रविवार, 1 जून 2008

उपभोक्ता के अधिकार

उपभोक्ता के अधिकार

ग्वालियर 31 मई 08 । उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिये सामान अथवा सेवायें खरीदता है वह उपभोक्ता है । क्रेता की अनुमति से ऐसे सामान/सेवाओं का प्रयोग करने वाला व्यक्ति भी उपभोक्ता है । अत: हम में से प्रत्येक किसी न किसी रूप में उपभोक्ता ही है ।

उपभोक्ता के रूप में हमें कुछ अधिकार प्राप्त हैं । मसलन सुरक्षा का अधिकार, जानकारी होने का अधिकार, चुनने का अधिकार, सुनवाई का अधिकार, शिकायत-निवारण का अधिकार तथा उपभोक्ता-शिक्षा का अधिकार ।

उपभोक्ता या कोई स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन जो समिति पंजीकरण अधिनियम 1860 अथवा कंपनी अधिनियम 1951 अथवा फिलहाल लागू किसी अन्य विधि के अधीन पंजीकृत है । इसके अलावा केन्द्र सरकार या राज्य सरकार अथवा संघ क्षेत्र का प्रशासन भी शिकायत दर्ज करवा सकता है ।

किसी व्यापारी द्वारा अनुचित/प्रतिबंधात्मक पध्दति के प्रयोग करने से यदि आपको हानि/क्षति हुई है अथवा खरीदे गये सामान में यदि कोई खराबी है या फिर किराये पर ली गई/उपभोग की गई सेवाओं मे कमी पाई गई है या फिर विक्रेता ने आपसे प्रदर्शित मूल्य अथवा लागू कानून द्वारा अथवा इसके मूल्य से अधिक मूल्य लिया गया है । इसके अलावा यदि किसी कानून का उल्लंघन करते हुये जीवन तथा सुरक्षा के लिये जोखिम पैदा करने वाला सामान जनता को बेचा जा रहा है तो आप शिकायत दर्ज करवा सकते हैं ।

उपभोक्ता द्वारा अथवा शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत सादे कागज पर की जा सकती है । शिकायत में शिकायतकर्ताओं तथा विपरीत पार्टी के नाम का विवरण तथा पता, शिकायत से संबंधित तथ्य एवं यह सब कब और कहां हुआ आदि का विवरण, शिकायत में उल्लिखित आरोपों के समर्थन में दस्तावेज साथ ही प्राधिकृत एजेंट के हस्ताक्षर होने चाहिये । इस प्रकार की शिकायत दर्ज कराने के लिये किसी वकील की आवश्यकता नही होती । साथ ही इस कार्य पर नाममात्र न्यायालय शुल्क ली जाती है ।

शिकायत कहां की जाये, यह बात सामान सेवाओं की लागत अथवा मांगी गई क्षतिपूर्ति पर निर्भर करती है । अगर यह राशि 20 लाख रूपये से कम है तो जिला फोरम में शिकायत करें । यदि यह राशि 20 लाख रूपये से अधिक लेकिन एक करोड़ रूपये से कम है तो राज्य आयोग के समक्ष और यदि एक करोड़ रूपसे अधिक है तो राष्ट्रीय आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज करायें । वैबसाईट www.fcamin.nic.in पर सभी पते उपलब्ध हैं ।

उपभोक्ताओं को प्रदाय सामान से खराबियां हटाना, सामान को बदलना, चुकाये गये मूल्य को वापिस देने के अलावा हानि अथवा चोट के लिये क्षतिपूर्ति । सेवाओं में त्रुटियां अथवा कमियां हटाने के साथ-साथ पार्टियों को पर्याप्त न्यायालय वाद-व्यय प्रदान कर राहत दी जाती है ।

 

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