शनिवार, 26 जनवरी 2008

भारत पर्व पर होगा मुरैना में '' बिन बाती के दीप'' का मंचन

भारत पर्व पर होगा मुरैना में '' बिन बाती के दीप'' का मंचन

मुरैना 25 जनवरी 2008// मानव जीवन में महत्वकांक्षा है तो उसे पूरा करने के लिए साजिश रचना भी अस्वाभाविक नहीं किन्तु इसी समाज में समर्पण भी है और त्याग भी। एक भावना प्रधान नाटक बिन बाती के दीप का मंचन मुरैना के सामुदायिक भवन में गणतंत्र दिवस 26 जनवरी की शाम 7 बजे 1857 मुक्ति संग्राम के डेढ़ सौ वर्ष और स्वाधीनता की 60 वीं वर्षगांठ के पूरे होने के अवसर पर देश में अपनी तरह का पहला आयोजन भारत पर्व के अवसर किया जाएगा। स्वराज संस्थान संचालनालय, संस्कृति विभाग, भोपाल द्वारा जनसम्पर्क संचालनालय एवं जिला प्रशासन के सहयोग से गणतंत्र दिवस पर आयोजित भारत पर्व के अवसर पर मध्य प्रदेश की उपलब्धि की विकास यात्रा प्रदर्शनी भी आयोजित की जायेगी। विभिन्न कलाओं के समागम का यह पहला और कलारसिकों को भाव- विभोर कर देने वाला दिन होगा।

       डा. शंकरशेष द्वारा रचित नाटक बिन बाती के दीप एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो साधारण कवि है लेकिन उसकी तमन्ना मशहूर होने की है। ऐसे में वह प्रतिभाशाली उपन्यासकार विशाखा से शादी कर लेता है। दुर्भाग्य से उपन्यास लेखन के समय लेखिका की आंखों की रोशनी चली जाती है और अवसर का लाभ उठाकर औसत दर्जे का कवि उस उपन्यास को अपने नाम से प्रकाशित करवा लेता है। पति के भरोसे पर विशाखा का लेखन जारी है और पति साजिश रचकर उसे हमेशा नेत्रहीन बनाये रखने की कुटिल चाल चलता है आखिर जीत सच की होती है और लाख कोशिश करने के बावजूद विशाखा की आंखें ठीक हो जाती है। लगभग एक दर्जन कलाकरों द्वारा मंचित इस नाटक में असत्य और धोखे पर सत्य और विश्वास की जीत का कुशल चित्रण दृष्टव्य होगा। नाटक की अवधि डेढ घंटा रहेगी

       आर्टिस्ट कम्बाइन ग्वालियर की प्रस्तुति बिन बाती के दीप का निर्देशन वरिष्ठ रंगनिर्देशक श्री वसंत पराजंपे ने किया है। आर्टिस्ट कम्बाइन ग्वालियर 70 वर्षो से हिन्दी और मराठी रंगमंच के लिए समर्पित संस्था है। खास बात यह है कि यह नाटय संस्था देश के उन चुनिंदे नाटय संस्थाओं में से एक है जिनका साढ़े पांच सौ दर्शकों के बैठने के लिए स्वयं का सभागार है।

 

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