उत्तरायण हुये सूर्य, दिन बढ़ना शुरू, उत्तरायण सूर्य देते हैं जीव को राहत
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
भारतीय ज्योतिष व तंत्र शास्त्र में उत्तरायण सूर्य का काफी अर्थ व महत्व है । उत्तरायण सूर्य के लिये भीष्म पितामह ने महाभारत के युद्ध में अपने प्राणों को वाण शैय्या (शर शैय्या ) पर तब तक रोके रखा जब तक कि सूर्य उत्तरायण नहीं हो गये ।
21-22 दिसम्बर से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, इस साल भी 21 दिसम्बर को शाम 5 बज कर 55 मिनिट पर सूर्य नारायण की उत्तरायण स्थिति प्रारंभ हो चुकी है । और शिशिर ऋतु प्रारंभ होकर दिनों का बढ़ना शुरू हो गया है ।
उत्तरायण सूर्य की महिमा वर्णन अनेक भारतीय धर्म शास्त्रों में वर्णित है, श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उत्तरायण सूर्य की महिमा प्रतिपादित करते हुये कहा कि उत्तरायण सूर्य, शुक्ल पक्ष व मध्याह्न में प्राण तजने वाले की मुक्ति स्वत: हो जाती है और वह सीधे वैकुण्ठ धाम का वासी होकर उसका कभी पुनर्जन्म नहीं होता ।
छ: माह तक सूर्य की उत्तरायण व छ: माह तक दक्षिणायण गति रहती है ।
जून माह में 21- 22 तारीख से सूर्य की दक्षिणायण गति प्रारंभ होकर दिन छोटे और रातें लम्बी होना प्रारंभ हो जातीं हैं ।
मृतक आत्माओं व चराचर जीवों के लिये उत्तरायण सूर्य राहत का संदेश लेकर आते हैं और अंत:आत्मा में व्याप्त क्लेश का शमन करते हैं ।
दम और खम जैसे हिन्दी शब्दों की व्युत्पत्ति दमन और शमन के भावार्थ से हुयी है । सूर्य को परम राजयोगी (परम योगी) मान्य किया गया है, सूर्य के कृपायमान होने से मनुष्य को दमन और शमन की अतुलनीय शक्ति, तेज, ओज व उल्लास व उत्साह प्राप्त होता है ।
दमन से युक्त मनुष्य को दम, और शमन से युक्त मनुष्य को शम या खम वाला यानि दम खम वाला मनुष्य कहा जाता है ।
सूर्य कृपा से विहीन मनुष्य इन दोनों कुदरती नेमतों से वंचित होकर पद युक्त होकर भी प्रभावहीन व तेजहीन रहता है । अत: ज्योतिष व तंत्र मनुष्य को सूर्य उपसाना व आराधना की आज्ञा देते हैं और निर्दिष्ट करते हैं कि मनुष्य नियमित रूप से सूर्य उपासन व आराधन करे ।
हठयोग में सूर्य नमस्कार नामक प्रचलित व्यायाम प्रणाली योगासन विख्यात है । नियमित रूप से सूर्य नमस्कार साधन से मनुष्य दैदीप्यमान होकर अतुलनीय तेज व राजाज्ञा की शक्ति प्राप्त होकर राजा तुल्य हो जाता है ।
राजयोग में योग विधि में प्राणयाम पद्धति अंगीकार की गयी है, राजयोग पर अद्भुत ग्रंथ मेरी नजर में स्वामी विवेकानन्द द्वारा रचित ''राजयोग'' महर्षि पतंजलि के योग सूत्र, गीता प्रेस गोरखपुर प्रकाशित योग पुस्तकें व श्रीमद्भगवद्गीता का नौवां अध्याय है । राजयोग साधन वस्तुत: कुण्डलीनी जागरण की विद्या है, जिसमें सुसुप्त पड़ी कुण्डलिनी को जागृत कर उसमें शक्ति प्रवाह किया जाता है और उसे ब्रह्मरन्ध्र अर्थात सर्वोच्च अवस्था तक ले जाया जाता है । और मनुष्य महा शक्तिमान व पराक्रमी होकर अलौकिक, पारलौकिक एवं विलक्षण शक्तियों का स्वामी बन जाता है । इस योग में इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना नाड़ीयों में प्राण शक्ति से ऊर्जा प्रवाह किया जाता है और रीढ़ की हड्डी के नीचे त्रिकोण में सोयी कुण्डलिनी जो कि गांठ लगी होकर सुप्त पड़ी रहती है को गांठ खोलकर प्रवाहित किया जाता है । मनुष्य की इड़ा पिंगला नाड़ीयां हर मनुष्य में प्रत्येक समय सप्रवाह रहतीं हैं किन्तु सुषुम्ना में शक्ति प्रवाह सिर्फ इसी योग साधन से किया जाता है और मनुष्य विलक्षण हो जाता है ।
सूर्य की कृपा बगैर न राज प्राप्त होता है न योग न भोग । सूर्य का तिलिस्म उसकी वैभिन्य रश्मियों में भी छिपा है, प्रत्येक क्षण उसकी रश्मियां परिवर्तित होतीं हैं और प्रकृति को तद्नुसार प्रभावित कर मनुष्य मात्र को यथा प्रभाव देतीं हैं । सूर्य जन्म कुण्डली में यदि श्रेष्ठ और बलवान स्थिति में है तो निसंदेह मनुष्य को राज या राजतुल्य बना देता है लेकिन यदि इसके विपरीत यदि स्थित है तो राजकुल में जन्म लेने के बाद भी मनुष्य प्रभाव हीन होकर रंक की भांति जीवन यापन करता है ।
राजा भी यदि सूर्य का सम्यक उपाय व अभ्यास न करे तो राज और उसका राज्य शीघ्र ही नष्ट हो लेते हैं । सूर्य के कारण जन्म कुण्डली में लगभग हजारों प्रकार के विभिन्न योग निर्मित होते हैं, जारज निर्धारण में सूर्य का विशेष महत्व है ।
ज्योतिष में सूर्य को पाप व क्रूर ग्रह माना गया है, यह रूकावट, राजबाधा, राजसुख, राजयोग, राज्यप्राप्ति, राज्यहरण, पिता, आत्मा व तेजस्विता व प्रभाव आदि के बारे में कुण्डली में अपनी अवधारणायें तय करता है ।
सूर्य को तंत्र व ज्योतिष की कुछ अन्य शक्तियों का स्वामी भी मान्य किया गया है, चर्म रोग, कुष्ठ, एवं नेत्र रोग, वाम व दक्षिण नेत्र शक्ति, ज्ञान, विद्या व रसोत्पत्ति, जड़ी बूटियों में सार व रस, तासीर आदि की उत्पत्ति एवं वृद्धि सूर्य नारायण ही करते हैं ।
दवा असर करे, ज्ञान व विद्या फलित हो, योग पूर्ण हो, राजा व राज्य शक्ति तथा राजकृपा हेतु सूर्य साधन अकाट्य उपाय हैं ।
नीम, श्वेतार्क, करवीर सूर्य के कृपाकारक वृक्ष हैं, रक्ता आभा, रक्तरंग सूर्य के प्रिय रंग हैं । सूर्य की पत्नी छाया के गर्भ से उत्पन्न शनि देव से सूर्य को काफी प्रेम व स्नेह है किन्तु शनिदेव सूर्य से शत्रुता मानते हैं । 27 दिसम्बर को शनि देव की शनीचरी अमावस्या पड़ रही है ।
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