मंगलवार, 1 जुलाई 2008

मुरैना डायरी - चम्‍बल की कानून व्‍यवस्‍था –भाग- 1, मुरैना में लूट, चोरी, हत्‍याओं और अपहरणों का ताबड़तोड़ सिलसिला, पुख्‍ता सूचनाओं के बावजूद अपराधीयों को नहीं पकड़ती पुलिस -1

मुरैना में लूट, चोरी, हत्‍याओं और अपहरणों का ताबड़तोड़ सिलसिला, पुख्‍ता सूचनाओं के बावजूद अपराधीयों को नहीं पकड़ती पुलिस -1

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

मुरैना डायरी - चम्‍बल की कानून व्‍यवस्‍था भाग- 1

किश्‍तबद्ध रिपोर्ट ऑंखों देखी, भुक्‍त भोगी- नो कायमी नो चालान

मजे की बातें पते की बातें- 100 प्रतिशत सच

 मय सबूत

टीप इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया जाने से पहले सारी सच्‍चाई का स्‍पष्‍ट ध्‍यान रखा गया है साथ ही सावधानी बरती गयी है कि , हम यह जानते हैं इसके प्रकाशन का अंजाम क्‍या हो सकता है, इसके लिये हमने अपने स्‍तर पर पूर्ण व्‍यवस्‍था की है । और हम अपने सूत्र वाक्‍य '' यदा यदा हि धर्मस्‍य ग्‍लानिर्भवति भारत...'' तथा ''स्‍वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:'' एवं '' धर्म युक्‍त युद्ध से बढ़कर क्षत्रिय के लिये अन्‍य कोई कल्‍याण कारक कर्तव्‍य नहीं है , को स्‍मरण व आधार बना कर इस धर्म युद्ध व सत्‍य संग्राम का प्रारंभ करते हैं । ''यत्र योगेश्‍वर कृष्‍णो यत्र पार्थो: धनुर्धर: । तत्र श्री: र्विजयोर्भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ।।   

·          पॉंच साल में एक भी चोर नहीं पकड़ पाई मुरैना पुलिस (सबूत हमारे पास है)

·          हाईकोर्ट के आदेश से दर्ज मामलों एवं पुलिस विवेचना में सिद्ध पाये गये अपराधों में छह साल में एक भी अपराधी नहीं गिरफ्तार कर पायी न चालान पेश कर पायी मुरैना पुलिस, फर्जी खात्‍मा रिपोर्ट भी लगा देती है पुलिस

·          थाने बने व्‍यावसायिक परिसर और दलाली केन्‍द्र, नहीं दर्ज होतीं थानों में एफ.आई.आर., दिल बहलाने को गालिब ख्‍याल अच्‍छा बनकर रह गयी दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 154, 154(3) और इण्‍टरनेट से दर्ज रिपोर्टें

·          पुलिस की नौकरी बनाम अपराध करने का खुला लायसेन्‍स और कमाई का बेस्‍ट जरिया, महज राजनेताओं और अपराधियों के नौकर और दलाल बन कर रह गयी है पुलिस

·          नवाचार प्रणाली और इण्‍टेलीजेन्‍सी क्राइम तथा सायबर क्राइम में शून्‍य बटा सन्‍नाटा है मुरैना पुलिस

·          दिनदहाड़े सुबह शाम और रात हर घड़ी घटित हुये अपराध, दिन के सोलह प्रहर चौबीस घण्‍टे जनजीवन असुरक्षित

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·          पुलिसिया बदला, फर्जी मुठभेड़ों, फर्जी केसों में फंसाने में अव्‍वल एवं माहिर है मुरैना पुलिस

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·          दण्‍ड प्रक्रिया संहिता एवं उसके संशोधनों का , पुलिस एक्‍ट (संशोधित) का ज्ञान शून्‍य बटा सन्‍नाटा, खुलेआम सरे थाने रात दिन टूटता है कानून 

·          डकैत खुल कर होते हैं डकैत, मगर पुलिस है लायसेन्‍स्‍ड डकैत, चोर, ठग, और जेबकट   

 

मुरैना 1 जुलाई 08, शहर और आसपास के क्षेत्रों में इन दिनों ताबड़तोड़ वारदातों का सिलसिला जारी है । मजे की बात ये है कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठकर महज तमाशाई बन कर रह गयी है । और मलाल ये है कि घट रहे अपराधों में से 70 फीसदी मामलों में पुलिस रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती । सबसे अधिक बुरे हालात सिटी कोतवाली मुरैना के क्षेत्र के हैं । हमने इस रिपोर्ताज के लिये पुखता सबूत जुटाये हैं ।  

अभी इस साल की होली के आसपास से शुरू हुआ वारदातों का सिलसिला खत्‍म होने के बजाय दिनोंदिन रफ्तार पकड़ता जा रहा है । सबसे अधिक बुरे हालात मई जून के महीने में रहे । जिसमें चोरी, लूट, अपहरण और हत्‍याओं की आंधी सी चल पड़ी ।

हमारे सूत्रों से संकलित जानकारी के मुताबिक महज मई जून के महीने में समूचे जिले को छोड़कर केवल शहर मुरैना में 7 अपहरण, 71 लूट, 13 हत्‍यायें और लगभग ढाई सैकड़ा चोरीयां हुयीं । अफसोस जनक तथ्‍य यह है कि पुलिस ने 70 फीसदी मामलों की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की । सर्वाधिक घटनायें मोबाइल लूटने, चोरी किये जाने और छीनने की घटनायें हुयीं केवल मई जून में मुरैना शहर से 1700 मोबाइल छीने, लूटे और चोरी किये गये । पुलिस ने अधिकांश या लगभग सभी मामलों में (अपवाद स्‍वरूप कुछ मामले छोड़ दीजिये) रिपोर्ट तक दर्ज नहीं कीं ।

मुरैना को भयमुक्‍त व आतंकमुक्‍त करने का नारा और वायदा देकर चुनाव जीतने वाले मध्‍यप्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रूस्‍तम सिंह स्‍थानीय मुरैना विधानसभा से ही विधायक हैं । उनके मुरैना जिला को भय व आतंक से मुक्‍त करने की बात तो छोड़ कर फेंक ही दीजिये उनके खुद के विधानसभा क्षेत्र विशेषकर शहर मुरैना में सबसे ज्‍यादा भय व आतंक का कहर इस समय व्‍याप्‍त है ।

मुरैना शहर तो इन दिनों अपराधियों की राजधानी या यूं कहिये कि स्‍वर्ग है । जहॉं आप शौक से कहीं भी कभी भी वारदातें करिये, मजे से रहिये, खुले आम घूमिये । पुलिस आपको न तंग करेगी न परेशान बल्कि फुल प्रोटेक्‍शन मिलेगा और अगले क्‍लास या लेवल तक उन्‍नत वारदातें सीखने के तौर तरीके भी जानने को मिलेंगें ।

हमारी रिसर्च के मुताबिक मध्‍यप्रदेश तो क्‍या भारत के किसी भी पुलिस वाले या उसके रिश्‍तेदार को यदि मोबाइल फोन की जरूरत है तो उसका कोई परिचित मुरैना पुलिस में होना चाहिये । आप मुरैना पुलिस के अदने से सिपाही से लेकर बड़े अफसर तक से फ्री के मोबाइल आसानी से प्राप्‍त कर सकते हैं । इन मोबाइल सेटों की कीमत हजार ग्‍यारह सौ रूपये से लेकर तीस चालीस हजार रूपये तक होती है लेकिन सब फ्री में या चार पॉंच सौ रूपये में आपको मुरैना से उपलब्‍ध हो जाते हैं ।

मुरैना के केवल स्‍थानीय वाशिन्‍दों के ही मोबाइल छीने, लूटे या चोरी जाते हों ऐसी बात नहीं है । बाहर से आने वाले लोगों के सड़क चलते, बस से उतरते ट्रेन में चढ़ते मोबाइल छीन, लूट या चोरी कर लिये जाते हैं ।

कौन छीनता लूटता या चोरी करता है मोबाइल

मोबाइल छीनने, लूटने और चोरी करने वालों के कई जुदा रैकेटस हैं लेकिन आश्‍चर्य जनक तथ्‍य यह है कि इन सभी की किशोर वय या नवयुवा अवस्‍था है जो कि 13-14 साल की उम्र से लेकर करीब 27 -28 साल के दरम्‍यान ही हैं । सबके लगभग जुदा ग्रुप हैं । ये लोग रास्‍ता चलते मोबाइल पर बात कर रहे लोगों से या उनके कपड़ो की जेबों में से पलक झपकते या कुछ ही सेकण्‍डों के भीतर मोबाइल उड़ा देते हैं, आदमी तब तक सारा माजरा समझे तब तक मोटर साइकिल या बाइक से उड़नछू हो जाते हैं । घरों में चोरी होने की 60-65 फीसदी वारदातों में मोबाइल अवश्‍य ही चुराये गये । घरों में रात को या दिन को कूदने या गृह भेदन के मामलों में इन किशोरों के नाम आना निसंदेह भारत के भविष्‍य के लिये चिन्‍ताजनक है । जहॉं इन किशोरों को छात्र होने का कानूनी लाभ और सहानुभूति मिलती है वहीं किशोर वर्ग में शराब, जुआ, चोरी, सट्टा और लूट की बेतहाशा रूचि वृद्धि कुछ खतरनाक संकेत भी देती है । समझने वाले समझ सकते हैं कि इन कुप्रवृत्तियों के पीछे क्‍या कारण और मकसद हैं ।

मैंने लम्‍बा समय अपराधीयों के रिसर्च और तरीकों पर गुजारा है, मुझे हैरत है कि कभी बम्‍बई या मुम्‍बई में घटित होने वाली क्राइम प्रणाली चम्‍बल में आज आम हो गयी है, जबकि कुछ समय पहले यहॉं की अपराध प्रणाली सर्वथा भिन्‍न थी । आज किशोरों को लाभ, लोभ, ऐश, आराम और शराब, पैसे तथा नाम रूतबा बुलन्‍दी के लिये आसानी से लोग हायर कर लेते हैं । जिसे दूसरी भाषा में गुण्‍डे पालना या सुपारी देना कहा जाता है । चम्‍बल का हर अदना या बड़ा नेता इन किशोर गुण्‍डों को हायर कर रहा है यह बात ठीक है लेकिन समाज का व्‍यवसायी वर्ग या प्रतिष्ठित वर्ग भी इन्‍हें हायर करने में लगा है, पुलिस ने व्‍यावसायिक तौर पर एवं बदला कार्यवाही के लिये इन्‍हें हायर करना शुरू कर दिया है यह चिन्‍ताजनक है । कई लोगों को नहीं मालुम होगा कि उनकी संतान गलत संगत में है या हायर्ड है लेकिन बहुतेरे लोगों को बाकायदा यह पता होता है कि उनकी संतान हायर्ड है और कई कारणों से वे इस हायरिंग को कन्‍टीन्‍यू रहने देते हैं । मसलन एक गुण्‍डे के आतंक से बचने का अच्‍छा उपाय है दूसरे गुण्‍डे की शरण में बने रहो, या उनकी किशोर संतान उन्‍हें मरने या आत्‍महत्‍या करने की धमकियां देतीं हैं, या आत्‍महत्‍या के प्रयास तक एकाध बार करके दिखा देते हैं , जिससे घर परिवार के लोग भयवश मौन हो जाते हैं । यह सतत प्रक्रिया है । कभी कभी घर वाले खुद ही लोभ लालच में फंस कर उनकी संतान के आपराधिक लाभों में भागीदार बन कर इलेक्‍ट्रानिक सामानों और कई चीजों व रूपये पैसे से समृद्ध होने लगते हैं । हालांकि कई कारण इस सम्‍बन्‍ध में प्रखर हैं किन्‍तु हर कारण इन किशोर युवाओं को आपराधिक दलदल में प्रविष्‍ट होने और सतत रहने की ओर ही प्रेरित करता है । सबसे अधिक खतरनाक तथ्‍य यह है कि केवल बालक किशोर युवा ही नहीं वरन बालिकायें किशोर नवयुवतियां भी इब इन गिरोहों में शामिल हो गयीं हैं । पिछले दिनों कई मामलों में मुरैना शहर में इस तरह की लड़कियों को पकड़ा गया ।  

 

क्रमश : जारी अगले अंक में .....      

 

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