है। गंगाशरण शर्मा का कहना था कि शरतचंन्द्र बागला कथाकार होकर भी सर्वत्र भारतीयता में रचे बसे रचनाकार दिखाई देते है। समीक्षा गोष्ठी की अध्यक्षता  गंगाशरण  शर्मा तथा  संचालन नरेश श्रीवास्तव ने किया।

 

कोई टिप्पणी नहीं :