गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

विश्‍व निशक्‍त दिवस पर विशेष आलेख: नि:शक्तों को मिले न्याय व सम्मान

विश्‍व निशक्‍त दिवस पर विशेष आलेख: नि:शक्तों को मिले न्याय व सम्मान

श्रीमती राजबाला

·           लेखिका श्रीमती राजबाला, एम.एस.सी., बी.जे.सी., स्पेशल एजूकेशन क्षेत्र की वालंटियर हैं ।

       हाल ही में एक सज्जन हमारे घर पधारे । उनके साथ उनकी 4 साल की प्यारी सी बिटिया थी । मैने सौजन्यतावश आदर सत्कार के पश्चात् छोटी सी बच्ची से उसका नाम जानना चाहा । कई बार जब मेरा प्रयास बेकार गया तो उन सज्जन ने कहा कि अभी यह छोटी है, कुछ ही शब्द बोलती है । मैने प्यार से उस बच्ची से पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है तो उसने भी चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया लाए बिना मेरे ऊपर प्रश्न जड़ दिया कि तुम्हारा नाम क्या है ? मैं अचकचा गई। उसे मैने खेलने के लिए टैडी - बीयर खिलौना दिया, जिसे उसने फेंक दिया, लेकिन वह चलते पंखे को लगातार देख रही थी । शायद वह आटिज्म से प्रभावित थी। फिर मैनें उसके माता पिता से कहा कि मुझे इसके व्यवहार में कुछ अलग दिख रहा है अत: हो सके तो आप इसे चाइल्ड स्पेशलिस्ट के पास ले जाएं, पर शायद उन्हें मेरी बात अच्छी नहीं लगी । इस तरह की कई घटनाओं को हम अपने आस - पास देखते हैं, व प्राय: प्राय: नजरअंदाज भी कर देते हैं ।

       कई बार हम ऐसे व्यक्तियों को देखते हैं, जो अपने असामान्य व्यवहार के कारण सहज ही अलग पहचाने जा सकते हैं । सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा उनका असामान्य व्यवहार लोगों की नजरों में कौतूहल का सबब बन जाता है। उनकी शारीरिक एवं मानसिक विकृति, को देखकर लोगों के मन में दया या घृणा का भाव ही उपजता है । यहाँ तक कि उससे दूर रहने का उपक्रम भी करते हैं, परन्तु उनके प्रति स्नेह भाव नहीं रखते,जिसकी उन्हे सख्त जरूरत है । सच तो यह है कि वे भी उसी समाज का एक हिस्सा हैं । उन्हें भी समाज में उसी अधिकार एवं सम्मान से जीने का हक है, जितना सामान्य जन को । भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में संवैधानिक कानून भी उनके हकों की पैरवी करता है । राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अनेक स्वयंसेवी संगठन उनके अधिकारों एवं न्याय के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य कर रही है । पिछले वर्ष 3 दिसम्बर 2008 यानि 'विश्व विकलांगता दिवस' पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने विकलांगो के अधिकारों की वकालत करते हुए ''न्याय एवं सम्मान सबके लिए '' का नारा दिया, साथ ही विकलांगों के आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों की खुलकर वकालत की ।

       सिनेमा जगत में भी कई बार इन विषयों को लेकर फिल्म बनाई गई, जो काफी चर्चित हुई एवं पुरस्कृत भी की गई । आमिर खान द्वारा निर्देशित 'तारे जमीं पर ' में 'डिस्लेक्सिया ' यानि लर्निंग डिसआर्डर से प्रभावित बच्चों को केन्द्र में रखकर फिल्म बनी, जिसमें उसके पढ़ने लिखने के दौरान आने वाली समस्या, उसके पढ़े लिखे अभिभावक की अज्ञानता एवं बच्चे में मौजूद क्षमताओं को ढूँढकर उसके लिए नया रास्ता प्रशस्त करना आदि पहलुओं को उठाया गया ।  अमिताभ बच्चन द्वारा अभिनीत फिल्म ब्लैक में भी इसी प्रकार के एक अन्य विषय पर  फिल्म बनी । जिसके कारण लोग इन समस्याओं पर सोचने को मजबूर हो गये  । हाल ही में नि:शक्तता को केन्द्रित कर 'प्रोगेरिया' से पीड़ित व्यक्ति पर 'पा ' फिल्म का फिल्मांकन किया गया है । कहने का तात्पर्य यह है कि सिनेमा भी नि:शक्तजनों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने का एक सशक्त माध्यम  बन रहा है।

विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा जारी रिर्पोटों से कई चौंकाने वाले आकड़े मिले हैं, जिसके अनुसार विश्व में    10 ऽ अर्थात 650 मिलियन लोग नि:शक्तता के शिकार हैं । औद्योगिक रूप से समृध्द देशों में लगभग 50  विकलांग व्यक्ति बेरोजगार हैं जबकि विकासशील देशों में तो स्थिति और भी दयनीय है जहाँ इनका आंकड़ा 80 से 90  है । यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों के 90  विकलांग बच्चे स्कूल ही नहीं जाते।

       80ऽ विकलांग गरीब देशों से हैं । भारत में भी इनका आंकड़ा कम चौंकाने वाला नहीं ह, देश में 15 लाख से भी अधिक व्यक्ति विकलांगता से ग्रसित हैं जिसका 3 प्रतिशत  मानसिक मंदबुध्दि का शिकार हैं और आटिज्म अर्थात स्नायु विकार की समस्या से ग्रसितों की भी बड़ी संख्या  है।

       नि:शक्तता यानि विकलांगता क्या है ? इसका व्यक्ति के सामाजिक जीवन पर क्या असर पड़ता है  नि:शक्तता के प्रकार कारणों व निदान पर चर्चा करना मेरा मूल एवं अपेक्षित विषय है। शरीर में 40 प्रतिशत विकलांगता आने पर व्यक्ति नि:शक्तता की श्रेणी में आ जाता है।

आमतौर पर मानसिक व शारीरिक विकृति के कारण प्रभावित व्यक्ति को व्यवहार जनित समस्याओं या फिर चलने फिरने एवं भाषागत समस्याओं से जूझना पड़ता है, जिसके कारण जानकारी के अभाव में लोग उन्हें पागल करार देते हैं । उन्हें समझने के बजाय उनसे दूर रहने का प्रयास करते हैं । विडम्बना यह है कि जागरूकता की कमी के चलते नि:शक्तता से प्रभावित व्यक्ति के परिवार भी उसके प्रति बेपरवाह होते हैं और उन्हें भाग्य भरोसे छोड़ देते हैं यह बेहद ही निराशाजनक एवं दु:खदाई पहलू है । इन पर गौर करने की नितान्त आवश्यकता है । गौरतलब है कि भारत सरकार भी इन नि:शक्तजनों के उत्थान के लिए सतत् प्रयासरत है। इस दिशा में भारत सरकार के अधीन सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय में पारित 99 एक्ट के तहत 'राष्ट्रीय न्यास ' समिति गठित की गई है जो मुख्यत: मानसिक मंदता (मेंटल रिटार्डेशन), प्रमस्तिष्क अंगघात (सेरेबल पालसी), स्वपरायणता यानि आटिज्म एवं बहुनि:शक्तता इन चार प्रकार की समस्याओं से ग्रसित व्यक्तियों के अधिकार, सुरक्षा एवं पुनर्वास संबंधी मामलों के क्रियान्वयन का परिपालन करती है साथ ही नि:शक्तजनों के लिए बाधारहित वातावरण सुनिश्चित करने के कदम भी उठा रही हैं । इस दिशा में राष्ट्रीय न्यास की पहल पर रेल्वे स्टेशनों, स्कूलों, दफ्तरों व सार्वजनिक स्थलों पर सीढ़ियों के अलावा रैम्प बनवाने, प्रतीक्षालयों व अन्य स्थानों पर उनके बैठने के लिए विशेष प्रकार की कुर्सियों की व्यवस्था करने एवं प्रसाधन गृहों में नि:शक्तजनों के लिए विशेष प्रकार के टॉयलेट की व्यवस्था करने के स्थानीय प्रशासन द्वारा निर्देश जारी किये गये हैं । ताकि ऐसे व्यक्ति बाधा मुक्त वातावरण में बिना किसी असुविधा के अपने कार्यों को अंजाम दे सकें ।

       राष्ट्रीय न्यास द्वारा इन नि:शक्तजनों के सामाजिक सुरक्षा एवं पुर्नवास की दिशा में 'निरामया ' स्वास्थ्य बीमा योजना लागू की गई है जिसमें इनके इलाज हेतु एक लाख रूपये प्रतिवर्ष उपलब्ध कराने का प्रावधान है ।

लीगल गार्जियनशिप -- राष्ट्रीय न्यास उन नि:शक्त व्यक्तियों के माता पिता की मृत्यु की दशा में देखभाल और संरक्षण के लिए उपायो का संप्रवर्तन करती है साथ ही उन नि:शक्तजनों के लिए जिन्हें संरक्षण की आवश्यकता है संरक्षक और न्यासी नियुक्त करने की प्रक्रिया तय करती है ।

मानसिक मंदता - मानसिक मंदता का प्रभाव बच्चों में जन्म से दिखाई देता है । उसके गामक विकास अर्थात चलना, खड़े होना आदि एवं भाषा विकास की प्रक्रिया 'डेवलॉपमेंटल माइल स्टोन ' के अनुसार न होकर धीमी होती है । सरल शब्दों में कहें तो सामान्य तौर पर जब बच्चा दो से चार माह का होता हे तो वह करवट लेना, मुस्कराना, ऑंखे घुमाना शुरू कर देता है । चार से आठ माह का बच्चा सिर स्थिर रखना,बैठना, व बाद में घुटनों के बल चलना प्रारंभ कर देता है । कुछ अनर्थक अक्षरों (बैबलिंग) का उच्चारण करता है । दो से चार साल का होने पर बच्चा छोटे छोटे अर्थपूर्ण वाक्यों का प्रयोग शुरू कर देता है । चाल में स्थिरता आने लगती है । लेकिन सामान्य बच्चे के उलट मेंटली रिटार्डेड बच्चे में उपरोक्त गतिविधियाँ डेवलपमेंटल माइल स्टोन के अनुसार न होकर उसके गामक एवं भाषा विकास की प्रक्रिया धीमी होती है । इस प्रकार ज्यों -ज्यों बच्चा बड़ा होता है उसका व्यवहार व बौध्दिक विकास अपने से कम उम्र के बच्चे जैसा होता है । 15 वर्ष की उम्र के मानसिक मंदबुध्दि का बौध्दिक स्तर (आई क्यू लेवल) अपने से 5 वर्ष छोटे सामान्य बच्चे जैसा होगा । यह आई क्यू लेवेल बच्चे में आई समस्या की तीव्रता पर निर्भर करता है ऐसे में बच्चा भाषा, ज्ञान, संवाद व्यवहार आदि कई क्षेत्रों में सामन्जस्य नहीं बैठा पाता जिसके कारण वह अपने आप को सामाजिक वातावरण के अयोग्य पाता है ।

       मानसिक मंदता कई प्रकार की होती है जिसमें 'डाउन सिंड्रोम' प्रमुख है जो क्रोमोजोम के जीन में हुए बदलाव के कारण होती है । आमतौर पर बच्चा जब पैदा होते ही न रोए तो मस्तिष्क में आक्सीजन का प्रवाह देर से होने के कारण या कम आक्सीजन पहुँचने के कारण मानसिक मंदता का खतरा अधिक बड़ जाता है। टाक्सिक दवाईयों के असर से भी बच्चे में मानसिक मंदता हो सकती है।

इसका निदान मुख्य रूप से शीघ्र हस्तक्षेप एवं शीघ्र उपचार है । उसके भाषा ज्ञान व बौध्दिक स्तर को ध्यान में रखकर क्षेत्र विशेषज्ञ की मदद से उसके लिए टीचिंग प्रोग्राम तय कर, तदनुसार ट्रेनिंग देकर उसके जीवन को सुधारा जा सकता है ।

      आटिज्म यानि स्वपरायणता मानसिक मंदता से भिन्न है । आटिस्टिक बच्चे में विकास की प्रक्रिया धीमी न होकर अलग प्रकार अर्थात डेवियेंट होती है । आटिज्म से प्रभावित बच्चे की शारीरिक बनावट सामान्य होती है । प्रत्यक्षतौर पर उनमें विकलांगता के लक्षण तो दिखाई नहीं देते हैं,इसलिए इस प्रकार के बच्चों में पाई जाने वाली विकृति को अदृश्य विकृति भी कह सकते हैं। ऐसे बच्चों को हम उनके असामान्य व्यवहार के आधार पर ही उन्हें पहचान सकते हैं।

·                     ऑंख से ऑंख मिलाकर न देखना या बात करना ।

·                     अपने नाम से पुकारने पर किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त न करना ।

·                     इकोलेलिक होना यानि शब्द या वाक्य बार -बार दुहराना ।

·                     प्रश्नों के प्रतिउत्तर में प्रश्न करना ।

·                     सीटी या हवाई जहाज की आवाज से डर जाना ।

·                     घूमती वस्तु की ओर आकर्षित होना ।

·                     व्यवस्था में किसी भी प्रकार का बदलाव पसन्द न करना ।

·                     अपने आपको या दूसरों को घायल की प्रवृति ।

       उपरोक्त व्यवहार आटिज्म के लक्षण प्रकट करते हैं ।

       आटिज्म कोई बीमारी नहीं अपितु मस्तिष्क में उत्पन्न स्नायु विकार (न्यूरोमोटर डिसआर्डर) के कारण आई एक जीवन पर्यन्त समस्या है, जिसके लक्षण बच्चे के पैदा होने के तीन साल बाद ही पता लगते हैं । आटिज्म की पहचान सबसे पहले 1943 में कॉनर द्वारा कर ली गई थी । तबसे लेकर अब तक तमाम रिसर्चों के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि लड़कियों की अपेक्षा लड़के आटिज्म की समस्या से ज्यादा प्रभावित होते हैं । आटिज्म से प्रभावित लड़के व लड़कियों का अनुपात क्रमश: 4:1  है । आटिज्म का इलाज लाइलाज है लेकिन शीघ्र हस्तक्षेप यानि शीघ्र पहचान तत्पश्चात शीघ्र उपचार (थेरेपी) एवं स्ट्रक्चर्ड ट्रेनिंग प्रोग्राम ही प्रभावी इलाज है ।

प्रमस्तिष्क पक्षाघात - मस्तिष्क के प्रमुख भाग प्रमस्तिष्क (सेरिब्रम) जो शरीर के मांसपेशियों पर नियंत्रण रखने का कार्य भी करता है, उसमें किसी भी प्रकार की आई विकृति से बच्चे के शरीर में जकड़ता आ जाती है जिसे प्रमस्तिष्क अंगघात कहा जाता है । उसे चलने फिरने में कठिनाई आती है । अगर मनुष्य के मुख के किसी भी भाग में स्पास्टिसिटी यानि जकड़न हो तो बोलने में भी उसे दिक्कत का सामना करना पड़ता है । कभी -कभी तो सेरेब्रल पालसी का प्रभाव पूरे शरीर पर भी पड़ता है जिसके कारण जीवन भर दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है । प्रमस्तिष्क पक्षाघात के लक्षण जन्म के तीन साल के भीतर -भीतर दिखाई देने लगते हैं । इस प्रकार की समस्या एक बार होने के बाद जीवन पर्यन्त बनी रहती है लेकिन इसमे कोई बढ़ोत्तरी नहीं होती है । इस प्रकार की समस्या को लोग मांसपेशियों या तंत्र (नर्व्स) में आई खराबी का इसका कारण समझ लेते हैं जबकि ऐसा नहीं है इसका सीधा संबंध मस्तिष्क से है। आम तौर पर ऐसे व्यक्तियों का मानसिक विकास तो सामान्य होता है लेकिन शारीरिक विकलांगता के कारण अपने दैनिक कार्यों के निर्वहन में परेशानी होती है ।

       सेरेब्रल पालसी से ग्रस्त बच्चे का यूँ तो कोई माकूल इलाज तो नहीं है लेकिन अन्य समस्याओं की तरह शीघ्र हस्तक्षेप (अर्ली इंटरवेंशन ) एवं शीघ्र उपचार एवं फिजिकल एवं एक्यूपेशनल थेरैपी, स्पीच, थेरैपी, आर्थोटिक डिवाइस की मदद से बच्चे की क्षमताओं में सुधार लाया जा सकता है ।

              इस रैली में आए विशेषज्ञों ने राष्ट्रीय न्यास द्वारा मानसिक मंदता, आटिज्म, बहु नि:शक्तता एवं मानसिक पक्षाघात इन चार प्रकार की समस्याओं से प्रभावितों के लिए चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी दी । उनके लिए बाधामुक्त वातावरण तैयार करने में जन भागीदारी सुनिश्चित करने की अपील की ।

बहुनि:शक्तता जैसा कि  नाम से ही जाहिर है कि इस प्रकार की समस्या से ग्रसित व्यक्ति एक से अधिक प्रकार की नि:शक्तता से प्रभावित होता है । जिसके कारण उसे समझने, सीखने एवं आसपास के वातावरण में अपने आपको संयोजित करने में अत्यन्त कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है । बच्चे को सीखने एवं जनेरेलाइजेशन करने में भी दिक्कत आ सकती है । उदाहरण के तौर पर अगर हम इस समस्या से ग्रसित बच्चे को रंगों की पहचान कराना चाहे तो उसे अलग -अलग वस्तुओं में मौजूद रंगों की पहचान कराना बेहद जटिल है। ऐसे बच्चे में समझने की क्षमता का आंकलन करना आसान नहीं है । कभी -कभी अप्रासंगिक संवाद के चलते हम उसे मेंटली रिटार्डेड समझने की भूल कर बैठते हैं । बहु नि:शक्तता से ग्रसित बच्चे में मानसिक मंदता, आटिज्म, बधिरता एवं अंधता में से दो या दो से अधिक समस्या का सम्मिश्रण हो सकता है । जैसे बधिरांधता यानि बधिरता के साथ -साथ अंधापन । मानसिक मंदता के साथ बधिरांधता का भी प्रभाव देखा जा सकता है । प्रमस्तिष्क अंगघात के साथ मानसिक मंदता अथवा आटिज्म या फिर दोनो ही पाए जा सकते हैं । इन समस्याओं के मूल में कोई एक कारण नहीं होता ।

       इस समस्या से निपटने का एक मात्र इलाज शीघ्र हस्तक्षेप एवं शीघ्र उपचार है । जिसमें हम बच्चे को प्रारंभ से छोटे -छोटे लक्ष्य तय कर धीरे -धीरे उसके सीखने की क्षमता को बढ़ा सकते हैं । साथ ही फिजियोथैरेपी, एक्यूपेशनल थैरेपी एवं स्पीच थैरेपी की मदद से और स्ट्रक्चर्ड टीचिंग यानि सुनियोजित शिक्षण से बच्चे के सीखने की प्रक्रिया में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं ।

मध्यप्रदेश सरकार की सराहनीय पहल

मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2006 में महर्षि दधिचि की जयन्ती के अवसर पर नि:शक्तजनों के लिये 2006 से 2009 तक तीन वर्षीय 'उत्थान' अभियान चलाया है इस अभियान में  नि:शक्त व्यक्तियों की पहचान कर उनकी जरूरतों का आंकलन करना व उनके क्रांतिकारी अधिकारों एवं पुनर्वास की दिशा में अनुकूल वातावरण निर्मित करने की पहल थी ।

मध्यप्रदेश सरकार ने नि:शक्तजनों को नियमित मासिक  वृति 500 रूपये प्रतिमाह देने के साथ -साथ आवश्यक उपकरण, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार स्थापना में सरकारी हिस्सेदारी को रेखांकित कर नि:शक्तों के पुर्नवास की दिशा में सराहनीय कार्य किया है ।

 

बढ़ते कदम 

राष्ट्रीय न्यास के सौजन्य से पूरे देश में बाल दिवस यानि 14 नवम्बर से दिल्ली से प्रारंभ 'बढ़ते कदम 'जागरूकता रैली निकाली । जिसमें छ: सदस्यों वाली चार टीमों द्वारा पूरे देश में अलग -अलग राज्यों में जागरूकता विस्तार के मकसद से लोगों को राष्ट्रीय न्यास की नि:शक्तजनों के लिए अधिक से अधिक जानकारी देना थी । ग्वालियर में भी राष्ट्रीय न्यास की सहयोगी स्टेट नोडल एजेंसी 'रोशनी' रामकृष्ण आश्रम ग्वालियर एवं स्थानीय प्रशासन की मदद से 15 नवम्बर को विशाल जागरूकता रैली 'बढ़ते कदम' का सफलतापूर्वक आयोजन किया । रैली में बड़ी संख्या में नि:शक्तजन, उनके परिजन, स्वयंसेवी संगठनों, स्कूल कालेजों के विद्यार्थियों व गणमान्य नागरिकों ने हिस्सा लिया ।        इस रैली में आए विशेषज्ञों ने राष्ट्रीय न्यास द्वारा मानसिक मंदता, आटिज्म, बहु नि:शक्तता एवं मानसिक पक्षाघात इन चार प्रकार की समस्याओं से प्रभावितों के लिए चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी दी व उनके लिए बाधामुक्त वातावरण तैयार करने में जन भागीदारी सुनिश्चित करने की अपील की ।

 

कोई टिप्पणी नहीं :