ग्रामीण पेयजल आपूर्ति - सफलताएं और पहल
भारत सरकार केन्द्र द्वारा प्रायोजित त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम के अंतर्गत सभी राज्यों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती है, 01.04.2009 से इस कार्यक्रम का नाम अब राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम रखा गया है । इस कार्यक्रम में कई घटक हैं, जिनपर पहली अप्रैल 2009 से अमल शुरू किया जाएगा ।
भौतिक प्रगति
भारत-निर्माण अवधि के दौरान जिन 55,067 बस्तियों को यह सुविधा मुहैया नहीं कराई जा सकी थीं और जो लगभग 3.31 लाख बस्तियां इससे से वंचित रह गयी थीं, उन्हें पेय जल सुविधाएं उपलब्ध कराई जायेंगी और 2.17 लाख बस्तियों की जल गुणवत्ता समस्या को दूर किया जाना है । 55,067 बस्तियों में से 54,430 बस्तियों में समस्या हल की जा सकी है । जहां पेय जल के टिकाऊ स्रोतों का अभाव है, वहां 2011 तक पेय जल सुविधा मुहैया कराने का प्रस्ताव है ।
वित्तीय प्रगति
ग्रामीण जल आपूर्ति के लिए भारत निर्माण के अंतर्गत अनुमान लगाया गया है कि 4 वर्षों के दौरान 25,300 करोड़ रुपये केन्द्रीय सहायता की जरूरत पड़ेगी । वर्ष 2005-06 में 4098 करोड़ रुपये, 2006-07 में 4560 करोड़ रुपये और 2007-08 में 6441.69 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया । वर्ष 2008-09 मे ग्रामीण पेयजल के लिए 7300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया । इसमें से 7276.29 करोड़ रुपये (99.68 प्रतिशत) का 31 मार्च, 2009 तक उपयोग कर लिया गया है । वर्ष 2009-10 के दौरान 2377.07 करोड़ रुपये की रकम जारी की गई थी, जबकि अप्रैल 2009 के दौरान बजट में 8000 करोड़ रुपये का आबंटन निर्धारित किया गया था ।
दक्षिण-पश्चिम मानसून की धीमी प्रगति के कारण पेयजल की आकस्मिक योजनाएं
योजना
मानसून में देरी को देखते हुए जून में ही राज्यों से कह दिया गया कि वे अपने-अपने राज्यों में पेयजल की स्थिति की समीक्षा कर लें । योजना में अल्पकालिक और दीर्घकालिक- दोनों ही प्रकार के उपायों को शामिल किया जाए । पानी की कमी वाले राज्यों का विवरण तथा पानी के लाने-लेजाने के ब्यौरे भी दिए जाएं जैसे यदि सड़क या रेलगाड़ी का इस्तेमाल किया जाता हो तो उसका भी ब्यौरा दें । विभाग ने राज्यों के ग्रामीण जल आपूर्ति के प्रभारी सचिवों की 1 जुलाई, 2009 को बैठक भी बुलाई, जिसमें स्थिति से निबटने के बारे में उनकी तैयारियों के संबंध मे विचार-विमर्श किया गया । क्षेत्रीय अधिकारियों को मनोनीत किया गया जो विशेष समस्याओं पर गौर करें । वे केन्द्रीय टीम के भाग के रूप मे राज्यों का दौरा भी कर रहे हैं । राज्यों से कहा गया है कि वे चलाई जा रही योजनाओं को जल्दी पूरा करने के बारे में आवश्यक कदम उठायें । जिसके परिणामस्वरूप लोगों को तत्काल राहत मिले । पीने के पानी, टैंकों और जलाशयों में इकट्ठा करके रखा जाए । नरेगा की पानी की अन्य योजनाओं में उपयोग किया जाए ।
विभाग को स्थिति पर बारीकी से नजर रखनी चाहिए । भारत सरकार के स्तर पर ग्रामीण जल आपूर्ति के लिए 5 प्रतिशत वार्षिक आबंटन किया जाना चाहिए । इस धनराशि से ग्रामीण क्षेत्रों में जल आपूर्ति प्रणाली की मरम्मत और रख-रखाव तथा अन्य आवश्यक कार्यों को पूरा किया जाना चाहिए । पेयजल कार्यक्रम के अमल के लिए नई नीति पर अमल किया जाना चाहिए । राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) का लक्ष्य है ग्रामीण क्षेत्र के हर व्यक्ति को पीने, खाना बनाने और अन्य घरेलू उपयोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराना । 1972 से चलाये जा रहे त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम पर अमल के साथ-साथ उनके लिए जल आपूर्ति प्रणाली की सक्षम व्यवस्था तैयार की जानी चाहिए ।
ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम की निगरानी
ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम के संबंध मे सभी तरह की जानकारी ऑन लाइन उपलब्ध है । इसके लिए इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम पर सार्वजनिक उपयोग की हर संभव सहायता उपलब्ध है ।
पेयजल कार्यक्रम को पंचायतों को सौंपने के मामले में प्रोत्साहन
एनआरडीडब्ल्यूपी कार्यक्रम के तहत कोष आबंटन के लिए संशोधित तरीका लागू किया गया है और ग्रामीण जनसंख्या प्रबंधन तथा ग्रामीण पेयजल आपूर्ति कार्यक्रम जैसी स्कीमों के तहत जल आपूर्ति कार्यक्रमों को लागू रखने पर जोर दिया जाता है ।
पानी की गुणवत्ता जांच के लिए तहसील (सब डिवीजन) स्तर पर सहयोग की व्यवस्था की जा रही है जहां भूमिगत जल की रासायिनक जांच कराई जाती है । जिन इलाकों मे पानी में शंखिया और पऊलोराइड आदि मिले रहते हैं, वहां के पानी की जांच करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है ताकि लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध हो सके ।
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