आग लगाऊ दिग्विजय सिंह की सभाओं में सरकार भेजती है फायर ब्रिगेड
चुनाव चर्चा-3
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
आज के अखबारों में खबर छपी है हालांकि खबर का शीर्षक तो दुखद है लेकिन खबर के भीतर जो खबर है वह काफी हैरत अंगेज है, कम से कम मैं तो इसे पढ़ कर चौंक ही गया । खबर भिण्ड जिले के एक गॉंव के बारे में हैं, कल भिण्ड जिला में एक गॉंव आग लग गई तकरीबन 20 घर पूरी तरह जल कर खाक हो गये, सरकारी आकलन के मुताबिक 15 लाख का माल मशरूका जल कर भस्म हो गया ।
वैसे तो इन गर्मी के दिनों में एक तो विकट गर्मी के कारण हर चीज सूख कर ईंधन बन जाती है ऊपर से गर्म हवा की लपटों से जरा सी चिंगारी भी विकराल रूप धारण कर लेती है । हर साल अकेली चम्बल ही गर्मीयों में करीब 1 से 7-8 करोड़ रू का नुकसान आग से झेलती है । कई वजह से आग लगती है, कभी बिजली के शॉर्ट सर्किट से तो कभी सिगरेट बीड़ी के ठूंठ से तो कभी चूल्हे या बरोसी से उड़े तिलंगों से । चिंगारी से भड़कने वाली यह आग कभी ज्वाला बन जाती है तो कभी समूचे गॉंव या खेत खलिहान को भस्म कर डालती है । मैं जब छोटा सा था तब से अब तक यह आग देखता आ रहा हूँ हर साल लगती है और सैकड़ों किसानों ( कई जगह के ग्रामीण तो भूमिहीन होकर केवल पशुपालन या अन्य लोगों के खेतों में मजदूरी पर ही आश्रित हैं) व ग्रामीणों का सब अन्न दाना , कपड़ा लत्ता सब लील जाती है । मुझे लगता था कि मैं कुछ बना तो जरूर गरीब ग्रामीणों की इस समस्या के लिये कुछ न कुछ करूंगा । खैर चलो हम तो बन नहीं पाये लेकिन जो लोग बने उन्होंने कभी गरीब ग्रामीणों के इस आपत्ति काल व आकस्मिक समस्याओं के बारे में कभी नहीं सोचा, उन्हें अपनी वी.आई.पी. जिन्दगी से नीचे इस आम जिन्दगी की ओर झांकने का मौका तक नहीं मिला ।
किसी नेता या पत्रकार के लिये एक गॉंव का आग में स्वाहा हो जाना या लाखों करोड़ों का नुकसान हो जाना महज एक समाचार हो सकता है लेकिन एक गरीब किसान या ग्रामीण जो कि साल भर की पूरी मेहनत के साथ अपने पूरे घर गॉंव को जल कर भस्म होते देखता है, तो उसकी ऑंखों के ऑंसू थमने का नाम नहीं लेते और चन्द पलों के भीतर वह राजा से रंक हो जाता है । और मालिक से मजदूर बन जाता है, साल भर के पेट पालन के लिये न जाने क्या क्या बेचने और गिरवी धरने पर मजबूर हो जाता है । यहॉं तक कि बहू बेटियों की अस्मत भी । किसी नेता या किसी पार्टी ने हर साल गरीब ग्रामीणों पर आने वाली इस तयशुदा विपदा के लिये न कभी डायजास्टर मैनेजमेण्ट चलाया न इसके लिये कोई राहत कोष ही कभी स्थापित किया ।
किसान आयोग बनाने और खेती किसानी को मुनाफे को धन्धा बनाने या उद्योग का दर्जा देने की बात करने वाले सब इस मुद्दे से अनजान, बेपरवाह और खामोश है । किसान का घर जलना तो जैसे आम बात है , उफ शर्म शर्म शर्म ....
मुझे लोगों के लॉंक (फसल का ढेर गॉंवों में लॉंक कहा जाता है) के साथ साल, रोजी रोटी और सपनों को जिन्दा जलते देखने का अवसर कई बार मिला है । मुझे तकलीफ होती है । हर खबर जैसे मुझे झिंझोड़ देती है ।
आज भिण्ड के बारे में खबर अखबारों में आयी तो तकलीफ हुयी, भिण्ड से मेरा बहुत पुराना गहरा नाता है, पूरी प्रायमरी तक पढ़ाई लिखाई मुझे भिण्ड में ही नसीब हुयी वहीं सन्त कुमार लोहिया जैसा आदर्श गुरूओं की शिष्यता मुझे प्राप्त हुयी उनके आशीर्वाद और वरद हस्त ने मुझे ज्ञान और विवेक से परिचित कराया, राकेश पाठक (नई दुनिया के सम्पादक) प्रवीर सचान (इसरो के वैज्ञानिक) से लेकर विदेशों में सेवायें दे रहे बड़े बड़े वैज्ञानिक और इंजीनियर भारत की उच्च स्तरीय सेवाओं में पदस्थ कई अनमोल मित्र भी मुझे भिण्ड से ही मिले । आगे चल कर ससुराल भी भिण्ड ही बन गयी । संयोगवश लोकसभा चुनाव भी मैंने भिण्ड से ही लड़ा ।
भिण्ड में डॉं रामलखन सिंह (वर्तमान सिटिंग सांसद) के विरूद्ध मुझे लोकसभा का चुनाव लड़ने का मौका किला, उनका भी सांसदी का वह पहला चुनाव था मेरा भी यह पहला अवसर था । फर्क यह था कि वे भाजपा के बैनर पर थे हम पैदल थे । बाद में आगे चलकर डॉ. रामलखन सिंह भी हमारे रिश्तेदार बन गये ।
डॉं. रामलखन सिंह के हवाले से अखबारों में छपा है कि गॉंव में आग लगने की खबर उन्होंने प्रशासन को दी लेकिन प्रशासन ने कहा कि फायर ब्रिगेड उपलब्ध नहीं हैं, भिण्ड जिला में म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री औंर कॉंग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह की सभायें हो रहीं हैं सो फायर ब्रिगेड दिग्विजय सिंह की सभाओं में गयीं हैं ।
मुझे इस खबर से झन्नाटा लगना था सो लगा । दिग्विजय सिंह की सभाओं में फायरब्रिगेड भेजना मुझे कुछ अजीबो गरीब सा लगा । या तो हमारे डॉं. साहब झूठ बोल रहे हैं सरासर झूठ या फिर यह सच है तो हैरत अंगेज है ।
क्या दिग्विजय सिंह उमा भारती की तरह फायर ब्राण्ड नेता हैं जो आग लगाते फिरते हैं, सो सरकार को उनके संग हर सभा में फायर ब्रिगेड भेजनी पड़ती है ।
खैर भाजपाई सोच सकते हैं सोचो सोचो ...गालिब दिल बहलाने को ख्याल अच्छा है । यूं सोचो कि दिग्विजय सिंह जहॉं जाते हैं वहीं आग लगा आते हैं, जिसे बुझाने के लिये भाजपाईयों को दिन रात एक करके हफ्तों तक पसीना बहा कर पानी छिड़कना पड़ता है । और राजा हैं कि मानते ही नहीं, छेड़ना, ऊंगली करना, आग लगाना, खिला खिला कर मारना ये सब दिग्विजय सिंह की बहुत पुरानी आदतें हैं । और तो और आदमी एक बार आग लगा कर भाग जाये तो भी बात बने मगर दिक्कत ये है कि राजा रोज आ धमकते हैं और हनुमान जी जैसी पूंछ पसार कर कभी यहॉं तो कभी वहॉं आग लगा देते हैं, कहॉं कहॉं बुझायें कैसे कैसे बुझायें वाकई टेंशन है । भाजपा के लिये दिग्यिजय सिंह आग लगाऊ मशीन बन गये हैं । जहॉं जाते हैं वहीं गड़बड़ कर देते हैं ।
लगता है भाजपा ने राजा का तोड़ खोज लिया है, इसलिये दिग्विजय सिंह की हर सभा में फायर ब्रिगेड भेजना शुरू कर दी है । अब भईया किसी गॉंव शहर में कहीं आग लगे तो फायर ब्रिगेड के बजाय राजा दिग्विजय सिंह को फोन लगायें जिससे कम से कम फायर ब्रिगेड तो पहुँच जायेगी । मैं तो कहता हूँ कि फोन डायरेक्ट्री में फायर ब्रिगेड का नंबर बदल कर राजा साहब का नंबर छाप देना चाहिये । अब भईया मेरे तो राजा साहब से भी अच्छे ताल्लुक हैं, उनके साथ काम करने का मौका भी मिला है, कभी मौका मिला तो उन्हें चिट्ठी लिखकर अवगत करा दूंगा कि अपना नंबर फायर ब्रिगेड में छपवा दीजिये । वैसे तो इस आलेख को वे इण्टरनेट पर वे पढ़ ही लेंगें उनके साथ और भी कई हाईप्रोफाइल पढ़ कर उनका नंबर फायर ब्रिगेड में डलवा ही देंगें ।
सिर उठाने लगा राजस्थान का मीणा गूजर मुद्दा
राजस्थान के गूजर मीणा संग्राम से लगभग सभी भारतवासी अवगत ही हैं, मुरैना से कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास रावत भी जाति से मीणा हैं । आज रावत ने अपनी मदद के लिये राजस्थान से नमो नारायण मीणा को बुलवाया हैं । उधर रावत के मीणा वाद से मुरैना के गूजर नेता भड़क गये हैं, गूजर वोटो पर अब तक आस टिकाये रामनिवास के लिये चम्बल के गूजर समुदाय से खतरे की घण्टी बजने लगी है । और रही सही गूजर वोट की आस भी जाती खिसकती नजर आने लगी है ।
गूजर पहले से ही कांग्रेस द्वारा मीणा (राम निवास रावत) को यहॉं टिकिट देने से खफा चल रहे थे अब खुल कर बोलने भी लगे हैं । हालांकि राजस्थान मुद्दे की बात गूजर केवल अपनी जाति समुदाय के बीच करते हैं लेकिन आम जनता में बड़ा अलग ही तर्क दे रहे हैं, उनका तर्क है कि – मुरैना सामान्य सीट है या आरक्षित, अगर आदिवासी (चम्बल के गूजर चम्बल के मीणाओं को आदिवासी कहते हैं) ही वोट देना है तो फिर इस सीट को समान्य कराने की जरूरत क्या थी ।
मैं गूजरों के ऐसे ओछे तर्कों से सहमत नहीं हूँ भई चम्बल में मीणा आदिवासी नहीं बल्कि पिछड़े वर्ग में आते हैं, राजस्थान की बात राजस्थान तक ही रहने दीजिये, और रामनिवास को भी राजस्थान से जातिवादी नेता इम्पोर्ट नहीं करना चाहिये थे ।
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