रविवार, 13 अप्रैल 2008

गायों के लिये मौत का फरमान, विनाशकारी पॉलीथिन

गायों के लिये मौत का फरमान, विनाशकारी पॉलीथिन

मनों पॉलीथिन लील जाती हैं हजारों गायें रोज इस जहर को

अनीता मिश्रा, तहसील संवाददाता मुरैना   

मुरैना/ भिण्‍ड/श्‍योपुर/ धौलपुर 13 अप्रेल 08, इन दिनों शादी विवाहों को मौसम में, विवाहों के दौरान भारी संख्‍या में विनाशकारी पॉलीथिन का उपयोग किया जा रहा है । इस पॉलीथिन को उपयोग के बाद कचरे के ढेरों में फेंक दिया जाता है, जिसे बाद में भारी मात्रा में पशुओं द्वारा भोजन व स्‍वाद की चाह में लील लिया जाता है । जिसमें गायों तथा अन्‍य चौपायों की संख्‍या काफी अधिक है ।

ज्ञातव्‍य है कि चम्‍बल क्षेत्र भगवान श्री कृष्‍ण की लीला स्‍थली एवं पाण्‍डवों की ननसार रही है अत: चम्‍बल में गौ पालन व संरक्षण का विशेष महत्‍व है । इसके अलावा लगभग 70 प्रतिशत गायें यहॉं या तो महज सेवा करने के लिये पाली जातीं हैं या वैसे ही आवारा ढील दी जातीं हैं । जो यत्र तत्र सर्वत्र यूं ही मुक्‍त विचरण करतीं रहतीं हैं, और भोजन पानी तलाशती फिरती हैं ।

भूख और प्‍यास से व्‍याकुल गायों को इन दिनों शहर और गॉंवों में होने वाले विवाह समारोहों के पश्‍चात फेंकी जाने वाली झूठन और कचरे से काफी भोजन प्राप्‍त हो जाता है जिससे गायों व अन्‍य चौपायों की मौज हो जाती है । लेकिन आधुनिक विवाहों में भारी मात्रा में पॉलीथिन जैसी विषैली और विनाशकारी उपयोग की जातीं हैं जिन्‍हें भोजन की झूठन के साथ ही मिश्रित रूप में फेंक दिया जाता है, कई बार तो भोजन की झूठन ही इन पॉलीथिनों में कैद रहती है । इसके अलावा पॉलीथिन चबाने में नरम होने से पशुओं को चबाने में सुखद अनुभूति कराती है । सो लालच व भूख में गाय तथा अन्‍य चौपाये इन्‍हें निगल जाते हैं ।

प्रतिवर्ष अकेले चम्‍बल में पिछलें सात साल के दौरान पॉलीथिन के लीलने से औसतन 700 गायों और अन्‍य चौपायों सहित 1900 पशु अनजाने व अकाल मारे गये । इसमें हमने वे आंकड़े भी शामिल किये हैं जिनमें पशुओ की मृत्‍यु पीने का पानी न मिलने से प्‍यास से भी मरे हैं ।

जब कई मरी हुयी गायों को ढो ढो कर पशु चिकित्‍सकों ने उनका पोस्‍ट मार्टम किया तो 93 फीसदी के अंदर पॉलीथिन के भण्‍डार मिले । जिसमें गायों की मौत के आंकड़े और भी भयावह हैं, मरने वाली गायों के पेट से 40 किलो से लेकर 65 किलो तक पालीथिन पायी गयी ।

पॉलीथिन धरती को बंजर कर रही है, इसका परिणाम भुगतने में तो हमें अभी दस पन्‍द्रह साल लगेंगे लेकिन पशुओं को अकाल मौत के घाट तो पिछले पन्‍द्रह साल से उतार रही है, इससे हम वाकिफ होकर या तो मौन हैं या नावाकिफ ।

 

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