बुधवार, 30 जुलाई 2008

हास्‍य/व्‍यंग्‍य जहँ जहँ चरण पड़े सन्‍तन के, तहँ तहँ बंटाढार भये...... नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

हास्‍य/व्‍यंग्‍य

जहँ जहँ चरण पड़े सन्‍तन के, तहँ तहँ बंटाढार भये......

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

गोया किस्‍मत को किसी से दुश्‍मनी हो तो क्‍या कहिये । अपने मुरैना पुलिस में एक मंझले सिपाही (हमारे लालू प्रसाद जी सी.एस.पी. कों मंझला सिपाही बोला करते हैं) के न जाने दिन खोटे हैं, कि न जाने ग्रह हाथ धो कर या नहा धो कर उनके पीछे पड़ गये हैं ।

हमारे मंझले सिपाही की मेष राशि है, और मेष राशि में इन दिनों भारी उथलपुथल मची है । मेष राशि वाले अशोक अर्गल ने मेष राशि वाले ठाकुर अमर सिंह से पंगा ले लिया ।

अर्गल को मुरैना आना था, कैसे नहीं आते उनका घर जो दत्‍तपुरा में ठहरा । हमारे कलेक्‍टर साहब ने आफ्टर उपद्रव ठोक ठोक (क्‍या ठोका ये न पूछिये) के कहा कि अरे भाई उनका घर है घर भी नहीं आने दोगे क्‍या ।

टी.आई. के.डी.सोनकिया ने भी जम कर ठोक पीट (क्‍या ठोका पीटा ये न पूछिये) कर कहा ठोक दो सालों पर, हरामजादों पर मामले, इतना भीतर डाल दो कि साले जनम भर याद करें, करो भीतर निकलने नहीं चाहिये बाहर ।

अब भईया अर्गल तो भभ्‍भर मचा आया दिल्‍ली में, हमने भी देखा था टी.वी. पर कइसा नोट लहरा रहा था, इण्‍टरनेशनल हस्‍ती बन रहा था, सरकार गिरा रहा था । पठ्ठे ने ऐसे नोट हवा में उछाले थे जैसे ससुरे एक करोड़ नहीं एक एक के सौ नोट हों, अइसे फेंक आया संसद में जैसे ऐसे और इजने नोटों का तकिया तो उसके नौकर भी नहीं लगाते हों ।

अर्गल पर उस बखत पूरे मुरैना को भयंकर गुस्‍सा आया, लोग बोले, जे तो पगलियाय गयो (ये तो पागल हो गया है) जे तो नोट ऐसे दिखाय रहो है जैसे पैसा कछू होतुई नानें (ये तो नोट इस तरह दिखा रहा है जैसे पैसा कुछ होता ही नहीं ) झां सारो सौ सौ पचास पचास कें काजें मत्‍तो, अब जि करोड़नि फेंकवे चिपटो ऐ । अये ला हमनिई दे दे, अये जा में ते दस लाखई दे दे तो हम तर जागें, अये पागल मुरैना लिआ दस बीसनि के भले हें जागें ।

खैर ये तो '' सीन ऑफ इवेण्‍ट जस्‍ट हैपन्‍ड'' था ।

पर अर्गल दिल्‍ली में क्‍या कर आये, ये उतना महत्‍वपूर्ण नहीं था, खास बात थी कि अब चम्‍बल में क्‍या करेंगें ।

चम्‍बल में जल्‍दी ही अर्गल आउट ऑफ डेट यानि एक्‍सपायर्ड डेट की दवा बन जायेगें । दर असल अर्गल रिजर्व कोटे के हैं, वे बकाया दोंनों भी रिजर्व कोटे से आते हैं जो अर्गल काण्‍ड में शामिल थे । और अब इनकी सीटें नये परिसीमन में खत्‍म होकर सामान्‍य हों गयीं हैं । अब ये अपने अंतिम कार्यकाल की अंतिम घडि़यां गिन रहे हैं । वह तो भला हो यूपीए सरकार का कि इन एक्‍सपायर हो रहे सांसद महोदय के संसदीय दिये में तेल डाल कर कुछ और दिनों का जीवन दान दे दिया वरना अब तक तो एक्‍स्‍पायर हो चुके होते । और अंतकाल प्राप्‍त सांसद सूची में दर्ज हो गये होते ।

पर ये भी उतना महत्‍वपूर्ण नहीं था कि अर्गल का करेंगें । महत्‍वपूर्ण था कि अर्गल मुरैना आयेंगें तो का होगा ।

लोग अर्गल को पूजेंगें कि पन्हियायेंगें । ये टेंशन तो सबको ही खाये जा रहा था । ऊपर से अर्गल की अगवानी के लिये कांग्रेस ने मुँह काला करने का और समाजवादी वालों ने जूतों से मारने का ऐलान करके इस टेंशन का ब्‍लडप्रेशर बहुत हाई कर दिया था । शहर को टेंशन, जिले को टेंशन, चम्‍बल को टेंशन, म.प्र. को टेंशन, प्रशासन को टेंशन, पुलिस को टेंशन, और पत्रकारों को वैसे ही चौबीस घण्‍टे टेंशन रहता है अबकी बार फिर टेंशन ।

टेंशन में टेंशन तब ज्‍यादा हो गया जब मुरैना के मंझले सिपाही को उसी के उसी दिन चार्ज दिलाया गया, अब कहावत है कि जहँ जहँ चरण पड़े सन्‍तन के..... इधर मंझले सिपाही ने चार्ज लिया उधर अर्गल का आगमन हो गया ।

पहले पहाड़गढ़ में पंगा कर आये थे, ठाकुरों के दुश्‍मन नंबर एक हैं, ठाकुर नजर आते ही मंझले सिपाही की ऑंखों में खून खौल जाता है, और उसका एनकाउण्‍टर ठोक देते हैं, ठाकुर तो समूची सरकार के ही दुश्‍मन हैं, एक दिन पहले चम्‍बल से सारे ठाकुर अफसर और कर्मचारी हटा दिये गये,बाद बकाया सस्‍पैण्‍ड कर डाले, दूसरे दिन ही तीन दर्जन ठाकुरों (तंवरघारीयों) को जिला बदर की सूची निकाल डाली, सो ठाकुर विरोधीयों को तो चार्ज ए बादशाही होना ही थी, यह हैरत की बात नहीं थी । हैरत की बात ये थी कि पठ्ठे ने चार्ज लिया और पंगा भी हुआ और दंगा भी ।

कांग्रेस में जितने भी ठाकुर थे सबके खिलाफ आनन फानन में अपराध भी दर्ज कर दिये । मजे की बात ये कि सबमें अधिकांश लगभग 90 फीसदी ठाकुर ही मुल्जिम बने ।

शहर कोतवाल साहब पहले से ही ठाकुरों के दुश्‍मन थे अब मंझले सिपाही भी ठाकुरों के दुश्‍मन तो जो होना था, अगर शिल्‍पा शेट्टी की सभ्‍य भाषा में कहें तो '' जरा ज्‍यादा ही हो गया ''

पर हमारे मंझले सिपाही का कोई पैर तो देखो, साला कई महीनों से भारी चल रहा है, उनका पॉव भारी होना पूरे पुलिस डिपार्टमेण्‍ट के लिये मुसीबत बन गया है, वे जहॉं भी पॉंव धरते हैं पंगा और दंगा अपने आप ही हो जाता है । बेचारे इतने समय से बगैर नहाये धोये, बगैर मंजन अंजन के घूम रहे हैं कोई तो इलाज बताईये ।

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