शहीदे आजम भगत सिंह : यूं महज कुर्बानीयां याद करने से कुछ न होगा...
गर होगा तो फिर एक शहीद पैदा करने से ही कुछ होगा
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द'
23 मार्च शहीदे आजम भगत सिंह की शहादत का दिन हो या 19 दिसम्बर रामप्रसाद विस्मिल का या 28 फरवरी चन्द्र शेखर आजाद का या... आज भारत में जब मैं इन तारीखों पर चन्द जुमलों के साथ चन्द लमहों के लिये सियासती ऑसूं बहाने वालों को देखता हूं तो कई बार लगता है कि ... बस बन्द करों शहीदों का यूं अपमान करना , हमारे सियासतदारों के करम ऐसे हैं कि उन्हें शहीदों को याद करने का तो छोडि़ये नाम लेने तक का हक नहीं हैं ।
वो शुक्र है उस परवरदिगार का उसने अच्छे फूल चमन से चुन लिये !
गर आज चमन में होते तो बिन चुने ही कुम्हलाते उजड़ते चमन को देख कर ।।
ओ बिस्मिल ओ भगत सिंह ओ आजाद ए मेरे वतन आ के देखो तुम जरा ।
अपनी जॉं औ खून से बोये आजादी के जो बीज यहॉं आ के देखो तुम जरा ।।
आजादी औ आजाद हिन्द दोनों मुकर्रर हो गये अब आ के देखो तुम जरा ।
तुमने जवानी ,जान औ खून की परवाह किये बगैर अब आ के देखो तुम जरा ।।
अँग्रेजी रियासत गोरी सियासत को ललकार मौत को पुकारने वालो आ के देखे तुम जरा ।
अभी भी तुम्हारा वतन उन्हीं तेवरों में कैद है आ के देखो तुम जरा ।।
भ्रष्टाचार, रिश्वत, ना सुनी औ ऐयाशीयों का दौर है आ के देखो तुम जरा ।
चन्द सिक्को चन्द बोतलों चन्द औरतों पर निछावर भरतीय आ के देखो तुम जरा ।।
जीत कर नेता हराते पांच सालों तक तुम्हारे इस देश को आ के देखो तुम जरा ।
चन्द अरबपतियों के हाथ साथ चलती सरकारें यहॉं आ के देखो तुम जरा ।।
पैसे वालों और गरीबों के बीच लम्बी एक खाई को आ के देखो तुम जरा ।
रोज पिटते देशभक्त को, लातें खाते ईमानदार को आ के देखो तुम जरा ।।
रोज लुटती गरीब की बेटी औ कटती जेब को आओ वतन के लाड़लो आ के देखो तुम जरा ।
अमीरों ऐयाशों के दिल बहलाने के साधन गरीबों के कच्चे झोंपड़े आ के देखो तुम जरा ।।
चन्द सिक्कों की नौकरी वतन के दुश्मनों की नौकरी की खतिर बिकते भारत को आ के देखो तुम जरा ।
नौकरी की लाइन में, दो रोटी की आस में अनपढ़ मालिक के यहॉं प्रतिभायें तरसतीं आ के देखो तुम जरा ।।
अब हर देशभक्त घोषित पागल यहॉं हर सुन्दर कन्या कालगर्ल बनती यहॉं आ के देखो तुम जरा ।
वतन में बनते औ छपते नोट सिक्कों पर लग रहे अब दाग हैं आ के देखो तुम जरा ।।
वह तुम्हारा लाहौर सिंध औ कराची के बाजार गुम हैं वतन से तुम्हारे आ के देखो तुम जरा ।
एक नाजायज औलाद हिन्दुस्तान की रोज धमकाती अपने मॉं बाप को आ के देखो तुम जरा ।।
हर कंस के संग सोती राधिकायें, रावण के घर खुद पहुँचती सीतायें अब आ के देखो तुम जरा ।
कभी हवाला कभी दिवाला देश को बेच तिजारत कर रहे देश के संचालकों को आ के देखो तुम जरा ।।
हर नौजवां तरस रहा इक आस को इक विश्वास को रोज लड़ता खुद से कभी औ कभी अपनी सरकार से आ के देखो तुम जरा ।
भारत में यूं घुन लगा, धर्म जाति की धुन बजा औ कभी भाषा कभी लिंग पर बटते देश को आ के देखो तुम जरा ।।
जिन्हें जूते मार कर पीटने के कूटने के वक्त है, उनके जूतों तले दबे हिन्दुस्तान को आ के देखो तुम जरा ।
क्या लहू अपना तुमने इस देश के लिये बहाया आज उस देश को नजदीक से आ के देखो तुम जरा ।।
हॉं कर लेते हैं पापी भी तुम्हें याद चन्द लम्हों के लिये, तैयार अगले गुनाहों के लिये आ के देखो तुम जरा ।
गुनगुना कर चंद गीत, चंद मालायें डाल कर ए.सी. गाड़ी में बैठ शराब के घूंटों में कलाम बांचते शहीदों के आ के देखो तुम जरा ।।
क्या क्या देखोगे ओ भगत सिंह, ओ सुभाष ओ चन्द्रशेखर ओ बिस्मिल यहॉं ।
कि हर शाख पे अँग्रेजी सियासत औ वो खूनी रियासत देख कर शहादत नहीं आत्महत्या कर लोगे यहॉं ।।
तुमने चन्द सियासत अँग्रेजों की इक अल्प रियासत अँग्रेजी की देख शहादत दे डाली ।
ओ वीरो तुमने वीरता की दास्तायें देशभक्ति के अफसाने जिस कम उमर में लिख डालीं ।।
ओ मेरे देश के पावन रक्त अब कौन सा वो रक्त है जो तुम्हारी रक्त गंगा में मिले ।
मेरे पास बस चंद ऑंसू है कुछ तुम्हारे लिये औ कुछ देश के लिये जो विरासत में मिले ।।
मैं कल दैनिक भस्कर में रस्किन बाण्ड का कलकत्ता के अँग्रेजों के बारे में और आज वेद प्रताप वैदिक का डॉ. राम मनोहर लोहिया और एक रिटायर्ड डिप्टी कलेक्टर कस आलेख ''अब तो निलंबन एक मजाक है '' पढ़ रहा था , मुझे जहॉं एक ओर बेहद तकलीफ भी हुयी और दूसरी ओर कुछ हैरत भी । कुल मिला कर मैं अपनी पढ़ने लायक सामग्री का चयन में भी बेहद सावधानी और सतर्कता बरतता हूं । मुझे क्या पढ़ना है मुझे पता रहता है , लेकिन जब आज देश की दुर्गत और शहीदों की शहादत के लिये उन लोगों के मगरमच्छी ऑंसू देखता हूं जिनके कारण समूचे देश की ऑंखों में ऑंसू हैं तो फिर लिखता भी अपनी ही पसन्द का हूं और इसका चयन भी मैं खुद ही करता हूं । जिनमें शहीदों के प्रति प्रतिउपकार का जज्बा हो या न हो लेकिन देश के लिये चन्द काम भी ऐसा किया है कि उन्होंने भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, रामप्रसाद विस्मिल, सुभाष चन्द्र बोस ..... के इस देश की ऑंखों में ऑंसू पैदा किये हैं उनके लहू से सींचे इस चमन में उस अँग्रेजी सियासत और रियासत की फसल को हजार गुना बढ़ा कर अब हर पत्ते पत्ते पर फैला दिया है उन्हें या तो खुद ही शर्म होना चाहिये वरना मैं कहता हूं कि प्रलाप तत्काल बन्द करें उन्हें शहीदों के नाम स्मरण तक का हक नहीं हैं , वे पावन रक्त हैं , उनके कर्म वाणी सब पावन हैं और अपावन उनके नाम का उच्चारण न ही करें तो बेहतर हैं... कभी सोच के देखना ठण्डे दिमाग से वे देश के लिये क्या कर गये और तुमने क्या किया .. क्या कर रहे हो.... जय हिन्द
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