मंगलवार, 26 अगस्त 2008

हास्‍य/व्‍यंग्‍य -आओ चलो अखबार निकालें, विज्ञापन पायें, गरीबी हटायें - नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनन्‍द’’

हास्‍य/व्‍यंग्‍य

आओ चलो अखबार निकालें, विज्ञापन पायें, गरीबी हटायें

चम्‍बल विकास प्राधिकरण को बने तो 25 साल हो गये, करोड़ो खर्च के बाद अब दोबारा बनेगा क्‍या

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

सरकार को टेन्‍शन है कि एक अरब लोगों में केवल तीन आदमी अरब पति हैं, बकाया एक अरब सब इनकी पत्‍नीं हैं यानि हाल कंगाल हैं, सरकार फालतू ही नर्राती रहती है, बेकार ही मंजीरे पीटती रहती है कि गरीबी हटाओ । इंदिरा जी भी चिल्‍लातीं थीं गरीबी हटाओ, चिल्‍लाते चिल्‍लाते शहीद हो गयीं मगर गरीबी शहीद न हुयी । गरीब और गरीब होता गया, अमीर को अमीरी रास आ गयी वह और अमीर होता गया । गरीब को गरीबी रास आयी, गरीब की पॉकेट से पैसा अमीर का जिन्‍न लपक कर अमीर की तिजोरी में पहुँचाता रहा । एक हजार गरीब का हैण्‍ड फैन छिन गया तो एक अमीर का ए.सी. लग गया । एक हजार गरीब को एक वक्‍त की रोटी कुर्बान करनी पड़ी तो अमीर के कुत्‍ते के लिये विदेशी बिस्‍कुट का पैकेट आ गया । अमीर अतिअमीर होते रहे गरीब अति गरीब, का करिये अपने अपने नसीब की बात है, अंग्रेजी में एक कहावत होवे है कि अमीर का छोरा मुंह में सोने की चम्‍मच लेकर पैदा होता है, गरीब का बेटा कभी दिल में छेद ले आता है तो कभी पाकिट में सूराख कभी कभी तो ससुरा मुकद्दर ही चलनी सा ले आता है । अब चलनी में दूध दुहोगे तो कर्मन कों दोष क्‍यों देवोगे । गरीब के पास राशन कार्ड बनवाने के पैसे नहीं होते, गरीबी रेखा में नाम लिखाने के पैसे नहीं होते । अब गरीबी रेखा की सूची खाली तो नहीं रखी जा सकती, सो जो दे सकता है वह आई आर डी पी में बिलो पावर्टी लाइन बन जाता है, देने की ताकत अमीरों के पास होती है, मामला फंस जायेगा तो उसे सुल्‍टाने की ताकत भी अमीरों की पॉकिट में होती है, गरीब के पास तो भुखमरी का घण्‍टा रहता है, चौबीस घण्‍टे बजाता है, हरिकीर्तन करता है, बड़ी आस से मन्दिर, मस्जिद गुरूद्वारे जाता है, दीवाली को उधार मांग कर कर्ज लेकर भी लक्ष्‍मी पूजन करता है कि मैया इस साल भण्‍डार भर देना भरपूर कर देना, लक्ष्‍मी मैया इठलाती है, इतराती है कहती है कि पहले भण्‍डार तो बता कि कहॉं है तेरा जिसे मैं भरूं, अपनी तिजोरी तो दिखा जहॉं जाकर बैठ जाऊं, गरीब के पास न तिजोरी है न भण्‍डार, रोज आधा एक किलो आटा, ढाई सौ ग्राम आलू और दो प्‍याज की गॉंठ खरीद लाता है, और लक्ष्‍मी से कहता है मैया वो जो साइड में पॉलीथिन पड़ी है, वही मेरा गोदाम है, मेरा भण्‍डार है, इसे भरपूर कर, मैया ठठा कर हँसती है, फिर गरीब बोलता है कि ये जो मेरी फटी बुशर्ट की फटी जेब है और किवाड़ की कुण्‍दी पर लटकी है यही मेरी तिजोरी है इसमें आन विराजो महारानी ।

लक्ष्‍मी मुस्‍कराती हुयी अपनी पूजा कर खिसक लेती है और उसकी ढाई सौ ग्राम की समाई साइज की पॉलीथिन में ढाई सौ ग्राम का खाता खोल देती है, उसकी फटी बुशर्ट की फटी जेब में भी जीरो बैलेन्‍स अकाउंट खोल देती है और जेब के सूराख से ही बाहर खिसक लेती है, और किसी बड़ी तिजोरी बड़े भण्‍डार वाले का गोदाम तलाशने निकल पड़ती है ।

सरकार फिर चिल्‍लाई, गरीबी हटाओ, पता नहीं किससे कहा, पता नहीं किसने सुना । मगर एक दिन पिछले साल सब सरकारी अफसरान ने एक दिन गरीबी हटाने के लिये अर्पित किया, गरीबी हटाने की शपथ हाथ आगे बढ़ा बढ़ा कर ले डाली, ससुरी शपथ क्‍या संकल्‍प कर डाला, वे सब बोले हम गरीबी हटायेंगें । हमने सारे फोटू इकठ्ठे करे और लघु फिल्‍म बना डाली (ग्‍वालियर टाइम्‍स वेबसाइट पर अभी भी चल रही है ) फिल्‍म बहुतों ने देखी, सरकार की बात भी बहुतों ने सुनी, अखबारों के जरिये या मीडिया के नजरिये ।

पर कोई नहीं चेता, कोई नहीं जागा, शपथ लेकर हाल ही सब भूल गये । गरीब ससुरा गरीब होता ही गया फटेहाल फक्‍कड़ होता गया । अब का हो, सवाल बड़ा विषम था । लेकिन हमारे देशभक्‍त चेते, उनने गरीबी दूर करने का बिना शपथ लिये बीड़ा उठाया, गरीबी किल करने की सुपारी ले ली । और लग बैठे देश की गरीबी मिटाने में, कोई बोला गरीब से, कोई का एजेण्‍ट बोला तो कोई का कन्‍सल्‍टेण्‍ट गरीब का हमदर्द बना किसी किसी के बिजनिस एसोसियट गरीब की गरीबी दूर करने गरीब के पास जा पहुँचे । और बोले हमने गरीबी किलिंग की सुपारी ली है, बीड़ा चबाया है (पहले बीड़ा चबाया जाता था, स्‍वतंत्रता के बाद उठाया जाता है )

बीड़ा उठाया तांत्रिकों ने, फायनेन्‍स कम्‍पनीयों, बैंक, शेयर ब्रोकर्स और बीमा कम्‍पनीयों ने । सबने ऐलाने जंग किया '' हम मिटायेंगें गरीबी'' फतहयाबी के आमीन बांचे । और चले गरीबी दूर करने बाबाजी और तांत्रिक गॉंवों और शहरों की निपट गंवार दिमाग से पैदल गरीब बस्तियों में पहुँचे और बोले हम मिटायेंगें बच्‍चा तेरी गरीबी, तेरे संकट का टैम खतम हुआ, अब तू भारत के पॉंच पहले अमीरों में शुमार होगा, फोर्ब्‍स पत्रिका की हिट लिस्‍ट में तेरी सम्‍पदा अंकेगी । पी एम, सी एम तेरी मुलाकात को तरसेंगें तुझे बुलाने के लिये सरकार करोड़ों रूपया फूंकेगी, रेड कार्पेट डालेगी तुझे प्र जमीन पे नहीं धरने पड़ेंगें , राल्‍स रायस में ऐशो सफर करेगा, तेरे घर से पेलेस ऑन व्‍हील्‍स निकलेगी । हसीनायें तेरी बाट जोहेंगीं, दस सुन्‍दरियां सोते से मनुहार कर मधुर संगीत सुनाते हुये जगायेंगीं, दस नवयौवनायें बिना बु्रश के तुझे मंजन अंजन करायेंगीं, दस और इठलातीं जिन्‍न परीयां तुझे स्‍नान ध्‍यान करायेंगीं, महकते इत्र और तैरती खुशबुओं के बीच हमाम में पड़ा इन परियों से मालिश करवा कर मैल छुड़वायेगा, फिर नई हुस्‍न मलिकायें तुझे वस्‍त्र पहनायेंगीं, दस और नवयुवतियां आकर तुझे नाश्‍ता करायेगीं ।

हाथ बांधे सिर झुकाये तेरे सामने फकीर फक्‍कड़ों की लाइन लगी होगी, तू बांटता जायेगा मगर तेरा खजाना उतना ही बढ़ता जायेगा । आफिस में दस सुन्‍दरीयां तेरी स्‍टेनो होंगीं हर समय बस तेरी सूरत पर नजर रखेंगीं और क्‍या हुक्‍म है मेरे आका पुकारतीं होंगीं । एक हजार एकड़ जमीन में तेरा बंगला होगा, अम्‍बानी कां बंगला और मित्‍तल का बंगला उसके बेटे के बंगले और बेटी के बंगले सबके सब तेरे पास गिरवी धरे होंगें ।

टाटा का सिलबट्टा जैसे 75 पैसे में आज तलक गिरवी पड़ा है, धर्मेन्‍द्र बीकानेर वाले पर जैसे एक होटल पान वाले के दो रूपये पिचहत्‍तर पैसे आज तलक उधार हैं, ऐसे अरबपति के खाते तेरे चौके से गुजरेंगें । बस उठ और फलां जगह दबे फलां राजा या फलां बंन्‍जारे का खजाना खोद ले हम तुझे दिलवायेंगें, खरचा मगर पचास हजार से ऊपर का होगा । गरीब ने उनके ख्‍वाब सिर ऑंखों लिये और निकल पड़ा फोर्ब्‍स पत्रिका में अपना नाम लिखाने । कर्ज जुगाड़ा, चोरी करी, डाका डाला, घर बेचा, जेवर बेचा, बिटिया गिरवी रखी, बेटा बंधुआ रखा, पचास हजार इकठ्ठे करके लाया बाबा तांत्रिक को सौंपे, बाबा ने जमीन खुदवा कर पॉंच चांदी के सिक्‍के भी दिये और कहा ये सैम्‍पल है, चेक करवा ले, अब इस खजाने पर सवार मसान या प्रेत कहता है कि बकाया माल दीवाली की अमावस को निकलेगा, तब तक रोज यहॉं घी का दीपक जलाना, किसी को यहॉं फटकने न देना, और सावधान अशुद्धि न हो जाये वरना खजाना पाताल चला जायेगा ।

गरीब खुदी जगह पर झोंपड़ी डाल कर बैठ गया, रोज दीपक जलाता और दीवाली की अमावस की रात का इन्‍तजार करता । साल भर बाद बाबा तांत्रिक फिर पधारे बोले चल निकाल पॉंच हजार नकद और दो बोतल दारू खालिस अंग्रेजी, तीन मुर्गा और सोलह नीबू । गरीब ने फिर जुगाड़ कर सामान और पैसा बाबा को दिया, बाबा और उसके चेलों ने गरीब का नाम फोर्ब्‍स पत्रिका में लिखाने को कर्मकाण्‍ड शुरू किया दो दो ढक्‍कन दारू काली और भैरों को चढ़ायी बकाया परसादी खुद और चेलों ने पा ली । मुर्गों  का रक्‍त काली और भैरों पर चढ़ा, मुर्गे परसादी बन कर बाबा और चेलों के पेट में समा गये ।

बाबा ने चाण्‍डाल चौकी का पहरा बिठाया, सिन्‍दूर का चौकोर घेरा बनाया और फूं फां, धूं धां, ठं ठं ठ: ठ: करता रहा, थोड़ी देर बाद देव प्रकट हुये फिर प्रेत भी आ गया फिर जिन्‍न भी आ पहुँचा, सब बोले चिल्‍लाकर बोले अशुद्धि अशुद्धि अशुद्धि, घोर संकट, बाबा तू भाग जा वरना निपट जायेगा । अलौकिक (दिखाई न देने वाली) आत्‍मायें नशें में झूमते चेलों की बाडी में घुस बैठीं थीं, सबके सब बोले, इसने गलती की है , इसे खजाना हम नहीं दे सकते, बाबा बोला क्‍या गलती हुयी है उसे तो बताओ, सब आत्‍मायें एक सुर में बोलीं इसकी पत्‍नी हर महीने, महीने से (रजस्‍वला) होती थी लेकिन ये उन दिनों भी दीपक लगा देता था, घोर अशुद्धि, पाप कर्म, और देखते देखते गरीब का खजाना पाताल में समा गया । बेचारा गरीब, फोर्ब्‍स में आते आते जरा सी चूक से वंचित हो गया ।          

कल एक प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित समाचार पत्र की फ्रण्‍ट पेज की सेकण्‍ड लीड थी कि भाजपा बनायेगी चम्‍बल विकास पाधिकरण, खबर चौंकाने वाली और झन्‍नाटेदार थी, पढ़ कर हम चौंके भी और सन्‍नाटे में भी आ गये । फिर अखबार के ऊपर ध्‍यान गया तो भाजपा का विज्ञापन सरकारी पैसे से अखबार में लगा था, पहले यह टॉप एड अन्‍य अखबारों में भी चलता रहा है, इस प्रकार के विज्ञापन इण्‍टरनेट पर चला करते हैं और इन्‍हें टॉप एड कहते हैं, जो बहुत मंहगे होते हैं, अखबारों में इस प्रकार के विज्ञापन प्रकाशन का रिवाज कभी नहीं रहा, पहली दफा मध्‍यप्रदेश के अखबारों में यह प्रयोग देखने को मिल रहा है, खैर कोई बात नहीं नवाचार और अधुनातन का जमाना है यह भी चलेगा । वैसे भी ग्राहक आजकल अखबार खबर के लिये नहीं विज्ञापन के लिये पढ़ता है । इसलिये अखबारों का 70 से 75 फीसदी भाग केवल विज्ञापन से आवृत्‍त रहता है, अखबार वाले इसे जानते हैं इसलिये खबरें नहीं विज्ञापन छापते हैं, जो अखबार विज्ञापन नहीं छापते वे आजकल बिका नहीं करते, उन्‍हें घटिया अखबार माना जाता है । उन्‍हें कोई नहीं पढ़ता । पढ़ना भी नहीं चाहिये, उपभोक्‍ता अखबार खबर के लिये नहीं विज्ञापन के लिये अखबार खरीदता है । खबर नहीं छपेगी कोई बात नहीं, विज्ञापन नहीं छपे तो उपभोक्‍ता लपक कर उपभोक्‍ता फोरम चला जायेगा । अखबार वाले इस बात को जानते हैं, सो विज्ञापन देवो भव: । विज्ञापन दाता ईश्‍वरो भव: । सो अखबार बेचारे 70 अस्‍सी फीसदी भाग में विज्ञापन छापा करते हैं ।

अब कोई विज्ञापन देवेगा, माने झूर कर पैसा भी देवेगा, अब जब देवेगा तो कुछ लेवेगा भी । भइया बड़ी साधारण सी बात है मक्‍खन लगवायेगा, चमचागिरी करवायेगा, पैर दबवायेगा, घुटने सहलवायेगा । वगैरह वगैरह ।

चलो अखबारों ने टाप एड प्रक्रिया चालू कर दी है, अच्‍छा है अखबार भी ग्‍लोबलाइज हो रहे हैं, पहला ग्‍लोबलाइजेशन जब हुआ था जब इनका साइज कतर कर पौना हो गया था, पहले दिल्‍ली के अंग्रेजी अखबार टाइम्‍स आफ इण्डिया पौना हुआ था, उसके बाद ग्‍वालियर के अखबार इण्‍टरनेशनल स्‍टैण्‍डर्ड के हो गये थे । मगर दाम बढ़ कर सवाये हो गये थे । हूं तो नई कहावत यूं बनी कि ''साइज पौना दाम सवाये'' वाह क्‍या इन्‍वेन्‍शन है । चलो अखबारों ने एक नई कहावत का इन्‍वेन्‍शन करा दिया ।

वैसे तो अखबार एक ही विज्ञापन एक ही अखबार में अलग अलग अलां फलां संस्‍करण (संस्‍करण दो पन्‍ने या एक पन्‍ने का होता है) में अलग अलग छाप कर पैसे दुगने तिगुने करते रहते हैं ।

यह भी एक इन्‍वेन्‍शन हैं, एक रहस्‍य है, देश के लोग फालतू ठोकरें खातें फिरते हैं और पैसा दुगुना तिगुना करने के चक्‍कर में मारे मारे फिरते हैं, कभी कोई बाबाजी या तांत्रिक दुगुना तिगुना का चक्‍कर चला कर चूना लगा जाता है तो कभी शेयरबाजी में घर बर्बाद हो कर लोग सड़क के खण्‍डों पर आ जाते हैं, कभी कोई फायनेन्‍स कम्‍पनी चूना लगा जाती है तो कभी कोई बीमा कम्‍पनी या बैंक की योजना में झांसा देकर फांसा जाता है ।

इन देश वासीयों को कोई अक्‍ल दे, अगर धन दूना तिगुना चौगुना सोलह या हजार गुने तक करना है तो एक अखबार निकालो, संस्‍करण बढ़ाओ, या एक ही संस्‍करण पर अलग अलग छाप लगाओ यानि अलग अलग बार मशीन पर चढ़ाओ और लिखो अलां जगह या फलां जगह से प्रकाशित । अरे मूर्ख देशवासीयों संस्‍करण निकालो, अखबार निकालो हर अलग संस्‍करण के लिये एक ही विज्ञापन कई बार मिलता या छपता है । मेरे प्‍यारे बेवकूफ देशवासीयो तुम्‍हारी जेब पर जो तमाम टैक्‍सों से जेब कतरी होती है उसका साठ फीसदी विज्ञापन पर जाता है, अपनी जेब से गये का कई गुना वापस चाहिये तो अखबार निकालो, मल्‍टी संस्‍करण हो जाओ । गरीबी हटाओ, फोर्ब्‍स पत्रिका में नाम लिखाओ ।

आम के आम गुठलियों के दाम, विज्ञापन से आय, ब्‍लैकमेलिंग से धनवृद्धि, ठांसे और झांसे से कार्य सिद्धि, परिशिष्‍ट प्रकाशन से आय वृद्धि, भ्रष्‍टों से रिश्‍तेदारी और नातेदारी जॉब में सुनहरा मौका, कहॉं खोये हो देश वासीयो, कहॉं लफड़े में फंसे हो, बैंक बीमा शेयर और बाबाओं के चक्‍कर में । अखबार निकालो संस्‍करण छापो ।

चुनाव टैम पर वारे न्‍यारे, इलैक्‍शन डेस्‍क निकालो, जो दे उसको नेता बना दो, जो न दो उसे पैदल कर दो, प्रोजेक्‍ट चला दो, विकास पुस्तिका छाप दो हर जिले पर बीस लाख मिलते हैं, अरे कहॉं सोये हो मूर्खो, जागो, उठो, सुनहरी सुबह तुम्‍हारा इन्‍तजार कर रही है, चमकता दिनकर, उगता भास्‍कर तुम्‍हें पुकार रहा है ।  कई अखबार तो केवल विज्ञापन के लिये ही छपा करते हैं, वे विज्ञापन मिलने पर ही अखबार छापा करते हैं, विज्ञापन और गरीबी हटाओ के इस अचूक रिश्‍ते को देख समझ मध्‍यप्रदेश सरकार के कई मंत्रियों ने अपने अपने अखबार निकालने शुरू कर दिये हैं, और कई टी.वी. चैनल चालू कर डाले हैं, सूत्र बताते हैं मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह भी कई अखबारों और टी.वी. चैनलों में इस नायाब फार्मूले के लिये पार्टनर शिप हथिया लिये हैं । पहले किसी जमाने में कहते थे कि '' अगर तोप मुकाबिल हो, तो अखबार निकालो'' आज कहते हैं कि-

अगर गरीबी हो मुकाबिल तो अखबार निकालो ।

चाहिये अकूत सम्‍पत्ति तो अखबार निकालो ।।

अगर टेंशन बने कोई देशभक्‍त तो निपटाना है आसां ।

छापो फर्जी खबर, केस लपेटो, चलो अखबार निकालो ।।

अगर परेशां हो पैसा बढ़ाने की खातिर, नहीं सुनता पुलिस वाला फरियाद जो तेरी ।

अरे मूरख उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अखबार निकालो ।।

अगर नहीं है मुकाबला तेरा वश में भ्रष्‍ट अफसर और नेताओं से ।

अब चेत जा और छाप डाल, बस कर इतना एक अखबार निकालो ।।

नहीं है गर दौलत की मेहरबानी तुझ पर, नहीं बढ़ता पैसा तेरा बैक, बीमा शेयर से अगर ।

फिक्र छोड़, उठ जाग, छाप धड़ाधड़ संस्‍करण अनेक और अखबार निकालो ।।

छोड़ देशभक्ति के चोंचले, छोड़ गरीब की आवाज उठाना, मूरख भूखों मर जायेगा ।

चेत जाग धन की देवी लक्ष्‍मी पुकारती तुझे, उठो और अखबार निकालो ।।

समझ आयोजित और प्रायोजित के अर्थ, अखबार चला ले जायेगा ।

अगर है चमचागिरी और मक्‍खनमारी की कला से सम्‍पन्‍न, ढेरों विज्ञापन पा जायेगा ।।

पुलिस वाले की तरह फरियादी से भी ले, मुल्जिम से भी वसूल ।

इतनी समझ गर आ गयी तुझे तो पक्ष विपक्ष दोनो से मिलेगा धन तुझे, चलो उठो अखबार निकालो ।।

पाठक बना रहेगा, कन्‍जूमर कहलायेगा, जेब पर टैक्‍स ठुकेंगें कई, चौतरफा लुट जायेगा ।

अगर ठिकाने लगाने हैं ब्‍लैक मनी के पैसे तुझे, हजम भ्रष्‍टाचार की कमाई, उठ जाग चलो अखबार निकालो ।।

यदि है परेशान पत्रकारों से नेताओं से और फर्जी शिकायतों से ।

अरे चेत नादान, सीख मंत्र वशीकरन का अब जाग उठ और चलो अखबार निकालो ।।

नहीं सुनेगा देस में कोई बात तेरी, नक्‍कारखाने में तूती बन रह जायेगा ।

बिन नर्राये जो चाहे, कान में मोबाइली मंत्र फूंकना सारे कारज सिद्ध करना तो चलो अखबार निकालो ।।

अखबार निकाला और सिद्ध हो गये हजारों जोगी, शेष सब जोगना हो गये ।

कभी बेचते थे मूंगफली, चराते थे भैंसे, ढोते थे रिक्‍शा, हांके थे तांगे, आज पत्रकार हो गये ।।

नहीं है दो कौड़ी की कदर जो तेरी, चिन्‍ता न कर उनकी भी नहीं थी कभी ।

उन्‍हें भी जलालत झेलनी पड़ी थी कभी, मारा पुलिस ने था अफसरों ने दफ्तरों से भगाया था, पत्रकार बने तो माननीय हो गये ।।

बनेगा पत्रकार, मिटेगा अंधकार, जीवन में उजाला छा जायेगा, गुण्‍डे से माननीय हो जायेगा ।

अरे बेवकूफ फेंक बन्‍दूक आ चम्‍बल के गहरे भंवर तले, लगा मशीन छाप अखबार बिन बन्‍दूक का शाही डकैत हो जायेगा ।।

कहॉं खाक छानता है चम्‍बल के बीहड़ों में दो चार पकड़ में क्‍या कमा पायेगा ।

पौना पुलिस ले जायेगी, चौथाई के लिये मारा जायेगा, फेंक बन्‍दूक बीहड़ की गहरी खाई में चल आ बन जा माननीय, उठ जाग और चलो अखबार निकालो ।।

भटकता फिरता है चोरी भडि़याई करते, किसी दीवाल से फिसलेगा मारा जायेगा ।

केवल दस परसेण्‍ट पर चोरी में क्‍या कर पायेगा, नब्‍बे खाकी खायेगी, छोड़ ये जान का संकट उठ जाग और चलो अखबार निकालो ।।

कई चोर थे, कई पिटे भी थे कई की इज्‍जत तार तार हुयी थी कभी मगर तब जब वे पत्रकार नहीं थे ।

पत्रकार हुये और पुज गये, सारे काम सफेद हो गये, मिलतीं हैं लड़कियां भी शराब और मुर्गे भी उन्‍हें, अरे मूरख जाग उठ और अखबार निकालो ।।

कभी वे तरसते थे, छिपके हसीनाओं के निहोरे करते थे, शराब की बूंद को तरसा करते थे, बोतल खाली कबाड़ी से खरीद कर उन्‍हें उल्‍टी कर नब्‍बे बूंद टपका कर प्‍याला भरते थे जो ।

पत्रकार बने तो दिन फिर गये, अम्‍बाह जौरा और रेशमपुरा तक सरकारी गाड़ी में जायेगा, सुन्‍दरीयों के साथ दिन औ रात बितायेगा, सरकारी शराब और मुर्गे चाटेगा, फिर भी न तू अघायेगा, जाग बेवकूफ उठ चलो अखबार निकालो ।।

क्‍या कलेक्‍टर क्‍या कमिश्र्नर, मंत्री भी क्‍या औ संतरी भी क्‍या ।

अब बेवकूफ खुदी को कर बुलन्‍द इतना कि सब तुझसे पूछें बता तेरी रजा क्‍या है, बस जाग चेत उठ एक अखबार निकालो ।।

वह वक्‍त वह बातें हवा हुयीं, जब अखबार निकलते थे स्‍वतंत्रता की लड़ाई के लिये ।

अब तू छाप अखबार गरीबी हटाने के लिये, चमचागिरी करने के लिये प्रचार साधन के लिये ।।

अरे पगले, भ्रष्‍ट अफसर नेता औ बाबू कीमती ध्‍ारोहर हैं देश के लिये ।

नहीं बढ़ने देते मुद्रा स्‍फीति, नहीं करते वायदा कभी धन बढ़ाने का ।।

चलन में है भ्रष्‍टाचार, संवैधानिक दर्जा है भ्रष्‍टाचार का, इन्‍हें संरक्षण दे, फलीभूत कर, कमाऊ पूत हैं देश के ये कर्णधार ।

इनसे मिल कर चलेगा, अखबार चलेगा, वरना कागज के कोटे को तरस जायेगा, इनके साथ चल विज्ञापन बटोर उठ पागल उठ चलो अखबार निकालो ।।

गोया मामला जरा ज्‍यादा लम्‍बा होता जा रहा है, हम बस इतना कहना चाहते हैं कि प्रसिद्ध मशहूर अखबार कहीं चूक गया, तथ्‍यात्‍मक त्रुटि कर गया चाहे विज्ञापन के चक्‍कर में यह प्रायोजित समाचार प्रकाशन हुआ हो चाहे विज्ञापनार्थ मक्‍खनबाजी के चक्‍कर में चूक गंभीर व अक्षम्‍य है । सही तथ्‍य निम्‍न प्रकार हैं

चम्‍बल विकास प्राधिकरण लगभग 25 -27 साल पहले जब मोतीलाल वोरा म.प्र. के मुख्‍यमंत्री बने, उससे पूर्व जब अर्जुन सिंह म.प्र. के मुख्‍यमंत्री थे, तब तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री अर्जुन सिंह ने भिण्‍ड व मुरैना के नगर सुधार न्‍यासों की स्‍थापना की , और चम्‍बल विकास प्राधिकरण का गठन किया । जिसमें स्‍थानीय समस्‍त विधायक, सांसद, जिले के मंत्रीगण, प्रभारी मंत्रीगण तथा तमाम सरकारी अफसरान इसके सदस्‍य हैं । यह वर्तमान में अस्तित्‍व में है । इसकी कुछ बैठकों में मुझे अपनी बुआ के लड़के (जो तत्‍समय भिण्‍ड के विधायक व म.प्र. शासन के मंत्री होकर मुरैना जिला के प्रभारी मंत्री भी रहे) के साथ दो चार बैठकों में शामिल होने का सौभाग्‍य नसीब हुआ । इसके अलावा चम्‍बल कम्श्र्निर का कार्यालय इसका मुख्‍यालय है, वहीं इसकी बैठके होतीं आईं हैं, चम्‍बल विकास प्राधिकरण की बैठकों की कई फाइलें मुझे पढने को नसीब हुयीं हैं ।

इस पूर्व गठित चम्‍बल विकास प्राधिकरण को कभी भंग किया गया हो यह सूचना मेरे मस्तिष्‍क में नहीं है, इस प्राधिकरण और इसकी गतिविधियों पर सरकार करोड़ों रूपये पहले ही खर्च कर चुकी है, मेरी सूचना के मुताबिक अभी भी यह अस्तित्‍व में हैं, प्रश्‍न यह है कि क्‍या एक प्राधिकरण के अस्तित्‍व में रहते उसी प्राधिकरण का गठन दोबारा किया जा सकता है । पुनर्गठन तो सम्‍भव है ले‍किन गठन सम्‍भव नहीं है, मगर खबर गठन के बारे में है । हैरत अंगेज है । अगर नहीं है तो जो करोड़ों पहले खर्च हो चके हैं उसका हिसाब किताब कहॉं गया, क्‍या गरीब की जेब में एक सूराख और बना दिया ।

मामला ठीक उन पर्यावरण क्‍लबों की तरह जिनका गठन सन् 2001 में भारत सरकार की नेशनल ग्रीन कोर (एन.जी.सी.) योजना के तहत म.प्र. शासन ने बाकायदा आदेश जारी करके किया, यह पर्यावरण लम्‍बे समय तक चले भी और पिछले साल तक मुरैना जिले में पढ़ने वाले हर स्‍कूली छात्र से 6 रू प्रति छात्र परिचय पत्र का तथा 5 रू प्रति छात्र पर्यावरण क्‍लब की सदस्‍यता शुल्‍क का वसूलते रहे, मुरैना जिला में औसतन आठ लाख छात्र प्रतिवर्ष अध्‍ययनरत रहे इस हिसाब से 11 का आठ लाख में गुणा कर दीजिये, औसतन सालाना रकम बनती है 88 लाख रूपये, आठ साल तक बाकायदा आदेश निकाल कर (आदेश की प्रतियां और सम्‍बन्धित समस्‍त आदेश व दस्‍तावेजी साक्ष्‍य हमारे पास उपलब्‍ध हैं) जबरन बच्‍चों से पैसे वसूले जाते रहे, अब 88 लाख में फिर आठ का गुणा कर दीजिये 704 लाख रूपये यानि 7 करोड़ 8 लाख रूपये होते हैं । यह एक मोटा हिसाब और आंकड़ा है, असल छात्र संख्‍या और रकम इससे कई गुना अधिक है ।

कलेक्‍टर इस वसूली कमेटी का अध्‍यक्ष था, जिला शिक्षा अधिकारी सचिव । यह पैसा कहॉं जमा होता था कहां खर्च होता था किसी को नहीं पता, कोई मद नहीं फिर भी रकम आती थी, कहां जाती थी किसी को नहीं पता, (विस्‍तृत आलेख इस आपराधिक घटनाक्रम पर पृथक से छापेंगें) जब शिकवे शिकायतें हुयीं और जिला शिक्षा अधिकारी लगभग 10 करोड़ के घोटाले में फंस गये तो, जिला शिक्षा अधिकारी के साढ़ू तत्‍कालीन स्‍कूली शिक्षा मंत्री ने पर्यावरण क्‍लबों की स्‍थापना की घोषणा कर दी और कहा कि स्‍कूलों में पर्यावरण क्‍लब गठित किये जायेंगें । अखबारों में खबर छपी, और लोग भौंचक्‍के थे कि जो पर्यावरण क्‍लब आठ साल से चल रहे हैं, अस्तित्‍व में हैं, उनका गठन कैसे किया जायेगा । आज तक लोग इस राज को समझ नहीं पाये, और दस करोड़ के मामले को धूल में डाल दिया गया (सारा मामला डाक्‍यूमेण्‍ट्री एविडेन्‍सेज, फोटोग्राफ्स, वीडियो फिल्‍मों पर सिद्ध है, ये रहस्‍य हम आगे चल कर खोलेंगे)

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