मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

कांग्रेस पटरी पर आने की मशक्‍कत बाकी, भाजपा की पटरी की खोंज, इस मंथन में छिपे हैं गूढ़ अर्थ

कांग्रेस पटरी पर आने की मशक्‍कत बाकी, भाजपा की पटरी की खोंज, इस मंथन में छिपे हैं गूढ़ अर्थ

भाग -1

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

पिछले कुछ समय से देश में राजनीतिक संघर्ष काफी हद तलक बढ़ा है और इस शीत युद्ध के चलते आखिर आज यह शीत जंग मुखर होकर उस मुकाम पर आ पहुँची है कि अब खुल कर मुकाबला ही लाजमी हो गया है ।

अगर देश के राजनीतिक इतिहास पर पिछले कुछ अर्से के दरम्‍यान चली गयी राजनीतिक व कूटनीतिक मोहरेबाजी एवं पैंतरेबाजी पर नजर डालें तो भारत के राजनीतिक इतिहास का स्‍याह पन्‍ना ही नजर आयेगा और इस स्‍याह के पीछे एक खूनी मंजर भी दृष्टिगोचर हो जायेगा ।

सत्‍ता के इस खूनी द्वंद्व में अगर  शिकार और घायल कोई हुआ है तो वो है केवल जनता सिर्फ आम नागरिक आम आदमी और शिकारी रहे हैं देश कें राजनेता और राजनीतिक दल ।

एक समय था जब कांग्रेस प्रचण्‍ड बहुमत के साथ केन्‍द्र में सत्‍तासीन थी और कांग्रेस के नाम की सारे देश में तूती बोलती थी वही भाजपा महज दो सांसदों से खाता खोलने वाली एक बेहद तुच्‍छ और अनजानी पार्टी किसी जमाने में हुआ करती थी ।

पहले यह जान लेना बेहतर है कि कोई भी राजनीतिक दल इस देश के साधारण लोगों से ही बनता है और वे सभी साधारण लोग पूरे देश में एक जैसे हैं इस प्रकार बन्‍द बोतल पर लेबल कोई सा भी चिपका हो उसमें अंदर भरी शराब हर बोतल में एक जैसी ही है । वैसे ही किसी भी राजनीतिक दल में सब इसी देश के एक जैसे ही लोग शामिल हैं ।

चाहे कांग्रेस हो, चाहे भाजपा हो या तेलगू देशम या मनसे या शिवसेना या कोई और सभी पार्टियों में इस देश में रहने वाले लोग ही बसते हैं ।

राम मंदिर क्‍लेश और भाजपा

भगवान राम को लेकर एक जुनून देश में खड़ा करने वाली भाजपा को सत्‍ता हथियाने के लिये भगवान राम को और उनकी इज्‍जत को दांव पर लगाना पड़ा राम को वोटों से बेचने के लिये जितना घृणित खेल खेला गया शायद यह भारत के इतिहास में सत्‍ता प्राप्ति के लिये पहले कभी नहीं हुआ ।

आज सवाल यह है कि किसी अन्‍य राजनीतिक दल में या बगैर राजनीतिक दल वाले लोग जो कि भाजपा के सदस्‍य नहीं हैं क्‍या वे हिन्‍दू नहीं हैं या राम के भक्‍त नहीं हैं ।

क्‍या जो भाजपा या शिवसेना में हैं इस देश केवल वे ही हिन्‍दू हैं । आज यह सवाल भाजपा और शिवसेना जैसे दलों के सामने मुँह बाये खडा है और आने वाले दिनों में इस देश में जो जंग होगी वो हिन्‍दूओं में आपस होगी और यह बेहद खतरनाक होगी । केवल बात और मुद्दा महज यह होगा कि हिन्‍दू कौन है और कौन नहीं , कैन असल हिन्‍दू है और कौन फर्जी हिन्‍दू ।

लेकिन इस खतरनाक जंग जो कि आने वाले दिनों में बेहद गर्म होकर कड़ाही से बाहर आने वाला है, इसका बेहद सार्थक नतीजा भी निकलेगा और यह नतीजा यह होगा कि यह तय हो जायेगा कि लम्‍बे समय तक देश को लत्‍ते का सांप बना कर भयभीत व आतंकित रखा गया ।

हालांकि इसमें कई बातें बाहर निकल कर सामने आयेंगीं संभवत: जिनके जवाब भाजपा या शिवसेना के पास कतई नहीं होगे । और यह भी कि ताजन्‍म नहीं होंगें ।

अगर गैर कांग्रेसी सरकारों में कुछ बेहतरी है तो केवल इतनी सी है कि उसके पास तीन बहुत बेहतर नेता आज के वक्‍त में हैं मगर ये तीनों ही नेता भागवान राम के आंदोलन के कारण नहीं बल्कि अपने काम काज और समदृष्‍टा होने के कारण और बेहतरीन प्रशासनिक क्षमताओं और अर्जी फर्जी मुद्दों से खुद को दूर रखने के कारण हैं । ये तीनों नेता हैं एक तो भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जो कि अब भाजपा से रिटायर्ड हैं , दूसरे हैं गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदी जो सदा शान्‍त शालीन रहने के अलावा बहुत ही बेहतर राज काज प्रशासनिक क्षमता से संपन्‍न एवं समदर्शी प्रवृत्ति के नेता हैं तथा फर्जी हिन्‍दूत्‍व और फर्जी धर्मान्‍धता से स्‍वयं को दूर रख कर एक बेहद लोकप्रिय व उत्‍कृष्‍ट छवि के धनी हैं । तीसरे नेता बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतिश कुमार हैं जिनका कार्यव्‍यवहार एवं कार्य प्रणाली नरेन्‍द्र मोदी के ही समान है और संवेदनशील प्रशासन देने कें मामले में आल अगर शान से किसी का नाम लिया जायेगा तो वह नीतिश कुमार का ।

क्रमश: अगले अंक में जारी .....     

 

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