21वीं सदी के भारत का निर्माण स्कूलों में होगा : प्रधानमंत्री
मद्रास विश्वविद्यालय की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री का भाषण
प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने नवीनता के जरिए 21वीं सदी को भारत की सदी बनाने की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी के भारत का निर्माण हमारे शिक्षण संस्थानों की कक्षाओं के कमरों में होगा। इस अवसर पर दिए गए प्रधानमंत्री के भाषण का मूल पाठ इस प्रकार है :
''इस महान विश्वविद्यालय की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित समारोह में शामिल होकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। आज शिक्षक दिवस है। आज के दिन मद्रास विश्वविद्यालय के महान एवं विशिष्ट विद्यार्थी तथा शिक्षक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के अवसर पर हम शिक्षकों को सम्मानित करते हैं। मैंने स्वयं अपने व्यावसायिक जीवन की शुरूआत विश्वविद्यालय शिक्षक के रूप में की थी, इसलिए आज यहां उपस्थित होकर मैं और भी गौरवान्वित तथा प्रसन्नचित हूं।
मद्रास विश्वविद्यालय अपने में बेजोड़ है और हमारे महान राष्ट्रीय संस्थानों में से एक है। राष्ट्र का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न पाने वालों में सात विभूतियां मद्रास विश्वविद्यालय की देन रही हैं। आपने दो नोबेल पुरस्कार विजेता तैयार किए हैं। 1930 में नोबेल पुरस्कार पाने वाले सर सी वी रमन और 1983 में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉक्टर एस चन्द्रशेखर इसी विश्वविद्यालय से सम्बध्द थे। अबेल पुरस्कार पाने वाले श्री एस आर श्रीनिवास वर्धन भी चेन्नई से सम्बध्द रहे हैं और यह पुरस्कार भी गणित के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के समकक्ष है। आपके सैंकड़ों शिक्षक और विद्यार्थियों ने अपने-अपने क्षेत्र में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। आपके विश्वविद्यालय ने कई अन्य विश्वविद्यालयों जैसे आंध्र विश्वविद्यालय, उस्मानिया विश्वविद्यालय, मैसूर और केरल विश्वविद्यालयों के निर्माण में योगदान किया है। ये सभी तमिलनाडु राज्य के विशिष्ट विश्वविद्यालयों में शामिल हैं।
मैं आज यहां उन सभी स्त्री-पुरूषों का अभिनंदन करता हूं जिन्होंने इस विश्वविद्यालय को ख्याति दिलाने में अपना योगदान किया है। पिछले वर्ष जब डॉ0 एस आर श्रीनिवास वर्धन को अबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तो मैंने उन्हें पत्र लिखकर बधाई दी थी। यह पुरस्कार गणित में नॉबेल पुरस्कार के समकक्ष है। डॉ0 श्रीनिवास ने अपने विनम्र उत्तर में मुझे बताया था कि वे उस प्रारंभिक शिक्षा के ऋणी हैं जो उन्हें चेन्नई में स्कूल और कॉलेज स्तर पर मिली। इस प्रकार बीसवीं सदी के अनेक महान बुध्दिजीवी, अनेक वैज्ञानिक, अनेक प्रख्यात इंजीनियर, अर्थशास्त्री और अपने-अपने क्षेत्र में विशिष्ट योगदान करने वाले स्त्री-पुरूष मद्रास विश्वविद्यालय के बारे में ऐसा ही मानते हैं। वे बड़ी निष्ठा के साथ कहते हैं कि मद्रास विश्वविद्यालय ने उन्हें बनाया है।
मेरा हमेशा यह मानना रहा है कि विश्वविद्यालय एक महान क्षेत्र है जो हमें सत्य के लिए मानव मात्र की शाश्वत खोज का अवसर और स्वतंत्रता प्रदान करता है। इसलिए विश्वविद्यालय को अनिवार्य रूप से एक उदार संस्थान होना चाहिए। मैं आधुनिक विश्वविद्यालय के बारे में अपने प्यारे प्रधानमंत्री स्व0 जवाहर लाल नेहरू की धारणा को अक्सर उध्दृत करता रहा हूं। एक बार फिर इसे दुहराता हूं। पंडित जी ने 1947 में कहा था:
'कोई भी विश्वविद्यालय मानवतावाद, सहिष्णुता, औचित्य, प्रगति, साहसिक विचारों और सत्य की खोज के लिए काम करता है। वह उच्चतर उद्देश्यों की दिशा में मानव जाति के मार्च को आगे बढ़ाता है। अगर विश्वविद्यालय समुचित रूप में अपने कर्तव्य का पालन करते हैं, तो यह हमारे राष्ट्र और हमारे लोगों के प्रति एक नेक दायित्व का पालन है। किन्तु अगर शिक्षण के हमारे मंदिर स्वयं संकीर्ण कट्टरता और निहित स्वार्थों का केन्द्र बनेंगे तो कैसे राष्ट्र खुशहाल होगा या लोगों का स्तर कैसे उन्नत होगा ?
भारतीय उपमहाद्वीप मानव सभ्यता के उदय के समय से ही शिक्षण की भूमि रहा है। इसने संस्कृत और तमिल जैसी महान और प्राचीन भाषाओं को जन्म दिया है। विज्ञान और गणित में शून्य तथा युग्मक (बाइनरी) प्रणाली जैसी महान अवधारणाओं का आविष्कार इसी धरती पर हुआ है। अनेक महान धर्मों का जन्म भी यहां हुआ, जो आज भी दुनिया भर में अपनाए जा रहे हैं। महान साहित्यकारों और कलाकारों का उदय भी इसी भारत भूमि पर हुआ। अगर हमारे पूर्वज शिक्षण की इस संस्कृति को पल्लवित एवं पुष्पित नहीं करते तो यह सब संभव नहीं था।
अगर उस संस्कृति में कोई कमी थी, तो यह कि शिक्षा के अवसर हमारे सभी लोगों के लिए उपलब्ध नहीं थे। आज हम उस कमी को दूर करने की स्थिति में आ गए हैं। आज हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि लोकतांत्रिक भारत अपने सभी नागरिकों तक शिक्षा और प्रशिक्षण के अधिकार का विस्तार करने के प्रति वचनबध्द हैं। आज एक देश के रूप में हम इस लक्ष्य के प्रति कृत संकल्प हैं कि हमारे समाज के सभी वर्गों की पहुंच शिक्षा तक होनी चाहिए। हमारी सरकार ने लोगों की शिक्षा अधिकारिता और देश में शिक्षा के विकास के क्षेत्र में एक नए चरण की शुरूआत की है। प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर तथा तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में जो निवेश हम कर रहे हैं, उससे आने वाले समय में हमारे देश का काया पलट होगा। हम सिर्फ शैक्षिक अवसरों के मात्रात्मक विस्तार पर नहीं बल्कि गुणात्मक विकास पर भी ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं।
हमारा लक्ष्य ऐसे भारत का निर्माण करना है जिसमें सभी बच्चे स्कूल में हो, सभी वयस्कों को विपणन योग्य कौशल में व्यावसायिक प्रशिक्षण के अवसर मिले और हमारे सभी बच्चों को बौध्दिक उत्कृष्टता के अवसर प्राप्त हों।
इन सभी प्रयासों में हमें बालिका शिक्षा और महिलाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। सोनिया जी ने सभी महिलाओं की साक्षरता को शैक्षिक प्रयासों का आधार बनाने की आवश्कता पर बल दिया है। उनका मानना है कि ऐसा करने से चौहुमुखी सामाजिक और आर्थिक विकास पर अधिकतम प्रभाव पड़ेगा। तमिलनाडू ने महिलाओं की अधिकारिता की दिशा में हमें मार्ग दिखाया है। मैं चाहता हूं कि शेष भारत तमिलनाडू से सबक लें। महिलाओं की साक्षरता और बालिकाओं की शिक्षा की दर तमिलनाडू में अत्यंत प्रभावशाली हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि विद्वान और राजनेता मुख्यमंत्री डॉक्टर के करूणानिधि के प्रेरक नेतृत्व में तमिलनाडू राज्य सामाजिक और आर्थिक विकास की नयी उपलब्धियां हासिल करेगा।
मैं सभी राजनीतिक नेताओं से अपील करता हूं कि वे देश के विकास में शिक्षा की केन्द्रीय भूमिका को समझें। दुर्भाग्य से हमारे सार्वजनिक प्रयासों का बड़ा हिस्सा अक्सर अल्पकालीन बाहरी समस्याओं और वर्तमान में उपलब्ध तक पहुंच पर केन्द्रित रहता है। हम वृध्दि और विकास के सवालों तथा अपने लोगों के लिए अवसरों के बहु आयामी विस्तार की चुनौती पर अधिक ध्यान केन्द्रित नहीं करते। विस्तार ऐसा होना चाहिए जो मानकों और नतीजों के साथ समझौता न करें लेकिन सभी प्रतिभाशाली बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करे।
विश्वविद्यालय को विद्वानों और शिक्षकों का केन्द्र कहा जाता है। आज के दिन मैं शिक्षा संस्थानों और वास्तव में वृहत् राष्ट्र के निर्माण में शिक्षकों की केन्द्रीय भूमिका का स्मरण अवश्य कराना चाहूंगा। शिक्षक संचालक होता है। हमें अपने विश्वविद्यालय में सर्वोत्कृष्ट प्रतिभाओं को आकर्षित करने की आवश्यकता है, जैसा कुछ अन्य देश कर रहे हैं। हमें दुनिया भर से ऐसे शिक्षकों को आकर्षित करना होगा। हमें ऐसे तौर-तरीके अपनाने होंगे ताकि विदेश में रह रही प्रतिभाशाली भारतीय हमारे ज्ञान के संस्थानों में वापस आयें।
मैं इस अवसर पर राज्य सरकार और विश्वविद्यालय के अधिकारियों तथा इस सुंदर शहर चेन्नई को प्यार करने वालों को इस बात के लिए बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने कुछ विश्वविद्यालय भवनों की पुरानी गरिमा बहाल रखने में योगदान किया है। अपने शहर और इसके ऐतिहासिक भवनों पर आपको जो गर्व है उससे देश के अन्य शहरों को प्रेरित होना चाहिए कि वे अपनी बहुमूल्य वास्तुकला विरासत की रक्षा करें।
मैं इस अवसर पर आप सबको भावी प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं। मैं चाहता हूं कि आप सभी समग्र और नवीन भारत के निर्माण में योगदान करें ताकि भारत एक बार फिर उभरती हुई वैश्विक राजनीति के प्रमुख केन्द्र के रूप में उभरे। आज हमारा देश जिन रचनात्मक सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है उससे आप सभी अवश्य रू-ब-रू हो रहे होंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप उत्कृष्टता को बढ़ावा दें क्योंकि हमारा राष्ट्र 21वीं सदी को भारतीय सदी बनाने के लिए आपकी रचनाशीलता पर निर्भर है। 21वीं सदी पर भारत के निर्माण हमारे शिक्षा संस्थानों की कक्षाओं के कमरों में होगा और उससे भारत और विश्व दोनों का पुननिर्माण होगा। मैं आपके प्रयासों में आपकी सफलता की कामना करता हूं।
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