गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

भारत में जाति व्‍यवस्‍था और आज का युवा – अहससासे आफताब नहीं, कब्‍जा ए आफताब कीजिये

भारत में जाति व्‍यवस्‍था और आज का युवा अहससासे आफताब नहीं, कब्‍जा ए आफताब कीजिये

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

राजपूत नौजवान हों या कि ब्राह्मण नौजवान हों या कि वैश्‍य या शूद्र, हिन्‍दू हों मुस्लिम हो या ईसाई तकरीबन सभी को अवस्‍था विशेष तक अनेक झंझावातों से गुजरना होता है कई सवालों से जूझना पड़ता है, जब तक जवाब मिल पाते हैं उमर गुजरती चली जाती है और अनेक महत्‍वपूर्ण अवसरों को वे खोते जाते हैं । यह आलेख नौजवानों को समर्पित है, यद्यपि मुझे वक्‍त नहीं मिल पाता फिर भी मैंने आपके लिये वक्‍त निकाला है इसे लिखने के लिये । यदि किंचित भी यह आपके लिये उपयोगी हुआ या आपके काम आ सका तो यह मेरे वक्‍त का एवं श्रम का समुचित प्रतिफल होगा ।

भारतीय सामाजिक व्‍यवस्‍था

अनेक युवा इस बात पर भ्रमित हैं कि भारत की सामाजिक व्‍यवस्‍था और ढांचा कई छोटी जाति या अन्‍य धर्मावलम्बियों के लिये कष्‍टकारक व फर्क बताने वाला है । विशेषकर शूद्र वर्ग के युवा अक्‍सर भारतीय सामाजिक व्‍यवस्‍था से आहत एवं क्षुब्‍ध हैं, अक्‍सर वे मनुवाद की प्रत्‍यक्ष आलोचना करते रहते हैं और वर्ण व्‍यवस्‍था आदि को दोष देकर उसकी निन्‍दा करते रहते हैं । आपको यह जानकर हैरत होगी कि मैं शूद्र जाति के लोगों के द्वारा लिखी पुस्‍तकें गंभीरता से पढ़ता हूं उन पर चिन्‍तन एवं मनन भी करता हूं ।

ब्राह्मण , क्षत्रिय व वैश्‍य सभी के कर्म विभाजित हैं शूद्र का कर्म सेवा नियत है, अब यदि आज के युग से देंखें तो शूद्र अध्‍यापन का कार्य कर रहे हैं और ब्राह्मण सेवा का, कलेक्‍टर शूद्र है और चपरासी ब्राह्मण, कलेक्‍टर को ब्राह्मण चपरासी पानी भी पिलाता है उसका सामान भी उठाता है और उसे गाड़ी का दरवाजा खोल कर गाड़ी में भी घुमाने ले जाता है ।

कई बार युवा कहते हैं कि नाम के साथ उपनाम न लिखा जाये, जाति संबोधन न लगायें जायें, ठीक बात है लेकिन प्रश्‍न यह है कि जाति संबोधन या उपनाम लगाने की व्‍यवस्‍था आखिर आई कहॉं से और क्‍यों शुरू हुयी ये परम्‍परा , क्‍या आदिकाल से ऐसा था । इसका स्‍पष्‍ट जवाब है कि नहीं, आदि काल से कतई ऐसा नहीं था, अब सवाल है कि क्‍या ये मनुवाद है या मनु की देन है या मनुस्‍मृति के कारण जाति व्‍यवस्‍था बनी तो भी जवाब है कि नहीं ।

आदिकाल से वर्ण व्‍यवस्‍था विद्यमान रही है जाति व्‍यवस्‍था नहीं, त्रेतायुग में वर्ण व्‍यवस्‍था थी और केवट मल्लाह निषादराज, रावण का एवं उसे कुल का ब्राह्मण होना, धोबी की घटना, शबरी भीलनी जैसे कई उदाहरण हैं जो त्रेताकाल में वर्ण व्‍यवस्‍था का उल्‍लेख करते हैं ।

वर्ण विभाजन के बाद कर्म आधार पर जाति व्‍यवस्‍था कलियुग में अस्तित्‍व में आयी, जबकि द्वापरकाल तक केवल वर्ण व्‍यवस्‍था ही अस्तित्‍व में रही । जाति व्‍यवस्‍था अस्तित्‍व कलियुग काल में आया । द्वापर काल तक यह व्‍यवस्‍था रही कि अधिक निर्देशांक प्रयोग नहीं किये जाते थे, पहचान करने के लिये अधिक सटीक निर्देंशांक मान एवं मानदण्‍ड तय नहीं करने होते थे ।

आईये जाति व्‍यवस्‍था का असल गणितीय रूप समझें और जानें कि जातियां क्‍यें व कैसे बनी

जो लोग गणित के छात्र होंगें वे जानते होंगें कि गणित में एक महत्‍वपूर्ण विषय निर्देशांक ज्‍यामिति होता है जो कि वर्तमान में दो प्रकार की प्रचलन में है एक तो सामान्‍य द्विविमीय निर्देशांक ज्‍यामिति और दूसरी त्रिविमीय निर्देशांक ज्‍यामिति । निर्देशांक ज्‍यामिति गणित की वह विकट अकाट्य विधा है जिससे पता चलता है कि कोई चीज कहॉं स्थित है, उसका पता ठीया क्‍या है । तयशुदा निर्देंशांक किसी भी चीज की असल स्थिति तक एक क्षण मात्र में पहुंचा देते हैं । बिल्‍कुल इसी शास्‍त्र के आधार पर भूगोल के नक्‍शे, देशान्‍तर व अक्षांश आधार पर स्थिति पहचान, पता प्रणाली , डाकप्रणाली, संचार प्रणाली आदि आधारित हैं । जिससे पहचाना जाता है कि अमुक व्‍यक्ति या चीज कौन है और कहॉं है ।

डाक पते में में नाम के साथ पते में मकान का नंबर, गली का नाम, मोहल्‍ले का नाम , बिल्डिंग का नाम , मोहल्‍ले का नाम और शहर का नाम, राज्‍य का नाम, पोस्‍ट यानि डाकखाने का नाम, जिला आदि सब लिखने पड़ते हैं इसके बाद नंबर आता है पिन कोड का जिसमें 6 अंक का पिन कोड बहुत से भेद छिपाये रहता है मसलन पिन कोड का पहला अंक जोन का नंबर होता है इसके बाद के दो अंक स्‍थानीय संभागीय जोन और अंतिम तीन अंक स डाकखाने का जोन के अंक रहते हैं , इस प्रकार एक पत्र सही गंतव्‍य और सही आदमी तक पहुंच पाता है ।

बिल्‍कुल इसी प्रकार अत्‍याधुनिक संचार प्रणाली में मोबाइल नंबर 10 अंक का होने या फोन नंबर में एस.टी.डी. कोड के जोड़ने या ई मेल या इण्‍टरनेट कम्‍यूनिकेशन में आई .पी. पते की प्रणाली जिसमें चार वर्ण होते हैं और इसमें यानि इस आई पी में आपके व्‍यक्तिगत कम्‍प्‍यूटर तक पहुंचने का राज छिपा रहता है । जो कि असल गंतव्‍य या व्‍यक्ति तक पहुचा देते हैं , आप किसी के ई मेल पते को लिखते हैं या किसी वेबसाइट को खोलने के लिये उसका पता भरते हैं तो दरअसल छिपे हुये रूप में उसमें गंतव्‍य मशीन के मशीनी अंक यानि आई पी पते आदि छिपे रहते हैं ।

वर्ण व्‍यवस्‍था एवं जाति व्‍यवस्‍था का यही सूत्र है, किसी समाज में या देश में कोई व्‍यक्ति विशेष कहॉं स्थित है यह उसके नाम उपनाम आदि से ज्ञात होता है, मसलन धर्म से आप एक बृहद जोन विशेष तक पहुंच जाते हैं , जाति या उपनाम से उस धर्म या जोन विशेष के एक जाति समुदाय तक जा पहुंचते हैं यह छोटा जोन कहा जा सकता है, पिता का नाम से आप एक परिवार विशेष तक जा पहुंचते हैं और अंत में नाम से आप उस व्‍यक्ति विशेष तक जा पहुंचते हैं ।

अत: धर्म, समुदाय या जाति का अभिव्‍यक्‍तन पूर्ण और विशुद्ध रूप से गणितीय है न कि सामजिक अंतर को व्‍यक्‍त करने के लिये, यह उल्‍लेख किसी को छोटी या बड़ी जाति का नहीं बताते बल्कि सटीक व सही व्‍यक्ति का ठीया ठौर व्‍यक्‍त करते हैं ।

अब सवाल यह है कि जाति व्‍यवस्‍था के कारण किसी को ओछापन या उच्‍चपन का अहसास होता है जिससे सामाजिक विषमता आती है तो क्‍या किया जाये , इसका जवाब यह है कि यह सामाजिक विषमता कभी समाप्‍त नहीं हो सकती यह एकदम उसी प्रकार से है जिस प्रकार एक कलेक्‍टर को एक चपरासी हीन नजर आता है या चपरासी को कलेक्‍टर उच्‍च नजर आता है , यदि कलेक्‍टर और चपरासी के बीच का नीचपन और ओछापन दूर होगा तो जातियों का भी नीचापन और ओछापन दूर हो जायेगा । जातियों के बीच नीचापन और ओछापन आज उतना नहीं रहा है जितना कि कलेक्‍टर और चपरासी के बीच नीचापन और ओछापन बढ़ा है ।

कलेक्‍टर एक धर्म है इस धर्म को आई ए एस कहते हैं , कलेक्‍टर एक संप्रदाय है जिसे ब्‍यूरोक्रेट कहते हैं कलेक्‍टर एक जाति है जिसे कलेक्‍टर कहते हैं , इसी प्रकार चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी एक धर्म है , संबंधित विभाग उसकी जाति है और चपरासी उसकी जाति है । यह जाति धर्म और संप्रदाय अब नये रूप में विद्यमान है और धड़ल्‍ले से पूरे नीचेपन और ऊंचेपन के साथ प्रचलन में है बिगाडि़ये मिटाये या उखाडि़ये इसका क्‍या उखाड़ेंगें साथ में उनके अन्‍य धर्म यनि आई पी एस, अन्‍य संप्रदाय पुलिस और जाति एस.पी. है । आप क्‍या कर सकते हैं । अव्वल यह व्‍यवस्‍था प्रशासनिक व्‍यवस्‍था है इसी प्रकार जाति व्यवस्‍था सामाजिक प्रशासनिक व्‍यवस्‍था रही है । जाति व्‍यवस्‍था तो काफी हद तक सुधर कर निखरे रूप में आज सामने आ गई लेकिन प्रशासनिक व्‍यवस्‍था बुरी तरह सड़ गल चुकी है , आप प्रशासनिक ऊंच नीच से छुटारे की कोशिश कीजिये तब आप जाति व्‍यवस्‍था का असल मर्म जान समझ पायेंगें । जय हिन्‍द                           

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