गुरुवार, 3 जनवरी 2008

वनवासी जनजातियों को मिले जमीन के अधिकार, खेती और वन उत्‍पादों के संग्रह, इस्‍तेमाल और विक्रय के साथ पशु भी चरा सकेगें

वनवासी जनजातियों को मिले जमीन के अधिकार, खेती और वन उत्‍पादों के संग्रह, इस्‍तेमाल और विक्रय के साथ पशु भी चरा सकेगें 

अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वनवासी (वन अधिकारों की पहचान) अधिनियम की मुख्य विशेषताए

अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी (वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम के कार्यान्यन के लिए 1 जनवरी, 2008 को नियम अधिसूचित किए जाने के साथ ही जनजातीय लोगों और अन्य वनवासियों के साथ अन्याय दूर करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इस अधिनियम के बनने के बाद अब जनजातीय लोगों और अन्य वनवासियों को अपने अधिकार क्षेत्र से संबध्द वनभूमि पर खेती करने के अधिकार प्राप्त हो गए हैं। इसके साथ ही उन्हें लघु वन उत्पादों के स्वामित्व, संग्रह इस्तेमाल और बिक्री के अधिकार भी प्राप्त हुए है। उन्हें वनों के भीतर पशु चराने जैसे परंपरागत वन अधिकार भी प्रदान किए गए हैं। ये अधिकार उन जनजातीय लोगों को प्राप्त होंगे, जो 13 दिसंबर 2005 से पहले वनों में रह रहे थे और आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं। इसी प्रकार 13 दिसंबर 2005 से पहले 3 पीढ़ियों से वनों में रहे और आजीविका के लिए वनों पर निर्भर अन्य परंपरागत वन वासियों को भी ये अधिकार प्राप्त होंगे।

ग्राम पंचायतें दावे आमंत्रित करेंगी, जिनकी जांच वन अधिकार समिति द्वारा की जाएगी। वन अधिकार समिति में ग्राम पंचायत के 10-15 सदस्य शामिल होंगे। इन सदस्यों में से एक-तिहाई सदस्य अनुसूचित जातियों के तथा एक-तिहाई महिलाएं होंगी। समिति मौके पर जायेगी और दावों के स्वरूप और प्रभाव की भौतिक जांच करेगी। सभी तरह से संतुष्ट होने पर समिति अपनी अनुशंसा सब डिविजनल स्तर की समिति को अग्रसारित करेगी। यह समिति अंतिम रूप से चिचार किए जाने के लिए संबध्द प्रस्तावों को जिला स्तर की समिति को भेजेगी। जिला स्तरीय समिति में जिला पंचायतों के तीन सदस्य भी शामिल होंगे, जिनमें कम से कम दो अनुसूचित जनजाति के होंगे। इनमें वन वासियों अथवा आदिम जनजातीय समूहों से संबध्द व्यक्तियों को वरीयता दी जाएगी।

अधिनियम की मुख्य विशेषताएं

अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी (वन अधिकरों को मान्यता) अधिनियम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं :

क) अधिनियम उन वनवासी अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के वन अधिकारों और वन भूमि पर कब्जों को मान्यता प्रदान करता है, जो पीढ़ियों से वनों में रह रहे हैं, लेकिन जिनके अधिकारों को मान्यता प्रदान नहीं की गयी। इससे वन में रहने वाले अनुसूचित जातियों के सदस्यों के साथ ऐतिहासिक अन्याय दूर किया जा सकेगा।

ख) अधिनियम अन्य परंपरागत वनवासियों के अधिकारों को भी मान्यता प्रदान करता है, बशर्ते वे 31.12.2005 से पहले कम से कम तीन पीढ़ियों से मुख्य रूप से वनों में रह रहे हों, और अपनी वैध आजीविका जरूरतों के लिए वनो अथवा वनभूमि पर रह रहे हों। इस प्रयोजन के लिए एक ''पीढ़ी'' का अर्थ है, 25 वर्ष की अवधि।

ग) इस अधिनिमय के अंतर्गत वन अधिकारों को मान्यता देने और अधिकार प्रदान करने के लिए निर्धारित तारीख 13 दिसंबर, 2005 है।

घ) अधिनियम में वन अधिकारों को मान्यता प्रदान करने के प्रयोजनों के लिए वन भूमि पर कब्जे की सीमा तय करने का प्रावधान है। इसके अंतर्गत उसी भूमि का मालिकाना हक देने का प्रावधान है, जिस पर वास्तव में कब्जा हो। ऐसी भूमि की अधिकतम सीमा 4 हेक्टेयर से अधिक नहीं होगी।

ङ) अधिनिमय में राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों, जिन्हें 'महत्त्वपूर्ण वन्य जीव परिवास' के रूप में नया नाम दिया गया है, में भी नियमित आधार पर अधिकार प्रदान करने का प्रावधान है।

च) अधिनियम में किसी वनवासी अनुसूचित जनजाति या अन्य परंपरागत वन निवासियों के सदस्य अथवा सदस्यों द्वारा अलग अलग या साझा रूप में आवास या जीविका के लिए स्वयं खेती करने के लिए इस्तेमाल की जा रही वनभूमि को कब्जे में रखने और वहां रहने का अधिकार प्रदान करने की व्यवस्था है।

छ) अधिनियम में लघु वन उत्पादों के संग्रह, इस्तेमाल और बिक्री के लिए स्वामित्त्व पहुंंच के अधिकार को मान्यता प्रदान की गयी है। यह उत्पाद परंपरागत दृष्टि से गांवों की सीमाओं के भीतर एकत्र किए जाते रहे हैं। अधिनियम में ''लघु वन उत्पादों' को परिभाषित किया गया है। इनके अंतर्गत इमारती लकड़ी को छोड़कर वे सभी वन उत्पाद शामिल हैं, जिनकी उत्पत्ति पौधे से हुई हो। इनमें बांस, बुरुश की लकड़ी, अंगूर, बेंत, टसर, कोया, शहद, मोम, लाख, तेंदु या केंडु के पत्ते, औषधीय पौधे और जड़ी बूटियां, जड़ें, टूयूबर और अन्य ऐसे ही उत्पाद शामिल हैं।

ज) अधिनियम में स्वस्थाने पुनर्वास के अधिकार को मान्यता दी गयी है। इसके अंतर्गत उन मामलों में वैकल्पिक भूमि देने का प्रावधान शामिल हैं, जिनमें अनुसूचित जातियों और अन्य परंपरागत वनवासियों को 13.05.2000 से पहले किसी भी प्रकार की वन भूमि से कानूनी अधिकार प्रदान किए बिना गैर कानूनी ढंग से हटाया गया हो।

झ) अधिनियम में स्कूलों, अस्पतालों, आंगनवाड़ियों, पेयजल आपूर्ति और पानी की पाइप लाइनों, सड़कों, विद्युत एवं संचार लाइनों आदि प्रयोजनों के लिए वन भूमि का इस्तेमाल करने संबंधी सरकार के अधिकार को स्वीकार किया गया है।

ञ) अधिनियम के अंतर्गत प्रदान किए गए अधिकार वंशागत होंगे, लेकिन वे अन्यसंक्राम्य अथवा हस्तांतरणीय नहीं होंगे और विवाहित व्यक्तियों के मामले में पति-पत्नी दोनों के नाम दर्ज किए जायेंगे, जबकि एकल व्यक्ति के मामले में अकेले नाम पर दर्ज होंगे। प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी के अभाव में वंशागत अधिकार अगले निकट संबंधी को दे दिए जायेंगे।

ट) अधिनियम में प्रावधान है कि वन में रहने वाली अनुसूचित जनजाति या अन्य परंपरागत वन निवासियों के किसी सदस्य को उसके कब्जे वाली वन-भूमि से तब तक बेदखल नहीं किया जा सकेगा, जब तक पहचान और जांच की प्रक्रिया पूरी नहीं कर ली जाती।

ठ) अधिनियम के अनुसार वनों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन वासियों को प्रदान किए जाने वाले अधिकारों के मामले में ग्राम सभा को व्यक्तिगत या सामुदायिक वन अधिकारों अथवा दोनों के स्वरूप और सीमा के निर्धारण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सक्षम प्राधिकरण निर्दिष्ट किया गया है।

अधिनियम से मिलने वाले लाभ :

क) अधिनियम के फलस्वरूप वनों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों और अन्य परंपरागत वन वासियों के वन भूमि अधिकारों और आजीविका के लिए भूमि की स्वयं खेती करने के लिए वन में रहने के अधिकार को मान्यता प्रदान की गयी है।

ख) वे लघु वन उत्पादों तक पहुंच कायम कर सकेंगे, उनका इस्तेमाल कर सकेगें, और उन्हें बेच सकेंगे।

ग) उन्हें स्वयं के कब्जे वाली वन भूमि से हटाए जाने या स्थानांतरित किए जाने के खतरे का सामना नहीं करना पड़ेगा।

घ) भूमि का मालिकाना हक स्पष्ट रूप से प्राप्त होने के बाद वे विभिन्न सरकारी योनाओं का लाभ पाने के हकदार होंगे।

ङ) क्योंकि ग्राम सभा को वनों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन वासियों को प्रदान किए जाने वाले अधिकारों के मामले में व्यक्तिगत या सामुदायिक वन अधिकारों अथवा दोनों के स्वरूप और सीमा के निर्धारण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सक्षम प्राधिकरण निर्दिष्ट किया गया है, इसलिए स्थानीय समुदायोेंं को पीईएसए अधिनियम 1996 के प्रावधानों के अनुसार अपने प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में अधिकारिता मिल सकेगी।

च) वनो में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के अधिकारों को मान्यता मिलने और अधिकार प्रदान किए जाने के अंतर्गत वन्य जीवों, वनों और जैव विविधता के संरक्षण, परिरक्षण और पुनरुत्पादन का उत्तरदायित्व भी शामिल है।

छ) अधिनियम में शादी शुदा के मामले में पति-पत्नी दोनों के नाम से संयुक्त रूप में और अविवाहित के मामले में एकल स्वामी के रूप में वन अधिकारों को मान्यता प्रदान करने की व्यवस्था है। इससे वनों में महिला निवासियों को भी समान रूप से लाभ पहुंचेगा।

 

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