रविवार, 15 अप्रैल 2007

पिछड़े क्षेत्रों का कायापलट

पिछड़े क्षेत्रों का कायापलट

हाल ही में घोषित पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष के अंतर्गत आम आदमी को शामिल किया जाएगा ताकि नीति निर्माण और नीतिगत निर्णयों में आम आदमी के प्रयासों का लाभ उठाया जा सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत यह व्यवस्था की गयी है कि प्रस्ताव पंचायत स्तर से पेश किए जायेंगे ताकि इसके माध्यम से आम आदमी को विकेन्द्रीकृत आयोजना के अनुभव कराए जा सकें। यह वास्तव में केन्द्र और राज्य स्तर की आयोजना से जिला और ग्राम स्तर की आयोजना के रूप में एक महत्वपूर्ण बदलाव है। भारत के पिछड़े क्षेत्रों का विकास तभी संभव है, जब इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा अपनी उचित जरूरतों का आकलन स्वयं किया जाए, अपनी प्राथमिकताएं स्वयं तय की जाएं और मिलकर योजनाएं बनाई जायें। यह एक ऐसा कार्यक्रम हैं, जिसमें लोगों की उचित जरूरतें उजागर की जायेंगी और उन्हें ऐसी परियोजनाओं के जरिए पूरा किया जाएगा, जो स्वयं लोगों द्वारा तैयार की गयी हों।

न्यूनतम साझा कार्यक्रम

       राष्ट्रीय न्यूनतम साझा कार्यक्रम में ''पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष'' (बीआरजीपी) की स्थापना का वायदा किया गया था। दसवीं पंचवर्षीय योजना की मध्यावधि समीक्षा के दौरान योजना आयोग ने महसूस किया था कि क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ा है। पिछले 15 वर्षों में इसमें खास बढ़ोतरी हुई है। अंतर-राज्य असमानताओं के अलावा राज्यों के भीतर भी क्षेत्रीय असमानताएं पैदा हुई हैं। अपेक्षाकृत विकसित राज्यों में भी असमानताएं देखने को मिली हैं।

       इस विसंगति को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने 19 फरवरी, 2007 को असम के बारपेटा क्षेत्र में बीआरजीएफ की स्थापना की आधिकारिक घोषणा की। इस कोष की स्थापना देश के 250 सर्वाधिक पिछड़े जिलों के लिए की गयी है, ताकि उनमें असमानताएं दूर की जा सकें।

       पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष-बीआरजीएफ की स्थापना करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि स्थानीय स्तर पर क्षमता पैदा करने के लिए समानांतर निवेश की आवश्यकता है। इसके अंतर्गत ''अनुभव हीन इंजीनियरों'', ''समुदाय स्तरीय कृषि विस्तार कार्यकर्ताओं'' और स्थानीय स्तर के विशेषज्ञों के प्रशिक्षण को प्रोत्साहित किया जाएगा, ताकि वे प्रत्येक पंचायत में सीधे सेवायें प्रदान कर सकें। भारत आज भी एक कृषि प्रधान राष्ट्र है, जहां बहुसंख्य लोग खेती पर निर्भर हैं। असम के बारे में यह बात और भी सटीक है। आवश्यकता एक ऐसे कार्यक्रम की है, कि लोग ऐसा कौशल हासिल करें, जो स्थानीय गतिविधियों में काम आ सके, और लोग जीविका के लिए खेती पर निर्भरता कम करने में सफल हो सकें। इस कार्यक्रम के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा लोगों के प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद भारत में कुशल श्रमिकों की संख्या बढ़ेगी, जो नये व्यवसायों के जरिए बेहतर आय अर्जित कर सकेंगे।

पंचायती राज

       पंचायती राज मंत्रालय को बीआरजीएफ के कार्यान्वयन का दायित्व सौंपा गया है। इस कार्यक्रम का उददेश्य पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की स्थापना, बेहतर शासन को प्रोत्साहन और कृषि सुधारों को मूर्त रूप देना है। इसके अंतर्गत इन जिलों में सुनियोजित भागीदारीपूर्ण जिला योजना के हिस्से के रूप में पूरक बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था और क्षमता निर्माण के जरिए मौजूदा विकास के प्रवाह को और मजबूती प्रदान की जाएगी।

       यह कार्यक्रम उन सभी जिलों में लागू किया जाएगा, जिनमें रोजगार गारंटी अधिनियम लागू किया गया है। इसके अतिरिक्त उन जिलों में भी यह कार्यक्रम लागू होगा, जिनका उल्लेख उस अंतर-मंत्रालयी कार्यदल की रिपोर्ट में किया गया है, जिसका गठन पिछड़ेपन का आकलन करने के लिए योजना आयोग द्वारा किया गया था। प्रत्येक जिले को हर वर्ष क्षमता निर्माण और बुनियादी सुविधाओं की स्थापना के लिए 11 करोड़ रुपये दिए जायेंगे।

       इस कार्यक्रम में शामिल सभी 250 जिलों के लिए वर्ष 2007-08 का आवंटन बढ़ाकर 5,800 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इन जिलों को उतनी ही मात्रा में सहायता जारी रहेगी, जितनी पिछले वर्ष प्राप्त हुई थी।

       इस योजना के लिए चुने गए 250 में से 147 जिलों में राष्ट्रीय सम विकास योजना (आरएसवीवाई) पहले ही लागू की जा चुकी है। आरएसवीवाई के अंतर्गत कार्यक्रम को पूरा करने के लिए धन दिया जाएगा, और उसके बाद बीआरजीएफ जिला योजना लागू की जाएगी। शेष 103 जिलों में बीआरजीएफ कार्यक्रम सीधे प्रारंभ किया जाएगा।

       इन कार्यक्रमों को लागू करने में पंचायती राज संस्थानों की महत्तवपूर्ण भूमिका होगी। सभी राज्यों को जिला आयोजना समितियों का गठन करना होगा। पंचायती राज मंत्री श्री मणिशंकर अय्यर ने विभिन्न राज्यों में पंचायती राज संस्थानों को मजबूत करने का बीड़ा उठाया है। इसके अंतर्गत केरल  की तर्ज पर पंचायती राज संस्थानो ंको सुदृढ़ किया जाएगा।

       पंचायती राज संस्थानों को सुदृढ़ करने के उपायों पर आम सहमति कायम करने के लिए पंचायती राज मंत्रियों के गोलमेज सम्मेलन का आयोजन पहले ही किया जा चुका है।

       अभी तक 15 राज्यों और दो संघ शासित प्रदेशों ने केंद्र सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इस बारे में पंचायती राज मंत्री ने हाल ही में असम का दौरा किया। उनकी इस यात्रा के दौरान असम के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए।

धन का प्रवाह

       पंचायती राज संस्थान बीआरजीएफ धन का इस्तेमाल विषमता दूर करने और उसी जिले में अधिक व्यापक संसाधन प्रदान करने वाले अन्य कार्यक्रमों की कवरेज तथा गुणवत्ता बढ़ाने के लिए करेंगे। इस प्रयोजन के लिए राज्य समेकित निधि को धन दिया जाएगा, जहां लेन-देन की इलेक्ट्रोनिक प्रणाली अपनाई जाएगी, ताकि प्रत्येक पंचायत को अविलम्ब धन संप्रेषण सुनिश्चित किया जा सके। इससे धन के विपथ गमन को भी रोका जा सकेगा। प्रत्येक पंचायत को बीआरजीएफ धन की मात्रा का निर्धारण स्थानीय स्तर पर तय किए गए पारदर्शी फार्मूले के आधार पर किया जाएगा। इस फार्मूले में अत्यंत पिछड़ क्षेत्रों को वरीयता दी जा सकती है। कार्यान्वयन में ग्राम सभा को पूरी तरह शामिल किया जाएगा। कार्यक्रमों के चयन, वरीयता निर्धारण, लाभार्थियों के चयन, कार्यान्वयन पर निगरानी, सामाजिक लेखा परीक्षा, और उपयोगिता प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार आदि सभी पहलुओं में ग्राम सभा की विशेष भूमिका होगी।

नवीन कार्यक्रम

       अंतर-राज्य असमानताओं और राज्य के भीतर विभिन्न इलाकों के बीच विषमताओं में संतुलन कायम करने की दृष्टि से यह एक नवीन कार्यक्रम है। देश में न्याय और समानता पर आधारित विकास की जिम्मेदारी योजना आयोग की है, जो पंचवर्षीय योजना के जरिए इस दायित्व का निर्वाह करता है। परन्तु समानता को प्रोत्साहित करने में यह कार्यक्रम और भी महत्तवपूर्ण भूमिका अदा करेगा।

       असम में इस योजना के लिए 11 जिलों को चुना गया है। ये हैं: बारपेटा, बोंगइगांव, कचार, धेमाजी, गोपालपाड़ा, हैलाकांडी, कार्बीअलोंग, कोकराझाड़, मोरीगांव, उत्तर लखीमपुर (लाक्ष) और उत्तर कचार हिल्स। प्रत्येक जिले को हर वर्ष इस कार्यक्रम के अंतर्गत कम से कम 11 करोड़ रुपये दिए जायेंगे।

       असम में इस कार्यक्रम को अमली जामा पहनाने में एक मात्र रुकावट यह है कि संवैधानिक दृष्टि से यह अपेक्षित है कि पंचायती राज प्रणाली के प्रत्येक स्तर  यानी-ग्राम, मध्यवर्ती, और जिला तथा नगर पालिका द्वारा अपने अपने अधिकार क्षेत्र के लिए संदर्श पंचवर्षीय योजना और वार्षिक योजना स्वयं तैयार की जानी चाहिए, लेकिन राज्य में इसकी व्यवस्था नहीं हो पायी है। जिलों को धन के हस्तांतरण के लिए ये शर्त है कि पंचायतों और जिला आयोजना समितियों के जरिए जिला विकास आयोजना को अंतिम रूप दिया जाए। इस योजना को बाद में राज्य स्तर पर मंजूरी दी जाती है।

       असम सरकार ने हाल ही में केंद्र सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके अनुसार पंचायती राज अधिनियम की सभी अपेक्षाएं शीघ्र पूरी की जायेंगी। राज्य के लोगों की आकाक्षाएं अत्यंत ऊंची हैं क्योंकि यह कार्यक्रम सामान्य रूप से ग्रामीण भारत और विशेष रूप से असम के पिछड़े क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात को बदलने में सक्षम है।

       भारत अनेक क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है, फिर भी हमारी आबादी के कई ऐसे हिस्से हैं, जिन तक विकास का लाभ अभी नहीं पहुंचा है। यह बात उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर विशेष रूप से लागू होती है, जिनके क्षेत्र विकसित क्षेत्रों की गति के साथ तालमेल नहीं रख पाए हैं। इन क्षेत्रों के पिछड़ेपन के पीछे अनेक कारण हैं। इनमें सड़क, संचार, स्कूल और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव शामिल है। पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष की स्थापना एक प्रमुख उपाय है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि विकास में क्षेत्रीय असमानताएं दूर हों और पिछड़े क्षेत्र राष्ट्र की मुख्य धारा में लाए जा सकें। इस तरह ग्राम स्वराज के जरिए आत्मनिर्भरता हासिल करने का महात्मा गांधी का सपना पूरा हो सकेगा। (पीआईबी फीचर)

 

वरिष्ठ मीडिया और संचार अधिकारी, पत्र सूचना कार्यालय, गुवाहाटी

 

कोई टिप्पणी नहीं :