मंदी व मंहगाई की मार झेलती जनता  हो रही है ठगी का भी शिकार
निर्मल रानी      
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अम्बाला शहर,हरियाणा।
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अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर छाई मंदी जहां बड़े -बडे  उद्योगों तथा कारपोरेट जगत से जुडे लोगों को आर्थिक  संकट से ठीक तरह से उबरने नहीं दे रही है वहीं बेतहाशा बढ़ती महंगाई ने भी आम लोगों  की कमर तोड़ कर रख दी है। हालांकि सरकार द्वारा मंदी व महंगाई को लेकर तरह तरह के तर्क  पेश किए जा रहे हैं परंतु हकींकत तो यही है कि अब  आम जनता पर इन आर्थिक हालात का प्रभाव पड़ता सांफ दिखाई दे रहा है। आम लोगों के खाने  की थाली में या तो दाल व सबियों की कटोरी की संख्या में कमी आते देखी जा रही है या  फिर इनकी मात्रा घटती जा रही है। कोई नाश्ता करना बंद कर मंहगाई से जूझने के तरीके  अपना रहा है तो कोई भोजन की मात्रा में ही कमी करने को ही मजबूर है। परंतु इन्हीं हालात  के बीच देश में एक  वर्ग ऐसा भी सक्रिय है जिसपर  मंदी या मंहगाई का कोई असर नहीं देखा जा रहा है। और यह वर्ग जनता में लालच पैदा कर  तथा उन्हें तरह तरह के विज्ञापनों के माध्यम से अपनी ओर आकर्षित कर उनकी जेब पर डाका  डालने का क ाम कर स्वयं ख़ूब धन कमा रहा है। इनके द्वारा मंहगाई व मंदी की परवाह किए  बिना जनता से मोटे नोट वसूले जा रहे हैं। 
                              ठग सम्राट नटवर लाल के  एक कथन का यहां उल्लेख करना उचित होगा। कांफी पहले नटवर लाल ने पूरे आत्मविश्वास के  साथ यह कथन प्रस्तुत किया था कि जब तक  संसार  में लालच ंजिंदा है तब तक ठग कभी भूखा नहीं मर सकता। निश्चित रूप से आज चाराें ओर उसी  कथन की पुष्टि होती दिखाई दे रही है। रोंजमर्रा के प्रयोग में आने वाली अधिकांश दैनिक  उपयोगी वस्तुओं की बिक्री हेतु जो ऑंफर दिए जाते हैं उनमें फ्री शब्द का उल्लेख बड़े  मोटे अक्षरों में किया जाता है। उदाहरण के तौर पर यदि आप एक टूथ पेस्ट ंखरीदते हैं  तो उसके साथ टूथब्रश फ्र ी होने का लालच कंपनी द्वारा दिया जाता है। इस प्रकार के अनेकों  उत्पाद ऐसे हैें जो दो के साथ एक फ्री या चार के साथ एक फ्री आदि अलग-अलग शर्तों व  नियमों के हिसाब से बेचे जा रहे हैं। यहां तक कि अब तो ग्राहक स्वयं ऐसी फ्री योजनाओं  वाली वस्तुओं की मांग करने लगा है। लगता है भारतीय बांजार की इस नब्ंज की न के वल बड़े  व मध्यम वर्गीय उद्योगों द्वारा पहचान कर ली गई है बल्कि छोटे स्तर पर भी उपभोक्ताओं  की इसी कमंजोरी का ंफायदा उठाया जाने लगा है। 
            इसी प्रकार  ंफर्जी व ठगी से परिपूर्ण कारोबार में लालच में  फसाने की शुरुआत टोल फ्री टेलींफोन नंबर का आकर्षण दिखाकर शुरु होती है। आम जनता टोल  फ्री नंबर के झांसे में आकर सम्बध्द कंपनी से बात तो कर लेती है परंतु इसके  पीछे के इस रहस्य को वह अनदेखा कर देती है कि कंपनी  अपने ऑंफिस या उद्योग का पूरा पता प्रकाशित या प्रसारित करने के बजाए केवल टोल फ्री  नंबर से ही आख़िर क्यों अपना काम चलाना चाह रही है। और यही टोल फ्री नंबर किसी भी ग्राहक  को अपनी ओर आकर्षित करने में वही भूमिका अदा करता है जोकि मछली फंसाने हेतु कांटे में  लगाए गए चारे की होती है। आईए अपनी बात की शुरुआत प्रसिद्ध स्काईशॉप द्वारा विभिन्न  टी वी चैनल्स पर प्रसारित होने वाले विभिन्न सांजो-सामानों के  विज्ञापनों में से एक की करते हैं। पाठकों को यह  जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि मैं स्वयं ऐसी एक घटना की भुक्तभोगी हूं। स्काईशॉप  द्वारा किसी चैनल पर बार-बार एक विद्युत संबंधी सामग्री के दिए जाने वाले विज्ञापन  ने मुझे आकर्षित किया। बहुत अच्छे व तर्कपूर्ण तरीक़ ों से विज्ञापन द्वारा यह समझाया  जा रहा था कि अमुक यंत्र ंखरीदने से तथा उसे अपनी विद्युत लाईन में लगाने से आपके घर  की बिजली की खपत में 30  से लेकर  40 प्रतिशत तक की कमी आ जाएगी।  टोल फ्री नंबर पर मैंने बात की। दूसरी ओर से भी मुझे पूरी तरह से यह समझा दिया गया  कि यह दुनिया का सबसे अधिक बिकने वाला प्रॉडक्ट है तथा इसकी पूरी गारंटी भी है। कोई  एडवांस भी नहीं है। मैंने उस व्यक्ति को अपना नाम व पता सब कुछ बता दिया। मात्र एक  सप्ताह के भीतर हमारा पोस्टमैन एक गत्ते के डिब्बे में वी पी पी डाक लेकर हांजिर हो  गया। डिब्बा देखने में तो अवश्य कुछ    आकार  घेरने वाला अर्थात् लगभग पंखे के पुराने टाईप के रेगयूलेटर जैसे साईंज का था। परंतु  हाथ में लेने पर उसका वंजन 50  ग्राम  भी प्रतीत नहीं हो रहा था। बहरहाल चूंकि हमारा नियमित रूप से आने वाला पोस्टमैन  हमारे ही दिये हुए आर्डर की वी पी पी लाया था अत:  उसे छुड़ाना लांजमी था। लगभग 2500  रुपये अर्थात् निर्धारित  ंकीमत देकर मैंने वह वी पी पी छुड़ा ली। डिब्बा खोला तो उसमें प्लास्टिक के डिब्बे का  एक सील बंद बाक्स नंजर आया। उसमें दो इंडिकेटर लगे थे। उसे लगाने हेतु निर्देश पत्र  भी साथ था। बहरहाल मैंने मिस्त्री बुलाया,उसे उक्त यंत्र दिखाया तथा उसने कुछ सामान मंगाकर उक्त यंत्र लगा दिया। 
            विज्ञापन में प्रदर्शित  यंत्र के अनुसार उसमें लाल बत्ती जलनी चाहिए थी। जोकि नहीं जली। जब मैंने इस बात का  ंजिक्र पुन: टोल फ्री नंबर पर किया तब उसने पहले तो मुझसे ही कई प्रश् ऐसे कर डाले  जिससे लगा कि मैंने ही यह यंत्र ख़रीदकर ंगलती की है। बाद में उक्त व्यक्ति ने ंफोन  पर मुंबई का  एक पता बताते हुए कहा कि इस पते  पर वह यंत्र तथा उसके साथ भेजी गई मूल रसीद आदि सब कुछ पार्सल द्वारा भेज दें। यहां  मुझे यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा कि पैसे ख़र्च करने के बाद जब नया यंत्र काम नहीं  कर रहा है फिर आख़िर इस यंत्र व उसकी रसीद  मुंबई  वापस भेजने के बाद हमें क्या राहत मिल सकेगी। मुझे तब यह यंकीन हो गया कि मेरे साथ  ठगी हो चुकी है और मैं आज भी बिजली बचाने की लालच में 2500  रुपये  ख़र्च कर वह इलेक्ट्रिक सेवर जैसा बोझ लेकर घर में बैठी हूं। अंफसोस तो इस बात का है  कि इलेक्ट्रिक सेवर को लेकर मेरे ंजेहन में यह बात बाद में आई कि यदि कोई ऐसा यंत्र  सरकार तथा वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित किया गया होता तो ऐसी चींज बांजार में बिजली  के सामान संबंधी दुकानों पर उपलब्ध होती तथा मंहगी बिजली के इस दौर में घर-घर में लगी  दिखाई दे रही होती। 
            इसी प्रकार के टोल फ्री  नंबर देकर आज कल सेक्स संबंधी दवाएं बेचने का दावा किया जा रहा है। कोई गंजों के सिरों  पर बाल उगा रहा है तो कोई मर्दाना तांकत बढ़ाने की दवाई बेच रहा है। कोई दवाईयों से  मोटापा कम कर रहा है तो कोई शरीर की लंबाई बढ़ाने की लालच दे रहा है। कोई बालों का झड़ना  रोक रहा है तो कोई काली चमड़ी को गोरी करने के उपाय बता रहा है। जादू टोना, ज्योतिष,बेऔलाद को औलाद, पत्थरी का शर्तिया इलाज  जैसे तमाम फ़ंर्जी विज्ञापनों की तो मानों होड़ लगी हुई है। ज्योतिषियों तथा नग-पत्थर  आदि के विक्रे ताओं के नेटवर्क ने तो हद ही ख़त्म कर दी है। इनके विज्ञापन देखिए तो  आपको लगेगा कि मात्र एक नग धारण करने से ही आपको आपकी मनचाही हर वह चींज मिल जाएगी  जोकि आपको आपके अथक प्रयासों के बावजूद अब तक नहीं मिल सकी है। चाहे वह नौकरी हो या  वर-वधू,स्वास्थ्य हो या अन्य किसी  बड़ी समस्या से छुटकारा। यहां तक कि धन संपत्ति,रोंजगार और तो और प्रेम-प्रसंग में सफलता का झंडा गाड़ने  का दावा भी ज्योतिषियों के यह विज्ञापन करते हैं। 
            जनता के हित में यहां मैं  एक रहस्योदघाट्न यह करना चाहती हूं कि टोल फ्री ंफोन नंबर अथवा किसी विज्ञापन के समर्थन  में प्रकाशित होने वाले ग्राहकों के बयानों से आप पूर्णतया सचेत रहें। क्योंकि जिस  ग्राहक की ंफोटो,  किसी  विशेष दवा अथवा अन्य प्रॉडक्ट के पक्ष में उसे प्रयोग में लाने का दावा करने वाला उसका  वक्तव्य तथा उसका ंफोन नंबर आदि जो कुछ भी आप देख रहे हैं वह सब कुछ ंफंर्जी हो सकता  है। काल सेंटर में काम करने वाले युवक युवतियों की तरह ही ठगी के धंधे में लगी कंपनियां  ऐसे साधारण पढ़-लिखे बेराोगार युवकों की बांकायदा भर्ती करती हैं जो समाचार पत्र में  किसी उत्पाद के समर्थन में प्रकाशित ंफोन नंबर व नाम की ंफोन काल लेते हैं। उन्हें  इस बात की टे्रनिंग दी जाती है कि वे किस प्रकार ंफोन कर्ता को यह बताकर संतुष्ट करें  कि अमुक दवाई या उत्पाद बिल्कुल सटीक,ंफायदेमंद तथा तुरंत परिणाम देने वाला है। और इसी झांसे  में आकर कोई भी सीधा-सादा परेशान हाल ग्राहक मजबूरी में इनका शिकार हो जाता है और यदि  मामला सेक्स अथवा गुप्त रोग संबंधी हो फिर तो वह ग्राहक शर्म के मारे किसी से कुछ बताने  अथवा शिकायत करने योग्य भी नहीं रह जाता। 
            लिहांजा जनता को चाहिए  कि वह ऐसे ंफंर्जी विज्ञापनों के झांसे में हरगिंज न आएं। आज ऐसे धंधों को संचालित  करने वाले लोग सैकड़ों करोड़ की संपत्ति के मालिक बन बैठे हैं जबकि देश का आम आदमी मंहगाई  के बोझ तले निरंतर दबता जा रहा है। और दुर्भागयवश यही आम आदमी ठगी का नेटवर्क चलाने  वाले सरगनाओं के निशाने पर भी है। 
                                                                                                निर्मल  रानी                                                                   
 
 
 
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