बुध को पॉंच,गुरू को सात और शुक्रवार को साढ़े आठ घण्टे कटी बिजली
अघोषित कटौती से अंचल में मची त्राहि त्राहि , रात को भी नहीं बख्शा पठठों ने
मुरैना । 23 जून 2007 । जैसा सदा से होता आया है , पुराना घिसा पिटा रिकार्ड जो बजता आया है फिर बज रहा है । चम्बल घाटी में बिजली कटौती ने अपने रंग दिखाने दोबारा चालू कर दिये हैं । मजे की बात यह है कि यह अघोषित होती है, चाहे जब आती है, चाहे जब आती है । आ आ कर जाती है तो कभी जा जा कर आती है ।
जहॉं इन दिनों लोगों की उमस भरी गर्मी से हालत पतली है, वहीं दनादन हो रही बिजली कटौती उस पर ''करेला नीम चढ़ा'' वाली उक्ति सार्थक कर रही है ।
कटौती का चम्बल अंचल में आलम इस कदर बदतर है । कि दिन तो दिन छोडि़ये हुजूर आजकल रात में भी बिजली बन्द रहती है ।
जहॉं चम्बल में पिछले चन्द महीनों और दिनों में लूट , डकैती , राहजनी और गोली मारने जैसी घटनाओं की अचानक बाढ़ आयी है वहीं रात को बिजली कटौती ने मानो अपराधीयों और बदमाशों को पूरी आजादी देकर पर लगा दिये हैं ।
मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी इन दिनों चोर उचक्कों और खासकर बदमाशों पर खासी मेहरबां है , उनके डयूटी कार्य में विघ्न न पहुँचे सो रात में बिजली बन्द कर खिदमत और मदद दोनों ही दोनों हाथ पलक पांवड़े बिछा कर, कर रही है ।
अभी दो रोज पूर्व भारत के प्रधान मंत्री ने ताला पारेषण प्रणाली पर अपने भाषण में ऐसी बिजली कटौती और कृत्रिम कमी पर खासा रोष व्यक्त किया था । इससे पहले चन्द रोज पूर्व ही बिजली कटौती कमी और लाइन लॉसेज तथा चोरी जैसे मामलों पर प्रदेशों के मुखियाओं की बैठक भी ली थी । मगर हालात सुधरने के बजाय उल्टे और बिगड़ गये ।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने जहॉं सामाजिक आर्थिक क्षेत्र में नयी सोच और नई ईजाद के जरिये न केवल अपनी अलग पहचान बनाई बल्कि कई मामलों में तो इतिहास भी रचा है । और उन्हें ऐसे कामों के लिये याद भी रखा जायेगा । बिजली मामले में मुख्यमंत्री कई बार आश्वासन, उलाहना, और खोखला भरोसा भी देते रहते हैं, लेकिन यकीनन इस मोर्चे पर पस्त और परास्त ही रहे हैं ।
जहॉं एक जमाने में बिजली कटौती के चलते म.प्र. की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के मुखिया दिग्विजय सिंह कई नये व आधुनिक सोच के ऐतिहासिक काम करने के बावजूद लोगों की नजर में खलनायक बन गये थे और बिजली कटते ही प्रदेश के हर घर से आने वाली गालीयों और कोसने की बददुआओं से लिपट गये थे अंतत: उनके कई अच्छे और महत्वपूर्ण काम उनके काम नहीं आये । और न केवल सत्ता गंवा बैठे बल्कि आज तलक लोग नहीं चाहते कि भूल कर भी उनका नाम बतौर मुख्यमंत्री लिया जाये । यहॉं तक कि हालात ऐसे हैं कि अगर उन्हें अगले साल होने वाले चुनाव में भूल कर भी कांग्रेस मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करती है तो पहले से भड़की जनता और ज्यादा भड़क जायेगी और परिणाम क्या होगा किसी से छिपा नहीं है ।
इससे भी ज्यादा बुरा हाल उमा भारती का रहा है, जहॉं उमा ने चुनाव 2003 से पूर्व जनता को दिग्विजय सिंह का खलनायकी रूप दिखाने और गंदगी की डलिया पटकने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी वहीं दिग्विजय सिंह को ''मिस्टर बंटाढार'' जैसे टाइटल्स नवाज कर दिग्विजय का बंटाढार करने में कोई कसर बकाया नहीं रखी और पहले से ही तिलमिलाई जनता के घाव उमा ने चुनाव पूरे होने तक तरोताजा कर के रखे । नमक छिड़कते और कुरेदते रहने से जनता को लगा कि उमा डॉक्टर है शायद डेटॉल लगा कर अभी सफाई में लगी है और मुख्यमंत्री बनते ही दवाई लगा देगी और ठीक कर देगी ।
उमा ने कहा था कि मुख्यमंत्री बनते ही केवल एक महीने में बिजली कटौतरी बन्द करा दूंगी और प्रदेश कौ चौबीस घण्टे अबाध बिजली दूंगीं । उमा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद इसमें थोड़ा संशोधन किया और तीन महीने की बात कह कर किसी राजनैतिक जॉंच आयोग के कार्यकाल की तरह खुद ही टाइम बढ़ा लिया । उसके बाद उन्होंने एक साल का एक्सटेंशन लिया फिर तीन साल का, वगैरह वगैरह । आखिर उमा भी लोगों की नजर से उतर गयीं ।
बाबू लाल गौर ही केवल एक ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिसने करिश्माई तरीके से न केवल बिजली कटौती बन्द करवा दी बल्कि स्टेबल एण्ड एक्जेक्ट वोल्टेज देकर लोगों को चमत्कृत कर दिया था ।
हालांकि प्रदेश में अगले साल चुनाव होने हैं , और वर्तमान हालातों में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व शायद नहीं चाहेगा कि प्रदेश में बार बार नेतृत्व परिवर्तन कर छीछालेदर करवाई जाये और चालू गाड़ी की रिपेयरिंग और ठोकापीटी से ही काम लेना चाहेगा । ऐसे में बिजली एक आसन्न और विकट खतरा तो कम से कम है ही ।
हालांकि किसी चुनाव को कई स्थानीय और कई सार्वत्रिक एवं प्रादेशिक कारक प्रभावित करते हैं तथा कई और भी वजह रहतीं हैं , केवल बिजली ही प्रधान और एकमात्र कारक नहीं होती यह तो सत्य है लेकिन प्रधान कारकों के प्रधान तत्वों में से एक है , यह तथ्य भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता ।
शुतुर्मुर्ग यदि रेत में सिर छिपा कर अपनी समस्याओं का अंत मान ले तो इसमें समस्याओं का क्या दोष है ।
फिलवक्त तो खबर ये है कि आज रात दो बजे तक यानि शुक्रवार और शनिवार के दरम्यानी रात तक चली बिजली कटौती ने अंचल को हिला दिया है ।
कटौती के पीठे बदमाशी चाहे ऊपर के स्तर से हो रही हो चाहे स्थानीय स्तर पर पिस तो जनता ही रही है । अभी जनता फिर सरकार । यानि खरबूजे की नियति है कटते रहना और चाकू की नियति है काटते रहना । मगर जो हाथ इस चाकू के पीछे हैं उनका जिक्रे आम कभी नहीं होता ।
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