राजनैतिक दल स्वयं भारत के संविधान के प्रति-निष्ठ नही - न संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा है और ना अपने दल के प्रति
-यह आचरण देश की एकता अखंण्डता के लिए खतरा
राजेश चिंतक द्वारा
मुरैना..स्थानीय निकाय के लिये हुये चुनावों के बाद नगरपालिका परिषदों एवं नगरपंचायतों में उपाध्यक्ष के पद हेतु चुनाव प्रक्रिया जारी है। नगर पालिका मुरैना के लिये उपाध्यक्ष का चुनाव हो चुका है। अन्य स्थानों पर चुनाव होना शेष है। जिले की चार नगरपालिका एवं चार पंचायतों में से कांग्रेस चार भाजपा ने एक बसपा ने दो एवं एक निर्दलीय अध्यक्ष के पद पर विजयी हुआ। अब उपाध्यक्ष के पद का चुनाव होना है। जिसमें नगर पालिका मुरैना में चुनाव हो चुका है। उपाध्यक्ष का पद कांग्रेस की झोली में गया । कांग्रेस प्रत्याशी प्रबल प्रताप सिंह मावई उर्फ रिक्कू 34 मत प्राप्त कर भारी बहुमत से विजय हुये। यहा तक कि कांग्रेस के प्रत्याशी को भाजपा के 7 पार्षदों ने भी अपना मत दिया। अब अन्य स्थानों पर चुनाव की प्रक्रिया जारी है। मुरैना के चुनाव में भारतीय जतना पार्टी के 7 पार्षदों ने पार्टी के मेंडेट को नकारकर भारत के संविधान के अनुच्छेद 18 अंतर्गत प्रदत्त वाक स्वातंत्र के अधिकार का प्रयोग कर अपना स्वत्रंत मत दिया। इन पार्षदों की इस कार्यवाही पर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी अप्रसन्नता जाहिर कर इनके प्रति अनुशानात्मक कार्यवाही करने की चेतावनी देकर उनके संवैधानिक स्वतंत्रता के अधिकार को प्रतिबंधित करने का गैर संवैधानिक कार्य किया है। भारत का संविधान सर्वोपरि है पार्टी का संविधान
गौण है। किसी भी पार्टी या संस्था को ऐसा संविधान या कानून बनाने का अधिकार प्राप्त नहीं है। जो भारत के संविधान में निहित प्रावधान को नष्ट करता हो।
यहॉ यह उल्लेखनीय हैं भारतीय संविधान अनुसार प्रत्येक मतदाता को प्रत्येक , चुनाव में अपना-अपना मत स्वतंत्र रूप से देने का अधिकार प्राप्त है। मतदाता चाहे जिस दल से संबंध रखता हो किन्तु यह आवश्यक नही कि चुनाव के समय वह उस दल के प्रत्याशी को ही अपना मत दे । किन्तु वर्तमान में सभी राजनैतिक दलों ने भारत के संविधान द्वारा दत्त स्वतंत्रता के अधिकार को प्रतिबंधित कर अपनी अपनी पार्टीयों के संविधानों को सर्वोपरि मान लिया है। और अपने संविधान अनुसार दल के सदस्यों को अपना गुलाम बनाने की कवायत जारी कर रखी है
राजनैतिक दलों का यह आचरण भारत के संविधान के प्रति उनकी अनिष्ठा को प्रदर्शित करता है। यदि राजनैतिक दलों की भारत के संविधान के प्रति किचिंत मात्र भी श्रद्धा व निष्ठा है तो उन्हें भारत के किसी भी मतदाता के प्रति ऐसा भाव नहीं रखना चाहिए, जिससे उसकी मत देने की स्वतंत्रता बांधित होती हो।
राजनैतिक दलों की यह कार्यवाही देश की एकता और अखण्डता के लिऐ खतरा बन रही है।
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