फायदेमन्द है पपीता की खेती
Article By: Regional Public Relations Office- Gwalior Region
पपीता उगाने से कृषको को अल्प अवधि में आर्थिक लाभ मिलता है। घर के आंगन में दो-तीन पौधे उगाने से जहाँ दैनिक आहार की पूर्ति होती है वहीं खेती के खाली स्थान की मेड़ों में एवं जहां सिंचाई साधन उपलब्ध हो कृषकों को पपीते की व्यवसायिक खेती से पर्याप्त आमदनी हो सकती है। बड़वानी लाल व पीला, हनीडयू, सिलोना, पूसा डिलिसियस, रांची, कोयम्बटूर-2,3,5,6 एवं पूसा ज्वाइंट तथा पूसा नन्हा मुख्य उन्नत किस्में हैं।
एक हैक्टेयर के लिये 500 ग्राम से एक किलो बीज की आवश्यकता होती है। 2 बाई 2 मीटर की दूरी पर आधा मीटर लम्बा, चौड़ा, गहरा गड्डा बनाकर 20 किलो गोबर खाद, 500 ग्राम सुपर फास्फेट, 250 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश को मिट्टी में मिलाकर पौधा लगाने से दस दिन पूर्व भर दें। जिस भूमि में दीमक लगती हो वहां प्रति गड्डा 25 ग्राम 5 प्रतिशत एल्ड्रिन चूर्ण मिट्टी में मिला दें। एक हेक्टर खेत में प्रति गड्डा 2 पौधा लगाने पर 5000 पौधे लगेंगे। कुछ कृषकों के द्वारा खेतों में पौध न लगाकर सीधे बीज डालने के भी अच्छे परिणाम मिले हैं अत: इस क्रिया को भी अपनाना चाहिये।
पपीते के एक पौधे को वर्ष भर में 250 ग्राम नत्रजन, 250 ग्राम स्फुर एवं 500 ग्राम पोटाश देना चाहिये, इसे 6 बराबर भागों में बाँटकर प्रति 2 माह के अंतर से देना चाहिये, इस प्रकार एक बार में 90 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 125 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश बने हुए थालों में मिट्टी मिलाकर दें और सिंचाई करें।
पपीते के पौधे 90 से 100 दिन के अंदर फूलने लगते हैं नर फूल छोटे-छोटे गुच्छों से लम्बे डन्ठल युक्त होते हैं। 100 मादा पौधे के लिये 5 से 10 नर पौधे छोड़कर शेष पौधों को उखाड़ देना चाहिये। पौधों को रस चूसक कीड़े - माहूं, फुदका, सफेद मक्खी से बचाने के लिये फोरेट 10 दानेदार दवा 4 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलायें दूसरे अन्य कीड़ों से रक्षा के लिये फल तोड़ने के समय को छोड़कर 15 दिन में 0.05 मैलाथियान दवा का छिड़काव करें। फ्रूट एवं स्टेम राट जैसी बीमारियों से बचाने के लिये पपीते के पौधों के तनों के पास पानी न जमने दें, जिस भाग मे रोग लगा हो वहां चाकू से खुरच कर बोर्डो पोस्ट भर दें। (450 ग्राम चूना, 450 ग्राम नीला थोथा, 4 लीटर पानी) तथा पाउडरी मिल्डयू से बचाव के लिय घूलनशील गंधक 0.3 का छिड़काउ किया जाये।
पपीता के पौधे पूरक फलों के रूप में अन्य फलों के उद्यान में, सिंचाई नालियों तथा प्रक्षेत्र की सड़क तथा मेड़ों पर लगाये जाते हैं। इसकी फसल स्वतंत्र उद्यान के रूप में भी लगाई जाती है। स्वतंत्र उद्यान के रूप लगाई फसल के बीच में अंतर फसल के रूप में प्रथम 6 माह तक टमाटर, मैथी, धनियाँ, पालक, मिर्च, मटर आदि फसलें उगाईं जा सकती हैं। जिसके लिये अलग से खाद देनी चाहिये। पपीता फल से पपेन निकालने के लिये 75 से 90 दिन की आयु वाले विकसित कच्चे फलों में स्टील के धारदार चाकू से लम्बवत चीरा लगा दें इनसे दूध निकलता है जिसे एल्युमीनियम ट्रे में एकत्रित कर उसमें 5 ग्राम सोडियम या पोटेशियम मेटाबाई सल्फाईड मिलाकर ठण्डे स्थान में भंडारित करते हैं। फिर इस एकत्रित दूध को बैक्यूम शेल्फ ड्रायर या सोलर ड्रायर या सूर्य के प्रकाश में 500 डिग्री से ग्रे. तापक्रम पर एक घण्टे तक सुखा कर बोतलों में पैक कर दिया जाता है। इस प्रकार तैयार किया जाने वाला पपेन पूर्णतया स्वच्छ वातावरण में तैयार किया जाना चाहिये। पपेन, पपीता उद्यान से अतिरिक्त आय देता है। पपेन निकालने के पश्चात फलों के पोषक तत्वों में कोई हानि नहीं होती हैं।
पपीते की खेती की अनुमानित लागत, उत्पादन एवं आमदनी इस प्रकार है
भूमि की तैयारी-1400/-रूपये गड्डा खुदाई एवं भराई-7500/-रू. फल पौधों की कीमत-800/-रू. पौधों की स्केटिंग- 500/-रू. खाद एवं उर्वरक- 7500/-रू सिंचाई- 3000/-रू. पौध संरक्षण- 750/-रू. अन्तराशस्य- 600/-रू. अन्य - 500/-रू. इस प्रकार एक हेक्टेयर पर अनुमानित लागत 22,500/- रूपये। अब आमदनी की गणना की जाये तो प्रति हेक्टेयर आसत उत्पादन 45 टन, बाजार भाव 2000 रूपये प्रति टन की दर से मूल्य - 90000। अत: प्रति हेक्टेयर शुध्द आय - 67,450 रूपये होगी। है न फायदे का सौदा।
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