प्रदीप चौबे छा गये, आपकी काव्य गोष्ठी आलपिन, सुई और गजल
गत दिवस संपन्न आपकी काव्य गोष्ठी में इस बार बहुरंगी प्रदीप चौबे छा गये, मंचीय कवि होते हुए भी वे इस कवि गोष्ठी में गहरा रंग जमा गये । इस बार वह अपनी हास्य कवि की पहचान से हट कर तीन निराले रंग जमाने में कामयाब रहे । अपनी प्रस्तुतियों का सिलसिला कवि चौबे ने छोटी कविताओं से शुरू किया, जिसे उन्होनें आलपिन की संज्ञा दी । उनका मानना है कि आलपिन कागज से कागज को जोड़ती है । अर्थात रचनात्मक भूमिका अदा करती है । जिसकी बानगी देखिए ----''जो खामखाँ पांव छूता है/ उससे बचो /क्योंकि वो /आदमी नहीं जूता है । एक अन्य आलपिन चूहा कहीं भी /अफसर कभी भी /बिल बना सकता है ।
प्रदीप जी इस बार की मजलिस के विशिष्ठ शायर थे और उन्होनें एक घंटे से भी अधिक दिल खोलकर पढ़ा । सुनने वाले भी गद्गद् हो गये । आलपिन के बाद वो सुई पर उतरे । सुई जैसे सिलती है कुछ वैसा ही प्रयास इन रचनाओं में था । मसलन --- हम पत्थर को पूजते रहते हैं / इसलिए वह भी देवता बना रहता है ।-------
आलपिन और सुइर्_र् के बाद वो अपनी पुरानी गजलों पर आ गये । उन्होनें गजलों से अपने जुड़ाव की कहानी सुनाई और फिर अपना गजल संग्रह ''बहुत प्यासा है पानी ''से चुनिंदा गजले भी । उनकी गजल ---समंदर की कहानी जानता हूँ / बहुत प्यासा है पानी जानता हूँ ............. ने दाद बटोरी । उनकी एक दूसरी गजल का शेर ''ऐसे मंजर हमारे देश में हैं / भेड़िये आदमी के भेस में हैं / .......को बहुत सराहना मिली और एक अन्य शेर ''अहले सियासत चाकू छुरे / हम तो तीतर और बटेर .....ने पूरे कक्ष को तालियों की गड़गडाहट से भर दिया ।
पूरे देश में हास्य कवि की खास पहचान बनाने वाले श्री प्रदीप चौबे का विविध आयामी रचना संसार और अलग -अलग फारमेट में लिखने व कहने का लहजा भरपूर पसंद किया गया । इस गोष्ठी की सदारत डा0 कृष्णमुरारी शर्मा ने की । उन्होनें भी पश्चिम पर व्यंग्य करते हुए माकूल रचना पढ़ी । गोष्ठी में व्यंग्यकार श्री राज चढ्ढा ने अपने ताजे व्यंग्य ''पाप का घड़ा '' का वाचन किया । गोष्ठी में प्रसिध्द शायर जहीर कुरेशी, मदन मोहन दानिश एवं गीतकार रामप्रकाश 'अनुरागी ' ने भी अपनी -अपनी सशक्त रचनाओं का पाठ किया ।
श्रीमती राजबाला अरोड़ा
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें