मंगलवार, 17 अप्रैल 2007

शिक्षा के लिए जिला सूचना प्रणाली का विकास

शिक्षा के लिए जिला सूचना प्रणाली का विकास

 

किसी भी शैक्षिक कार्यक्रम को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए कारगर निगरानी और सक्षम सूचना प्रणाली अत्यंत आवश्यक है। सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत निगरानी तंत्र अलग से विकसित किया गया है, लेकिन भारत में आम तौर पर और शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर और विशेष तौर पर शैक्षिक प्रबंधन सूचना प्रणाली को सुदृढ़ करने के एकजुट प्रयास किए जा रहे हैं। शैक्षिक विभिन्नताओं के बारे में जानकारी एकत्र करने के काम में अनेक सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां लगी हुई हैं। इनमें भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय का उच्चतर शिक्षा विभाग एक प्रमुख एजेंसी है जो नियमित आधार पर संख्यात्मक जानकारी एकत्र करता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय देश के सभी मान्यता प्राप्त संस्थानों से वार्षिक सूचना मंगवाता है । इसके लिए 30 सितम्बर की तारीख को आधार और स्कूल को संग्रह इकाई बनाया जाता है। इसत तरह संकलित की गयी जानकारी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय अपने संदर्भ ग्रंथ एजुकेशन इन इंडिया में प्रकाशित करता है। इस संदर्भ ग्रंथ के अद्यतन उपलब्ध अंकों में विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है, जैसे 1998-99, वॉल्यूम-I : संख्यात्मक जानकारी ; 1996-97, वॉल्यूम- II : वित्तीय आंकड़े ; और 1999-2000 वॉल्यूम- III : परीक्षा परिणाम । किंतु वर्ष 2004-05 के लिए अद्यतन जानकारी के वास्ते एक अस्थायी प्रकाशन सिलेक्टेड एजुकेशनल स्टेटिस्टिक्स उपलब्ध है। 

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डाक्टर अरूण सी मेहता, प्रोफेसर, एन यू ई पी ए, नयी दिल्ली, द्वारा तैयार किया गया। शिक्षा से सम्बध्द जिला सूचना प्रणाली (डीआईएसई) भारत सरकार, यूनिसेफ और राष्ट्रीय शिक्षा आयोजना और प्रशासन विश्वविद्यालय (एनयूईपीए) का संयुक्त उद्यम है, जिसका उद्देश्य देश में ईएमआईएस को सुदृढ़ करना है।

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       राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) भी अपने अखिल भारतीय शैक्षिक सर्वेक्षण के जरिये विशेष विभिन्नताओं के बारे में जानकारी एकत्र करती है। ये सर्वेक्षण पांच से आठ वर्ष में एक बार कराये जाते हैं और आंकड़े संग्रह करने का आधार बस्ती को बनाया जाता है। 30 सितम्बर 2002 को आधार बनाकर कराये गए सातवें सर्वेक्षण के पूरे नतीजों का अभी इंतजार किया जा रहा है। इन सर्वेक्षणों के माध्यम से विशेष विभिन्नताओं के बारे में जानकारी एकत्र करने का बुनियादी लक्ष्य पंचवर्षीय योजनाएं तैयार करने के लिए जानकारी उपलब्ध कराना है। दसवीं पंचवर्षीय योजना इस सर्वेक्षण के आंकड़े संप्रेषित होने से पहले ही तैयार कर ली गयी थी । अभी तक केवल फ्लैश स्टेटिस्टिक्स के रूप में कुछ चुनी हुई विभिन्नताओं के बारे में ही आंकड़े संप्रेषित किए जा सके हैं, हालांकि 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007 से 2012) तैयार करने का काम पहले ही शुरू हो चुका है। सीमित मात्रा में अद्यतन सर्वेक्षण आंकड़े 2002-03 के बारे में उपलब्ध है। एनसीईआरटी अपनी वेबसाइट के माध्यम से भी सीमित आंकड़े संप्रेषित कर रही है। किंतु न तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय और न ही एनसीईआरटी जिला विषयक आंकड़ों का पूरा सेट संप्रेषित कर रही है।

       दूसरी ओर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ), भारत की जनगणना, और अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या अध्ययन संस्थान (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण) जैसी अर्ध सरकारी एजेंसियां भी समय-समय पर कुछ गिनी चुनी शैक्षिक विभिन्नताओं के बारे में जानकारी संकलित करती है। ये एजेंसियां अपने सामान्य विभागीय नमूना सर्वेैक्षणों के हिस्से के रूप में इस काम को अंजाम देती है। इसके अतिरिक्त हाल ही में भारत सरकार ने एजुकेशन कंसल्टेंट्स इंडिया लिमिटेड और इंडियन मार्केट रिसर्च ब्यूरो (आईएमआरबी) के माध्यम से 6 से 14 वर्ष के आयु समूह के उन बच्चों के बारे में राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण कराया, जो स्कूल से बाहर हैं। इसी प्रकार प्रथम नाम के एक गैर सरकारी संगठन ने स्कूल न जाने वाले बच्चों (6-13 वर्ष) की गणना, स्कूलों में उपलब्ध सुविधाओं और ग्रामीण भारत में बच्चों की सीखने की क्षमता के बारे में परिवार सर्वेक्षण कराया। इस संस्था ने 2010 तक इस तरह के और सर्वेक्षण कराने का भी फैसला किया है।

       भारतीय शिक्षा प्रणाली विश्व की सबसे बड़ी शिक्षा प्रणालियों में से एक है क्योंकि यह 102.8 करोड़ लोगों (2001 की जनगणना के अनुसार) से अधिक की जरूरतों को पूरा करती है। इसके आकार को देखते हुए सूचना प्रणाली की अनेक सीमाएं हैं। ये सीमाएं प्रशासनिक और गैर प्रशासनिक दोनों तरह के हैं। इनमें से कुछ सीमाएं इस प्रकार है : (त्) आंकड़े एकत्र करने वाली विभिन्न प्रकार की एजेंसियां और निदेशालय आंकड़ों के संग्रह में शामिल होते हैं और उनके बीच समन्वय का अभाव रहता है ; (त्त्) शैक्षिक आंकड़ों की धारणा और परिभाषाओं की समझ का अभाव ;(त्त्त्) विभिन्न स्तरों पर पर्याप्त, योग्य एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों का अभाव ;(त्ध्) डाटा संग्रह प्रारूपों के वितरण एवं संकलन की समस्याएं ;(ध्) जिला विषयक समय-शृंखला का अभाव ;(ध्त्) आंकड़ों में समय का अंतराल ;(ध्त्त्) शैक्षिक आंकड़ों की विश्वसनीयता ;(ध्त्त्त्) आंकड़ों में अंतराल ;(त्न्) निचले स्तर पर कम्प्यूटरों का अभाव ;(न्) नए जिलों का निर्माण और मौजूदा जिलों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण ;(न्त्) आंकड़ों के संप्रेषण और उपयोग का अभाव ; और (न्त्त्) सभी स्तरों पर उत्तरदायित्व का अभाव। इन सीमाओं के बावजूद स्कूल सम्बन्धी आंकड़े आम तौर पर शिक्षा और विशेष तौर पर प्राथमिक एवं अनिवार्य शिक्षा के विभिन्न पहलुओं की आयोजना, निगरानी और मूल्यांकन का आधार बनते हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत मैनुअल पध्दति से आंकड़े संग्रह करने की प्रणाली में स्कूल विषयक फार्मेट भी नहीं अपनाया जाता। इतना ही नहीं विभिन्न स्तरों पर इसमें यकमुश्त शीटें इस्तेमाल की जाती है। इसे देखते हुए किसी भी स्तर पर आंकड़ों को प्रमाणित करना संभव नहीं हो पाता। आंकड़ों का प्रथम संग्रहण ब्लॉक स्तर पर होता है और स्कूलों की बड़ी संख्या को देखते हुए बड़े ब्लॉकों में सूचना संग्रहण हो पाता है ; मैनुअल आधार पर आंकड़ों को समायोजित करना कठिन कार्य है। यह कठिनाई विशेषकर इस दृष्टि से और भी बढ़ जाती हे कि इस स्तर पर अधिकारी आंकड़ों की भारी मात्रा को प्रोसेस करने के लिए समुचित रूप से प्रशिक्षित नहीं होते।

       अतीत में भारत के लिए कम्प्यूटरीकृत शैक्षिक प्रबंधन सूचना प्रणाली विकसित करने के प्रयास किए जाते रहे हैं। इनमें जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (डीपीईपी)  और सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) के अंतर्गत किए गए प्रयास सर्वाधिक ईमानदार लगते हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों के स्तर पर पहले किए गए ज्यादातर प्रयास स्थिरता प्राप्त करने में विफल रहे हैं और कुल मिलाकर यह मामला चिंताजनक बना रहा है। 1994-95 में जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (डीपीईपी) शुरू करते समय यह महसूस किया गया था कि कार्यक्रम की सफल निगरानी और कार्यान्वयन के लिए सुदृढ़ सूचना प्रणाली अनिवार्य है। यह भी महसूस किया गया था कि आयोजना और प्रबंधन के लिए विकेन्द्रिकृत रूप में शैक्षिक आंकड़ा आधार मजबूत बनाने के लिए एक नया मॉडल अपनाने की आवश्यकता है। यह कहा गया था कि जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम में विकेन्द्रिकृत आयोजना पर ध्यान केन्द्रित करते हुए स्कूल स्तर की अद्यतन और भरोसेमंद जानकारी संग्रह किए जाने के तत्काल बाद उपलब्ध कराई जानी चाहिए। प्राथमिक शिक्षा के विकेन्द्रीकरण के संदर्भ में यह बात दुहराई गयी कि सक्षम और कारगर स्कूल तथा सामुदायिक आंकड़ा आधार जरूरी है ताकि महत्वपूर्ण संकेतकों की प्रवृत्तियों के संकेत निर्णय करने के विभिन्न स्तरों पर इस्तेमाल किए जा सके। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 1994-95 में जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम के हिस्से के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर स्कूल आधारित कम्प्यूटरीकृत सूचना प्रणाली का डिजाइन और विकास करने का निर्णय किया। इसके लिए मुख्य दायित्व राष्ट्रीय शैक्षिक आयोजना और प्रशासन संस्थान (एनआईईपीए), नयी दिल्ली (जिसे अब राष्ट्रीय शैक्षिक आयोजना और प्रशासन विश्वविद्यालय-एनयूईपीए, कहा जाता है।)

       इस पृष्ठभूमि में भारत में शैक्षिक सांख्यिकी को मजबूत बनाने की एक प्रायोगिक परियोजना 1995 में एनयूईपीए में प्रारंभ की गयी। इसके लिए यूनिसेफ ने वित्तीय सहायता प्रदान की। इस परियोजना का लक्ष्य आंकड़ा जरूरतों की पहचान सम्बन्धी मुद्दों का परीक्षण, आंकड़ा संग्रह के लिए प्रक्रियाएं और प्रविधियां, आंकड़ा प्रवाह और कम्प्यूटरीकरण के लिए फ्रेम वर्क विकसित करना, और आयोजना, प्रबंधन, निगरानी और मूल्यांकन में शैक्षिक संकेतकों के इस्तेमाल में मदद करना था। इस व्यापक और समेकित दृष्टिकोण की आवश्यकता इस तथ्य के संदर्भ में समझी गयी थी कि तत्कालीन मौजूदा प्रणाली समय पर स्कूल सम्बन्धी आंकड़े उपलब्ध नहीं करा पाई और यह क्षेत्र एवं कवरेज की दृष्टि से अत्यंत सीमित रही। इसी प्रकार विकेन्द्रीकृत फ्रेम वर्क के अंतर्गत आयोजना एवं निगरानी के लिए शैक्षिक आंकड़ों का इस्तेमाल भी बहुत कम था। आंकड़ों की आंतरिक संगति की जांच के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। अनेक महत्वपूर्ण विभिन्नताओं से सम्बन्धित आंकड़े या तो एकत्र ही नहीं किए गए या फिर निर्णय लेने की प्रक्रिया में इस्तेमाल किए जाने  के लिए आगे नहीं बढ़ाये गए।

       जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम की भावना के अनुरूप स्कूल स्तर के आंकड़ों के संग्रह, कम्प्यूटरीकरण, विश्लेषण और इस्तेमाल के लिए  जिले को नोडल एजेंसी के रूप में चुना गया। एनयूईपीए के व्यवसाईयों ने अन्य विशेषज्ञों के साथ मिलकर कोर डाटा- कैप्चर फार्मेट्स का डिजाइन और विकास किया। तदनुरूप, एनयूईपीए ने जिला स्तर पर इस्तेमाल किए जाने के लिए सॉफ्टवेयर विकसित किया और डीपीईपी जिलों को आवश्यक तकनीकी एवं व्यावसायिक सहायता प्रदान की।

       सॉफ्टवेयर के प्रथम संस्करण (डीबेस) को 'जिला शिक्षा सूचना प्रणाली' (डीआईएसई)  नाम दिया गया और इसे 1995 के मध्य में जारी किया गया। ईएमआईएस यूनिटों की स्थापना में जिला स्तर के व्यावसाईयों की सहायता की गयी और उन्हें प्रशिक्षित किया गया। डीआईएसई सॉफ्टवेयर (पावर बिल्डर#एसक्यूएल ऐनीवेयर) की पहली प्रमुख समीक्षा 1997-98 के दौरान की गयी। डीआईएसई की कवरेज न केवल गैर-डीपीईपी राज्यों में बढ़ाई गयी बल्कि इसका विस्तार प्राथमिक से समूचे अनिवार्य शिक्षा स्तर तक किया गया।

डीआईएसई : मुख्य विशेषताएं

डीआईएसई यानी जिला शिक्षा सूचना प्रणाली की मुख्य विशेषताएं संक्षेप में इस प्रकार हैं :-

. यह प्रणाली सभी प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्कूलों के प्राथमिक#उच्च प्राथमिक अनुभागों में 8 वर्ष की स्कूलिंग को कवर करती है।

. इसमें शामिल शैक्षिक विभिन्नताओं की धारणा और परिभाषाओं को राष्ट्रीय स्तर पर मानक रूप दिया गया है और सभी जिलों तथा राज्यों में समान रूप से उन्हें अपनाया जाता है।

. मैनुअल पध्दति से आंकड़ों के संग्रह का स्थान पूरी तरह कम्प्यूटरीकृत डाटा एंट्री और रिपोर्ट जेनेरेशन सिस्टम ने ले लिया है।

. यह स्कूल, ग्राम, बस्ती, खंड और जिला स्तरों पर समय - सीरिज आंकड़े उपलब्ध कराती है।

. यह प्रणाली स्कूल की अवस्थिति, प्रबंधन, ग्रामीण-शहरी, पंजीकरण, भवनों, उपकणों, शिक्षकों, प्रोत्साहनों, शिक्षा के माध्यम, विकलांग बच्चों, परीक्षा परिणामों और विद्यार्थियों के प्रवाह के बारे में प्रमुख आंकड़ों को परिभाषित करती है।

. शिक्षकों, अर्ध-शिक्षकों और समुदाय शिक्षकों तथा उनके स्वरूप के बारे में अलग-अलग विस्तृत आंकड़े संग्रह किए जाते हैं और उपलब्ध कराये जाते हैं। इन आंकड़ों में सेवा कालीन प्रशिक्षण सम्बन्धी जानकारी भी शामिल होती है।

. इससे विभिन्न स्तरों पर आंकड़ों में हेर-फेर की गुंजाइश समाप्त हो जाती है। आपूर्ति किए गए आंकड़ों के लिए स्कूल जिम्मेदार होता है। राज्यों को 5 प्रतिशत नमूना आधार पर आपूर्ति किए गए आंकड़ों की शुध्दता सुनिश्चित करनी पड़ती है।

. राज्यों#जिलों को यह छूट होती है कि वे अपनी विशेष जरूरतों के अनुसार वर्ष दर वर्ष आधार पर पूरक विभिन्नताओं को शामिल कर सकते हैं। राज्य#जिला विषयक आंकड़ों के कम्प्यूटरीकरण एवं विश्लेषण के लिए अतिरिक्त सॉफ्टवेयर की आवश्यकता नहीं पड़ती।

. राज्य#जिले 'डिजाइनर' मॉडयूल का इस्तेमाल करके स्वयं के लिए विस्तृत डाटा बेस विकसित कर सकते हैं और विभिन्न प्रकार के स्कूल#बस्ती#खंड स्तर के आंकड़ों को उसके साथ जोड़ सकते हैं। यह सॉफ्टवेयर विभिन्न स्तरों पर विविध प्रकार के डाटा बेसिज परिचालित करता है और आंकड़ों के विश्लेषण तथा प्रस्तुतीकरण के लिए उपकरण उपलब्ध कराता है।

. स्कूल आधारित विभिन्नताओं और कार्य निष्पादन संकेतकों के बारे में बड़ी संख्या में मानक रिपोटर्ें बस्ती, खंड और जिला स्तरों पर एकत्र की जाती है और सॉफ्टवेयर से जेनेरेट की जाती है।

. डीआईएसई दो तरफा सूचना प्रवाह सुनिश्चित करती है। प्रत्येक स्कूल के बारे में स्कूल सारांश रिपोर्ट जेनेरेट की जाती है ताकि स्कूल और ग्राम शिक्षा समिति के सदस्यों को उपलब्ध कराई जा सके।

. यह विभिन्न प्रकार के आरेखों और आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण में वृध्दि के लिए इस्तेमाल करने में आसान गतिशील आरेख सुविधा प्रदान करती है।

. डीआईएसई बेहतर प्रबंधन एवं आंकड़ा आधारों की सुरक्षा के लिए सॉफ्टवेयर डिजाइन की मल्टी-यूजर और मॉडयूलर प्रणाली प्रस्तुत करती है।

. यह मानक पहलुओं, जैसे स्कूल सूची, प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों से रहित गांवों की सूची, केवल एक शिक्षक वाले स्कूलों, बिना भवन के स्कूलों, उच्च पीटीआर वाले स्कूलों आदि के बारे में पूर्व निर्धारित सवालों का उत्तर देती है।

; यह सैकड़ों विभिन्नताओं के बारे में इस्तेमालकर्ता द्वारा परिभाषित प्रश्नों को गतिशील ढंग से उठाने में सहायता करती है।

; यह नई विभिन्नताओं के पैदा होने और उनके विश्लेषण सहित बुनियादी आंकड़ा विश्लेषण की सुविधाएं प्रदान करती है।

; इससे संबध्द रिपोर्टों को बिना पूर्ण साफ्टवेयर लगाये बड़ी संख्या में इस्तेमाल कर्ताओं द्वारा उपयोग में लाया जा सकता है।

; इस्तेमाल कर्ताओं आदि द्वारा सांख्यिकीय एवं अन्य विश्लेषणों के लिए आंकड़ों को कई अन्य प्रारूपों में ले जा सकता है।

डीआईएसई प्रयासों के प्रमुख परिणाम

; एकजुट प्रयासों के जरिए एमआईएस यूनिट अब आवश्यक हार्डवेयर और साफ्टवेयर के साथ जिला और राज्य दोनों स्तरों पर परिचालित है।

; डीआईएसई साफ्टवेयर अब देश के सभी जिलों (35 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों) में परिचालित है और नीति तय करने तथा जिला अनिवार्य शिक्षा योजनाएं तैयार करने में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करा रहा है।

; डीआईएसई के बारे में अधिक उल्लेखनीय बात ये है कि इसने शैक्षिक आंकड़ों की उपलब्धता में समय का अंतराल कम कर दिया है। यह अंतराल अब राष्ट्रीय स्तर पर 7-8 वर्ष से घटकर 1 वर्ष से भी कम रह गया है और जिला एवं राज्य स्तरों पर केवल कुछ ही महीने का रह गया है। आंकडों के संग्रह और संप्रेषण के बीच अंतराल में नाटकीय ढंग से कमी आयी है। किसी एक राज्य के भीतर समय का अंतराल गिने चुने महीनों का रह गया है। वर्ष 2006-07 (30 सितंबर, 2006 तक) संबंधी आंकड़े इस्तेमाल करने के लिए तैयार स्थिति में अनेक राज्यों में उपलब्ध हैं।

; डीआईएसई ने अब आंकड़ो का अंतराल भी समाप्त कर दिया है, क्योंकि सार्वभौम प्राथमिक शिक्षा के सभी पहलुओं के बारे में व्यापक जानकारी अब देश भर में उपलब्ध है।

; पहली बार ऐसा हुआ है कि स्कूल स्तर पर टाइम-सीरीज डाटा उपलब्ध हैं। डीआईएसई आंकड़ो के ट्रेंड विश्लेषण से खंड और जिला विषयक प्रमुख मुद्दों की पहचान करने में मदद मिली है, जिनका इस्तेमाल विकास संदर्श और वार्षिक योजनाओं में किया जा रहा है।

; पहली बार डीआईएसई संप्रेषण गतिविधियों के हिस्से के रूप में प्राथमिक शिक्षा के बारे में जिला रिपोर्ट कार्ड वार्षिक आधार पर जारी किया जा रहा है, जिसमें जिला स्तर संबंधी अनेक विभिन्नताओं के बारे में टाइम-सीरीज़ और क्रास-सेक्शनल आंकड़े शामिल होते हैं। राज्य रिपोर्ट कार्ड भी विकसित किए गए हैं, और पिछले 4 वर्ष से संप्रेषित किए जा रहे हैं।

; डीआईएसई आंकड़ो के विश्लेषण संबंधी विस्तृत विश्लेषण रिपोर्ट अब हर वर्ष प्रकाशित की जा रही है।

; अनेक राज्य अब स्वयं के प्रकाशन जारी करने लगे हैं और सबके लिए प्राथमिक शिक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में जिला एवं खंड विशेष संबंधी आंकड़े संप्रेषित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त कुछ राज्यों ने डीआईएसई कवरेज के अंतर्गत गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को भी शामिल किया है। पंजाब के गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों के बारे में एक अध्ययन रिपोर्ट हाल ही में एनयूईपीए द्वारा प्रकाशित की गयी, जिसका शिक्षा आयोजकों और नीति निर्माताओं ने व्यापक स्वागत किया। इसी प्रकार एनयूईपीए ने भी प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थियों की संख्या के बारे में एक अध्ययन कराया है, जो डीआईएसई 2004-05 और 2005-06 आंकड़ों पर आधारित है।

; डीआईएसई ने राष्ट्रीय स्तर की प्रणाली विकसित करने में सहायता की है, जो जिला और राज्य प्रणालियों को श्रेणीबध्द डाटाबेस के आधार पर जोड़ती है। सर्व शिक्षा अभियान की आयोजना, प्रबंधन और निगरानी के लिए डीआईएसई आंकड़ो के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों के अंतर्गत शैक्षिक आयोजकों एवं प्रशासकों के लिए पूर्वाभिमुखी करण और प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन शामिल है।

; हर वर्ष विभिन्न स्तरों पर डीआईएसई आंकड़ो की हिस्सेदारी अब एक नियमित प्रयास बन गया है। अनेक राज्यों ने हाल ही में आंकड़ों के आदान प्रदान के बारे में कार्यशालाओं का आयोजन किया। राष्ट्रीय स्तर पर डीआईएसई के प्रमुख निष्कर्षों को हर वर्ष योजनाकारों, प्रशासकों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविद्ों और अन्य डाटा इस्तेमालकर्ताओं को उपलब्ध कराया जाता है।

; डीआईएसई की आधिकारिक वेबसाइट (ण्द्यद्यद्र:##ड्डद्रङ्ढद्र_त्द्म.दृध्दढ़) विकसित की गयी है और उसे निरंतर अद्यतन बनाया जा रहा है। डीआईएसई के अंतर्गत कवर किए गए प्रत्येक जिले के बारे में जिला रिपोर्ट कार्ड और कच्चे आंकड़े अप्लोड किए जाते हैं। डाटा-कैप्चर फोरमेट्स, साफ्टवेयर पैचिज आदि भी उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराये जाते हैं। विश्लेषणात्मक रिपोटर्ें भी इंटरनेट पर उपलब्ध करायी जाती हैं।

; जिला रिपोर्ट कार्ड और विश्लेषणात्मक रिपोटर्ें कम्पेक्ट डिस्क में भी इस्तेमाल कर्ताओं को उपलब्ध करायी जा रही हैं।

; इस्तेमालकर्ताओं को ऑनलाइन सहायता देने के लिए इंटरनेट पर डीआईएसई यूजर ग्रुप बनाया गया है, जो अत्यंत संक्रिय है। इस्तेमालकर्ता सामान्य हित की समस्याएं ग्रुप को पोस्ट करते हैं, ताकि उनका समाधान हो सके।

; भारत सरकार ने शैक्षिक आंकड़ों की समीक्षा के लिए हाल ही में एक समिति का गठन किया था, जिसकी रिपोर्ट की प्रतीक्षा है। इस बात की प्रबल संभावना है कि समिति डीआईएसई का विस्तार शिक्षा के प्राथमिक से माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा के लिए करने की सिफारिश करेगी। वास्तव में कुछ राज्य अपने यहां स्वयं ही डीआईएसई कवरेज का विस्तार कर चुके हैं। कुछ राज्यों ने शिक्षा के प्राथमिक स्तर के बारे में डीआईएसई को एक मात्र स्रोत मानने का फैसला भी किया है।

डीआईएसई के वार्षिक प्रकाशन

; ऐलिमेंटरी एजुकेशन इन इंडिया : प्रोग्रैस टूवड्र्स यूईई : डीआईएसई फ्लैश स्टेटिस्क्सि

; ऐलिमेंटरी एजुकेशन इन इंडिया : वेयर डू वी स्टैंड?, डिस्ट्रिक रिपोर्ट काड्र्स, वोल्यूम-1

; ऐलिमेंटरी एजुकेशन इन इंडिया : वेयर डू वी स्टैंड?, डिस्ट्रिक रिपोर्ट काड्र्स, वोल्यूम-2

; ऐलिमेंटरी एजुकेशन इन रूरल इंडिया : ऐनेलिटिकल टेबल्स

; ऐलिमेंटरी एजुकेशन इन अर्बन इंडिया : ऐनेलिटिकल टेबल्स      

; ऐलिमेंटरी एजुकेशन इन इंडिया : वेयर डू वी स्टैंड?, स्टेट रिपोर्ट काड्र्स,

; ऐलिमेंटरी एजुकेशन इन इंडिया : प्रोग्रैस टूवड्र्स यूईई, ऐनेलिटिकल रिपोर्ट

       उपरोक्त वार्षिक प्रकाशनों के अतिरिक्त केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने हाल ही में 10 लाख से अधिक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों#सेक्शनों के स्कूल रिपोर्ट कार्ड भी प्रकाशित किए हैं। मात्रात्मक जानकारी के अतिरिक्त ये रिपोर्ट कार्ड्स अलग अलग स्कूलों के बारे में गुणात्मक जानकारी और वर्णनात्मक रिपोर्ट भी प्रदान करते हैं और यह सभी जानकारी माउस क्लिक करने (.द्मड़ण्दृदृथ्ध्दङ्ढद्रदृध्दद्यड़ठ्ठध्दड्डठ्ठद्म.त्द) भर से प्राप्त की जा सकती है। ये रिपोर्ट कार्ड इस्तेमाल कर्ताओं को सभी महत्वपूर्ण मानदंडों, जैसे विद्यार्थी, शिक्षक या स्कूल संबंधी विभिन्नताओं के बारे में व्यापक जानकारी प्रदान करने के लिए जारी किए जाते हैं। यह जानकारी प्रत्येक स्कूल के बारे में सारगर्भित, विशुध्द और मानक प्रारूप में उपलब्ध करायी जाती है, जिसे आसानी से समझा जा सकता है। इसमें स्कूलों के बीच सार्थक तुलना भी की जाती है।

       डीआईएसई फ्लैश स्टेटिस्टिक्स : 2005-06 के जरिए शायद पहली बार डीआईएसई आंकड़ों के आधार पर शैक्षिक विकास सूचकांक तैयार किया गया है, और तदनुरूप राज्यों को रैंक दिया गया है। जिला विषयक शैक्षिक विकास सूचकांक-ईडीआई तैयार करने में सहायता के लिए एनयूईपीए ने हाल ही में शैक्षिक विकास सूचकांक की गणना के बारे में राज्य स्तर के अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन किया। इसके अतिरिक्त ईडीआई के आधार पर देश के सभी जिलों को रैंक देने का प्रयास भी किया गया है। उम्मीद है कि ईडीआई से प्राथमिक शिक्षा के बारे में भावी निवेश तय करने में मदद मिलेगी।

इन सभी महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बावजूद डीआईएसई आंकड़ों का पर्याप्त उपयोग न किया जाना अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है। हालांकि समय के साथ साथ आंकडों के इस्तेमाल में सुधार हुआ है। इसका पता सर्व शिक्षा अभियान के तत्वावधान में विकसित जिला प्राथमिक शिक्षा योजनाओं से चलता है। फिर भी इस क्षेत्र में अभी सुधार की गुंजाइश है। राज्यों को मिलकर खंड, जिला और राज्य स्तरों पर कार्यशालाओं के आयोजन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। पिछले वर्षों में डीआईएसई आंकड़ों के लिए मांग पैदा करने के प्रयास किए जाते रहे हैं। बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय पुस्तकालयों, अनुसंधान एवं ज्ञान संस्थानों, शिक्षाविद्ों, योजनाकारों, प्रशासकों, नीति निर्माताओं और देशभर में आंकड़ों का इस्तेमाल करने वाले अन्य लोगों को जिला रिपोर्ट कार्ड, राज्य रिपोर्ट कार्ड, डीआईएसई फ्लैश स्टेटिस्टिक्स, ऐलिमेंटरी ऐजुकेशन इन रूरल एंड अर्बन इंडिया और ऐनिलिटिकल रिपोर्टों, जैसे प्रकाशन उपलब्ध कराये जा रहे हैं। चालू वर्ष के दौरान इस सिलसिले को तेज किया जाएगा। इसके अतिरिक्त यूनिसेफ ने भी डीआईएसई आंकड़ों के आधार पर किये जाने वाले अध्ययनों में सहायता करने का निर्णय किया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डीआईएसई और उसके द्वारा पैदा किए जाने वाले आंकड़ों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए आक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों (ब्रिटेन) में पर्चे प्रस्तुत किए गए। एक जुट प्रयासों के जरिए उम्मीद की जा रही है कि आने वाले वर्षों में डीआईएसई आंकड़ों की मांग बढ़ेगी।

डीआईएसई : कवरेज

       शुरू में डीपीईपी चरण-1 के अंतर्गत सात राज्यों के 42 जिलों में डीआईएसई कवरेज प्रदान की गयी। ये राज्य थे, असम, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट और तमिलनाडू। डीपीईपी कार्यक्रम के विस्तार के साथ धीरे धीरे कवरेज संबंधी जिलों की संख्या बढ़ती गयी, क्योंकि चरण-2 और 3 में शामिल जिले भी कवेरज के दायरे में गये। 2001 के अंत तक देश के 18 राज्यों में फैले 270 से अधिक जिलों ने डीआईएसई को अपना लिया था। 2001 में सर्व शिक्षा अभियान प्रारंभ किए जाने से डीआईएसई का विस्तार समूचे प्राथमिक शिक्षा स्तर तक हो गया और देश के सभी जिले इसके दायरे में गये। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि सर्व शिक्षा अभियान कार्यक्रम के अंतर्गत परियोजना पूर्व महत्वपूर्ण गतिविधियों मे ंएक कार्य प्रबंधन सूचना प्रणाली को मजबूती प्रदान करना था, जिसके लिए सर्व शिक्षा अभियान के तहत जिलों को धन दिया गया। सर्व शिक्षा अभियान से पहले भी अनेक डीपीईपी राज्यों ने डीआईएसई का विस्तार गैर-डीपीईपी जिलों में करना शुरु कर दिया था।  2002-03 के दौरान कवरेज का और विस्तार करते हुए 18 राज्यों के 461 जिलों को इसके दायरे में लाया गया, किंतु कवरेज केवल डीपीईपी राज्यों तक सीमित रही। 2003-04 के दौरान कवरेज का और विस्तार हुआ और 25 राज्यों तथा संघ शासित प्रदेशों के 539 जिलों को इसके दायरे में लाया गया। हरियाणा को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में जिलों के संदर्भ में कवरेज 2003-04 के दौरान शतप्रतिशत हो चुकी थी। हरियाणा अपने 19 जिलों में से केवल 17 के बारे में आंकड़े उपलब्ध करा पाया। दूसरी ओर पंजाब ने केवल सरकारी स्कूलों के बारे में आंकड़ें उपलब्ध कराये। पहली बार सात गैर डीपीईपी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों ने 2003-04 के दौरान डीआईएसई को अपनाया। ये राज्य थे, चंडीग़ढ, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब और त्रिपुरा। 2004-05 के दौरान 4 और राज्य तथा  संघ शासित प्रदेशों ने डीआईएसई के अंतर्गत कवर किए गए, ये थे अरूणाचल प्रदेश, दिल्ली, जम्मू कश्मीर और पांडिचेरी। किन्तू जम्मू कश्मीर 14 जिलों में से केवल 12 के बारे में आंकड़ें दे पाया। वर्ष 2005-06 (30 सितंबर, 2005) तक देश के सभी 35 राज्यों और संध शासित प्रदेशों के जिलों को डीआईएसई के अंतर्गत कवरेज दी गयी।

 

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