निकाय चुनाव में होगी भाजपा कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर- दैनिक मध्यराज्य मुरैना
भाजपा को बिजली का करंट तो कांग्रेस को मंहगाई का खतरा
राजेश चिंतक (लेखक चम्बलघाटी के वरिष्ठ पत्रकार हैं )
मुरैना...मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव की घोषणा होते ही राजनेतिक सरगर्मिया तेज होगई है प्रदेश में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी और केन्द्र में सत्तारूढ कांग्रेस के बीच ही इस वार भी सीधा मुकावला होने की संभावना है। विधान सभा चुनाव में मात खाने के बाद कांग्रेस ने लोक सभा में अपने प्रदर्शन को सुधारा मगर अब नगरीय निकायचुनाव में क्या वह लोक सभा के प्रदर्शन को दोहरा पायेगी या भाजपा एक बर्ष पूर्व हुए विधान सभा चुनाव में पार्टी को मिले अपार जनसमर्थन को बापिस अपने पक्ष में लाने में कामयाव होगी ? दोनों ही दलों के लिये नगरीय निकाय चुनाव में कठिन परीक्षा है। एक ओर प्रदेश की सत्ता पर काविज भाजपा के लिये प्रदेश में बिजली की आपूर्ति सुचारू रूप से न होना नगरीय निकाय के चुनावों में प्रतिकूल स्थिति बना सकती है तो दूसरी ओर केन्द्र की सत्ता पर काविज कांग्रेस के लिये दिनो दिन बढ रही मंहगाई का खतरा भी पैदा हो सकता है। भाजपा बिजली की आपूर्ति पर नियंत्रण नही कर पा रही है और कांग्रेस मंहगाई को नियंत्रित न कर पाने की असमर्थता जता रही है। आम मतदाता बिजली एवं मंहगाई दोनों से ही बुरी तरह पीडित है ऐसी स्थिति में वह भाजपा या कांग्रेस दोनों में से किसे चुने दोराहे पर खडाहुआ है। यद्धपि स्थानीय निकाय के चुनाव का संबन्ध बिजली एवं मंहगाई जैसे संबेदनशील मुद्दों को अधिक प्रभावित इसलिये नही करेगा क्यों कि इन मुद्दों का हल स्थानीय निकाय के सीमा क्षेत्र में नही आता फिर भी किसी सीमा तक ये मुद्दे स्थानीय निकाय के चुनाव में दोनों ही राजनैतिक दलों के लिये सरदर्द बन सकते है।
बहरहाल प्रदेश में अभी तो दोनो राजनैतिक दल प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया में ही उलझे हुए है जिससे दिनांक 25 तक सुलझने की संभावना है चयन प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद ही इन दलों का चुनाव प्रभावित करने वाले मुद्दो की ओर जावेगा तब ये तय करेगे कि चुनाव जीतने के लिये ऐसी कौन सी लोक लुभावन एवं मतदाता को रिझााने की रणनीति बनाई जाये जिससे स्थानीय निकाय के चुनावों में विजयश्री हासिल की जा सके।
कांग्रेस एवं भाजपा से प्रथक अन्य राजनेतिक दल बसपा,सपा,भाजशपा,राष्ट्रीय सवर्ण समाजपार्टी ,लोकदल अथवा बामदलों का अस्तित्व लोक सभा की तरह स्थानीय निकायचुनावों में भी लुप्त होता दिखाई पडता है। क्यो कि केन्द्र या राज स्तर पर इन दलों की सरकारें न होना तथा राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक स्थिति का अधिक सुदृड न होना इन दलों के अस्तित्व मिटाने में सहायिक सिद्ध हो सकता है। ऐसा इसलिये परलक्षित होता है क्यो कि इन दलों में प्रत्याशियों के चयन की कोई ल चल दिखाई नही देती है। इन दलों से टिकिट माांगने वालों की संख्या नगण्य है। टिकिट के लिये टिकिट चाहने वाले प्रत्याशियों का अभाव है और आपसी कोई प्रतिस्पर्धा भी दिखाई नही देती है। सभी दलों के दल प्रमुख टिकिट मांगने वालों का इंतजार कर रहे है। किन्तु आम तोर पर इन दलों से टिकिट चाहने वाले सामने नही आ रहे है।
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