अमरसिंह  को भारी पड़ सकती है उनकी लफ्फ़ाजी 
निर्मल रानी, 163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा
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              फिल्मी गीताें व फ़िल्मी  गंजलों के मुखड़ों को संवाद दाताओं के  प्रश्नों  के उत्तर के रूप में पेश करने में महारत रखने वाले समाजवादी पार्टी नेता अमरसिंह को  आने वाले दिन भारी पड़ने की संभावना नंजर आ रही है। यूं तो अमरसिंह समाजवादी पार्टी  के महासचिव पद पर विराजमान हैं।परंतु दरअसल उनका कार्य समाजवादी पार्टी के लिए जनसंपर्क  अधिकारी के रूप में कार्य करने का है। फ़ि ल्म जगत के प्रमुख चेहरों को समाजवादी पार्टी  से जोड़ने का श्रेय भी अमरसिंह को ही जाता है। अमिताभ बच्चन,अनिल  अंबानी तथा सुब्रतोराय सहारा जैसी देश की अतिविशिष्ट शख्सियतों को मुलायम सिंह के  ंकरीब  लाने का श्रेय भी इन्हीं के सिर पर है।  अब समाजवादी पार्टी के हित के लिए इतनी बड़ी शख्सियतों को जोड़ने के लिए अमर सिंह को  स्वयं क्या कुछ करना पड़ता है यह एक अलग सी बात है। कभी अमरसिंह की पार्टी के प्रमुख  नेता रहे राजबब्बर तथा आंजम खां जैसे लोग इस विषय पर ज्यादा बेहतर रौशनी डाल सकते हैं।  
              जहां समाजवादी पार्टी  के देश की बड़ी शख्सियतों से  संबंध मधुर बनाने  में अमरसिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही है वहीं समाजवादी पार्टी छोड़कर जाने वाले नेतागण  भी अमर सिंह को ही अपने मनमुटाव का मुख्य कारण बताते हैं। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश  सरकार द्वारा कुछ ऐसे तथ्य उजागर किए गए जिनसे यह संकेत मिलता हैकि अमरसिंह ने समाजवादी  पार्टी के उत्तरप्रदेश में सत्ता में रहते हुए शासन का किस प्रकार दुरुपयोग किया था।  इस संबंध में जांच भी शुरू हो चुकी है। ऐश्वर्या राय के नाम पर कालेज खोलने को लेकर  ंजमीन संबंधी उपजे विवाद में अमिताभ बच्चन का नाम आने की जड़ ंमें भी अमरसिंह की ही  महत्वपूर्ण भूमिका है। यहां तक कि अंबानी बंधुओं के मध्य मतभेद बढाने में भी इन्हीें  का नाम लिया जा रहा है। इन सभी उतार-चढावों के बीच जब कभी मीडिया अमरसिंह से कुछ पूछना  चाहता है तो अमरसिंह कभी ंफरमाते हैं कि हमें तो लूट लिया मिल के हुस्न वालों ने और  कभी कहते हैं मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं। अमरसिंह का मीडिया प्रेम भी जगंजाहिर  है। पिछले दिनों अपने एक आप्रेशन के दौरान सिंगापुर के हास्पिटल में बीमारी की हालत  में  एक वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से लखनऊ  में बैठे पत्रकारों से उन्होंने बातचीत की। 
              परंतु ऐसा लगता है कि  अब अमरसिंह पर संकट के बादल मंडराने शुरू हो चुके हैं। उनके फ़ि ल्मी गीतों के मुखड़े  बोलते रहने का समय अब जाने वाला लगता है। ऐसा माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी  पार्टी की निरंतर गिरती जा रही साख के लिए भी अमरसिंह को ही ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा  है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा 6 दिसंबर 1992  की अयोध्या घटना के मुख्य अभियुक्त कल्याण सिंह को समाजवादी पार्टी के  ंकरीब लाने के  ंफैसले के भी आप ही ंजिम्मेदार  हैं। अमरसिंह ने यह राजनैतिक सपना मुलायम सिंह को दिखाया था कि मुस्लिम व यादव मतों  पर हमारा अधिकार तो है ही परंतु कल्याण  सिंह  के  समाजवादी पार्टी के समर्थन से लोध तथा पिछड़ी  जातियों के मत भी समाजवादी पार्टी के पक्ष में आएंगे। परंतु गत् लोकसभा चुनावों में  अमरसिंह की गणित उल्टी पड़ गई। अपना भी जनाधार खोते जा रहे कल्याण सिंह की बदौलत न तो  लोध व पिछड़े मतों का रुझान समाजवादी पार्टी की तरंफ हुआ और मुस्लिम मत भी कल्याण-मुलायम  की बढ़ती दोस्ती के परिणामस्वरूप समाजवादी पार्टी से दूर होते सांफ नंजर आए। 
              सोने पर सुहागा तो यह  कि जिस कल्याण सिंह को मुस्लिम समुदाय ं  देखना भी पसंद नहीं करता उन्हें  लेकर पिछले दिनों लखनऊ में हुए शहर पश्चिमी विधानसभा सीट के उपचुनाव के दौरान आपने  एक ऐसी टिप्पणी कर डाली जिससे मुस्लिम समाज न केवल उनसे ख़ंफा हो गया बल्कि अमरसिंह  के विरुद्ध शहर कोतवाली में धार्मिक भवनाओं को ठेस पहुंचाने संबंधी एक मुंकदमा भी दर्ज  करवा दिया गया ।  4 नवंबर  की इस घटना में अमरसिंह ने समाजवादी पार्टी के एक मुस्लिम प्रत्याशी के पक्ष में मतदान  करने हेतु मुस्लिम समुदाय का आहवान् किया। एक सार्वजनिक सभा में कल्याण सिंह व मुलायम  सिंह की दोस्ती को जायंज ठहराते हुए अमरसिंह ने ंफरमाया कि कल्याण सिंह समाजवादी पार्टी  के लिए हंजरत हुर्र के समान हैं तथा भारतीय जनता पार्टी के लिए यह भस्मासुर की तरह  हैं। अमरसिंह की यह टिप्पणी मुस्लिम समुदाय को बहुत नागवार गुंजरी तथा वे अमरसिंह के  विरुद्ध मुंकदमा दर्ज करा बैठे। 
              आईए संपेक्ष में आपको  बताते हैं हंजरत हुर्र का जीवन चरित्र। छठवीं सदी में जब सीरियाई मुस्लिम शासक यंजीद  ने हज़रत इमाम हुसैन के परिजनों को ंकत्ल करने की मंशा से करबला स्थित फु रात नदी के  किनारे घेरा उस समय हुर ही यज़ीद की सेना का सेनापति था। हुर ने ही यंजीद के हुक्म पर  हंजरत हुसैन व उनके परिवार के तंबुओं को नदी के किनारे से उखाड़  फेंका था तथा उन्हें पानी से दूर रहने के लिए इसलिए  मजबूर किया था ताकि भीषण गर्मी के बावजूद उन्हें पानी नसीब न हो सके। 10 मोहर्रम की सुबह हुर को ही यंजीद के   सेनापति के रूप में हंजरत हुसैन व उनके सहयोगियों पर आक्रमण करना था।  परंतु 9-10 मोहर्रम की रात  को यजीद का सेनापति हुर देर रात तक करवटें बदलता रहा। उसके जवान पुत्र तथा ंगुलाम ने  जब हुर की बेचैनी का कारण पूछा तो उसने कहा कि यंजीद व हुसैन के मध्य सुबह से शुरू  होने वाली लड़ाई सत्य तथा असत्य के बीच होने वाला युद्ध है। यंजीद क्रूर,दुष्ट,व्याभिचारी,दुराचारी तथा  भ्रष्ट राजा है। परंतु शक्तिशाली है तथा दौलतमंद है। दूसरी ओर उसको मुस्लिम राजा के  रूप में मान्यता प्रदान न करने वाले हंजरत हुसैन हंजरत मोहम्मद के सगे नाती हैं। वे  सत्य व धर्म के सच्चे उपासक हैं । वे शक्ति में कमज़ोर भी हैं। ऐसे में एक ओर माल व  दौलत, तरक्की तथा जागीर है तो दूसरी ओर शहादत,सच्चाई तथा स्वर्ग के द्वार। ऐसे में मैं यज़ीद की ओर से युद्ध करने के बजाए  युद्ध की सुबह होने से पूर्व ही हंजरत हुसैन के चरणों में जाकर स्वयं को समर्पित करना  चाहता हूं तथा उनसे मांफी भी मांगना चाहता हूं। हुर के पुत्र तथा ंगुलाम ने भी उनके  इस ंफैसले का समर्थन किया तथा रातों रात यजीद का सेनापति हुर अपने पुत्र व ंगुलाम के  साथ यंजीद की सेना को छोड़कर रात के अंधेरे में हंजरत हुसैन के चरणों में जा गिरा। हुसैन  ने उसे मांफ किया। इतिहास साक्षी है कि  10 मोहर्रम को करबला में हुई लड़ाई में हंजरत हुसैन की ओर से शहीद होने वाले पहले  तीन सैनिक यही थे। हुर की इस क़ुर्बानी के बाद ही उन्हें हंजरत हुर के  नाम से जाना गया। 
              अब हंजरत हुर का  चरित्र चित्रण सुनने के बाद क्या इसमें कोई ऐसी गुंजाईश नज़र आती है जिससे कि  कल्याण सिंह की तुलना हंजरत हुर से की जा सके। हुर ने सच्चाई का साथ देने के लिए  यंजीद का साथ छोड़ा था। परंतु कल्याण सिंह ने भाजपा इसलिए छोड़ी थी क्योंकि भाजपा ने  उनके पुत्र को लोकसभा का टिकट देने से इंकार कर दिया था। दूसरी बात यह कि कल्याण  सिंह पहली बार भाजपा से अलग नहीं हो रहे थे। इसके   पहले भी वे अटल बिहारी वाजपेयी के विषय में अनाप-शनाप बोले थे तथा पार्टी  से निकाल दिए गए थे। यह दूसरा मौक़ा था जबकि कल्याण सिंह पार्टी से निकाले गए तथा  उन्हें अकेला देखकर सपा जनसंपर्क अधिकारी अमरसिंह ने उनसे संपर्क साधा और न जाने किस  समीकरण के तहत कल्याण सिंह, अमर सिंह को सपा के लिए लाभकारी नंजर  आए और वह भी इतने कि उनमें अमरसिंह को हंजरत हुर सी समानता भी नंजर आने लगी। 
              कल्याण सिंह द्वारा समाजवादी  पार्टी को जो नुंकसान पहुंचा उसका सिलसिला केवल लोकसभा चुनावों तक ही सीमित नहीं रहा  बल्कि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश विधान सभा के हुए उपचुनावों में भी समाजवादी पार्टी  की अच्छी ंफंजीहत हुई। यहां तक कि ंफिरोंजाबाद लोकसभा सीट के उपचुनाव में जहां कि सपा  ने अपनी पूरी तांकत झोंक दी थी वहीं अमरसिंह के ही सबसे बड़े आलोचक समझे जाने वाले कांग्रेस  उम्मीदवार राज बब्बर ने मुलायम सिंह की बहुरानी डिंपल यादव को भारी मतों से पराजित  कर दिया। ख़बर है कि इसी ंफिरोज़ाबाद की सीट की हार ने मुलायम ंसिंह यादव को यह चिंतन  करने के लिए मजबूर कर दिया है कि अमरसिंह के ऐसे ंफैसले आगे और कब तक? उनकी लंफंफांजी और ंफिल्मी गीतों व ंगंजलों के मुखड़े अब और कब तक? ऐसे में आपका भी यह सोचना न्यायसंगत हो सकता है कि देश की राजनीति की छाती  पर अमर सिंह जैसे लंफंफाज़ों की सवारी और कब तक?  निर्मल  रानी

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