गुरुवार, 4 जून 2009

माताकापुरा में बह रही भक्‍ित की अविरल धारा , देवी भागवत कथा का रसपान करने श्रोताओं की उमडी भीड़ (देनिक मध्‍यराज्‍य)

माताकापुरा में बह रही  क्‍ित की अविरल धारा , देवी भागवत कथा का रसपान करने श्रोताओं की उमडी भीड़

मुरैना 3 जून (देनिक मध्‍यराज्‍य)  त्याग वलिदान मानव जीवन की उच्चता के चरम सौपान है । यद्यपि मानव मन स्वभाव से ही संग्रह करने का आदी है। संग्रह करना ही न चाहता है त्याग नही चाहता। यदि जीवन में संतुलन बनाये रखना है तो जीवन त्यागमय बनाना चाहिये  बडे वही वन पाते है जो वक्त पर त्याग बलिदान से पीछे नही हटते इसलिये जीवन में त्याग का बड़ा भारी महत्व है इसके लिये व्यक्ति को सदैव तत्पर रहना चाहिये उक्त प्रवचन देवी भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के छटवे दिन कथा वाचक पंडित घनश्याम उपाध्याय रिठौना अम्बाह ने कथा का श्रवण कराने आये भक्तों के  समक्ष त्याग की महिमा का गुणगान करते हुये दिये। उन्होने कहा कि मानव में एक महान कमजोरी है कि वे सदैव अनुकू लता चाहता है अनुकूलता की ओर दौड़ता है। प्रत्यकूलता से किनारा करता है जराभी प्रतिकूलता मिलती है तो ब्यग्रत हो जाता है। यह परिवर्तन का आकांक्षी नही हैं जैसे चल रहा है वैसे ही बना रहना चाहता है। तो दुसरो के मन से यह मन अपने में संशोधन नही करना चाहता है। संशोधन सुधार दुसरों के बीच चाहता है। मन बड़ा ही चंचल रहता है सदैव उच्चता चाहता है सदैव सुख की ओर भागता रहता है चर्चित होना चाहता है बंधनीय होना चाहता है। मन राग करता है वह वहीं की ओर  लपकता है। 

पूज्यता नेतृत्व एवं सत्यता चाहता है सब कुछ अपने लिये चाहता है। त्याग करने में घबड़ाता है लेकिन मानव को मूल्यों के निर्वहन के लिये  त्याग करना चाहिये। प्राकृतिक भी हमें त्याग करना ही सिखाती है जो ठीक समय पर त्याग करपाते है। उन्हें आशीम सम्मान प्राप्त होता है। त्याग हमारे जीवन के संतुलन लाने के लिये बेहद जरूरी है हम अन्न जल ग्रहण करते है। उसमें हमे ऊर्जा शकित रक्त माा व प्राण शकित मिलती है। लेकिन जो हमने ग्रहण किया जो हमें प्राप्त हुआ अब विर्सजन जरूरी है। हमें तेज बल रस पचाना तंत्र के द्वारा मिल गया अब त्याग करना हैं। उसके विर्सजन से हमें कोई तकलीफ नही होना चाहिये। जो धैय है उसे त्याग देना चाहिये वायु हम प्राणों के लिये ग्रहण करते है। उससे हमें प्राण  शक्ति  मिलती है हम उसे ग्रहण किये रहते है। नहीं जब ग्रहण करते है उस समय वह हमारे प्राणों के लिये संजीवनी प्राणों को ऊर्जा प्रदान करती है। ग्रहण जरूरी है लेकिन कुछ प्रश्चात बाद हेय है उस का विर्सजन भी जरूरी है। त्याग जरूरी है।  शरीर में एक भी वायरस रह जाते है। तो शरीर का सत्या नाश हो शकता है बीमारीयों का बिस्फोट हो सकता है। अंत  जो भी े है उसे त्याग देना चाहिये।

माता का पुरा में आयोजित देवी भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का रसपान लेने के लिये आसपास के गांवों से भारी संख्या में भक्तगण भरी दोपहरी में आते है। कथा के परीक्षत रामनरेशसिंह तोमर निवासी माता  का पुरा हैं कथा का समापन 6 जून को होगा।

 

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