सोमवार, 20 जुलाई 2009

किसानों ने नहर से बदली तकदीर

किसानों ने नहर से बदली तकदीर

आलेख- जे. पी. धौलपुरिया, उप संचालक, जिला जन सम्पर्क कार्यालय, शहडोल म. प्र.

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शहडोल/ काले सोने के प्रमुख उत्पादक के रूप में मशहूर शहडोल जिले के एक छोटे से आदिवासी बाहुल्य गांव महरोई ने अतीत में अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं । लेकिन इसकी शक्लों-सूरत में जितना बदलाव पिछले एक वर्ष में दिखा है, पहले शायद ही दिखा हो । अपनी शांत वादियों, हरी-भरी नैसर्गिक छटाओं के बीच बसा यह गांव तब पानी से जूझता हुआ एक मामूली सा गांव हुआ करता था, पर नहर बनने के बाद इस गांव का चेहरा तो बदला ही, चरित्र भी बदल गया है । खेतों के लिए पानी का इंतजाम हो जाने के बाद वह नये सत्ता केन्द्र के रूप में उभरा है ।

       कभी महरोई पानी के लिए संघर्ष करते लोगों का गांव माना जाता था । वहां के खेतों को जैसे बरसात की नजर लग गई थी, तो उनके खेत अवर्षा की भेंट चढ़ गए । खेती सिमट गई थी। आखिरकार मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका परियोजना शहडोल के प्रतिनिधियों ने इस गांव का दौरा किया । प्रतिनिधियों ने गांव के पास एक पहाड़ी पर बने नैसर्गिक जल स्त्रोत को देखा, जिसका पानी गांव की ओर मुड़े महादेवन नाले में गिरता था । बस  फिर क्या था, प्रतिनिधियों ने किसानों को श्रमदान से गांव तक नहर बनाने के लिए प्रेरित किया, ताकि नाले के बेकार बहने वाले पानी को रोककर उसके जल का सालभर इस्तेमाल किया जा सके । किसानों ने श्रमदान करके नाले से गांव तक कच्ची नहर बना ली ।

कच्ची नहर से गांव तक पानी तो पहुंच गया, पर कच्ची मिट्टी से पानी रिस भी जाता था। किसानों के श्रमदान से मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत शहडोल श्री पी. के. श्रीवास्तव इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने राज्य सरकार की ओर से रोजगार गारन्टी योजना के तहत नाले से गांव तक पक्की नहर बनवाने 14.25 लाख रूपये की आर्थिक मदद उपलब्ध करा दी । इस तरह सरकार की मदद से वहां न केवल 1200 मीटर लम्बी पक्की नहर बना दी गई, बल्कि नहर के उद्गम स्थल पर नाले के जल को प्रवाहमान बनाने की व्यवस्था भी की गई, ताकि पानी वेग के साथ बहकर नहर के अंतिम छोर तक पहुंच सके । साल भर पहले पानी के लिए तरसने वाला महरोई गांव नहर बनने के बाद जिले में सबसे तेजी से फसलों का उत्पादन बढ़ाने वाले गांवों में शुमार हो गया है, जो यहां के गेहूं, चावल, सब्जियों के बढ़ते उत्पादन से साफ नजर आता है ।

कभी एक फसल को तरसने वाले और फांकाकशी तक करने वाले किसान आज दो से तीन फसलें ले रहे हैं । उनकी आमदनी बड़कर तीन गुना तक हो गई है । महरोई एक ऐसे विकसित गांव में तब्दील हो गया है, जिसमें परियोजना की मदद से नये केंचुआ खाद संयत्र और नये बायोगैस संयत्र उग आये हैं और समृध्दि में तेजी आ गई है । खेती-बाड़ी की बेहतरी और विभिन्न सरकारी योजनाओं के लागू होने से बड़ी मात्रा में रोजगार पैदा हुआ है। महिलाएं हर क्षेत्र में पुरूषों से टक्कर लेती दिखती हैं ।

       यह नहर का ही कमाल है कि मई में धान की फसल लेने का नया रेकार्ड बन रहा है । गांव के किसानों के खेतों की सिंचाई का रकबा बढ़कर 200 एकड़ हो गया है । ये नहर गांव के 200 परिवारों की जीवनदायिनी बन गई है । किसान मालामाल होने लगे हैं । गांव के कुओं और हैण्डपंपों का जल स्तर बढ़ गया है । अब भीषण गर्मी में भी पीने का पानी  आसानी से मिल जाता है । जबकि पहले गर्मी में पेयजल का संकट गहरा जाता था ।

महरोई की कृषि आधारित तरक्की के दो मुख्य कारण है - नहर के बन जाने से खेतों को जीवन मिलना और सरकार की ग्रामीण आजीविका परियोजना का लागू होना । इससे किसानों को कृषिजन्य सुविधाएं और रोजगार के अवसर मिलना शुरू हो गया । तभी यहां किसानों के आर्थिक और सामाजिक स्तर में उल्लेखनीय वृध्दि हुई । परियोजना के जिला परियोजना अधिकारी श्री धनन्जय वारलिंगे बताते हैं कि ग्रामीणों की आय वृध्दि और उनके विकास को ध्यान में रखकर विभिन्न गतिविधियों को लागू किया गया है।  महरोई में उपलब्ध नहर अैेर परियोजना की सुविधाएं यहां के कृषकों के भविष्य को संवारने में मील का पत्थर साबित होगी ।

 

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