महिलाओं की सत्ता में बराबर की भागीदारी -कितनी सही कितनी गलत उठेगी हमारी चुनर धीरे धीरे, हटेगी हमारी शर्म धीरे धीरे
मुरैना. स्थानीय निकायों के चुनावों में शासन ने महिलाओं की बराबर की भागीदारी सुश्चित करने के लिये 50 प्रतिशत का आरक्षण महिलाओं के लिये किया। किन्तु व्यवहार तह महिलाऐं इस आरक्षण का सही मायने में सत्ता में भागीदारी करने के लिये उपयोग नहीं कर पा रही है। कारण सदियों से घर की चार दिवारों में कैद रहना तथा जायदा पढी लिखी न होना यद्वपि इनमें बुद्धि कोशल की कोई कमी नहीं है। फिर भी सदियों से पिता पुत्र पति व संम्बधियों के नियंत्रण में जीवन जीने की जो आदत पडगयी है। वह आदत उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने में वाधक बन रही है। घर से बाहर निकल सत्ता में भागीदारी करने का जो अवसर उन्हें प्राप्त हुआ है उसका लाभ वे अपनी निजी राय से लेने में असहाय सा महसूस कर रही है। मध्यराज्य संवाददाता ने जब इन महिला प्रत्याशीयों से सम्पर्क किया तो जायदा तरह महिलाओं ने बताया कि वे वैसा ही करेगी जैसा उनके पति पुत्र पिता या अन्य परिवार जन कहेंगे। जीतने के बाद स्वयं वे क्या करेगी इस संबंध में उनकी कोई निजी राय सामने नहीं आयी अधिकांश महिलाऐं पर्दानसीन थी जो प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान मेें खड़ी हुई है तथा उनका प्रचार केवल उनके परिजनों द्वारा ही किया जा रहा है। जो महिलाऐं जागरूक उन्होंने ऐसी महिलाओं के बारे में फिल्मी तर्ज पर कुछ इस प्रकार टिप्पणी की:-
ऐ सत्ता करेगी असर धीरे-धीरे, चलेगी हमारी कलम धीरे धीर।
उठेगी हमारी चुनर धीरे धीरे, हटेगी हमारी शर्म धीरे धीरे॥
खुलेगी हमारी अकल धीरे धीरे, करेगे तुम्हारी नकल धीरे धीरे॥।
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