शनिवार, 21 नवंबर 2009

दल तंत्र भगाओ - जनतंत्र बचाओ अभियान में सहभागिता की अपील- गोपाल दास गर्ग

दल तंत्र भगाओ - जनतंत्र बचाओ अभियान में सहभागिता की अपील- गोपाल दास गर्ग

सम्मानीय देशवासियों,

       आज की दल तंत्रीय राजनीति ने देश की एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण बनाये रखना प्रश्नांकित कर दिया है। समूचे देश में चारों तरफ देश का विद्यटन हो रहा है। प्रत्येक राजनीतिक दल अपनी अपनी सत्ता और संप्रभुता स्थापित करने में लगा है। जिसके लिये वह आये दिन दलवाद, जातिवाद, लिंगवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, आर्थिक सम्पन्नता/विपन्नता वाद आदि अनेकानेक वादों का जहर फैलाकर अपने अपने तरीके से अपने लक्ष्य को पाने के लिये अमर्यादित आचरण कर रहा है।

यदि समय रहते जनतंत्र को बचाने का कोई कारगर उपचार नहीं हुआ तो देश से जंनतंत्र पूरी तरह मिट जावेगा। देश टुकड़े-टुकड़े हो जावेगा। आज का शोषित वर्ग और अधिक शोषित होगा तथा दल तंत्रीय राजनीति के पोषक, स्वंयभू बन जावेगें।

 

       अभियान का किसी दल से या दल के प्रत्याशी से कोई विरोध नहीं है अपितु दल तंत्रीय शासन प्रणाली से विरोध है। दल का प्रत्याशी कहने को जनप्रतिनिधि होता है किन्तु व्यवहारिक सत्य यह है कि वह जनप्रतिनिधि के नाम वास्तविक तौर पर वह अपने दल का प्रतिनिधि होता है। उसकी निष्ठा पूर्णत: अपने दल के प्रति होती है। दल का प्रत्याशी देश, देश के संविधान, देश की जनता या क्षेत्र के मतदाताओं के प्रति कतई वफादार नहीं होता। वह केवल अपने दल के प्रति ही वफादार रहता है। लोकसभा या विधानसभा में प्रस्तुत विषयों पर वह अपने दल के हितों के अधीन अपना वोट देता है न कि जनहित में। इस प्रकार जनहित, दलीय राजनीति में नष्ट हो जाता है।

       दल का प्रतिनिधि, जनप्रतिनिधि के रूप में समय-समय पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 173 (क) अंतर्गत बारम्बार यह शपथ लेता है कि वह विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रध्दा और निष्ठा रखेगा तथा भारत की संप्रभुता और अखण्डता को अक्षुण्ण रखेगा। किन्तु व्यवहार में वह इस शपथ को भूल जाता है और दलीय दल-दल में उलझ जाता है।

इस सत्य का प्रमाण आये दिन सदन में सभी दलों द्वारा किये जा रहे आचरण से स्पष्ट प्रमाणित हो रहा है। कोई भी दल तथा उसके प्रतिनिधि स्परूप चुना गया प्रतिनिधि, विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति न तो सच्ची श्रध्दा रखता है और न ही निष्ठा।

जनता द्वारा चुनें गये ये सभी जनप्रतिनिधि, भारत की संप्रभुता और अखण्डता को अक्षुण्ण न रखकर, केवल अपने-अपने दल की संप्रभुता और अखण्डता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये भारत के संविधान तथा उसके अंतर्गत निर्मित एवं स्थापित विधि के विपरीत प्राय: अविधिक आचरण कर सदनों को आये दिन शर्मसार करते रहते है। सभी राजनीतिक दलों का यह आचरण, जनतंत्र की हत्या कर, दल तंत्र की महत्ता को प्रतिस्थापित करने की ओर अग्रसर होना इंगित करता है।

       जनप्रतिनिधियों की खरीद-फरोख्त करने का आरोप-प्रत्यारोप एक दल, दूसरे दल पर आये दिन लगाता रहता है किन्तु रिश्वत लेने व देने के लिये निर्मित भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत अपेक्षित कार्यवाही करने या कराने की पहल किसी भी दल द्वारा नहीं की जाती है। राजनीतिक दलों का यह आचरण भारत की जनता को यह संदेश देता हैं कि कोई भी दल भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रध्दा और निष्ठा नहीं रखता है और न ही संसद द्वारा बनाये गये किसी कानून के अनुपालन में उनकी स्वयं की कोई रूचि ही है।

       भारत देश में संवैधानिक विधि द्वारा निर्मित व स्थापित कानून का शासन है जो देश के प्रत्येक राजनीतिक दल, दल के पदाधिकारी, प्रतिनिधि, कार्यकर्ता एवं नागरिक पर बिना किसी भेदभाव के समान रूप से प्रभावी है। किन्तु आये दिन देखने में यह आ रहा है कि कोई भी राजनीतिक दल संवैधानिक विधि द्वारा निर्मित व स्थापित कानून का पालन नहीं करना चाहता है तथा संवैधानिक विधि द्वारा निर्मित व स्थापित कानून को कानून मानने के लिये तैयार नहीं है।

प्रत्येक राजनीतिक दल स्वविचारित विचार को ही कानून की संज्ञा देकर, जनहित के नाम पर, अपने-अपने दलों की श्रेष्ठता व महत्ता को प्रतिष्ठित व प्रतिपादित करने के लिये आये दिन समूचे देश में हड़ताल, बाजार बंदी, चक्काजाम, तोड़-फोड़, लूटपाट, दंगाफसाद, धार्मिक उन्माद, बम विस्फोट आदि अनेकानेक भिन्न-भिन्न विद्यटनात्मक तथा हिंसात्मक तरीके अमल में लाते हुये राष्ट्रीय सम्पत्तियों को क्षति तथा देश की आम जनता को जन-धन की हानि पहुचाने जैसी गतिविधियों में संलग्न रहता है। दलबंदी के इस आचरण से देश में भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार और महगांई में आये दिन उत्तरोत्तर वृध्दि होती जा रही है। राजनीतिक दलों का यह आचरण जनतंत्र की हत्या कर, दल तंत्रीय राष्ट्र्र्र की स्थापना किये जाने का द्योतक है।

      इसलिये दलतंत्र भगाओं - जनतंत्र बचाओं अभियान का दीप प्रज्वलित करना आज के समय की प्रासंगिकता है।

       दल तंत्र को भगाना और जनतंत्र को बचाना हमारे अभियान का लक्ष्य है। लक्ष्य प्राप्ति के चार कारक है 1. निष्ठा 2. श्रम 3. कर्म 4. साधना। यदि आप देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत है और अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाये रखने हेतु संकल्पित, देश पर अपनी जान न्यौछावर करने हेतु तत्पर, किसी भी प्रकार के लालच से परे, निष्ठा के धनी, श्रम को समर्पित, कर्म के पुजारी और साधना के साधक है तो इस अभियान को गति प्रदान करने में अपना योगदान दे सकते है।

      दलतंत्र भगाओ - जनतंत्र बचाओं अभियान के दीप - प्रज्जवन का प्रथम चरण, हमारा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मुरैना विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना था। इस कार्य के लिये हमें किसी भी प्रकार के धनबल व बाहुबल की कतई दरकार नहीं रही। हमने सिर्फ मतदाता के जनमत समर्थन को शीर्ष प्राथमिकता दी। हम यह अच्छी तरह जानते है कि दलतंत्र का खात्मा धनबल या बाहुबल से नहीं किया जा सकता है। दल तंत्र का खात्मा केवल जनमत से ही हो सकता है।

भारत देश के वासियों एवं मतदाताओं से अभियान की यह अपील है कि दलतंत्र को भगाकर जनतंत्र को बचाने के लिये भारत का प्रत्येक मतदाता भावी चुनावों (लोकसभा/विधानसभा/स्थानीय संस्थाओं के चुनाव) में अपने अपने निर्वाचन क्षेत्र में अपना वोट दलों के किसी भी प्रत्याशी को न देकर केवल निर्दलीय प्रत्याशियों को ही अपना वोट दे। एवं दल तंत्र भगाओं - जनतंत्र बचाओं अभियान को सफल बनाने में अपनी महती  भूमिका निर्वहन करें।

 

     अपीलार्थी

   गोपाल दास गर्ग

      संयोजक

                               दलतंत्र भगाओ- जनतंत्र बचाओ अभियान

                                       गणेशपुरा, मुरैना म0प्र

07532-227836

 

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