मंगलवार, 7 जुलाई 2009

गुरूपर्व पूर्णिमा पर विशेष : अपनी पूजा करवायें वे प्रभु को क्या पहचानें

गुरूपर्व पूर्णिमा पर विशेष : अपनी पूजा करवायें वे प्रभु को क्या पहचानें

नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''

हालांकि कल या परसों तक जब तक यह आलेख अखबारों में प्रकाशित होगा तब तक गुरूपर्व निकल चुका होगा ! मेरी इच्छा हुयी कि अबकी बार इस महान गुरू पूर्णिमा पर अपने विचार और अनुभव आपके बीच बॉटू !

मनोज कुमार की पुरानी फिल्म सन्यासी का एक प्रसिध्द गीत है, स्व. मुकेश एवं लता जी ने इसे गाया है - इसे जरूर सुना जाना चाहिये -

गीत में काम की पंक्तियां है- ये साधु के वेष में पापी रोज पाखण्ड रचायें, दिन में डाके डाले पापी रात में कतल करायें, सच बोले सन्यासी इनका कभी न हो कल्यान ...ये है गीता का ज्ञान

वेद शास्त्रों की भाषा को ये ढोंगी क्या जानें, अपनी पूजा करवायें ये प्रभु को क्या पहचानें .....ये है गीता का ज्ञान

यू तो गुरू महिमा अनन्त है और गुरू एक ऐसी कड़ी एक ऐसा सहारा होता है जो अपने शिष्य को कैसी भी मंझधार में फंसने पर येन केन प्रकारेण पार लगाता है, और इस दरम्यान अगर स्वयं साक्षात ईश्वर से भी उसका टकराव हो जाये तो सीधी टक्कर लेकर स्वयं की बलि भी देकर अपने शिष्य की रक्षा करता है !

गुरू बनना बेहद कठिन है, आजकल तो लगभग नामुमकिन है ! गुरू हजार मायावी बंधनों में बंधा है, गुरू लाखों कामनाओं की पतंग उड़ाता रहता है, गुरू मार्केटिंग की ख्वाहिश से ऐसे शिष्य तलाशता है कि जल्दी से जल्दी ख्यातनाम हो जाये और धनवान शिष्यों का मेला उसके पास टूट पड़े ! गुरू बनना वाकई कठिन हो गया है, फर्जी ढकोसले बाज मार्केटियर्स - ब्राण्ड नेम आज बाजार में अपार हैं लेकिन गुरू कोई नहीं दिखता !

भगवान श्रीकृष्ण, श्री गणेश, भगवान शंकर और प्रभु विष्णु, भगवान ब्रह्मा जी की चरण पादुकाओं का पूजन या अभीष्ट देव, देवता या देवी की पूजा या उनका पादुका वन्दन गुरू पर्व पर मुझे श्रेष्ठ जान पड़ता है !

आजकल गुरू की जगह पाखण्डी अधिक मिलते हैं ! जिन्हें न शास्त्रों का ही ज्ञान है, न शास्त्रों आदेशों से सुभिज्ञ हैं न गुरू शिष्य परम्परा से वाकिफ हैं और न संस्कार प्रणाली से परिचित ही ! मेरा आशय व संकेत किसी व्यक्ति विशेष के प्रति कतई नहीं हैं ! लेकिन मैं आपको अपना अनुभव सुनाता हूँ !

कई वर्ष पहले बचपन से ही मुझे ईश्वर और ईश्वरीय चमत्कारों से साक्षात्कार की गहन तमन्ना रही और मैंने अपने जीवन का हर पल कुछ न कुछ पाने में गुजारा ! मैंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से लेकर एल.एल.बी. और एम.एस.सी. भौतिक शास्त्र तक की पढ़ाई लिखाई की और यह भी खास बात है कि मैं सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण रहा, कई बार टॉपर रहा ! मुझे कुछ रिसर्च और अनुसंधान अन्वेषण करने का भी अवसर प्राप्त हुआ ! पर इस सबके बीच जो खास बात है वह यह कि मुझे गाँव में वक्त गुजारने का अधिक मौका मिला है और मेरी पहली पसन्द ग्रामीण जीवन है ! अपने गाँव में जब भी छुटिटयां बिताने या अन्य किसी अवसर पर जाता तो छुटटी बीतने के भी बाद एकाध दो महीने गॉव में बिता ही देता था ! सो मुझे हल जोतने और गाय भैंस जैसे प्शु चराने का खूब आनन्द मिला ! गहरे डाँग बेहड़ जंगल, चरवाई, नदी मछण्ड मुझे नापने का खूब अवसर मिला !

जंगलों और बेहड़ों में आप थोड़ा गहरे घुस जायेंगें तो आपको कई अनुपम व अदभुत प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलेंगें ! कई बार अनेक साधु, तांत्रिक, और विचित्र वेशभूषा वाले जादूगर, टोनागर, तो अनेक बार बागी, बदमाश या अपहरण करके लड़कियां बेचने वाले गिरोह के गिरोह मिल जायेंगें ! मुझे तकरीबन सभी प्रकार के लोगों से मिलने का सौभाग्य मिला है, खैर अब तो काफी वक्त हुआ जंगलों बेहड़ों में जाना नहीं हुआ, लेकिन जंगलों में बेहड़ों में काफी रहस्य छिपे पड़े हैं ! मैंने हजारों (शायद लाखों साल) पुरानी कई विशाल शिला प्रतिमायें बीच घने घनघोर जंगलों में यूं ही बिखरी पड़ी देंखीं हैं !

राजस्थान में करौली माचलपुर की एक लम्बी चौड़ी डाँग है, जहाँ प्रकृति के रहस्यमय खजानों का अदभुत व विपुल भण्डार है ! बहुत बरस हुये तब मैंने इन्हें अपनी ऑंखों से देखा ! गुप्त गुफाओं में कई मंदिर, बीच जंगली खारों में विशाल प्रतिमाये ंतो कई सूनसान वीराने मंदिर भी मुझे देखने को मिले ! तब मैं उनके महत्व से अपरिचित था और उनकी मूल्यवत्ता से अनभिज्ञ था ! आज आभास होता है कि कई बेशकीमती ऐतिहासिक और प्राकृतिक खजाने वहाँ थे ! अब जब यह सब समझ आया तो वहाँ जाना ही नसीब नहीं हो पाया ! अब तो सुना है कि वह क्षेत्र डकैतों की शरण स्थली बन गया है, खैर डकैत वहाँ तब भी थे लेकिन छोटे मोटे और बीड़ी बण्डल छीनने वाले भैंस चोर ही थे ! और कई बार तो हम सब गाय भैंस चराने वालों ने उनकी जमकर लठठों से धुनाई भी की थी, दरअसल वे लोग नदी से मछली पकड़ते मारते थे, और हम सब इसे पाप मानते थे सो सारे बालक मिलकर उनकी जमकर कुटाई कर देते थे, कई बार पीलू के पेड़ों में बॉध कर डलवा देते थे तथा सेहियां (सेही एक बड़े काँटो वाला जानवर होता है) छोड़ कर उन्हें तंग करते थे ! सेही अगर चिपक जाये तो खून पी जाती है यह बाद में पता चला, लेकिन लाठी से सेही जमीन पर गिरा ली जाती है अगर आप तेज लाठी चलाना जानते हों ! सेही का तंत्र मंत्र भी काफी इस्तेमाल होता है, सेही का कांटा अगर आप किसी घर में गाड़ दे ंतो वहाँ कभी शान्ति नहीं रहेगी, घरवाले आपस में ही लड़ते रहेंगे, ऐसी ंकिंवदन्ती है ! और सेही का कॉटा यदि दही की नाँद के नीचे गाड़ दें या चक्की यानि चकिया के नीचे गाड़ दें घर में दूध दही घी और आटे की कमी नहीं रहती , ऐसी किंवदन्ती भी है ! किसी जमाने में सेही के कॉटों और सेहीयों के बीच रह कर आज कल एक कॉटा भी सेही का नहीं मिल पा रहा वरना सब भ्रष्टों के घर एक एक गाड़ देते ! मिलेगा तो गाड़ेंगे जरूर, देखते हैं क्या होता है !

कई साधुओं से जंगल डॉग में भेंट हुयी , बाल स्वाभाविक कौतूहलता वश हरेक से पूछा - काये बाबा भगवान के दरसन कराय दोगे का - लेकिन हर बाबा ने हर बार यही कहा कि अरे बच्चा भगवान का ऐसे ही मिलते हैं का, बाकें लें भजन करों बिनकी माला फेरो तब जायकें दस बीस जनम में भगवान मिलेंगे ! सो भईया जिस बाबा से जब भी मिले, दे दे भगवान के नाम पर कहने वाले मिले भगवान के दरसन कराने वाला कोई नहीं मिला ! कई गुरू ऐसे मिले जो हवा में हाथ उठा देते और जो भी चीज उनसे माँगो वही हवा में से प्रकट कर देते ! मैंने आजमाइश के तौर पर कुछ विचित्र चीजों के नाम लिये उनने वे भी मंगा दीं, पर बाद में जब इस लाइन में आगे बढ़ा तो पता चला कि जिन्नात की सिध्दि कर लेने से ऐसा हो जाता है ! मेरा मामला वहाँ भी नहीं जमा, कुछ मुसलमानी, कुछ बौध्द तो कुछ जैन साधकों को भी मैंने गुरू बनाया लेकिन बात वही रही सब पर थोड़ा थोड़ा था, पूर्ण कोई नहीं था ! मैंने ज्योतिष में कई लोग तलाशे लेकिन कोई भी ज्योतिष में मेरे सवालों के उत्तर नहीं दे पाया ! एक गुरू ऐसे मिले जो रोज एक ऍग्रेजी व्हिस्की मंगाते हलांकि उन पर बहुत कुछ देने को था लेकिन वे किसी को कुछ देते नहीं थे, थोड़ा बहुत वहाँ से बटोरने की कोशिश की ! जादू टोना टोटका, तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष सबके गुरू तलाशे लेकिन पक्का काम किसी के पास नहीं था ! दक्षिण मार्गी वाम मार्गी हर विद्या में कहीं कोई कच्चा पड़ता तो कोई कहीं ! खैर मुझे अभी भी गुरूओं की तलाश है, कोई मिलेगा तो जरूर बनाऊंगा, फिलहाल मेरा कोई एकमात्र शरीरधारी गुरू नहीं है !      

खैर बहुत लम्बी तलाश के बाद आखिर सच्चा गुरू मिला और तमाशा यह कि वह कोई शारीरिक व्यक्ति नहीं बल्कि आध्यात्मिक व्यक्ति था ! मेरी खोज कुछ यूं पूरी हुयी कि जब मुझे एक गुरू नहीं मिला और मेरे मानदण्डों पर खरा नहीं उतरा तो मैंने जहाँ से भी जो भी सीखा उसे ही अपना गुरू मानना शुरू कर दिया, सो भई मेंरे पास मेंरे गुरूओं की लम्बी चौड़ी फौज बनना शुरू हो गयी, लेकिन अक्सर ये हुया कि किसी से चन्द बातें सींखीं तो किसी से चन्द सूत्र टिकाऊ गुरू तो चन्द ही हुये ! आज इस आलेख के जरिये अपने गुरूओं का स्मरण कर उन्हें सादर प्रणाम एवं नमन करता हूँ !

असल गुरू कौन कौन - गुरू पर्व मानने वालों को निम्न असल गुरूओं को कभी विस्मृत नहीं करना चाहिये (यह लोग मेरे गुरू हैं)

 

माता (जन्मदात्री और पालनहारिणी)

 

पिता (जन्मदाता और पालनहार)

 

गुरू - बुध्दि, ज्ञान, चेतना, विवके प्रदाता और अहंकार सहित पंचमकार नाशक, लोभहीन, निर्विकार, योगी, समदृष्टा, सुपथदर्शी, सदा रक्षक

 

श्री कृष्ण -अपरिमित, अपरिभाषित, योगेश्वर, अखिलेश्वर, सच्चिदानंदघन, सर्व समाधान कारक, सर्व पथ प्रदर्शक

 

श्री गणेश- बुध्दि, ज्ञान, विवेक, शुभ लाभ प्रदाता, विघ्न कारक, विघ्न हारक, शत्रु, ऋण, रोग, दारिद्रय संहारक

 

भगवान शंकर- कालकूट हलाहल नाशक, मान अपमान पर विजय प्रदाता, परम योगी, तमोगुण हारक, सर्व कल्याण प्रदाता, अवगुण एवं दोष नाशक

 

स्वामी विवेकानन्द- सदगुरू- सर्वपथ प्रदर्शक, विवेक प्रदाता

 

जेम्स एलन श्रेष्ठ मार्गदर्शक, तमोगुण नाशक सतोपथ दर्शक, विजय प्रदाता

 

दस महाविद्या- सर्व रक्षक

 

         

अधिकतर लोग गुरू पूर्णिमा पर गोवर्धन गिरिराज जी पूजन और परिक्रमा के लिये जाते हैं, कुछ लोग दतिया पीताम्बरा पीठ पर स्वामी जी के विग्रह पर चरण वन्दन के लिये जाते हैं मुझे लगता है यह ठीक है एवं सर्वोत्तम है ! मैं अपने प्रिय गुरूजन प्रभु श्रीकृष्ण एवं पीताम्बरापीठ के अतुलनीय शक्तियों के स्वामी जी महाराज के चरणों में गुरू पर्व पर अपना सादर चरण वन्दन करता हूँ !

पीताम्बरापीठ के स्वामी जी महाराज के लिये कहा गया है -

करारविन्देन परामृषण्तं, पदमाक्षमालां शिवरूपिणतं !

पीताम्बरा ध्यान निमग्नचित्तं, श्री स्वामिनं राष्ट्रगुरूं स्मरामि !!

अर्जुन ने श्रीमदभगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण को गुरूओं का गुरू सबसे बड़ा गुरू कह कर प्रभु श्रीकृष्ण की गुरू स्वरूप में महत्ता प्रतिपादित की है -

पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरूर्गरीयान !

न त्वत्समोत्स्त्यभ्यधिक: कुतोऽन्योलोकत्रये प्यप्रमिप्रभाव !!

यत्र योगेश्वर: कृष्णो, यत्र पार्थो धनुर्धर: !

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्धु्रवा नीतिर्मतिर्मम !!

अनन्याश्चिन्तयतों मां ये जना: पर्युपासते !

तेषां नित्याभुक्तांनां योगक्षेमं वहाम्यहम् !!

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्‍णु गुरूर्देवो महेश्‍वर: ।

गुरूर्साक्ष्‍परब्रह्म तस्‍मैश्री गुरूवै नम:  

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