दिवा स्वप्न बनी अटल ज्योति, बदलेगें कांग्रेस अध्यक्ष , घर घर फुंक गये मोदी , केजरीवाल से ज्यादा बुरा अंजाम मोदी का
मुरैना - डायरी
कुंवर उजागर सिंह चौहान
म.प्र. से काफूर हुई आखिरकार चुनावी अटल ज्योति
बड़े जोर शोर से गाजे बाजे के साथ करीब सात आठ करोड़ रूपये के विज्ञापनों पर पैसा फूंक कर जनरेटरों के सहारे म.प्र. विधानसभा चुनावों के वक्त शुरू की गई चुनावी अटल ज्योति हालांकि 25 नवंबर 2013 को ही म.प्र. विधानसभा चुनाव का मतदान समाप्त होते ही लपझप लपझप करने लगी थी , लेकिन मजबूरी थी कि कैसे भी करके इसे लोकसभा चुनावों तक तो कम से कम चलाया ही जाये , लिहाजा जैसे तैसे मार्च महीने में इसकी मरम्मत कर करा के डीजल पानी डाल के मार्च से मई तक फिर इस खटारा को शिवराज सरकार ने घसीटा , 16 मई को लोकसभा चुनाव परिणाम घोषित होते ही फिर खटारा फेल हो गया और म.प्र. में तकरीबन हर इलाके में भरी भीषण गर्मी में बिना घोषणा अघोषित बिजली कटौती पुन: न्यूनतम 8 घंटे से लेकर 16 – 17 घंटे तक की शुरू कर दी गई , अनेक बहानों के पुराने चीथड़े शिवराज सरकार म.प्र. की जनता को नन्हा मुन्ना बच्चा समझकर लगाती बहलाती रही , म.प्र. ही केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व में एक ऐसा राज्य है , जहॉं साल के पूरे 365 दिन मेंटीनेन्स के नाम पर बिजली कटौती पिछले दस साल से लगातार की जा रही है , उल्लेखनीय है कि सन 2003 में म.प्र. में भाजपा केवल एक माह के भीतर 24 घंटे बिजली देने का वायदा करके सरकार में आई थी , उसके बाद सन 2008 में भी यही वायदा शिवराज ने हर जगह जाकर किया , और सन 2013 के चुनावों में भी इसी वायदे को लेकर और अरबों रूपये जनता के खून पसीने की कमाई के फोकट उड़ा कर अटल ज्योति के नकली फिल्मी ड्रामे के साथ शिवराज ने चुनाव लड़ा ।
यह उल्लेख प्रासंगिक व समीचीन होगा कि सन 2008 के विधानसभा चुनावों में म.प्र. में कांग्रेस के गलत टिकिट वितरण और टिकिट बेचे जाने , गलत प्रत्याशीयों के मैदान में उतारे जाने का भरपूर लाभ उठा कर शिवराज ने सत्ता में वापसी की तो वहीं सन 2013 के विधानसभा चुनावों में खुलकर कांग्रेस के टिकिट बेचे गये, गलत प्रत्याशी उतारे गये , आरोप यह है कि कांग्रेस के सारे टिकिट भाजपा ने और शिवराज ने अरबों खरबों रूपये देकर खरीद लिये , और सन 2013 में अपनी कहानी दोहराते हुये कांग्रेस ने म.प्र. की सत्ता पुन: शिवराज सिंह को बेच दी ।
म.प्र. कांग्रेस में भारी फेरबदल , बदलेंगें अनेक जिलाध्यक्ष
म.प्र. कांग्रेस में बहुत बड़ा परिवर्तन दस्तक दे रहा है , कांग्रेस हाईकमान द्वारा जारी निर्देशों में म.प्र. कांग्रेस में आमूलचूल बदलाव करने को कहा गया है , पूर्व पदाधिकारीयों या वर्तमान चालू सीरीज के पदाधिकारीयों को को संगठन में पुन: पद न देकर नये लोगों को व जमीनी लोगों को ही कांग्रेस संगठन में पद दिये जायें, इस के तहत मुरैना व दतिया के नये कांग्रेस जिलाध्यक्षों के नाम लगभग तय हो चुके हैं , ऊपर से सूत्रों से मिल रही विश्वस्त खबरों के अनुसार मुरैना के लिये नरेन्द्र सिंह तोमर और दतिया के लिये प्रदीप गुर्जर का नाम कांग्रेस के नये जिलाध्यक्ष के रूप में तय कर दिया गया है , अब केवल घोषणा होनी बाकी है , शेष जगह के लिये कई जगह के नये कांग्रेस जिलाध्यक्ष तय किये जा चुके हैं तो कई जगह के लिये नये कांग्रेस जिलाध्यक्षों के नामों पर विचार मंथन जारी है , कांग्रेस में गुटबाजी समाप्त करने और निर्गट या गुटबाजी से दूर रहने वाले कांग्रेसियों को ही संगठन के पुनर्गठन में तवज्जुह दी जा रही है
जिस कारण सत्ता में आये, उसी कारण घर घर फुंक गये मोदी
मंहगाई खत्म करने और हर चीज सस्ती कर देने , अच्छे दिन आयेंगें या अच्छे दिन आने वाले हैं का सब्जबाग दिखाकर , जनता को लालच का लॉलीपॉप देकर सत्ता में आये नरेन्द्र मोदी की सरकार की बोहनी ही खराब हुई है , नरेन्द्र मोदी के सरकार में आते ही जहॉं एकदम से सभी चीजों के दाम उछल गये और मंहगाई सिर उठाकर आसमान चूमने लगी वहीं रेल बजट से पहले ही रेल किराये और माल भाड़े में वृद्धि , डीजल दामों में समानांतर श्रेणी में वृद्धि को लेकर जनता भी कई फीट ऊँची उछल गई और देश भर में घर घर , हर घर में मोदी के पुतले पहले ही महीने में फुंक गये , शपथ लिये अभी मोदी को महीना भी पूरा नहीं हुआ और उससे पहले ही घर घर पुतला दहन मोदी के लिये अपशकुन ही माना जायेगा और न देश के लिये , न मोदी और भाजपा के लिये इसे अच्छे आसार कहा जा सकता है
केजरीवाल से भी अधिक बुरा हश्र हो सकता है नरेन्द्र मोदी का
नई केन्द्र सरकार के आसार कुछ अच्छे नजर नहीं आ रहे , जख्म खाई दिल्ली की जनता के साथ जो दोगला व्यवहार व भद्दा मजाक केजरीवाल ने किया , उसका तुरत फुरत फल केजरीवाल चख चुके हैं , केजरीवाल के ही कदमच्हिनों पर चल रही नरेन्द्र मोदी सरकार बिल्कुल उसी स्टाइल में केन्द्र में सरकार में आई है , जिस स्टाइल में केजरीवाल सरकार दिल्ली में आई थी , बस फर्क केवल इतना है कि केजरीवाल के पास खुद का बहुमत नहीं था और नरेन्द्र मोदी के पास खुद का बहुमत है , केजरीवाल की तुलना में नरेन्द्र मोदी का हश्र अधिक बुरा इसलिये होगा कि केजरीवाल के पास बहुमत न होने का एक आसान बहाना था , लेकिन नरेन्द्र मोदी के पास तो कोई बहाना ही शेष नहीं बचा है , नरेन्द्र मोदी के पास केवल एक चारा शेष बचा है , या तो करके दिखाओ , या फिर अब सदा के लिये वापस जाओ , नरेन्द्र मोदी के भयावह अंजाम से सीध सीधा भाजपा व आर.एस.एस. का भी अभिन्न रूप से भयावह हश्र जुड़ा हुआ है, यह भी तय है कि नरेन्द्र मोदी उतना भी नहीं कर पायेंगें जितना दिखावटी व नकली ही सही, केजरीवाल ने कर दिया था , राजनीति में बातें करना आसान है , काम करना नामुमकिन , नरेन्द्र मोदी नामुमकिन को कर दिखाने के वायदे करके सत्ता में आये हैं , भारत की जनता की आदत है कि दवा वो चाहिये जिससे बुखार बस केवल तुरत फुरत दो मिनिट में छू मंतर हो जाये, नरेन्द्र मोदी इसी बुखार को केवल एक मिनिअ में छू मंतर कर देने की दवा देने वाले डॉक्टर का रूप धर कर आये हैं , एक कल्पनालोक व मायावी स्वप्न जनता को परोस कर सत्ता में आये हैं, इसलिये नरेन्द्र मोदी के सामने केवल करो या मरो के सिवा कोई चारा शेष नहीं है ।
यह उल्लेखनीय है कि केवल बहुमत के सहारे सत्ता में अधिक दिन टिके रहना मोदी के लिये संभव नहीं है , एक सन्निकट ही भारी जन विद्रोह या गृहयुद्ध की आशंकित संभावनाओं से कतई इंकार नहीं किया जा सकता , इसलिये बहुमत के बावजूद या तो नरेन्द्र मोदी को अपने चुनावी वायदों के मुताबिक तुरंत ही कुछ कर दिखाना होगा वरना देश में जन विद्रोह या गृहयुद्ध की सूरतों का सामना करना होगा , इसलिये यह स्पष्टत: लगभग कहा जा सकता है कि जो कह कर आये वह करना संभव नहीं , अगर किया नहीं तो सत्ता में रहना संभव नहीं , इसलिये अब या तो करो, करके दिखाओ या केजरीवाल सरकार से अधिक बुरा हश्र भुगतने को तैयार रहो