ई शासन- सवालों व संभावनाओं और घने बादलों के पीछे चमकता भारत का भविष्य का सूर्य
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
किश्तबद्ध आलेख भाग-1
भारत में महाराजा विक्रमादित्य का साम्राज्य रहा हो या कौटिल्य चाणक्य के समय की शासन प्रणाली रही हो या फिर राजा राम का राम राज्य हो सभी ऐतिहासिक तथ्य कम से कम भारत में एक सर्वोत्तम सुशासन प्रणाली के पूर्व से अवस्थित रहने की ओर ही संकेत करते हैं ।
सुशासन, पारदर्शिता, न्यायप्रियता और दूध का दूध और पानी का पानी, सत्यवादिता, निष्पक्ष कर्म जैसी मूल बातें भारत की आत्मायें हैं और इनके बगैर भारतवर्ष की कल्पना असंभव है ।
कोई कितना भी झुठलाये और कितना भी बल और छल के साथ सम्पूर्ण ताकतवर होकर भारत की इन मूल भावनाओं को धक्का देकर कितना भी भ्रष्टाचार फैलाता फिरे या जानकारीयों व सूचनाओं को अपारदर्शी बना कर पारदर्शिता पर कुहासा फैलाये कितना भी अन्याय की शक्ति का महिमा बखान करता फिरे अंतत: उसे मात ही खानी पड़ेगी । सत्य, न्यायप्रियता और सुशासन, ईमानदारी, परहितवाद आतिथ्य जैसी परम्परायें व संस्कार भारत की आत्मा में ही केवल नहीं रचते बसते अपितु रग रग में विद्यमान हैं ।
भारत में लंकाधीश रावण का भी साम्राज्य का भी इतिहास है तो कंस के अत्याचारों की कथायें भी विद्यमान हैं, दुर्योधन के अन्यायी कृत्यों की कथाओं से भारत का इतिहास भरा है तो कहीं आल्हा जैसे महाकाव्य में छल कपट और कूटनीति जैसे दुश्चारित्रिक उपाख्यान भरे हैं तो इन्हीं के साथ हमारा विलक्षण व अद्वितीय इतिहास सत्य की असत्य पर विजय, अन्याय पर न्याय का अंतत: साम्राज्य, कुशासन पर सुशासन का राज्य, राम की रावण पर विजय, कृष्ण की कंस पर विजय, पाण्डवों की कौरवों पर विजय, आल्हा, ऊदल, मलखान, इंदल जैसे वीरों की विजय कथायें भी भारत की असल आत्मा का ही बोध करातीं हैं । भारत में अँधेरे के राज, असत्य के साम्राज्य और अन्याय की आंधीयाँ आते जाते रहे हैं इनसे प्रकाश, सत्य और न्याय का युद्ध युगों से चला आ रहा है, वे भी युग युग में प्रकट हुये तो वे भी हर युग में आये । यानि दोनों शक्तियों का अस्तित्व और संघर्ष भारत में युगों से होता आया है । बस राक्षस और दैत्य अपने नाम और रूप बदल बदल कर आते रहे इसी प्रकार राम और कृष्ण भी इनसे लड़ने हर युग में नाम और रूप बदल बदल कर आते रहे ।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दैत्यों और राक्षसों ने कुशासन, भ्रष्टाचार और अन्याय अत्याचार के रूप में अपना राज कायम किया है और अपारदर्शिता के मायाजाल में अपने पापों को ढंकने के बेहतरीन इंतजामात के साथ ताकि लम्बे समय तक इनके पापों और कुकर्मों के भेद न खुल सकें ।
ई शासन और कुशासन का युद्ध
जैसा कि ऊपर दृष्टान्तात्मक विवरण से इतना तो स्पष्ट हो ही गया होगा कि सतयुग, त्रेता और द्वापर युग के दैत्यों और राक्षसों ने कलयुग में कई रूपों में जन्म ले लिया है और निरीह जनता यानि आम आदमी को सताने और उसका रक्त पीने व चूसने का काम करने इन ताकतों का अंदाज और स्टायल भी नया और आधुनिक यानि मायावी है यानि कहीं भ्रष्टासुर दो रूपये से लेकर करोड़ों तक के भ्रष्टाचार से जनता का लहू चूसने में लगा है तो कहीं कहीं आतंकासुर और बमासुर जगह जगह खून की नदियॉं बहातें फिर रहे हैं, कहीं दूसरी जगह इनका अवतार अन्यायासुर के रूप में हुआ है जो फर्जी केसों में लोगों को फंसाने से लेकर फांसी के फन्दे से हलाल करने में या जेल में सड़ा सड़ा कर कष्ट पीड़ा देने के कारोबार में लगे हैं ।
कहीं तो ठेकासुर चन्द चॉंदी के सिक्कों के लिये या घर परिवारी भाई भतीजों के कल्याण के लिये ठेके बांटने में लगे हैं । कही कहीं दैत्यराजों के अवतार बकासुरों यानि बक बक कर भाषण झाड़ू फर्जी खोखले वादासुर नेताओं के रूप में जनम पड़े हैं । कुल मिला कर आप अपने आप को कहीं बलात्कासुर तो कहीं भ्रष्टासुर या अफवाहासुर किसी न किसी असुर से घिरा पायेंगें कहीं चुगली करते चुगलासुर तो कहीं भ्रष्टाचार कर अपारदर्शिता की आड़ में खाये पीये को हजम करते जुगाली करते डकारासुर नजर आयेंगें । इन चौतरफा असुरों की भीड़ के बीच भी आम आदमी जिन्दा है, भारत जिन्दा है यह हैरत की बात है, विलक्षण बात है ।
विलक्षण के साथ हैरत अंगेज यह भी है कि एक भ्रष्टासुर दूसरे भ्रष्टाचारासुर का वक्त पड़ने पर खून पीने से बाज नहीं आता । यानि सिपाही भी टी.आई. से रिश्वत पा जाता है ।
फिर भी भारत जिन्दा है हैरत अंगेज है, भारतवासी जिन्दा हैं करिश्मा है । फिर भी भारत लड़ रहा है यह काबिले तारीफ है । आखिर क्यों न हो श्रीकृष्ण ने कहा कि '' यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत........संभवामि युगे युगे ''
खैर श्रीकृष्ण तो फिलहाल आने से रहे आखिर आई.पी.सी. (भारतीय दण्ड संहिता) की पूरी 511 धारा श्रीकृष्ण पर लागू होती हैं । श्रीकृष्ण ने जो भी किया आई.पी.सी. में वह अपराध है, श्रीकृष्ण की श्रीमद्भागवत या हरिवंश पुराण या महाभारत उनके अपराधों का साक्ष्य प्रमाण संग्रह यानि अपराध शास्त्र है और अंग्रेजों ने सन 1860 में आई.पी.सी. बना डाली कि श्रीकृष्ण और उसकी विचारधारा को ब्लॉक करिये, क्योंकि उस समय देश में जितना भी क्रान्तिकारी पैदा हो रहा था, सबके सब श्रीकृष्ण की गीता पढ़ कर आ रहे थे और क्रान्ति, आजादी के नाम पर बगावत का झण्डा उठा लेते थे । अँग्रेजो के लिये श्रीकृष्ण को रोकना जरूरी था, श्रीकृष्ण की विचारधारा पर लगाम लगाना जरूरी था (श्रीकृष्ण की विचार धारा घोड़ा नहीं है भईये पर का करिये ये हमारी बोलचाल और बात समझाने का लहजा है भईये म.प्र. के भ्रष्टासुर कर्मचारीगण नोट करें, भईया हम अपने शब्द वापस नहीं लिया करते ) सो अँग्रेज आई.पी.सी. रच लाये, श्रीकृष्ण का अवतार प्रतिबंधित हो गया और यदा यदा हि धर्मस्य सदा के लिये ब्लॉक हो गया । चलो अँग्रेज भईयों को ये करना था ये उनकी मजबूरी थी लेकिन । श्रीकृष्ण को हम आज तलक राके हैं, उसे अवतार नहीं लेने दे रहे आज तक अँग्रेजों की बनाई आई.पी.सी. सन 1860 से देश चला रहे हैं । आजादी के 62 साल बाद भी अँग्रेजों के कानून से देश चला रहे हैं, हमारे पास कानून के नाम पर अँग्रेजों की सड़ी रद्दी कानूनी किताबों को उलटपुलट कर धूल झड़ाने (संशोधन) का काम केवल बचा है । अब सवाल ये है, कि फिर हम आजादी की लड़ाई किससे लड़ रहे थे अँग्रेजो से या अँगेजों की नीतियों व कानूनों के खिलाफ । अगर उनके कानून ठीक ठाक थे तो फिर अँग्रेजों को यहॉं से विदा करने की जरूरत ही क्या थी । जित्ते मुठ्ठी भर संशोधन हमने 62 साल में रचे उससे ज्यादा तो अँगेज केवल एक चार्टर से या एक नये कानून से कर देते । क्या सच में हम आजाद हो गये । हॉं हम आजाद हो गये लेकिन विरासत को सहेजे हैं, कानूनों के रूप में भी, वे भी देश में कृष्ण को जन्म नहीं लेने देना चाहते थे हम भी 62 साल से नहीं लेने दे रहे । हममें और अँग्रेजों में फर्क क्या है । यानि यहॉं भी कहीं न कहीं अंधकासुर छिपा बैठा है ।
खैर आप सोचिये अब ई शासन और सुशासन पर लिखना ही है तो यह आलेख किश्तबद्ध रूप में चलेगा आप तब तक इतने पर विचार करिये मैं दूसरी किश्त की तैयारी करता हूँ । इस आलेख के साथ आप मानसिक तैयारी व आत्मिक तैयारी के साथ मेरे साथ भारत में सुशासन या ई शासन लाने को तैयार रहिये मैं आपको बताऊंगा कि क्यों नहीं आ पा रहा सुशासन और क्यों नहीं लागू हो पा रहा ई शासन । लेकिन यदि हर भारतवासी ने यदि ठान लिया कि नहीं नहीं बस बहुत हो लिया अब तो सुशासन होना ही चाहिये, तो मैं कहता हूँ कि यह बहुत आसान है और महज हमसे चन्द कदम भर यह दूर है तथा केवल चन्द पलों की बात है । क्रमश: अगले अंक में जारी .............
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