गुरुवार, 7 फ़रवरी 2008

विस्थापित ग्रामीणों की जिन्दगी बदल रहा है, पन्ना टाइगर रिजर्व का पुनर्वास पैकेज

विस्थापित ग्रामीणों की जिन्दगी बदल रहा है, पन्ना टाइगर रिजर्व का पुनर्वास पैकेज

पन्ना 6 फरवरी- बाघों के प्रमुख बसेरे के रूप में विश्व विख्यात पन्ना टाइगर रिजर्व में बसे गांवों के परिवारों को रिजर्व क्षेत्र से विस्थापित कर उनके पुनर्वास के लिए दिए गए उदार पुनर्वास पैकेज का असर दिखने लगा है। हाल के कुछ वर्षो में ग्राम पीपरटोला, सूरजपुरा मोटा चौकन, रैपुरा, चनारी, झालरखमरिया, गंगउ, सकरा एवं ग्राम कमेरी के विस्थापित परिवारों को कुल 9 करोड 26 लाख 61 हजार 346 रूपये की मुआवजा राशि प्रति परिवार छत्तीस हजार रूपये के मान से मकान बनाने के लिए दी गई है। नये स्थानों पर पुर्नस्थापित हुए इन परिवारों के गांवों में रौनक दिखने लगी है।

        पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघों समेत अन्य दुर्लभ वन्य प्राणियों के प्राकृत वासों के संरक्षण के लिहाज से रिजर्व क्षेत्र में बसे गांवों के परिवारों को अन्यत्र उपयुक्त स्थानों पर बसाने के लिए सरकार ने उदार राहत योजना के तहत खेती हेतु पांच-पांच एकड कृषि भूमि, मकान बनाने के लिए पांच-पांच सौ वर्गमीटर जमीन तथा मकान निर्माण हेतु छत्तीस-छत्तीस हजार रूपये की मुआवजा राशि उपलब्ध कराने का एक उदार पुनर्वास पैकेज दिया है। टाइगर रिजर्व प्रबंधन द्वारा पुनर्वास के कामों में पूरी संवेदनशीलता के साथ काम किया जा रहा है। इस पुनर्वास पैकेज को पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के संचालक श्री जी0कृष्णमूर्ति ने एक अभियान की तरह लिया है। उनका कहना है कि पर्यावरण संतुलन के लिए जीव-जन्तु जरूरी हैं और वनों की हिफाजत भी जरूरी है।

         पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बसे तेरह गांवों को नये सिरे से बसाना था। इनमें से आरंभिक दौर में तीन खामरिया, खैरईया और बडगडी गांवों को नई जगहों पर बसा दिया गया था और हाल के वर्षो में आठ गांवों को नये स्थानों पर बसाया गया है। शेष ग्रामों के परिवारों के लिए भी मुआवजा देने हेतु उनके पुनर्वास का काम चल रहा है।

          टाइगर रिजर्व क्षेत्र से इन ग्रामीण परिवारों का हटना वन्य प्राणियों के लिए ही नहीं, अपितु इन विस्थापित परिवारों के लिए भी लाभदायक रहा। पन्ना टाइगर रिजर्व के सूत्र बताते हैं कि रिजर्व क्षेत्र में बसे गांवों की स्थिति अच्छी नहीं थी। वहां चिकित्सा सेवा, स्कूल, बिजली, आने-जाने के लिए परिवहन सेवा आदि जैसी सुविधाएं नहीं थीं। इन परिवारों की पचास से पचहत्तर फीसदी फसल तो अकेले वन्य प्राणी ही चट कर जाते थे। ये लोग कठिन परिस्थितियों में अपना जीवन यापन करते थे। इस जीवन के मुकाबले इन्हें सुविधाजनक स्थानों पर स्थापित किया गया है। ये विस्थापित परिवार आज सरकारी मदद से बने अपने नये पक्के घरों में रह रहे हैं। आज वे कृषि के लिए मिली जमीन पर खेती कर रहे हैं। उनके लिए सामुदायिक भवन और शाला भवन बनवा दिए गए हैं तथा तालाब भी खुदवा दिए हैं। बिजली और चिकित्सा की सुविधा जुटाई जा रही हैं। पेयजल के लिए कुएं खुदवा दिए हैं और हैंण्डपंप स्थापित करा दिए हैं। उनके बच्चे स्कूल में पढने जाने लगे हैं।

         इन विस्थापित परिवारों के जीवन स्तर में काफी बदलाव आया है। लोगों की दिनचर्या बदली है। इन गांवों में सडकें बन गई हैं और स्वास्थ्यकर्मी, मास्टर तथा अन्य सरकारी कर्मचारी पहुंचने लगे हैं। रोजमर्रा का सामान लाने के लिए अब बाजार नजदीक ही पडता है। आंगनवाडी खुलने के प्रयास चल रहे हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत सबके जाब कार्ड बन गए हैं। जरूरत पडने पर उन्हें रोजगार मिल रहा है। पन्ना टाइगर रिजर्व के विस्थापित परिवारों को मूलभूत सुविधाएं देने का पुनर्वास पैकेज कामयाब हो रहा है। इस काम में रिजर्व प्रबंधन ने पहल कर अन्य विभागों के सहयोग से अपने क्षेत्र के इन विस्थापित परिवारों को मूलभूत सुविधाएं देने में सफलता पाई है।

         ग्राम बेडरी(एकलव्य) में बसे विस्थापित परिवारों में से एक सीताराम बताते हैं कि ''पहले घास फूंस का घर था और जंगल में रहने से बहुत बुरा लगता था। आज हमारे पास पक्का मकान है और यहां रहने से अच्छा लगता है।'' इसी गांव के बल्देव का कहना था कि पहले लकडियां बेचकर गुजारा करते थे, लेकिन सरकार से मिली जमीन पर आज हम गेहूं एवं चना की फसल ले रहे हैं।

 

कोई टिप्पणी नहीं :