जब गलत लोग या आसुरी प्रवृत्ति के लोग भगवान या ईश्वर का नाम सुमरने लगें या उसकी दुहाई देंनें लगें तो चतुर मनुष्यों को सावधान हो जाना चाहिये । यह आभास हो जाना चाहिये कि खतरा आसन्न व सन्निकट ही है ।
कुप्रवृत्तियों, दूषित प्रवृत्तियों, रजोगुण व तमोगुण में लिप्त मनुष्यों व पाखण्डीयों द्वारा ईश्वर का नाम लेने व ईश्वरीय आस्था व श्रद्धा का ढोंग एवं पाखण्ड करने से ईश्वर भी घृणा का पात्र हो जाता है और लोग ईश्वर में कलंक देखने लगते हैं अत: अनुचित वर्ण व अनुचित मनुष्य के कानों में व जिह्वा पर ईश्वर का नाम मात्र भी नहीं आना चाहिये ऐसे लोगों के कानों में व मुंह में पिघला हुआ सीसा भर देना चाहिये । - संकलित चाणक्य नीति एवं वेदों से
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