रक्षाबन्धन जब पत्नी ने बांधी पति को राखी ...  क्या है , क्यों व कैसे मनायें रक्षा बन्धन
नरेन्द्र सिंह तोमर ''  आनन्द''
रक्षाबंधन का पर्व  श्रावण मास के अंतिम दिन यानि श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को होता है । मदन रत्न-  भविष्योत्तर पुराण के अनुसार  इसमें पराह्नव्यापिनी तिथि ली जाती है ।  यदि वह दो दिन हो या दोनों ही दिन न हो, तो पूर्वा लेनी चाहिये, यदि उस दिन भद्रा हो तो उसका  त्याग करना चाहिये । भद्रा में श्रावणी और फाल्गुनी दोनों ही नक्षत्र  वर्जित हैं, क्योंकि  श्रावणी से राजा का और फाल्गुनी से प्रजा का अनिष्ट होता है । पर्व मनाने  वाले को चाहिये कि उस दिन प्रात:स्ननादि से निवृत्त होकर वेदोक्त विधि से  रक्षाबन्धन , पितृ तर्पण और  ऋषि पूजन करे । रक्षा के लिये किसी विचित्र वस्त्र या रेशम आदि की रक्षा  बनावे, उसमें  सुवर्ण, केसर, चन्दन, अक्षत और दूर्वा रख कर रंगीन सूत  केडोरे में बांधे और अपने मकान के शुद्ध स्थान में कलशादि स्थापन करके उस  पर उसका यथा विधि पूजन करे , फिर उसे राजा, मंत्री, वैश्य या शिष्ट  शिष्यादि के दाहिने हाथ में  'येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।  तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल । ' इस मंत्र से बांधे । इसके  बांधने से वर्ष भर तक पुत्र पौत्रादि सहित सभी सुखी रहते हैं । 
इसकी  कथा यों है - एक  बार देवता और दानवों में बारह वर्ष तक युद्ध हुआ, पर देवता  विजयी नहीं हुये तब बृहस्पति जी ने सम्मति दी कि युद्ध रोक देना चाहिये , यह सुन कर इन्द्र की पत्नी  इन्द्राणी ने कहा कि मैं कल इन्द्र के रक्षा सूत्र बांधूंगी, उसके प्रभाव से इनकी रक्षा  रहेगी और यह विजयी होंगें । श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को वैसा ही किया गया  और इन्द्र के साथ सम्पूर्ण देवता विजयी हुये । 
इसी दिन  के अन्य व्रत एवं पर्व - श्रावण शुक्ला पूर्णिमा को ही अन्य  महत्वपूर्ण व्रत एवं त्यौहारों में श्रवण पूजन ( अंधे माता पिता का एक  मात्र पुत्र - जिसका वध महाराजा दशरथ के हाथों हो गया था ) किया जाता है तथा  इसी दिन से सम्पूर्ण सनातनी श्रवण पूजा की जाती है एवं ऋषि  तर्पण नामक पर्व भी मनाये जाते हैं ।  
- नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द'' 
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